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राजस्थानी व्यंजन: लचीलता, शाही परंपरा एवं नवीनता का अनोखा संगम

राजस्थान जो शाही घरानों की भूमि है, वह आज भारत के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। हर वर्ष, दुनिया भर से पर्यटक भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित इस सुंदर राज्य में अपने आकर्षक परिदृश्य, रंगीन कला और शिल्प, अनोखे गीत और नृत्य, और उत्तम ऐतिहासिक स्मारकों पर अचंभित करते हैं। इस जगह का खानपान भी उतना ही अद्भुत और सुहाना है। निर्जल भूमि, तेज मौसम और युद्ध-ग्रस्त से निर्मित राजस्थानी व्यंजन वास्तव में लचीलापन की भावना के साथ-साथ कठिनाइयों का सामना करने वाले लोगों की कल्पना को मोहित करता है।

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जयपुर के सिटी पैलेस के मोर द्वार को निहारते हुए एक पर्यटक

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सजाया हुआ ऊंट; ऊंट की सजावट एक विशेष कला है और राजस्थान में रेगिस्तान त्योहारों का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया है

सभी पाक संस्कृतियों की तरह, राजस्थानी व्यंजन भी इसकी भौगोलिक विशेषताओं, मौसम और संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर निर्मित है। अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान की स्थलाकृति की एक परिभाषित विशेषता है जो भूमि को दो प्राकृतिक भागों में: शुष्क उत्तर-पश्चिमी और उपजाऊ दक्षिण-पूर्वी भाग, में विभाजित करती है। थार रेगिस्तान या ग्रेट इंडियन डेसर्ट, जिसे मारुथली या मृत्यु की भूमि के रूप में कहानियों में उल्लेखित किया गया है, वह राज्य के उत्तर-पश्चिमी आधे भाग में स्थित शुष्क रेगिस्तान का एक विशाल विस्तार है। यहाँ पर बारिश बहुत कम होती है और पानी को एक अनमोल संसाधन माना जाता है। यहाँ पर मुख्य रूप से झाड़ी जैसी वनस्पतियाँ होती है और 10 प्रतिशत से कम क्षेत्र मे जंगल होते है।

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राजस्थान के शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्र में वनस्पति विरल है

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सूखे लाल मिर्च को इकट्ठा करती एक महिला; सूखी लाल मिर्च एक प्रमुख मसाला है जिसका उपयोग राजस्थानी व्यंजनों में किया जाता है

राजस्थानी व्यंजनो में ज्वार, बाजरा, तिल, रागी, अरहर, दालें, चना, मूंगफली इत्यादि जैसी फसलें और अनाज शामिल हैं, जो कठोर मौसम परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं। मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार की रोटी अधिकतर खाई जाती है और चावल का उपयोग खाने मे कम होता है। इसके अलावा, पत्तेदार-हरी सब्जियों की कमी को पूरा करने के लिए, रेगिस्तान में बहुत मात्रा में उगने वाले तरह तरह के छोटे फल, मूलियाँ और फलियाँ को भोजन में सरलता से शामिल किया गया है। पानी की कमी के कारण, यह खाना पकाने में बहुत कम उपयोग किया जाता है, और इसके बजाय तेल, दूध और घी का उपयोग ज़्यादा किया जाता है। पशुपालन इस क्षेत्र के कई समुदायों और जनजातियों के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन है और इसलिए दूध से बने पदार्थ भोजन का एक प्रमुख हिस्सा हैं। अधिक उपयोग अवधि वाले खाद्य पदार्थ यहाँ पसंद किए जाते हैं।

