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लाल किला- भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता का चिरस्थायी प्रतीक

 

"... इस ब्रह्मांड में इतना मज़बूत किला और कोई नहीं हो सकता – शायद आकाश तले ऐसा कोई किला नहीं है जो नभ में, सूर्य और चंद्रमा की तरह जगमगाता हो। इसकी संरचनाएँ कल्पना से परे हैं। इसका हर कोना जगमगाहट से भरपूर है और हर दिशा में उत्तम बगीचे हैं। यह स्वर्ग का ही एक रूप है।"
-मुहम्मद वारिस, बादशाहनामा

 

Front view of the Red Fort. Image Source: Wikimedia Commons

लाल किले के सामने का दृश्य। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

लाल किला एक प्रतिष्ठित स्मारक है, जो भारत की समृद्ध राजनीतिक विरासत, स्वतंत्रता और संप्रभुता का पर्याय है। 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा निर्मित. यह किला परिसर भारत में सबसे बड़ा और सबसे भव्य है। यह हमारे देश के राजनीतिक इतिहास के परिवर्तनों से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

व्युत्पत्ति- एक नया शहर, राजधानी और एक गढ़

A painting of the Red Fort and the Yamuna river by Ghulam Ali. Image Source: Wikimedia Commons

गुलाम अली द्वारा बनाई गई लाल किला और यमुना नदी की एक चित्रकारी। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

लाल किला, दिल्ली के सबसे पुराने और व्यस्ततम बाज़ारों में से एक, चाँदनी चौक, के पूर्वी छोर पर स्थित है। इस बाज़ार की उत्पत्ति शाहजहाँनाबाद में हुई थी, जो शाहजहाँ द्वारा स्थापित एक नई राजधानी थी। वास्तव में, लाल किले को इस राजधानी के केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था। इसे मुगलों के प्रमुख सत्ता केंद्र के रूप में बनाया गया था। किले और शहर की स्थापना, एक योजनाबद्ध तरीके से की गई थी और इसमें बेहतरीन वास्तुकार तथा सबसे चुनिंदा संसाधनों को नियोजित किया गया था। किले के निर्माण के लिए जो स्थान चुना गया था, वह पुराने सलीमगढ़ किले के समीप था।

Lahori Gate, painting by Ghulam Ali. Image Source: Wikimedia Commons

गुलाम अली द्वारा बनाई गई चित्रकारी, लाहौरी दरवाज़ा। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

1639 ईसवी में एक शुभ समय पर, किले की नींव, मुख्य वास्तुकार उस्ताद हामिद और उस्ताद अहमद के मार्गदर्शन में रखी गई थी। बादशाह शाहजहाँ ने किले में व्यक्तिगत रुचि ली और वे चल रही निर्माण प्रक्रिया का स्वयं मार्गदर्शन भी किया करते थे। प्रमुख निर्माण कार्य, उस समय एक करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर, 1648 ईसवी तक पूरे कर लिए गए थे। किले का उद्घाटन बहुत धूमधाम और उत्सव के साथ किया गया था। इस अवसर को यादगार बनाने के लिए, गहने, तलवारें, बड़ी मात्रा में धन और मनसब, आदि, जैसे भव्य उपहार वितरित किए गए थे। किले का निर्माण मुगलों के राजनीतिक कौशल, भव्यता और कलात्मक उत्कृष्टता का प्रतीक था।

स्थापत्य

यह शानदार किला परिसर, 125 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी विशिष्ट लाल बलुआ पत्थर की दीवारें, लगभग 3 किमी. लंबी हैं और एक खाई से सुरक्षित हैं। परिसर में कुल 5 प्रवेश द्वारों के माध्यम से पहुँचा जा सकता था, जिनमें से तीन प्रमुख थे। पश्चिम दिशा में, चाँदनी चौक के सामने, लाहौरी दरवाज़ा नामक द्वार मुख्य प्रवेश द्वार था। दूसरा महत्वपूर्ण द्वार दिल्ली दरवाज़ा है, जो फ़ैज़ बाज़ार के रास्ते जामा मस्जिद से जुड़ा है। खिज़री दरवाज़ा वह प्रवेश द्वार था, जिसका इस्तेमाल शाहजहाँ ने किले का निर्माण पूरा होने के बाद, उसका उद्घाटन करने के लिए किया था।

Delhi Gate. Image Source: Flickr

दिल्ली दरवाज़ा। छवि स्रोत- फ़्लिकर

मुगल शाही शक्ति का एक भौतिक निरूपण

Shah Jahan holding durbar at Diwan-i-Am, 1650 CE. Image Source: Wikimedia Commons

