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भोपाल की बेगमें - 107 वर्षों का स्वर्णिम शासनकाल

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महारानी कुदसिया बेगम, भोपाल की पहली बेगम

वर्ष 1819 से 1926 के बीच, चार वीरांगनाओं ने भोपाल रियासत पर शासन किया, जिनके नाम कुदसिया बेगम, सिकंदर बेगम, शाहजहाँ बेगम और सुल्तान जहाँ बेगम थे। शक्तिशाली पुरुष दावेदारों द्वारा विरोध के बावजूद, बेगमें ना केवल डटी रहीं बल्कि उन्होंनें राज्य का विकास भी किया।

इस सब की शुरुआत कुदसिया बेगम के साथ हुई, (जिन्हें गौहर बेगम के नाम से भी जाना जाता है) जिन्होंने नज़र मुहम्मद खान नामक सामंतवर्गीय व्यक्ति से शादी की। 11 नवंबर 1819 वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन था, जब यह शाही परिवार शिकार खेलने के लिए अपने पड़ोस में स्थित इस्लामनगर गया। तब, कुदसिया बेगम के 8 वर्षीय छोटे भाई, फ़ौजदार मुहम्मद ने नज़र मुहम्मद की बेल्ट से एक पिस्तौल खींची और उसके साथ खेलना शुरू कर दिया। एक भयंकर दुर्घटना में, छोटे लड़के ने भोपाल के नवाब की हत्या कर दी। भोपाल पर तीन वर्ष और पाँच महीनों तक शासन करने के बाद 28 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

भोपाल के सामंतों और ब्रिटिश सरकार की सहमति से यह निर्णय लिया गया कि नज़र मुहम्मद के भतीजे मुनीर मुहम्मद खान, कुदसिया बेगम के राज प्रतिनिधित्व के अंतर्गत, अगले नवाब बनेंगे और अंततः उनका विवाह कुदसिया बेगम की बेटी, सिकंदर बेगम, से करा दिया जाएगा।

मुनीर मुहम्मद के प्राधिकार का कुदसिया बेगम ने विरोध किया। ईस्ट इंडिया कंपनी के राजनीतिक प्रतिनिधि, श्री मेडॉक्स ने दोनों के बीच मामले को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप किया। एक समझौते के तहत मुनीर मुहम्मद, 40,000/- प्रति वर्ष मुआवज़े पर, अपने भाई जहाँगीर मुहम्मद खान के पक्ष में इस्तीफ़ा देने के लिए सहमत हो गए।

Nawab Sikander Begum

महारानी सिकंदर बेगम, भोपाल की दूसरी बेगम

Her Highness Shah Jahan Begum

महारानी शाहजहाँ बेगम, भोपाल की तीसरी बेगम

ऐसा माना जाता है कि कुदसिया बेगम अपने हाथों में सत्ता बनाए रखना चाहती थीं, जिसके कारण उन्होंने अपनी बेटी की शादी में देरी की। अपनी माँ के प्रयासों के बावजूद, सिकंदर बेगम की शादी जहाँगीर मुहम्मद खान से 17 अप्रैल 1835 को हुई। कुदसिया बेगम ने राज्य का प्रशासन करना जारी रखा जिससे उनके और युवा नवाब, जहाँगीर मुहम्मद खान, के बीच मतभेद पैदा हो गए। समय के साथ, नवाब और सिकंदर बेगम के बीच भी विवाद पैदा हो गए।

एक दिन, एक दावत के अवसर पर, नवाब ने कुदसिया बेगम और सिकंदर बेगम को ज़बरदस्ती कैद करने की साज़िश रची, लेकिन बेगम और उनकी बेटी सुरक्षित रूप से अपने महल तक भागने में सफल हुईं, और उन्होंने नवाब को गिरफ़्तार करने के लिए एक सैन्य बल रवाना कर दिया। कुदसिया बेगम, प्रति वर्ष 5 लाख के अनुदान के साथ, भोपाल के प्रशासनिक मामलों से सेवानिवृत्त हो गईं। वर्ष 1877 में, उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ द इंपीरियल क्रॉस’ के साथ सम्मानित किया गया। चार वर्ष के बाद, अस्सी वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया और वे अपनी निजी संपत्ति अपनी नातिन, शाहजहाँ, के नाम छोड़ गईं।

