Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

जयगढ़: जयपुर में विजय का किला

जयगढ़ किला जिसे ‘विजय का किला’ के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के जयपुर ज़िले में स्थित है। यह विशाल किला, जो कछवाहा राजपूत शासकों का गढ़ था, आमेर किले से 400 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जहाँ से यह आमेर किले को सुरक्षा प्रदान करता था। जयगढ़ किला, "चील के टीला" पर स्थित है, जो अरावली की पहाड़ियों का एक हिस्सा है। यह प्राकृतिक तौर पर ही जयपुर शहर की रक्षा के लिए एक अभेद्य सीमा का काम करता है।

जयगढ़ किला। छवि का स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

राजनीतिक बदलाव

कछवाहा राजवंश का इतिहास जयगढ़ किले के इतिहास से जुड़ा हुआ है। कछवाहा एक राजपूत जाति है, जो सूर्य देव के वंश से होने का दावा करते हैं। कछवाहा शासकों ने 10वीं शताब्दी के दौरान दौसा को अपनी राजधानी घोषित किया था। बाद में इसे ढूंढाड़ के नाम से जाना जाने लगा। अरावली की पहाड़ियों का प्राकृतिक रुप, रक्षा के दृष्टिकोण से अनुकूल था और इन्हीं लाभों को देखते हुए, 12वीं शताब्दी में, आमेर को नई राजधानी के रूप में चुना गया। 10वीं शताब्दी तक आमेर पर मीणाओं का राज था। इसे वर्तमान में आमेर के किले के रूप में जाना जाता है। उस संरचना के बहुत से हिस्से, 15वीं शताब्दी में राजा मान सिंह प्रथम द्वारा निर्मित और विकसित किए गए थे। आमेर किले और जयगढ़ किले के भाग्य हमेशा से जुड़े रहे हैं। मान सिंह प्रथम को जयगढ़ किले के शुरुआती निर्माण का श्रेय दिया जाता है। हालाँकि यह पूरी तरह से तो राजा सवाई जयसिंह द्वितीय के समय में ही तैयार हुआ था।

उन्होंने, किले के निर्माण के लिए विद्याधर को मुख्य वास्तुकार के तौर पर रखा। मूल रूप से जयगढ़ किले को आमेर के किले की रक्षा के लिए एक रक्षात्मक संरचना के रूप में बनाया गया था। बड़े पैमाने पर किलेबंदी के साथ, जय सिंह द्वितीय ने एक नए शहर, जयनगर की नींव भी रखी, जिसे अंततः जयपुर के नाम से जाना जाने लगा।

आसपास के क्षेत्रों में लौह अयस्क की खदानों की उपलब्धता के चलते, मुगलों के शासनकाल के दौरान, किले में एक प्रभावशाली तोप का ढलाईखाना अस्त्तिव मे आया। 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, जब मुगल राजकुमार औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच साम्राज्य के उत्तराधिकार को लेकर युद्ध छिड़ा, तब उसमें जयगढ़ किले का महत्व भी सामने आया। इस दौरान, दारा शिकोह ने, जो प्रत्यक्ष रूप से मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी थे, तोप की चौकी को अपने नियंत्रण में किया। इस युद्ध में औरंगज़ेब की जीत हुई और वे हिंदुस्तान के नए मुगल सम्राट बने और दारा शिकोह की मौत हुई। (औरंगज़ेब के सम्राट बनने और दारा शिकोह की मौत के साथ ही यह युद्ध समाप्त हुआ) मुगल सम्राट मुहम्मद शाह (1719-1748 ईस्वी) के शासनकाल के दौरान, राजा जय सिंह द्वितीय को आधिकारिक तौर पर एक फ़रमान (एक शाही आदेश) द्वारा जयगढ़ किले के किलादार के रूप में चुना गया।

