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भारत के वाद्य यंत्र

इंडियन कल्चर पोर्टल के  वाद्य यंत्र अनुभाग में पूरे भारत के विभिन्न वाद्य यंत्रों की जानकारी है। इंडियन कल्चर पोर्टल ने हमारे देश के अनगिनत उत्कृष्ट वाद्य यंत्रों के विषय में शोध किया है और उन्हें यहाँ प्रस्तुत करने में पोर्टल को प्रसन्नता है।  इन यंत्रों की मात्रा और विविधता बहुत विशाल  है और हम इस अनुभाग में जानकारी जोड़ते रहेंगे।  

भरत मुनि के नाट्य शास्त्र (२०० ईसा पूर्व और २०० ईसवी में रचित) में वाद्य यंत्रों को चार समूहों में एकत्रित किया गया है:  अवनद्ध वाद्य ( ताल वाद्य), घन वाद्य (ठोस वाद्य) , सुषिर वाद्य (वायु वाद्य), और तत वाद्य (तार वाले वाद्य).भारत के वाद्य यंत्रों का भरत मुनि द्वारा दिया गया  यह प्राचीन वर्गीकरण १२वीं सदी में यूरोप में अपनाया गया और यूरोप के वाद्य यंत्रों के वर्गीकरण में उपयोग किया गया। बाद में, चार वर्गों को यूनानी नाम दिए गए  - तत वाद्य के लिए कोरडोफ़ोन्स, अवनद्ध वाद्य के लिए मेमब्रानोफ़ोन्स, सुषिर वाद्य के लिए एरोफ़ोन्स, और घन वाद्यों के लिए ऑटोफ़ोन्स। इस प्रकार पाश्चात्य वर्गीकरण प्रणाली प्राचीन भारतीय नाट्य शास्त्र पर आधारित है।    

प्राचीन भारतीय  मूर्तियों और चित्रों में उन वाद्य यंत्रों का उपयोग दर्शाया गया है जिन्हें हम आज देखते हैं। चमड़ा, लकड़ी, धातु और मिटटी के बर्तन जैसी चीज़ो सहित कई विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग के कारण वाद्य यंत्रों को बनाने में महान कौशल की आवश्यकता होती है और संगीत और ध्वनिक सिद्धांतों की भी।  भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख परंपराएँ हैं  - हिंदुस्तानी और कर्णाटक। साथ ही, लोक, जनजातीय, इत्यादि जैसी और कई अन्य परंपराएँ भी हैं।  प्राचीन काल से, इन परंपराओं के  भारतीय संगीतकारों ने, अपनी शैली के अनुरूप, पारंपरिक और देशज वाद्य यंत्रों का विकास किया और उन्हें बजाया। इसलिए, भारत के वाद्य यंत्रों  की एक समृद्ध विरासत है और ये इस देश की सांस्कृतिक परंपराओं का अभिन्न अंग हैं।   

 


अवनद्ध वाद्य

ताल वाद्य

तत वाद्य

तार वाले वाद्य

घन वाद्य

ठोस वाद्य

सुषिर वाद्य

वायु वाद्य

भारतीय संगीत

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