सिकंदर बेगम ने 29 जुलाई 1838 को शाहजहाँ बेगम नाम की एक लड़की को जन्म दिया था। ब्रिटिश सरकार ने शाहजहाँ बेगम के उत्तराधिकार को मान्यता दी और 11 अप्रैल 1845 को उन्हें राज्य का प्रमुख घोषित किया। उनकी माँ सिकंदर बेगम को राज्य-प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया। राज्य-प्रतिनिधि के रूप में रानी ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए कई नीतियाँ बनाईं। वर्ष 1854 में, सिकंदर बेगम द्वारा एक चिकित्सा विभाग स्थापित किया गया और एक योग्यता प्राप्त यूनानी चिकित्सा अधिकारी नियुक्त किया गया। उनके शासन में, राज्य का पहला सर्वेक्षण भी किया गया था।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, सिकंदर बेगम ने अंग्रेज़ों के साथ गठबंधन किया, जिसके लिए उन्हें अपने ही सैनिकों द्वारा धमकी दी गई थी। उन्होंने सीहोर, सौगोर और बुंदेलखंड में सैन्य-विद्रोहों का दमन किया। शांति की बहाली के बाद, सिकंदर बेगम ने, विद्रोह के दौरान अंग्रेज़ों के प्रति अपनी निष्ठा के आधार पर , आग्रह किया कि उन्हें भोपाल के राज्य-प्रतिनिधि के रूप में नहीं बल्कि शासक के रूप में माना जाना चाहिए। 3 मार्च 1860 को सिकंदर बेगम को औपचारिक रूप से ब्रिटिश सम्राट द्वारा भोपाल के प्रमुख के रूप में मान्यता दे दी गई। गवर्नर-जनरल के प्रतिनिधि, श्री हैमिल्टन, ने इस आदेश को लागू कर दिया।

Her Highness, Sultan Jahan

महारानी सुल्तान जहाँ बेगम, भोपाल की चौथी बेगम

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ऑर्डर ऑफ़ द स्टार ऑफ इंडिया

उनके शासनकाल के दौरान, भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड कैनिंग ने भोपाल की बेगम की प्रशंसा करते हुए कहा, “वह राज्य जिसे हमारे शत्रुओं से खतरा था, उसका, आपने एक महिला होकर भी साहस, क्षमता और सफलता के साथ जिस प्रकार मार्गदर्शन किया है, वह किसी भी राजनेता या सैनिक के लिए गर्व की बात है….. ऐसी सेवाओं के लिए पुरस्कार अवश्य ही मिलना चाहिए।"

नवंबर 1861 में, बेगम को इलाहाबाद में ऑर्डर ऑफ़ द स्टार ऑफ़ इंडिया नामक सर्वोच्च सम्मान दिया गया।

Taj-Ul-Masjid

ताज-उल-मस्जिद, भोपाल

वर्ष 1864 में, सिकंदर बेगम तीर्थ यात्रा के लिए मक्का चली गईं और ऐसा करने वाली वे पहली महिला शासक प्रमुख बनीं। उनके लौटने के बाद, वे बीमार पड़ गईं और 30 अक्टूबर 1868 को, 51 वर्ष की आयु में, उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें फ़रहत अफ़ज़ा बाग, भोपाल, में दफ़नाया गया। सिकंदर बेगम की बेटी, शाहजहाँ बेगम को 16 नवंबर 1868 को भोपाल का शासक बना दिया गया।

उनकी शादी राज्य के प्रधान सेनापति से हुई। शाहजहाँ बेगम ने अपनी माँ के नक्शेकदम पर चलना शुरू किया। उन्होंने 1860 में पहली पाठशाला शुरू की, और अपने शासनकाल के अंत तक दो लड़कियों की पाठशालाएँ और छिहत्तर प्राथमिक पाठशालाएँ स्थापित की। वर्ष 1871 में, शिक्षा को और बढ़ावा देने के लिए, उन्होंने यह अनिवार्य कर दिया कि किसी भी व्यक्ति को राज्य कार्यालय में पद नहीं दिया जाएगा जब तक कि वह स्कूल या कॉलेज से प्रमाण पत्र नहीं ले लेता है। वास्तुकला में उनकी रुचि उनके द्वारा स्वीकृत विशाल परियोजनाओं द्वारा प्रदर्शित होती है। उनमें से एक उदाहरण क़स्र-ए-सुल्तानी महल (जो अब सैफ़िया कॉलेज है) और ताज-उल-मस्जिद है। उन्होंने होशंगाबाद और भोपाल के बीच रेलवे लाइन के निर्माण जैसी सार्वजनिक-कार्य परियोजनाओं में भी भारी निवेश किया।

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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का लोगो, अलीगढ़, भारत

King George

किंग जॉर्ज पंचम, 1923

मई 1871 में, शाहजहाँ बेगम ने मौलवी सयद सिद्दीक हुसैन से शादी की। दूसरी शादी के बाद, वे पर्दा नशीन हो गईं| उनकी कई उपलब्धियों के लिए, शाहजहाँ बेगम को 1872 में नाइट ग्रैंड कमांडर बनाया गया था। अपने शासनकाल के दौरान, उन्हें 1879 में भोपाल में एक अफ़ीम की एजेंसी स्थापित करने की मंज़ूरी मिल गई थी।

