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अजनान

Author: मलकानी, जी.आर. दास, आर. मूर्ति, टी.आर.वी.

Keywords: भारतीय दर्शन, वेदांत, भ्रम, तथ्य, ज्ञान

Publisher: लुज़ैक, लंदन

Description: यह भारतीय दर्शन का एक कार्य है जो विचार की 'वेदांत प्रणाली' को समझने में सहायता करता है। पुस्तक लेखकों की ‘अजनान’ (शाब्दिक रूप से, अज्ञानता) की अवधारणा की व्याख्याएँ और दर्शन के ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य को सम्मिलित करती है। यह विचारों और 'भ्रम के सिद्धांतों' तथा 'व्यक्तिपरक तथ्यों के मिथ्यात्व' पर भी परिचर्चा करती है। इसमें क्या जाना जा सकता है और मानव ज्ञान की समझ से परे की चीजों पर एक विश्लेषण सम्मिलित है। यह एक दिलचस्प कार्य है और इसमें अंत में एक परिशिष्ट भी सम्मिलित है।

Source: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार

Type: दुर्लभ पुस्तक

Received From: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार


DC Field Value
dc.contributor.author मलकानी, जी.आर. दास, आर. मूर्ति, टी.आर.वी.
dc.date.accessioned 2017-05-30T05:56:25Z
2018-06-07T03:54:52Z
dc.date.available 2017-05-30T05:56:25Z
2018-06-07T03:54:52Z
dc.description यह भारतीय दर्शन का एक कार्य है जो विचार की 'वेदांत प्रणाली' को समझने में सहायता करता है। पुस्तक लेखकों की ‘अजनान’ (शाब्दिक रूप से, अज्ञानता) की अवधारणा की व्याख्याएँ और दर्शन के ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य को सम्मिलित करती है। यह विचारों और 'भ्रम के सिद्धांतों' तथा 'व्यक्तिपरक तथ्यों के मिथ्यात्व' पर भी परिचर्चा करती है। इसमें क्या जाना जा सकता है और मानव ज्ञान की समझ से परे की चीजों पर एक विश्लेषण सम्मिलित है। यह एक दिलचस्प कार्य है और इसमें अंत में एक परिशिष्ट भी सम्मिलित है।
dc.source केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
dc.format.extent iii, 226p.
dc.format.mimetype application/pdf
dc.language.iso अंग्रेज़ी
dc.publisher लुज़ैक, लंदन
dc.relation.ispartofseries Calcutta Oriental Series, 26
dc.subject भारतीय दर्शन, वेदांत, भ्रम, तथ्य, ज्ञान
dc.type दुर्लभ पुस्तक
dc.date.copyright 1933
dc.identifier.accessionnumber AS-000170
dc.format.medium text
DC Field Value
dc.contributor.author मलकानी, जी.आर. दास, आर. मूर्ति, टी.आर.वी.
dc.date.accessioned 2017-05-30T05:56:25Z
2018-06-07T03:54:52Z
dc.date.available 2017-05-30T05:56:25Z
2018-06-07T03:54:52Z
dc.description यह भारतीय दर्शन का एक कार्य है जो विचार की 'वेदांत प्रणाली' को समझने में सहायता करता है। पुस्तक लेखकों की ‘अजनान’ (शाब्दिक रूप से, अज्ञानता) की अवधारणा की व्याख्याएँ और दर्शन के ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य को सम्मिलित करती है। यह विचारों और 'भ्रम के सिद्धांतों' तथा 'व्यक्तिपरक तथ्यों के मिथ्यात्व' पर भी परिचर्चा करती है। इसमें क्या जाना जा सकता है और मानव ज्ञान की समझ से परे की चीजों पर एक विश्लेषण सम्मिलित है। यह एक दिलचस्प कार्य है और इसमें अंत में एक परिशिष्ट भी सम्मिलित है।
dc.source केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
dc.format.extent iii, 226p.
dc.format.mimetype application/pdf
dc.language.iso अंग्रेज़ी
dc.publisher लुज़ैक, लंदन
dc.relation.ispartofseries Calcutta Oriental Series, 26
dc.subject भारतीय दर्शन, वेदांत, भ्रम, तथ्य, ज्ञान
dc.type दुर्लभ पुस्तक
dc.date.copyright 1933
dc.identifier.accessionnumber AS-000170
dc.format.medium text