मुगल सत्ता के पतन से मराठों और पिंडारियों के लिए राजपुताना के राजस्व-समृद्ध क्षेत्रों के लिए रास्ते खुले। निरंतर युद्ध लड़ने और हार का सामना करने से, जयपुर की राजसी प्रतिष्ठा को हानि हो रही थी। इस प्रकार, मराठा घुसपैठियों से निपटने के लिए, अंग्रेज़ों और इस शाही भूमि के राजकुमारों ने गठबंधन करने शुरू किए। 1818 ईस्वी में, सवाई जगत सिंह ने ‘ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी’ के साथ एक ‘सहायक गठबंधन’ बनाने का फ़ैसला लिया। इसके बाद, जयपुर की रियासत ब्रिटिश वर्चस्व के अधीन आ गई। आज़ादी के बाद 1949 में जयपुर भारत के राज्यों के संघ में शामिल हो गया और देश का हिस्सा बना। हालाँकि इस क्षेत्र में कई शताब्दियों तक गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल बनी रही, लेकिन जयगढ़ का किला हमेशा अजेय ही रहा।

संरचना

राजसी आमेर किला भारतीय-फ़ारसी शैली में बनाया गया है और लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित विशाल मोटी दीवारों से इसका घेराव किया गया है। वास्तुकला की दृष्टि से जयगढ़ का किला आमेर के किले जैसा ही दिखता है। किला परिसर 3 कि.मी. लंबा है और इसकी चौड़ाई 1 कि.मी. है। किले में संकीर्ण अंधेरे मार्ग और लंबे पैदल रास्ते हैं। इस भव्य संरचना में अवनी द्वार, सागरी द्वार और डूंगर द्वार नामक तीन प्रवेश बिंदु हैं। अवनी द्वार में आमेर किले और जयगढ़ किले को जोड़ने वाली एक गुप्त सुरंग है। सागर झील (17 वीं शताब्दी में राजा मान सिंह प्रथम द्वारा निर्मित एक कृत्रिम झील) के आकर्षक दृश्य को देखने के लिए हाल ही में इस द्वार का नवीनीकरण किया गया था। ऐसा दावा किया जाता है कि इस झील से पानी को थैलियों में भर के हाथी की पीठ पर लाद कर किले में ले जाया जाता था। प्रवेश का दूसरा बिंदु सागरी द्वार है जहाँ से माओटा झील का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। वर्तमान में इसके मुख्य प्रवेश द्वार, डूंगर गेट का निर्माण महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय ने 1942 में करवाया था।

आराम मंदिर किले के परिसर के अंदर का एक प्रमुख हिस्सा है, जो शासकों के लिए एक विश्राम स्थल का कार्य करता था। आराम मंदिर के सामने चौकोर आकार का ‘आराम बाग’ है, जो 50 मीटर वर्ग फ़ीट का एक बगीचा है। यह चार बराबर भागों में विभाजित है, और इसकी बनावट चारबाग के समान है। जयगढ़ किले का सबसे ऊँचा स्थान ‘दिया बुर्ज’ है। किले के कई बुर्जों को एक ऊँची जगह पर बनाया गया है, जो गुलाबी शहर के नाम से जाने जाने वाले जयपुर, आमेर के किले और नाहरगढ़ किले के घने जंगलों का मनोरम दृश्य प्रदान करते हैं।

आराम मंदिर। छवि का स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

आराम बाग। छवि स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

लक्ष्मी विलास (शाही दशेक-गृह), ललित मंदिर (ग्रीष्मकालीन महल) और विलास मंदिर (शाही पारिवारिक समारोहों की मेज़बानी के लिए) किले के अंदर निर्मित अन्य संरचनाएँ हैं। परिसर के भीतर शाही मनोरंजन के लिए एक छोटी-सी नाट्यशाला बनाई गई थी। शाही महिलाओं के लिए बनाए गए ज़ेनाना की एक अनूठी विशेषता थी। इनमें झरोखों को इस तरह से बनाया गया था कि पहाड़ों की ठंडी हवाएँ आवासीय भवन के अंदर भी महसूस की जा सके। किले परिसर के अंदर 10वीं और 12वीं शताब्दी में बनी कुछ अन्य पवित्र संरचनाएँ हैं, जिनमें राम हरिहर मंदिर और काल भैरव मंदिर शामिल हैं। किले के उत्तरी छोर में सुभात निवास है। यह भवन वह जगह है जहाँ से राजा अपने सैनिकों को संबोधित करते थे। भवन को हाथी के आसनों से सजाया गया है और इसमें युद्ध में इस्तेमाल होने वाले बड़े ढोल हैं।

