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जिंजी का दुर्जेय किला

तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में स्थित जिंजी या सेंजी किला, प्रायद्वीपीय भारत के सबसे अभेद्य किलों में से एक है। इसकी ताकत और अभेद्य प्रकृति के कारण इसे अंग्रेज़ो द्वारा "पूर्व के ट्रॉय" की उपाधि से नवाज़ा गया था। इस किले के अंदर इतिहास की परतें बसी हुईं हैं, और यह लगातार साम्राज्यों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है। अपने सदियों तक फैले इतिहास के दौरान, यह विजयनगर नायकों, बीजापुरी सुल्तानों, मुगलों, मराठों, फ़्रांसीसियों और अंग्रेज़ो जैसी कई महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्तियों के कब्जे में रहा, और हर एक के लिए यह एक रणनीतिक गढ़ के रूप में सेवा प्रदान करता रहा।

A Panaromic View of the Gingee Fort Complex

जिंजी किले का विशालदर्शी दृश्य

आज भी इस दुर्जेय किले को देखते ही हम इस संरचना के सामरिक महत्व को समझ सकते हैं। तीन बड़ी पहाड़ियों पर निर्मित और क्रमिक शासकों द्वारा किलेबंदीयों और संरचनाओं द्वारा सुदृढ़ बनाया गया, यह किला रक्षा के केंद्र के रूप में विकसित हुआ था, जिस पर नियंत्रण पाने के लिए शक्तिशाली राजवंशों के बीच होड़ लगी रहती थी। तीन पहाड़ियाँ - राजगिरि, कृष्णगिरि और चंद्रयानदुर्ग - लगभग 60 फ़ीट चौड़े बड़े परकोटे और 80 फ़ीट चौड़ी खाई से घिरी हुईं हैं। पास में एक और छोटी पहाड़ी मौजूद है जिसे चक्किली दुर्ग के नाम से जाना जाता है। तीन मुख्य पहाड़ियों का मोटे तौर पर एक त्रिभुज बनता है। परकोटा लगभग 11 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को घेरता है जो निचला किला कहलाता है। तीन पहाड़ियों में कई अन्य संरचनाओं के साथ अलग-अलग गढ़ हैं। निचले किले के क्षेत्र में मंदिर, मस्जिद, खंभे वाले सभागृह और हौज जैसी संरचनाएँ भी हैं। इस तरह साथ मिलकर वे जिंजी किला परिसर बनाते हैं।

Gingee hill

Gingee hill

लगभग 800 मीटर ऊँची, राजगिरी पहाड़ी (जिसे आनंदगिरि या कमलागिरि के नाम से भी जाना जाता है), तीनों पहाड़ियों में सबसे ऊँची है। पहाड़ी पर एक सुदृढ रास्ते से जाया जा सकता है। पहाड़ी की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है, एक गहरी खाई (60 फ़ीट गहरी) जो इसे आसपास के क्षेत्र से अलग करती है। पहाड़ी तक एक लकड़ी के पुल से पहुँचा जा सकता है जो इस गहरी खाई के ऊपर स्थित है। शिखर पर एक गढ़ और रंगनाथ का मंदिर है जिसका गर्भगृह अब खाली है। पहाड़ी की ओर जाने वाले मार्ग पर कमलाकनी देवी का मंदिर स्थित है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह किले से भी काफी पुराना है। एक और मंदिर देवी सेंजी का है (जिसके नाम पर किले और उसके आस पास के क्षेत्र का नाम पड़ा है)। कमलाकनी और सेंजी (जिनकी प्रायः अदल-बदलकर पूजा की जाती है) सात कुंवारी देवीओं में से हैं, जिनकी इस क्षेत्र में पूजा की जाती है। कृष्णागिरी गढ़ सामरिक महत्व के संदर्भ में, राजगिरी गढ़ के पीछे आता है। इस पहाड़ी पर भी भगवान रंगनाथ का एक खाली मंदिर है। इस पहाड़ी की संरचनाओं में विशेष रूप से भारतीय-इस्लामी वास्तुकला के अवशेष मिलते हैं, खासकर एक ऐसी संरचना में जिसे राजा का दर्शन सभागृह माना गया है। सभी तरफ से खुली हुई इस संरचना में एक गुंबददार छत और खूबसूरत नक्काशीदार मेहराबें हैं। माना जाता है कि चंद्रयान दुर्ग और चक्किली दुर्ग भी एक समय में सुदृढ़ बनाए गए थे। हालांकि, आज वे ज्यादातर खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं।

