प्रफुल्ल चंद्र चाकी
प्रफुल्ल चंद्र चाकी, जो दिनेश चंद्र रॉय के नाम से भी जाने जाते थे, क्रांतिकारी समूह जुगांतर का हिस्सा थे। वे एक भारतीय राष्ट्रवादी थे तथा क्रांतिकारी विचारों एवं तरीकों के सच्चे समर्थक थे। जुगांतर समूह औपनिवेशिक बंगाल के सबसे प्रमुख क्रांतिकारी समूहों में से एक था और ऑरोबिंदो घोष, उनके भाई बारिन घोष, भूपेंद्रनाथ दत्ता, राजा सुबोध मलिक आदि इसके सदस्य थे।
प्रफुल्ल चंद्र चाकी का जन्म 10 दिसंबर 1888 को, वर्तमान बांग्लादेश के बोगरा ज़िले में हुआ था, जो अंग्रेज़ी शासन के दौरान बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। वे राजनारायण चाकी और सवर्णोमोई देवी की पाँचवी संतान थे। उनके भीतर स्वतंत्र भारत देखने की तीव्र इच्छा बहुत कम उम्र में ही पैदा हो गई थी। नामुजा जनदा प्रसाद इंग्लिश स्कूल में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात्, वे अपने बड़े भाई प्रताप चंद्र चाकी के साथ रंगपुर चले गए। रंगपुर नैशनल स्कूल में जितेंद्रनारायण रॉय, अबिनाश चक्रवर्ती, इशान चंद्र चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों के साथ प्रफुल्ल चाकी के साहचर्य ने उन्हें क्रांतिकारी दर्शन पर विश्वास करने और उन सिद्धांतों पर कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
जब वे रंगपुर में थे, तब वे बारिन घोष से मिले, जो जुगांतर बंगाली साप्ताहिक के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। घोष ने प्रफुल्ल चाकी को जुगांतर समूह में शामिल होने के लिए कलकत्ता जाने के लिए राज़ी कर लिया। प्रफुल्ल का पहला कार्यभार सर जोसेफ़ बैंपफ़ील्ड फ़ुलर (1854-1935) को गोली मारना था, जो पूर्वी बंगाल और असम के नए प्रान्त के पहले उप राज्यपाल थे। दुर्भाग्य से, योजना अमल नहीं हो पाई, क्योंकि सर जोसेफ़ के यात्रा कार्यक्रम में अंतिम समय में एक बदलाव आ गया था। प्रफुल्ल को एक और अवसर दिया गया, जहाँ उन्हें और खुदीराम बोस को बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के मजिस्ट्रेट किंग्सफ़ोर्ड की हत्या करने के लिए चुना गया। कलकत्ता के मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य करते समय किंग्सफ़ोर्ड ने बंगाल के युवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ़ कठोर और क्रूर दंडादेश जारी किए थे। किंग्सफ़ोर्ड का कार्यकाल अन्यायपूर्ण आदेशों से भरा था और इस कारण वे क्रांतिकारी संगठनों के निशाने पर आ गए थे। प्रफुल्ल और बोस को योजना को पूर्ण करने के लिए मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) भेजा गया था। इस अभियान के लिए प्रफुल्ल को अपनी पहचान छुपाने के लिए 'दिनेश चंद्र रॉय' नाम दिया गया था।
प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस ने 30 अप्रैल 1908 को मुज़फ़्फ़रपुर बम मामले को अंजाम दिया। उस दिन, दोनों किंग्सफ़ोर्ड की गाड़ी के आने की प्रतीक्षा में, यूरोपीय क्लब के द्वार पर बमों के साथ प्रतीक्षा कर रहे थे। जैसी ही गाड़ी वहाँ पहुँची, उन्होंने बम फ़ेंका, जिससे गाड़ी पूर्णतः ध्वस्त हो गई। दुर्भाग्य से, किंग्सफ़ोर्ड गाड़ी में मौजूद नहीं थे। उनके बजाय, मुज़फ़्फ़पुर बार के एक प्रमुख वकील, मिस्टर प्रिंगल केनेडी की पत्नी और उनकी बेटी उसमें यात्रा कर रहे थे। केनेडी की पत्नी और बेटी की आकस्मिक हत्या से लोग डर गए। प्रफुल्ल और खुदीराम बोस ने घटनास्थल से भाग कर बचने के लिए अलग-अलग रास्ते अपनाए।
प्रफुल्ल समस्तीपुर पहुँचे, जहाँ एक रेल कर्मचारी, त्रिगुणा चरण घोष ने उन्हें शरण दी | 01 मई 1908 को, उन्हें मोकामा के लिए प्रस्थान करने वाली रात की रेलगाड़ी में चढ़ने के लिए एक इंटर-क्लास टिकट भी दिया गया था। परंतु उसी डिब्बे में यात्रा कर रहे एक पुलिस अधिकारी, नंदलाल बैनर्जी को प्रफुल्ल पर संदेह हुआ और उन्होंने मोकामा रेलवे स्टेशन के प्लैटफ़ॉर्म पर उन्हें गिरफ़्तार करने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप निडर प्रफुल्ल ने, गिरफ़्तारी से बचने के लिए खुद को अपनी ही बंदूक से गोली मार ली।
ऐसा कहा जाता है कि उनका सिर काट कर कलकत्ता भेजा गया, ताकि वह खुदीराम बोस द्वारा पहचाना जा सके, जो खुद भी उस समय कैद कर लिए गए थे। ऐसी थी इन भारतीय क्रांतिकारियों के प्रति अंग्रेज़ी शासन की क्रूरता। 01 मई 1908 को, 20 वर्षीय प्रफुल्ल चंद्र, ऐसे युवा क्रांतिकारियों में से एक बन गए जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए खुद के प्राणों की आहुति दे दी।