सुभाष निवास। छवि का स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

सुभात निवास के निकट खिलबत निवास (दीवान-ए-खास) है जिसका उपयोग निजी बैठकों के लिए किया जाता था।

इस अभेद्य किले में प्रसिद्ध जयबाण तोप और बजरंग-बाण तोप रखी हुई हैं। पहियों पर स्थापित दुनिया की सबसे बड़ी तोप, जयबाण तोप, को डूंगर गेट पर रखा गया है। इसे राजा जय सिंह द्वितीय के आदेश पर बनाया गया था और इसके दायरे का परीक्षण करने के लिए केवल एक बार इसका उपयोग किया गया था। ऐसा माना जाता है कि परीक्षण के लिए 100 किलोग्राम बारूद और 50 किलोग्राम लोहे का इस्तेमाल किया गया था, जिसपर तोप का गोला 35 किलोमीटर दूर तक पहुँच पाया था। इसके परिणामस्वरूप एक बड़ा-सा गढ्ढा हुआ, जो बाद में वर्षा के पानी से भर गया। इस तोप की नली का वज़न 50 टन है और इसकी लंबाई 20.2 फ़ीट है। नली को पेड़ों, एक हाथी स्क्रॉल और पक्षियों की एक जोड़ी की नक्काशी से सजाया गया है। तोप को प्रतिकूल मौसम की मार से बचाने के लिए, इसपर एक टिन की छत का निर्माण किया गया था। परिसर के प्रवेश द्वार पर प्रदर्शित एक पट्टिका में तोप के इतिहास, इसके आकार और इसके उपयोग पर विवरण प्रदान किया गया है।

Jजयबाण तोप। छवि का स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

‘बजरंग-बाण’ को 1691 में ढलाईखाने में बनाया गया था। युद्ध के दौरान, इस तोप को 32 बैलों द्वारा रणभूमि तक ले जाया गया था। तोप की नली लोहे से बनाई गई है, जिसकी वजह से यह काफ़ी भारी है।

बजरंग-बाण तोप। छवि का स्रोत: विकिपीडिया

किले के अंदर स्थित शस्त्रागार कक्ष में, शाही तलवारें, बंदूकें, कस्तूरी और 50 किलोग्राम वज़न की तोप का एक गोला भी रखा है। किले के परिसर में अवनी गेट के बाईं ओर एक संग्रहालय भी है। इसके अतिरिक्त, यहाँ कुछ दीर्घाएँ हैं, जो मध्ययुगीन काल के दौरान राजपूत राजाओं और महाराजाओं की शाही जीवन शैली की एक झलक प्रदान करती हैं। संग्रहालय में 15वीं शताब्दी का थूकदान, ताश के पत्तों का एक गोलाकार पैक, जयपुर के शाही परिवारों के स्टैंप और ऐसी ही कई कलाकृतियाँ मौजूद हैं।

जयगढ़ किले का शाही खज़ाना

इस किले में पानी के तीन विशाल लेकिन रहस्यमय कुण्ड भी हैं, जो किले के अंदर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं। अरावली जलग्रहण क्षेत्र में प्रभावशाली जल-संचयन संरचनाएँ बनाई गई हैं, जिससे नहर के माध्यम से कुण्डों में पानी जमा किया जा सकता था। ‘हफ़्त तिलिस्मत-ए-अंबरी’ नामक एक अरबी किताब में यह उल्लेख किया गया है कि कछवाहा शासकों का शाही खज़ाना इन्हीं में से किसी एक कुण्ड के अंदर छिपाया गया है। ऐसा माना जाता है कि राजा मान सिंह प्रथम ने, अफ़गानिस्तान से खज़ाना वापस लाकर, उसे जलाशयों में छिपा दिया था। यह पानी के कुण्ड आने वाली कई शताब्दियों तक एक रहस्य बने रहे। हाल के दिनों में भी ये हलचल पैदा करने का एक विषय बने। हालाँकि, इसके खज़ाने की खोज अभी तक सफल नहीं हो पाई है।

आमेर किले के साथ जयगढ़ किले को 2013 में यूनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था। जयपुर के सबसे मज़बूत किलों में से एक, जयगढ़ किला सही मायने में भव्यता, वीरता और रहस्य की कहानियाँ बयाँ करता है।