Venkataramanaswami temple

वेंकटरमणस्वामी मंदिर

निचले किले के परिसर में वेंकटरमणस्वामी मंदिर है जिसमें एक सुंदर द्वार है जिसे महाकाव्यों और पुराणों के आख्यानों पर आधारित नक्काशियों से सजाया गया है। मंदिर के करीब एक हौज है जिसका नाम अनाईकुलम है, जिसे हाथी हौज भी कहा जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि इसका इस्तेमाल हाथियों के स्नान के लिए किया जाता था। चक्रकुलम और चेट्टीकुलम नामक दो अन्य हौजें, हाथी हौज के पश्चिम में स्थित हैं। अंदरूनी किले की सबसे महत्वपूर्ण संरचनाओं में से एक कल्याण महल है, जिसे वास्तुशिल्पीय रत्न माना जाता है। यह संरचना एक आठ मंजिल की सुंदर मीनार जैसी है जिसमें सबसे ऊपर पिरामिड के आकार का शिखर है। मीनार एक चौकोर मंच पर स्थित है, जिसके आसपास कई कमरे हैं जो शाही महिलाओं का आवासीय स्थल माने जाते हैं। किले के परिसर की एक उल्लेखनीय विशेषता, प्रचुर मात्रा में पानी की आपूर्ति (पूरे परिसर में उपलब्ध) है, जो राजगिरी पहाड़ी पर स्थित दो बारहमासी झरनों द्वारा पोषित है।

Kalyana Mahal

कल्याण महल

जिंजी की शुरुआत किंवदंतियों और रहस्य में डूबी हुई है। अधिकांश इतिहासकारों का मानना ​​है कि जिंजी 13वीं शताब्दी तक एक पूर्ण किले के रूप में विकसित नहीं हुआ था। हालांकि, यह नहीं कहा जा रहा है कि रक्षा के उद्देश्यों के लिए इस स्थल को महत्वपूर्ण नहीं माना गया। चोल, पांड्य, होयसला और काकतीय ऐसी शक्तियाँ थीं जो प्रारंभिक मध्यकाल में तमिल देश में सक्रिय थीं और उनके अधिकार क्षेत्र में जिंजी का क्षेत्र भी शामिल था। जिंजी के प्रारंभिक इतिहास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक है हिस्ट्री ऑफ़ कर्नाटका गवर्नर्स जो मैकेंज़ी संग्रह का एक हिस्सा है। मद्रास में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक उच्च पदस्थ अधिकारी कॉलिन मैकेंज़ी ने यह संग्रह संकलित किया था। मैकेंज़ी ने स्वदेशी भारतीय और यूरोपीय भाषाओं में लिखी गई पांडुलिपियों, नक्शों और रेखाचित्रों को इकट्ठा करने में अपना जीवन बिता दिया था। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में आनंद कोन (जिन्होंने जिंजी पर शासन किया था) के वंशज नारायण पिल्लई ने उस समय आर्कोट के आयुक्त कर्नल मक्लिओड के अनुरोध पर द हिस्ट्री ऑफ़ कर्नाटका गवर्नर्स की रचना की थी। इस वृत्तांत के अनुसार, किले की पहली महत्वपूर्ण किलेबंदी आनंद कोन द्वारा बनाई गई थी, जो 13वीं शताब्दी की शुरुआत में, मूल रूप से चरवाहा समुदाय से संबंधित एक राजनीतिक साहसी व्यक्ति था। आनंद कोन ने कमलागिरी (वर्तमान राजगिरि) पर एक गढ़ बनाया और इसका नाम बदलकर आनंदगिरि रखा। उनके उत्तराधिकारी कृष्ण कोन ने 1240 ईस्वी में उत्तरी पहाड़ी को मजबूत किया और इसे कृष्णगिरि कहा। आगे की किलेबंदी का निर्माण कोनरी कोन और गोविंद कोन द्वारा किया गया, जो कि बाद के शासक थे।

