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फ़ोर्ट विलियम - एक साम्राज्य का उदय और पतन

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित, फ़ोर्ट विलियम, शहर के विकास की कहानी को अपने गर्भ में समेटे हुए है। यह किला इतिहास के ऐसे निर्णायक क्षणों का साक्षी है, जो न केवल बंगाल के लिए बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे। एक के बाद एक होने वाली बड़ी राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ किले परिसर भी विकसित होता गया। औपनिवेशिक काल का यह भवन अब भारतीय सेना की पूर्वी कमान के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। सामरिक सैन्य क्षेत्र होने के कारण, इस किले में आम नागरिकों का प्रवेश निषेध है। परंतु, किले से जुड़ा रोचक इतिहास आम जनता के बीच काफी कौतूहल जगाता है।

A view of the Salimgarh Fort Gate

फ़ोर्ट विलियम के भीतर का एक दृश्य, विलियम वुड द्वारा जल रंगों से बनाया गया चित्र, 1828 ई. चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

पुराना फ़ोर्ट विलियम

हुगली नदी के तट पर स्थित फ़ोर्ट विलियम की मूल संरचना 1696 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा निर्मित की गई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी (ईआईसी) जो कि एक व्यापारिक कंपनी के रूप में भारत आई थी, इस दौरान भारतीय भूमि पर मज़बूत पकड़ बनाने के लिए अपनी व्यावसायिक भूमिका से कहीं आगे निकल गई थी। 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान, ईआईसी ने बंगाल में शुल्क मुक्त व्यापार करने का अधिकार हासिल कर लिया जिसके तहत उन्होंने यहाँ कारखाने बनाए। 1698 ई. तक उन्होंने सूतानुति, कलकत्ता और गोविंदपुर शहरों से कर वसूल करने का अधिकार भी हासिल कर लिया था। इसके लिए एक ऐसे व्यापारिक गढ़ और सैन्य छावनी के निर्माण की आवश्यकता थी जो न केवल स्थानीय शासकों के खिलाफ बल्कि अन्य प्रतिस्पर्धी यूरोपीय शक्तियों के खिलाफ़ भी उनके व्यापारिक हितों की रक्षा करने में उनकी मदद कर सके।

The prison at Salimgarh, Image Source: Wikimedia Commons

पुराने फ़ोर्ट विलियम की एक चित्रकारी, 1754 ई. चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

पुराने फ़ोर्ट विलियम को दो मंज़िली ईंट संरचना के रूप में, बाहर की ओर निकले हुए उपभवनों, के साथ बनाया गया था। 1700 ई. में, इस संरचना को आधिकारिक तौर पर किंग विलियम III के नाम पर "फ़ोर्ट विलियम" नाम दिया गया था। इस समय तक कलकत्ता को प्रेसीडेंसी कहा जाने लगा था और ईआईसी के गवर्नर और गवर्नर-जनरलों ने "बंगाल में फ़ोर्ट विलियम" का अतिरिक्त पदनाम ग्रहण कर लिया था। सर चार्ल्स एयेर "बंगाल में फ़ोर्ट विलियम के पहले गवर्नर और गवर्नर-जनरल" थे। उन्होंने किले के दक्षिण-पूर्वी बुर्ज और बगल की दीवारों का निर्माण कराया था। उनके उत्तराधिकारी जॉन बियर्ड ने 1702 ई. में उत्तर-पूर्वी बुर्ज बनवाया था। 1716 ई. तक उसका निर्माण पूरा हो गया था। कलकत्ता शहर पुराने फ़ोर्ट विलियम के आसपास विकसित हुआ, वहीं आधुनिक कलकत्ता इसकी संतान और उत्तराधिकारी के समान है।

The Swatantrata Senani Smarak, Image Source: Wikimedia Commons

सेंट जॉन्स चर्च, कोलकाता में ब्लैक होल स्मारक। चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

ब्लैक होल त्रासदी

17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान जब मुगल साम्राज्य का सूर्यास्त होने लगा था, तब बंगाल के नवाबों ने, स्वतंत्र शासकों के रूप में अपने पैर जमाने शुरू कर दिए थे। ईआईसी, जिसके बंगाल में वाणिज्यिक हित लगातार बढ़ रहे थे, को अक्सर नवाबों के विद्वेष का सामना करना पड़ता था क्योंकि नवाबों को उनकी गतिविधियों पर संदेह रहा करता था। दूसरी ओर, अंग्रेज़ों द्वारा स्वदेशी व्यापारियों को सीमा शुल्क मुक्त व्यापार करने के लिए मुफ़्त अनुमति-पत्र (पास) देकर और अपने ज़िलों में आने वाली वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाकर अक्सर अपने वाणिज्यिक विशेषाधिकारों का दुरुपयोग किया जाता था।