राजस्थान कई शताब्दियों के इतिहास में एक युद्ध-ग्रस्त भूमि रही है। संघर्ष और अनिश्चितता की ऐसी स्थितियों के तहत, खाद्य पदार्थ जिन्हें लंबे समय तक अवधि के लिए संग्रहीत किया जा सकता है, स्वाभाविक रूप से महत्व प्राप्त करते हैं। भोजन में स्वाद और आकर्षता हेतु मसालों का बहुत ज़्यादा उपयोग किया जाता है। राजस्थान में उगाए जाने वाले यह सब विशेष रूप से असरदार और तीखे होते हैं। जीरा, धनिया, काली मिर्च, मिर्ची, इलायची, दालचीनी और लौंग जैसे मसालों का उपयोग आम है। राजस्थानी व्यंजन अपने सुहाने अचार और चटनी के लिए भी जाने जाते है जो भोजन को मज़ेदार बनाते हैं और पाचन में भी सहायता प्रदान करते हैं। अचार खाने को लंबे समय तक सुरक्षित रखने और उनके पोषक तत्वों के उपयोग के लिए महत्वपूर्ण तरीकों में से एक है।

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बकरीयों का झुंड; राजस्थान में पशुपालन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है

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आमेर किले का प्रवेश द्वार, जयपुर, राजस्थान

राजस्थानी व्यंजन राजपूतों की जीवनशैली और सौंदर्य शास्त्र से बहुत प्रभावित हैं। परंपरागत रूप से, राज्य को राजपूताना के नाम से जाना जाता है, क्योंकि कई शताब्दियों तक राजपूतों ने इस पर शासन किया था। राजपूतों ने क्षेत्र के भोजन और खाने की आदतों, विशेष रूप से इसका मांसाहार, में बड़ा योगदान दिया है। राजघरानों का भोजन उनकी भव्य जीवन शैली से जुड़ा हुआ था। शाही घरानों का पसंदीदा खेल शिकार होने के कारण, मांसाहारी व्यंजन ज्यादातर शिकार के मांस के साथ पकाया जाता था। इसमें पशु और पक्षी जैसे कि हिरन, जंगली खरगोश, खरगोश, तीतर, बटेर और बतख शामिल थे। शाही रसोई या रसोवर, खानसामा द्वारा नए नए प्रयोग करने का स्थान था। पाक कृतियों का उत्साह पूर्वक संरक्षण किया जाता और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंप दिया जाता था। बड़े पैमाने एवं जटिल मेहनत के कारण इन शाही व्यंजनों को आज दोहराया जाना लगभग असंभव है।

राजपूतों ने 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान मुग़लों के राजनीतिक सहयोगी के रूप में कार्य किया और राजपूत कला और वास्तुकला इसका सांस्कृतिक प्रभाव दिखाता है (मुग़लों पर भी राजपूतों का प्रभाव रहा है) । हालांकि, राजपूतों के भोजन पर मुगलई व्यंजनों का पाक प्रभाव बहुत ही कम था। यह माना जाता है कि यह मुख्य रूप से सामग्री की अनुपलब्धता के कारण था जो मुगलई व्यंजनों के समृद्ध व्यंजनों के अभिन्न अंग थे।

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राजस्थानी शैली की चित्रकारी में एक शाही यात्रा को दर्शाया गया है

राजस्थानी व्यंजनों का सर्वोत्कृष्ट व्यंजन कदाचित दाल बाटी और चूरमा है। बाटी गेहूं के आटे से बनी ब्रेड पकौड़ी होती है और इसे काफी समय तक रखा जा सकता है। दाल को उबली हुई दाल के मिश्रण से बनाया जाता है जिसमें घी और लाल मिर्च का तड़का लगाया जाता है। चूरमा घी और गुड़ या शक्कर के साथ पिसे हुए गेहूं से बना होता है। ऐसा कहा जाता है कि बाटी युद्ध के समय सैनिकों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक आवश्यक खाद्य पदार्थ था। भूतकाल में, जब सैनिक युद्ध के लिए जाते थे, तो वे दिन के दौरान गर्म रेत के नीचे बाटी के टुकड़े दफन कर देते थे ताकि वे गर्म हो जाएं और जब तक वे वापस आते, तब तक वे खाने के लिए तैयार हो जाते। एक अन्य लोकप्रिय व्यंजन गट्टे की सब्ज़ी है, जिसमें बेसन से बने पकौड़े छाछ और मसालों की अख़नी में डाले जाते हैं। पापड़ की सब्जी, एक अनोखा व्यंजन है जिसमें पापड़ (दाल के पतले चोकर) को दही और मसालों की अख़नी में पकाया जाता है।

