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फिरोज़ शाह कोटला के जिन्नाद

यमुना नदी के किनारे, नई और पुरानी दिल्ली के बीच, फिरोज़ शाह कोटला स्थित है, जो अपनी समस्याओं के समाधान ढूँढ़ने यहाँ आए श्रद्धालुओं से भरा रहता है। एक बावली, एक अशोक के समय का पत्थर का भव्य स्तंभ और इमारत के चबूतरे के नीचे गुप्त कमरों सहित, सन १३५४ में फिरोज़ शाह तुग़लक द्वारा बनवाया गया यह दूर तक फैला हुआ भव्य किला, जिन्नादों के घर के रूप में भी जाना जाता है।

इस्लामी ब्रह्मांड विज्ञान के अनुसार जिन्न अल्लाह द्वारा बिना धुंए वाली आग से बनाए गए हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके पास इंसानों को काबू करने और उनसे चालाकी से काम निकलवाने की शक्ति होती है। मिथक के अनुसार ये हज़ारों सालों तक जीवित रहते है और इनके परिवार भी होते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे लंबे सुंदर बाल वाली महिलाओं को पसंद करते हैं। भक्त यह भी दावा करते हैं कि जिन्नाद सुंदर महिलाओं की ओर आकर्षित होते हैं और उनको वश में करने की कोशिश करते हैं। ऐसा माना जाता है की वे अपने आकार बदल लेते हैं और बहुत कम समय में ही बहुत दूर तक जा सकते हैं। जिन्नाद अच्छे और बुरे दोनों होते हैं। दंतकथा के अनुसार सबसे अधिक दुष्ट जिन्नाद किले के अंदर बनी जामी मस्जिद की सीढियों के निचे बने तहखाने में बंद हैं।

सन १९७७ में इमरजेंसी के ठीक बाद यह जगह चर्चा में तब आई जब लड्डू शाह नाम के एक संत फिरोज़ शाह कोटला में रहने लगे और अपने अनुयायियों को बताने लगे कि जिन्नादों के रूप में कुछ ताकतें हैं जो इच्छाओं को पूरा कर देती हैं। इसके बाद जो लोग ऐसी बातों पर विश्वास करते थे वे दुआएँ लेने और अपनी समस्याओं के समाधान ढूँढ़ने यहाँ आने लगे। गुरुवार के दिन को शुभ माना जाता है क्योंकि इस दिन जिन्न प्रसन्न और परोपकारी होते हैं। इसलिए, प्रत्येक गुरुवार को पूरे दिल्ली और अन्य जगहों से मोमबत्तियों, चादरों, चावल और अन्य वस्तुओं सहित, लोग अपने सबसे गुप्त रहस्यों को बताने और सुरक्षा माँगने यहाँ एकत्रित होते हैं।

यह भी माना जाता है कि किले के अंदर एक जिन्न मंत्रालय है। यह मंत्रालय आजकल की नौकरशाही की तरह ही कार्य करता है जिसमें विभिन्न समस्याओं से निपटने के लिए अलग-अलग विभाग होते हैं। ज़्यादातर भक्त अपने दुःख लिखते हैं और अपनी अर्जी एक पत्र के रूप में पेश करते हैं। इस खंडहर के प्रत्येक आले में कई सारी फ़ोटोप्रतियाँ दिखाई देती हैं क्योंकि लोग यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके पत्र सही विभाग तक पहुँच जाए। इसके बाद भक्त को सात जुम्मे रातों तक खंडहरों पर जाना पड़ता है तभी उसकी इच्छा पूरी होती है। यह भी कहा जाता है कि जिन्नाद बीच रात में अर्जियों पर चर्चा करने के लिए दरबार लगाते हैं और तब अल्लाह उन इच्छाओं को पूरा कर देते हैं जो वाकई सच्ची लगती हैं।

एक और लोक-प्रचलित विश्वास है कि कोटला जिन्नादों के मुखिया, लाट वाले बाबा, जामी मस्जिद के निकट स्थित अशोक के बलुआ पत्थर वाले स्तंभ (मीनार-ए-ज़रीन) में रहते हैं। उनको लिखे गए पत्र स्तंभ की सुरक्षा हेतु बनाए गए जंगले पर बाँध दिए जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि स्तंभ को छूने से इच्छाएँ पूरी हो जाती है।

हालाँकि इसकी इन्द्रियगोचर भव्यता काफ़ी हद तक समाप्त हो चुकी है, और अब फिरोज़ शाह कोटला, अपनी अँधेरी गलियारों की भूलभुलैयाँ और ४०० सालों से भी अधिक जिन्नादों के रहने वाले सीलनदार गुफ़ानुमा कमरों सहित, केवल एक टूटे-फूटे दुर्ग के रूप में बचा है, पर आज भी वह सबसे ज्यादा अतियथार्थवादी पूजा स्थलियों में से एक बना हुआ है। बजाए एक ऐतिहासिक ईमारत के, फिरोज़ शाह कोटला, जिन्नाद के असरात (जिन्नादों के प्रभावों) सहित एक मुसलमानी तीर्थ स्थली के रूप में माना जाता है।