दीवान-ए-आम में शाहजहाँ का दरबार , 1650 ईसवी। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

लाहौरी दरवाज़ा एक छत वाले बाज़ार की ओर जाता था, जिसे छत्ता चौक या छत्ता बाज़ार कहा जाता था। यह बाज़ार, जो कि एक छतदार दो मंज़िला मेहराबदार गलियारा था, फ़ारसी बाज़ारों के नमूने पर बनाया गया था। छत्ता बाज़ार आज भी अच्छी तरह से संरक्षित है और वर्तमान में भी यहाँ उत्कृष्ट शिल्प वस्तुएँ बिकती हैं। छत्ता चौक से नक्कारखाना या नौबतखाना की ओर जाया जाता था। यह दो मंज़िली इमारत, सम्राट और अन्य गणमान्य व्यक्तियों के आगमन की घोषणा करने के लिए, नगाड़ा बजाने वाले कक्ष के रूप में कार्य करती थी। ऐसा कहा जाता है कि सम्राट के जन्मदिन एवं अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर, यह कक्ष पूरे दिन संगीत से गूँजता रहता था।

Chatta Bazar. Image Source: Wikimedia Commons

छत्ता बाज़ार। छवि स्रोत- विकीमीडिया कॉमन्स

नक्कारखाने से दीवान-ए-आम या आम जनता से भेंट करने के कक्ष की ओर जाया जाता था, जहाँ सम्राट अपनी प्रजा से बात-चीत करते थे और उनकी फ़रियाद सुनते थे। इस स्तंभ युक्त लाल बलुआ पत्थर की संरचना में, संगमरमर से बने एक उँचे चबूतरे पर, संगमरमर का एक उत्कृष्ट सिंहासन है। सिंहासन के पीछे की दीवार तथा स्वयं सिंहासन, रूपांकनों से अलंकृत हैं, जो मुगल सम्राट को एक दैवीय सम्राट के रूप में स्थापित करते हैं। दीवार को दुर्लभ काले संगमरमर की पट्टियों से सजाया गया है, जिसमें जानवरों, पक्षियों और फूलदार रूपांकनों को दर्शाती हुई जटिल पच्चीकारी (पिएट्रा ड्यूरा) का काम किया गया है। ऐसा माना जाता है कि यह सजावटी कार्य इतालवी कला से प्रेरित है। सम्राट के बैठने की जगह के ठीक पीछे स्थित केंद्रीय तख्ते पर सुलेमान की आकृति बनी है, जो पैगंबर, राजा और न्यायाधीश के रूप में पूजनीय हैं। किले परिसर में, लाहौरी दरवाज़े से दीवान-ए-आम तक के हिस्से की बनावट, इस तरह से योजनाबद्ध और संरेखित की गई है कि सिंहासन और उस पर बैठे सम्राट का मुख, एक अभिभावक और रक्षक के तौर पर, सदैव शहर और उनकी प्रजा की तरफ होता था।

Canopied Marble Throne, Diwan-i-Am, painting by Ghulam Ali. Image Source: Wikimedia Commons

छत्र वाला संगमरमर का सिंहासन, दीवान-ए-आम, गुलाम अली द्वारा बनाई गई चित्रकारी। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

शाही निवास, आनंददायक महल और बगीचे

Shah Burj, painting by Ghulam Ali. Image Source: Wikimedia Commons

शाह बुर्ज, गुलाम अली द्वारा बनाई गई चित्रकारी । छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

इसके बाद परिसर के आवासीय भवन आते हैं, जिन्हें यमुना नदी के किनारे बनाया गया था। संरचनाओं के इस समूह की सबसे उत्तर दिशा में, शाह बुर्ज या राजा की मीनार है। अभिलेखों के अनुसार, यह संरचना केवल सम्राट और शाही बच्चों के लिए ही सुलभ थी। इस संरचना के शीर्ष पर एक छतरी थी, जो अब वहाँ नहीं है। शाह बुर्ज की दक्षिण दिशा में, एक सफ़ेद संगमरमर का मंडप है, जिसे हीरा महल कहते हैं। आगे दक्षिण दिशा में दो और महत्वपूर्ण संरचनाएँ हैं, जिन्हें मूल रूप से एक ही परिसर का हिस्सा माना जाता था- हम्माम या शाही स्नानागार और दीवान-ए-खास या खास लोगों से मिलने का कक्ष। केवल शाही परिवार के चुनिंदा सदस्यों, कुलीनों और गणमान्य व्यक्तियों को ही सम्राट के इन अनन्य और अंतरंग कक्षों तक जाने की अनुमति थी। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ पर कुछ चुनिंदा लोगों के बीच, राज्य के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर, चर्चाएँ होती थीं। हम्माम में संगमरमर की तराशी हुईं उत्कृष्ट टंकियाँ और जलाशय हैं, जिन्हें पच्चीकारी के काम से सजाया गया है। हम्माम की पश्चिम दिशा में मोती जैसे सफ़ेद संगमरमर से बनी मोती मस्जिद है, जिसे औरंगज़ेब द्वारा अपने निजी इस्तेमाल के लिए बनवाया गया था।