नवाब अलीवर्दी खान (1740-1756 ई.) ने दृढ़ता से शासन किया और कंपनी की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी। 1756 ई. में नवाब सिराजुद्दौला उनके उत्तराधिकारी बने, जो अपने पदारोहण के समय केवल 23 वर्ष के थे और अंग्रेज़ों पर और भी अधिक शक करते थे। इस समय के आसपास यूरोप में सात वर्षीय युद्ध पूरे ज़ोरों पर था, जिसके कारण अंग्रेज़ों और फ़्रांसीसियों ने बंगाल में अपनी किलेबंदी को और अधिक बढ़ा दिया। इससे सिराजुद्दौला नाराज़ हो गए और उन्होंने सारे निर्माण कार्यों को रोकने का आदेश दिया।

परंतु, अंग्रेज़ों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इसके बाद युवा नवाब ने एक विशाल सेना के साथ कलकत्ता की ओर कूच किया और जल्द ही आसपास के क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। इस पर, अंग्रेज़ गवर्नर और निवासी फ़ोर्ट विलियम की रक्षा के लिए सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी और कुछ कर्मचारियों की छोड़कर भाग गए। नवाब की सेना जल्द ही अंग्रेज़ों पर हावी हो गई और उन्हें बंदी बना लिया। इन कैदियों को रात के लिए एक छोटे से ताला बंद कमरे में बंद कर दिया गया था। जॉन ज़ेफ़ानिया हॉलैंड, जो ब्रिटिश सेना का नेतृत्व कर रहे थे, ने बताया कि लगभग 146 कैदियों को एक छोटी सी कालकोठरी में डाल दिया गया था ( जिसका माप केवल 18 फ़ीट x 14 फ़ीट था), जिनमें से अगले दिन केवल 23 लोग ही जीवित बचे थे। इस घटना को "ब्लैक होल त्रासदी" के रूप में जाना जाता है और अंग्रेज़ों द्वारा इसे भयावहता की रात के रूप में वर्णित किया जाता है।

हालाँकि, 1950 के दशक में भारतीय इतिहासकारों ने तर्क दिया कि हॉलैंड द्वारा कैदियों की संख्या को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था। अंग्रेज़ों ने इस अत्याचार का बदला लेने की ठानी और कर्नल क्लाइव और एडमिरल वॉटसन के नेतृत्व में एक सेना भेजी, जिसे स्पष्ट आदेश दिए गए थे कि, "अभियान का उद्देश्य न केवल बंगाल में ब्रिटिश उपनिवेश को फिर से स्थापित करना था, बल्कि कंपनी के विशेषाधिकार की पर्याप्त मान्यता प्राप्त करना और इसके नुकसान की भरपाई करना भी था।" क्लाइव ने जीत हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, नवाब के सेनापति और विश्वासपात्रों के साथ एक सुनियोजित साज़िश बनाई और 1757 ई. में प्रसिद्ध प्लासी के युद्ध में नवाब को हरा दिया।

1756 ई.के बाद- नया किला

प्लासी की लड़ाई में निर्णायक जीत ने भारत में कंपनी के भविष्य को बदल दिया। पुराना फ़ोर्ट, जो इतनी आसानी से नवाब की सेना के हाथ आ गया था, अब वह अपर्याप्त लगने लग गया था और एक दुर्जेय संरचना की आवश्यकता महसूस की गई, जो ईआईसी की बढ़ती राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की बुनियाद के रूप में कार्य कर सके। इस प्रबलित संरचना के निर्माण के लिए पुराने किले के आसपास के क्षेत्र को साफ़ कर दिया गया था और इसे "मैदान" कहा जाता था। वर्तमान में इसमें शहर का सबसे बड़ा पार्क शामिल है और इसे "कोलकाता के फ़ेफ़ड़ों" के रूप में जाना जाता है। वर्तमान किला परिसर 170 एकड़ से अधिक के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें कई औपनिवेशिक और आधुनिक संरचनाएँ एक साथ स्थित हैं।