16 जून 1901 को बेगम शाहजहाँ की मृत्यु हो गई। उनकी बेटी सुल्तान जहाँ बेगम, जिनका जन्म 9 जुलाई 1858 को हुआ था, ने गद्दी संभाली। वर्ष 1905 में, सुल्तान जहाँ बेगम ने इंदौर में शाही जोड़े, वेल्स के राजकुमार और राजकुमारी के साथ भेंट की और उन्हें ऑर्डर ऑफ़ शिवेलरी, नाइट ग्रैंड कमांडर, के खिताब से नवाज़ा गया। बेगम सुल्तान जहाँ ने अपने बड़े बेटे, नवाब मुहम्मद नसर-उल-लाह खान के साथ राज्य का प्रशासन चलाया।

वर्ष 1911 मे इंग्लैंड के राजा, एडवर्ड सप्तम, का निधन हो गया था और जॉर्ज पंचम को नए राजा के रूप में ताज पहनाया जाना था। सुल्तान जहाँ को लंदन में राज्याभिषेक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने बुरका पहनकर राज्याभिषेक में भाग लिया और जो पदक उन्हें मिले थे उनको उन्होंने बुरके के उपर पहना।

बेगम सुल्तान जहाँ ने भारत में महिलाओं के उद्धार में बहुत योगदान दिया। महिलाओं के बीच स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए, विधवाओं और निराश्रित महिलाओं के लिए वर्ष 1905 में एक कला विद्यालय शुरू किया गया। वर्ष 1914 में, वे अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं।

Sanchi Stupa

साँची स्तूप
स्रोत: www.indianculture.gov.in

1918 में, उन्होंने अखिल भारतीय मुस्लिम महिला संगठन की स्थापना की। यह जानी-मानी बात है कि बेगम सुल्तान जहाँ और उनकी माँ ने साँची के प्राचीन बौद्ध स्तूप के संरक्षण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की थी। 1902 से 1928 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक, जॉन मार्शल ने बेगम सुल्तान जहाँ को अपनी महत्वपूर्ण किताब "अ गाइड टू साँची" समर्पित करके साँची के प्राचीन बौद्ध स्तूप हेतु उनके द्वारा दिए गए अनुदान को स्वीकारा। सुल्तान जहाँ ने वर्ष 1919 में वहाँ बने पुरातत्व संग्रहालय को भी वित्तपोषित किया। इस संग्रहालय को बाद में साँची संग्रहालय का नाम दिया गया। आज तक, उनकी सबसे बड़ी विरासत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय है, जो 1920 में स्थापित हुआ था। वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की संस्थापक कुलाधिपति और एक भारतीय विश्वविद्यालय की कुलाधिपति बनने वाली पहली भारतीय महिला थीं। एक सच्ची दिव्यदर्शी महिला होने के नाते, उन्होंने आत्मकथाएँ और शिक्षा और स्वास्थ्य पर किताबें लिखीं, उदाहरण के लिए, 'बच्चों की परवरिश', 'हिजाज़- एक तीर्थ यात्रा की कहानी', 'तंदुरुस्ती', 'हिदायत तीमारदारी' आदि।

Nawab Hamidullah Khan

नवाब हमीदुल्लाह खान

Sajida Sultan

साजिदा सुल्तान, भोपाल की आखिरी नाममात्र बेगम

सुल्तान जहाँ बेगम ने अपने बेटे, मुहम्मद हामिद-उल-लाह खान को सिंहासन सौंपने के लिए अपना पद त्याग दिया।

वे भोपाल पर शासन करने वाले अंतिम नवाब थे, जिनके बाद 1956 में इस राज्य का मध्य प्रदेश में विलय हो गया। 12 मई 1930 को भोपाल के कस्र-ए-सुल्तानी महल में बेगम सुल्तान जहाँ का निधन हो गया। भोपाल राज्य के शासकों को महारानी नवाब बेगम की उपाधि से सम्मानित किया गया और उन्हें 19 तोपों की सलामी दी गई थी।

बेगम सुल्तान जहाँ के बेटे हामिदुल्लाह खान के तीन बच्चे थे। उनकी दूसरी बड़ी बेटी, साजिदा सुल्तान, की शादी पटौदी परिवार के 8वें नवाब, इफ्तिखार अली खान, से हुई थी। उनके बेटे, मंसूर अली खान पटौदी, प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी थे, जिनकी शादी भारतीय अभिनेत्री और रवींद्रनाथ टैगोर की वंशज, शर्मिला टैगोर से हुई।

Bhopal Royal Family

भोपाल का शाही परिवार : बाएँ से दाएँ - नवाब हामिदुल्ला खान, उनकी पत्नी मैमूना सुल्तान, उनकी बेटियाँ - रबिया सुल्तान, आबिदा सुल्तान, साजिदा सुल्तान, 2 जनवरी 1932, लंदन।