Takht-i-Taus or Peacock Throne at Diwan-i-Khas. painting by Ghulam Ali. Image Source: Wikimedia Commons

दीवान-ए-खास में तख्त-ए-ताऊस या मयूर सिंहासन। गुलाम अली द्वारा बनाई गई चित्रकारी। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

दीवान-ए-खास इस परिसर की सबसे शानदार इमारतों में से एक है। इसके अलंकृत आंतरिक भाग में, चाँदी और सोने से मढ़ी और कीमती पत्थरों से जड़ी हुई छत, अद्वितीय है। नाज़ुक फूलदार जड़ाई के काम वाले संगमरमर के स्तंभ, इस संरचना की आभा में चार चाँद लगा देते हैं। कहा जाता है कि दीवान-ए-खास में प्रसिद्ध रत्नों वाला सिंहासन, तख्त-ए-ताऊस या मयूर सिंहासन रखा था, जिसे 1739 ईसवी के आक्रमण के दौरान नादिर शाह अपने साथ ले गया था।

कहा जाता है कि रत्नों से जड़े इस सिंहासन को कोई और नहीं बल्कि बेशकीमती कोहिनूर हीरे से सजाया गया था। दीवान-ए-खास की दीवारों पर निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखी हुई हैं, जो इसकी अद्वितीय सुंदरता का उपयुक्त वर्णन करती हैं-

अगर फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं अस्त, हमीं अस्त-ओ हमीं अस्त-ओ हमीं अस्त।

धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।

A view of the interiors of Diwan-i-Khas. Image Source: Wikimedia Commons

दीवान-ए-खास के आंतरिक भागों का एक दृश्य। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

दीवान-ए-खास के निकट सम्राट के आवासीय कक्ष हैं, जिन्हें खास महल के नाम से जाना जाता है। खास महल को आगे तस्बीह खाना या निजी पूजा कक्ष, ख्वाबगाह या शयन कक्ष और बैठक या विश्राम कक्ष में विभाजित किया गया है। मुसम्मन बुर्ज, ख्वाब गाह की पूर्वी दीवार पर मेहराबदार खिड़कियों के साथ एक अर्ध-अष्टकोणीय मीनार है, जिसका इस्तेमाल सम्राट द्वारा झरोखा दर्शन के लिए किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि बहादुर शाह ज़फ़र ने, 1857 के विद्रोह के दौरान, क्रांतिकारियों को यहीं से संबोधित किया था। खास महल के दक्षिण में रंग महल है, जिसे इम्तियाज़ महल के नाम से भी जाना जाता है। यह सम्राट और शाही परिवार द्वारा मनोरंजन और विश्राम के लिए उपयोग किया जाने वाला एक आनंददायक महल था।

Rang Mahal, painting by Ghulam Ali. Image Source: Wikimedia Commons

रंग महल, गुलाम अली द्वारा बनाई गई चित्रकारी। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

लाल किला परिसर की एक प्रमुख विशेषता नहर-ए-बहिश्त या स्वर्ग की नहर है। यह नहर यमुना नदी से बनाई गई थी और शाह बुर्ज के बीच से बहती थी। यह नहर किले परिसर में, आवासीय भवनों और बगीचों के बीच से सर्पिलाकार मार्ग में बहती थी। यह नहर ख्वाब गाह के केंद्रीय कक्ष में, एक विस्तृत नक्काशीदार संगमरमर की पट्टिका के नीचे से बहती थी, जिस पर न्याय के तराजू उत्कीर्ण थे। इसके आगे यह नहर, रंग महल के केंद्रीय गलियारे के बीच से होती हुई बहती थी और आगे, किले के अन्य भवनों और बगीचों में बहने से पहले, एक खिलते हुए कमल के आकार के नक्काशीदार संगमरमर के जलाशय में, इसका पानी एकत्र होता था।

A view of carved marble screen beneath which the Nahr-i-Bahisht flowed, Khas Mahal. Image Source: Wikimedia Commons