The Swatantrata Senani Smarak, Image Source: Wikimedia Commons

मैदान, कोलकाता। चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

1758 ई. में रॉबर्ट क्लाइव ने नई संरचना का निर्माण शुरू कराया और 1781 ई. तक, उस समय 2 मिलियन पाउंड की लागत पर, निर्माण का पहला चरण पूरा हुआ। निर्माण का दूसरा चरण 1860 के दशक में शुरू हुआ और सदी के अंत तक चला। ईंट और चूने से बना यह नया किला, एक अनियमित अष्टकोण के रूप में बनाया गया था और इसमें जॉर्जियाई और गोथिक शैलियों से प्रेरित संरचनाएँ शामिल थीं।

इस संरचना को एक तारे के आकार के किले के रूप में डिज़ाइन किया गया था, जिसकी परिधि का अधिकांश भाग भूमि की ओर स्थित थी। किले की दीवारों और किलाबंदियों को विस्फ़ोटक गोलाबारी के बजाय तोप की गोलाबारी (समय की आवश्यकता के अनुसार) से बचाने के लिए संरचित किया गया था। किले के चारों ओर एक खाई (जो कि अब सूख चुकी है) (9 मीटर गहरी और 15 मीटर चौड़ी) जलद्वार से छोड़े गए नदी के पानी से भरी जाती थी। किले के प्राचीर पर हज़ारों तोपें लगी हुई थीं। किले के अंदर जाने के लिए छ: द्वार थे, जिसमें, चौरंगी, प्लासी, कलकत्ता, वॉटर गेट, सेंट जॉर्ज और ट्रेज़री द्वार शामिल थे ।

The Swatantrata Senani Smarak, Image Source: Wikimedia Commons

फ़ोर्ट विलियम का नक्शा, 1844 ई. चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

किला परिसर के अंदर अन्न भंडार गृहों का निर्माण गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स (1772-1785 ई) द्वारा किया गया था। 1856 ई. में डलहौज़ी बैरक (लॉर्ड डलहौज़ी, 1848-1856, के नाम पर), एक चार मंज़िली इमारत, सैनिकों के रहने के लिए सेना की चौकी के रूप में बनाई गई थी। किचनर्स हाउस, जिसे शुरू में 1771 ई. में किला आक्रमण कंपनी के लिए एक ब्लॉकहाउस के रूप में बनाया गया था, 1784 ई. में ब्रिटिश भारतीय सेना के प्रधान सेनापति (कमांडर-इन-चीफ़) के लिए एक आधिकारिक निवास में परिवर्तित कर दिया गया था।

हालाँकि, इसका नाम बहुत बाद में पड़ा जब फ़ील्ड मार्शल हर्बर्ट होरेशियो किचनर, प्रथम अर्ल किचनर, 1902 और 1909 के बीच यहाँ रहे थे। अब इसे अधिकारियों के भोजनालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। सेंट पीटर्स एंग्लिकन चर्च, 1822 और 1825 ई. के दौरान निर्मित एक सुंदर गोथिक संरचना, बाइबिल से संबंधित विषय-वस्तुओं को दर्शाते हुए रंगीन काँच का उत्तम काम दर्शाता है। चर्च को अब एक पुस्तकालय में बदल दिया गया है।

The Swatantrata Senani Smarak, Image Source: Wikimedia Commons

सेंट पीटर्स एंग्लिकन चर्च, फ़ोर्ट विलियम

फ़ोर्ट विलियम जल्द ही ब्रिटिश भारत के लिए आधिकारिक शासन केंद्र के रूप में उभरा। 1833 के चार्टर अधिनियम के बाद, बंगाल के गवर्नर-जनरल के पद को "भारत के गवर्नर-जनरल" के पद में बदल दिया गया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद, भारत सरकार अधिनियम, 1858, के माध्यम से इस पद को "भारत के वायसरॉय" में परिवर्तित कर दिया गया था। ब्रिटिश शासन के तहत 1911 में राजधानी दिल्ली स्थानाँतरित होने तक कलकत्ता भारत की राजधानी बना रहा।