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दाल बाटी

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केर सांगरी

एक निर्जल भूमि में संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए एक अनोखा व्यंजन केर सांगरी है। केर एक जंगली नोकदार छोटा फल होता है और सांगरी एक जंगली फली है, और दोनों रेगिस्तान में बहुत पाए जाते हैं। यह पकवान मसालेदार होता है और लगभग अचार के समान तैयार होता है। एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, एक बार राजपुताना में एक भयानक सूखे का दौर आया था, जिसने भूमि की अधिकांश वनस्पति को खत्म कर दिया। इस बड़े संकट के समय में, मूल निवासियों ने इन आजीवन पौधों (केर और सांगरी), जो कठोर परिस्थितियों में भी पनप सकते थे, उनकी खोज की। ये पौधे प्रोटीन का भी एक बड़ा स्रोत हैं।

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गट्टे की सब्ज़ी

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पापड़ की सब्जी

जैसा कि पहले कहा गया है, राजस्थान में मांसाहारी व्यंजन ज्यादातर पारंपरिक रूप से शिकारी मांस शामिल है। हालांकि, आधुनिक समय में भारत में एक खेल के रूप में शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और इसकी जगह अब मुख्य रूप से मेमने ने लेली है। राजस्थान का मुख्य मांसाहारी व्यंजन लाल मांस है। लाल मांस में मेमने को मिर्च, प्याज, दही और लहसुन की एक तीखी अखनी में पकाया जाता है। सफ़ेद मांस, लाल मांस का एक सफेद और मलाईदार प्रकार है, जिसे बादाम-काजू पेस्ट, दूध, मलाई और मसालों की अखनी में पकाया जाने वाला मेमना होता है।

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लाल मांस

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बेसन के लड्डू

जंगली मांस, जैसा कि नाम से पता चलता है, पारंपरिक रूप से जंगली शिकारी मांस और आसानी से उपलब्ध मसालों से बना एक व्यंजन है। खाद खरगोश राजस्थान का एक अनोखा मांसाहारी व्यंजन है। यह जमीन के नीचे खाना पकाने की राजस्थान के मूल निवासियों की एक अनूठी तकनीक है। इस में मांस को (पारंपरिक रूप से खरगोश का) पाँच मसालों और घी की अच्छे मात्रा के मिश्रण मे रखा जाता है। इसके बाद इसे बिना पकी रोटियों (पतली रोटी) और गीले बोरी में लपेटा जाता है, और रेत में एक गड्ढे के अंदर रखा जाता है। इसके बाद, मांस के बंडल को रेत और अंगारे की परतों से ढंक दिया जाता है और जब तक कि मांस सभी मसालों को खींच नहीं लेता, तब तक कुछ घंटों के लिए पकाने के लिए छोड़ दिया जाता है।

राजस्थानी पाक संस्कृति की एक अनूठी विशेषता यह है कि भोजन के अंत में ही मिठाई परोसना आवश्यक नहीं है, अर्थात, उन्हें खाने से पहले या साथ में परोसा जा सकता है। राजस्थानी व्यंजन विभिन्न प्रकार के लड्डूओं (बेसन, मोतीचूर, दाल, गोंद), विभिन्न प्रकार के हलवों (मूंग, सूजी) और पुडिंग (सेवइयाँ की खीर, मखने की खीर) जैसे मिठाईयों से भरे है। घेवर, इस क्षेत्र की एक प्रसिद्ध मिठाई है, जिसे आटे, घी, दूध और सूखे मेवों का उपयोग करके तैयार किया जाता है। इसे चक्के के आकार में ढाला जाता है, इसमें एक कुरकुरी बनावट होती है और अक्सर इसमें मेवा, मावा और मलाई को उपर से डाला जाता है। चीनी रस में डूबा मालपुआ या पेनकेक भी एक लोकप्रिय मिठाई है। प्याज कचौड़ी, कांजी वड़ा, बिकनेरी भुजिया और दाल के फारे जैसे विभिन्न प्रकार के जलपान के पदार्थ इन व्यंजनों में और अधिक स्वादिष्ट स्वाद जोड़ते हैं।

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मलाई के साथ घेवर

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पारंपरिक राजस्थानी थाली