नक्काशीदार संगमरमर की पट्टिका का एक दृश्य जिसके नीचे नहर-ए-बहिश्त बहती थी, खास महल। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

लाल किला परिसर में कई बगीचे थे, जिनमें से प्रमुख हयात बख्श बाग या "जीवन देने वाला बगीचा" है। यह बगीचा मुगल वास्तुकला की एक महत्वपूर्ण विशेषता, चार बाग या आनंददायक बगीचे, की अवधारणा पर बनाया गया था। बगीचे के उत्तरी और दक्षिणी छोर पर, सावन और भादों नामक संगमरमर से बने दो सुंदर मंडप एक दूसरे के सामने बनाए गए हैं। ज़फ़र महल नामक एक लाल बलुआ पत्थर का मंडप, बगीचे के केंद्र में, एक बड़े जलाशय के बीच में बनाया गया है। इसे 1842 ईसवी में बहादुर शाह ज़फ़र ने बनवाया था। बगीचे के जलाशयों और फ़व्वारों के लिए पानी, नहर-ए-बहिश्त द्वारा उपलब्ध कराया जाता था।

Zafar Mahal. painting by Ghulam Ali. Image Source: Wikimedia Commons

ज़फ़र महल। गुलाम अली द्वारा बनाई गई चित्रकारी। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

सबसे दक्षिणी आवासीय भवन का नाम मुमताज़ महल है, जिसका निर्माण आंशिक रूप से संगमरमर से किया गया था, अर्थात् इसकी दीवारों और स्तंभों के केवल निचले हिस्से संगमरमर से बनाए गए थे। अंग्रेज़ों द्वारा लाल किले पर कब्जा करने के बाद, इस इमारत को कुछ समय के लिए जेल के रूप में इस्तेमाल किया गया था। 1911 में, सम्राट जॉर्ज पंचम की यात्रा के दौरान, अंग्रेज़ों ने इमारत के एक हिस्से को संग्रहालय में बदल दिया। आज़ादी के बाद भी, यह इमारत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत, मुगल वस्तुओं को प्रदर्शित करने वाले संग्रहालय के रूप में बनी रही। हालाँकि, इस संग्रहालय को अब दूसरी इमारत में स्थानांतरित कर दिया गया है।

मुगल शक्ति और वैभव का पतन

18वीं शताब्दी ईसवी से शुरू होकर, मुगलों की शक्ति और शोहरत में लगातार गिरावट आई। औरंगज़ेब के उत्तराधिकारी कमज़ोर और अक्षम थे और मुगल साम्राज्य जल्द ही अपने अतीत के गौरव की छाया भर रह गया। परिहास में यह टिप्पणी भी की जाती थी कि सम्राट शाह आलम (1759-1806 ईसवी) का अधिकार क्षेत्र केवल लाल किले से पालम (दिल्ली का एक गाँव) तक ही फैला था। लाल किला, जो कि मुगल सत्ता का प्रतीक और केंद्र था, बाहरी आक्रमणकारियों और आंतरिक क्षय दोनों के कारण, धीरे-धीरे अपनी भव्यता खोने लगा था। बाद के मुगल शासकों ने, किले की बहुत सी कीमती वस्तुओं को उखाड़कर बेच दिया। नादिर शाह ने 1739 ईसवी में दिल्ली पर आक्रमण किया और वह अन्य मूल्यवान वस्तुओं के साथ-साथ मयूर सिंहासन और कोहिनूर हीरा भी ले गया।

1857 का विद्रोह और ब्रिटिश प्रतिशोध

A photograph of the Red Fort taken in the aftermath of the Uprising of 1857 by Major Robert Christopher Tytler & Harriet Tytler. Image Source: British Library

मेजर रॉबर्ट क्रिस्टोफ़र टाइटलर और हैरियट टाइटलर द्वारा ली गई, 1857 के विद्रोह के बाद लाल किले की एक तस्वीर। छवि स्रोत- ब्रिटिश लाईब्रेरी