स्वतंत्रता के बाद, किले का नियंत्रण भारतीय सेना के हाथों में चला गया, जिसने किले में काफ़ी परिवर्धन और जीर्णोद्धार किए। किला परिसर में अब सुधार किए गए हैं और आधुनिक सुविधाओं, जैसे गोल्फ़ कोर्स, एक बॉक्सिंग स्टेडियम, एक स्विमिंग पूल, एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, रेस्तराँ, एक डाकघर और यहाँ तक कि एक सिनेमाघर से सुसज्जित किया गया है! इसमें एक संग्रहालय भी है जहाँ मध्ययुगीन काल से लेकर वर्तमान तक के कई प्रकार के हथियारों और कवचों को प्रदर्शित किया गया है। भारत-चीन युद्ध (1962 और 1967) और भारत-पाक युद्ध (1971) के शहीदों को समर्पित स्मारक के रूप में 1996 में निर्मित विजय स्मारक, किले के पूर्वी द्वार के बगल में स्थित है। इसमें पूर्वी कमान के प्रतीक चिन्ह के साथ तीन लंबे ग्रेनाइट स्तंभ शामिल हैं।

द बॉल टॉवर: एक बीते युग का प्रहरी

फ़ोर्ट विलियम में एक आकर्षक संरचना- बॉल टॉवर भी है, जिसका एक दिलचस्प इतिहास है। यह टावर, विद्युत टेलीग्राफ़ से पहले की एक संचार प्रणाली का हिस्सा था जो अब अप्रचलित हो चुकी है, जिसे सेमाफ़ोर टेलीग्राफ़ के नाम से जाना जाता था। यह विशेष बॉल टॉवर वास्तव में फ़ोर्ट विलियम से चुनार तक की सीधी रेखा में 694 किलोमीटर की दूरी तक निर्मित टावरों की पूरी शृंखला में से एक था! प्रत्येक टावर में दूर से दिखाई देने वाली संरचना के शीर्ष पर स्थापित एक उपकरण होता था। उपकरण में हिलते-डुलते अंश होते थे जो वर्णमाला के एक शब्द को दर्शाने के लिए घूम सकते और स्थिति बदल सकते थे।

टेलीस्कोप से लैस दो लोग एक टावर के दोनों तरफ पड़ोसी टावर से संकेत प्राप्त करने के लिए तैनात रहते थे, जिसे बाद में सेमाफ़ोर ऑपरेटर को भेज कर दिया जाता था, जो फिर अगले टावर को संकेत भेज देता था। ऐसा कहा जाता है कि यह प्रणाली इतनी कुशलता से काम किया करती थी कि साफ़ मौसम वाले दिन, फ़ोर्ट विलियम और चुनार के बीच केवल 50 मिनट में संदेश पहुँच जाता था! फ़ोर्ट विलियम के 100 फ़ीट के टॉवर में कोलकाता-चुनार लाइन की मुख्य परिचालन व्यवस्था स्थापित थी। शुरू में 1824 ई. में इसे जहाजों के लिए एक संकेत टावर के रूप में बनाया गया था। 1881 ई. में, टावर पर एक समय दिखाने वाली गेंद (टाइम बॉल) लगाई गई थी जिसे प्रतिदिन 12:55 बजे ऊपर उठाया जाता था और 13:00 बजे उतारा जाता था। इसके बाद से इस संरचना को बॉल टावर के नाम से जाना जाने लगा। 1850 ई. के बाद, सेमाफ़ोर टेलीग्राफ़, विद्युत टेलीग्राफ़ की शुरुआत के साथ, धीरे-धीरे अप्रचलित हो गया।

The Swatantrata Senani Smarak, Image Source: Wikimedia Commons

बॉल टॉवर, फ़ोर्ट विलियम। चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

कभी दमनकारी ब्रिटिश राज का प्रतीक फ़ोर्ट विलियम अब एक आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र की सैन्य छावनी में तब्दील हो गया है। समय के साथ भारतीय सेना ने किला परिसर के चयनित क्षेत्रों में आम जनता को जाने की अनुमति दे दी है। 16 दिसंबर 2019 को, 1971 के भारत-पाक युद्ध में हमारे देश द्वारा हासिल की गई निर्णायक जीत की स्मृति में मनाए जाने वाले 48वें विजय दिवस के अवसर पर , यह घोषणा की गई थी कि विजय स्मारक रविवार और सार्वजनिक छुट्टियों के दिन सभी के लिए खुला रहेगा।

साम्राज्यवादी साम्राज्य के उत्थान और पतन के साथ-साथ एक स्वतंत्र राष्ट्र के विकास का साक्षी, एक ऐतिहासिक इमारत के रूप में, फ़ोर्ट विलियम इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि इतिहास निरंतर निर्माणाधीन रहता है।