हालाँकि, लाल किले की सत्ता को सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब 1857 के विद्रोह की विफलता के बाद, लाल किले पर अंग्रेज़ों ने अधिकार जमा लिया था। विद्रोह के दौरान, क्रांतिकारियों ने “दिल्ली में एकत्र होने का केंद्राभिमुखी आवेग” प्रदर्शित किया, और इस प्रकार लाल किला और मुगल सम्राट बहादुर शाह, एक साथ विद्रोह के लिए महत्वपूर्ण प्रतीक बन गए। अंततः, विद्रोह को कुचलने के बाद, अंग्रेज़ों ने इस किले की प्रख्याति को नष्ट करने और उसे पूर्णतः ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने परिसर के अंदर कई संरचनाओं को तबाह कर दिया और अन्य संरचनाओं को सैन्य गढ़ों में परिवर्तित कर दिया। बहादुर शाह ज़फ़र को गिरफ़्तार कर लिया गया और दीवान-ए-खास में उनपर मुकदमा चलाकर, उन्हें रंगून निर्वासित कर दिया गया। यद्यपि किले के कुछ कीमती रत्नों और खजाने को ब्रिटिश सैनिकों द्वारा लूट लिया गया था, अन्य रत्नों और बेशकीमती वस्तुओं को निकालकर, बड़ी सावधानी से इंग्लैंड भेज दिया गया।

अंग्रेज़ों के अधीन

इस तरह के प्रचंड विनाश के बावजूद, अंग्रेज़ हिंदुस्तान के लोगों की कल्पना में, किले और दिल्ली शहर के महत्व को कम नहीं कर पाए। इसके बजाय, उन्होंने इसे हथियाने का प्रयास किया। दिसंबर 1911 के राज्याभिषेक दरबार में, ब्रिटेन के महाराज जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी ने लाल किले की यात्रा की थी। वे मुसम्मन बुर्ज के छज्जे से, जनता के सामने वैसे ही उपस्थित हुए जैसे मुगल बादशाह झरोखा दर्शन के दौरान किया करते थे। राज्याभिषेक दरबार में यह भी घोषणा की गई कि अब से कलकत्ता के बजाय, ब्रिटिश भारत की राजधानी, दिल्ली होगी।

उपनिवेश विरोधी संघर्ष का गढ़ और संप्रभुता का प्रतीक

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के चरमोत्कर्ष पर, यह प्रतिष्ठित स्मारक एक बार फिर सुर्खियों में आया। आज़ाद हिंद फ़ौज या भारतीय राष्ट्रीय सेना को रास बिहारी बोस द्वारा संगठित किया गया था और 1940 के दशक की शुरुआत में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में इसे पुनर्जीवित किया गया था। नेताजी ने, ब्रिटिश राज से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के उद्देश्य से, "दिल्ली चलो" का प्रसिद्ध नारा लगाया था। अंग्रेज़ों के हाथों आज़ाद हिंद फ़ौज की हार के बाद, उसके सैनिकों और अधिकारियों को पकड़ लिया गया और उनपर राजद्रोह का आरोप लगाकर, लाल किले में मुकदमा चलाया गया। मुकदमे के परिणामस्वरूप राष्ट्रवादी भावनाएँ अपने चरम पर पहुँच गईं और लाल किला, उपनिवेशवाद विरोधी प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में फिर से उभरा। 15 अगस्त 1947 को, भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने और अगले ही दिन लाल किले के लाहौरी दरवाज़े पर, पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा तिरंगा फहराए जाने के साथ, राष्ट्रवादी अभ्युत्थान अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया।

Pt. Jawaharlal Nehru addressing a crowd at the Red Fort, 16th August, 1947.

16 अगस्त, 1947 को लाल किले पर जनसमूह को संबोधित करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू।

स्वतंत्रता के बाद, लाल किला, भारतीय सेना के प्राधिकार में आ गया और 2003 तक ऐसा ही रहा, जिसके बाद किले परिसर के प्रमुख क्षेत्र, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आ गए। इसके बाद, 2007 में, किले को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित कर दिया गया।

Badge of an INA soldier, displayed at a museum at the Red Fort.

लाल किले के संग्रहालय में प्रदर्शित, आज़ाद हिंद फ़ौज के एक सैनिक का बिल्ला।

लाल किला भारत की संप्रभुता और स्वतंत्रता का स्थायी प्रतीक बना हुआ है। वर्तमान में कई संग्रहालय, जिनमें भारतीय युद्ध स्मारक संग्रहालय, सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय, याद-ए-जलियाँ, 1857 संग्रहालय, और आज़ादी के दीवाने, भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानियों का वर्णन करते हैं और इससे जुड़ी तरह-तरह की यादगार वस्तुओं को प्रदर्शित करते हैं। प्रत्येक वर्ष, प्रधानमंत्री लाल किले के प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हैं और इस प्रकार देश की राजनीतिक और सांस्कृतिक विरासत में, इस प्रतिष्ठित इमारत के निरंतर महत्व की पुष्टि करते हैं।

The Tricolour flying at the Red Fort. Image Source: Wikimedia Commons

लाल किले पर लहराता तिरंगा। छवि स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स