अगला उल्लेखनीय चरण और शायद जिंजी में सबसे व्यापक निर्माण, विजयनगर साम्राज्य के तत्वावधान में किए गए थे। 15वीं और 16वीं शताब्दी तक विजयनगर साम्राज्य ने पूरे दक्कन पठार पर अपना अधिकार जमा लिया था। विजयनगर राज्य, नायकार प्रणाली पर आधारित था, जो एक प्रशासनिक संस्थान थी जिसके तहत राजा अपने राज्य के क्षेत्रों को, सैनिकों और एक निश्चित शुल्क के बदले में, सैन्य प्रमुखों या नायकों को सौंपा देता था। तमिल देश में विजयनगर साम्राज्य के विस्तार के संदर्भ में नायक जागीरदारियाँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण थीं। जिंजी, तंजौर और मदुरा के नायक विजयनगर साम्राज्य के तीन सबसे शक्तिशाली सामंत थे। समय के साथ उन्होंने विशेष अधिकार प्राप्त कर लिए और लगभग स्वतंत्र प्रमुखों के रूप में शासन करने लगे। जिंजी, उत्तर में पालर (नदी) से लेकर दक्षिण में कोलरून (नदी) तक फैले एक क्षेत्र, पर शासन करने वाले नायक शासकों की वंश पंक्ति का गढ़ बन गया।

माना जाता है कि 16वीं शताब्दी की शुरुआत में किसी समय में तुबाकी कृष्णप्पा जिंजी राजाओं की नायक वंश पंक्ति के संस्थापक थे। उन्हें कल्याण महल, और कई अन्न भंडार बनाने और पहाड़ी किलों के आसपास की दीवार को मजबूत करने का श्रेय दिया जाता है। माना जाता है कि बाद में आने वाले मुथियलु नायक, एक सफल शासक थे, जिन्होंने वेंकटरमणस्वामी मंदिर का निर्माण किया था। कहा जाता है कि कृष्णप्पा नायक के शासनकाल के दौरान, 16वीं शताब्दी के अंत में प्रसिद्ध जेसुइट उपदेशक फ़ादर पिमेंटा ने जिंजी की यात्रा की थी। जिंजी के इतिहास का पता लगाने के लिए फ़ादर पिमेंटा का वृत्तांत भी एक महत्वपूर्ण प्राथमिक स्रोत माना जाता है।

नायकों के उद्भव ने विजयनगर साम्राज्य के केंद्रीय अधिकार को खोखला बना दिया और इसे कमजोर कर दिया। 1565 में तालीकोटा में विजयनगर साम्राज्य और बहमनी सल्तनत के उत्तराधिकारियों के बीच हुई निर्णायक लड़ाई, और इसमें विजयनगर की हार, विजयनगर साम्राज्य के पतन के कारण बने। 1614-17 में हुए गृह युद्ध, जिसमें नायकों ने विघटनकारी भूमिका निभाई, ने इस साम्राज्य के शेष प्रभाव को भी नष्ट कर दिया। 17वीं शताब्दी के मध्य में बीजापुरी सल्तनत के आक्रमण में जिंजी खुद भी अधिगृहीत हो गया था। जिंजी का नाम अब बदलकर बादशाहबाद कर दिया गया और सैय्यद नासिर खान को किले का पहला क़िलेदार नियुक्त किया गया। आंतरिक किले में मौजूद हिजरा 1063 (1651-52) के दो फ़ारसी शिलालेख बीजापुरी शासन के सबूत हैं। बीजापुरी सुल्तानों के तहत भी रणनीतिक सैन्य अड्डे के रूप में जिंजी का महत्व जारी रहा।

जिंजी 28 साल की अवधि के लिए बीजापुरी शासन के अधीन रहा जिसके बाद यह 1677 में मराठा राजा शिवाजी के शासन में चला गया। मराठा अभिलेखों में जिंजी को चंडी या चंजी कहा जाता था। कब्ज़ा करने के बाद शिवाजी ने इसे अपने सेनानायक रामजी नलागे के हाथों में दे दिया। इस अवधि के अभिलेखों में मराठों द्वारा की गई व्यापक किलेबंदी का उल्लेख है। 1678 के एक जेसुइट पत्र में उल्लेख किया गया है कि, "उन्होंने (शिवाजी) ने जिंजी के चारों ओर नए परकोटे का निर्माण किया, नालों की खुदाई की, मीनारें बानाईं, और सभी कामों को इतनी पूर्णता एवं उत्कृष्टता के साथ अंजाम दिया कि उसे देख कर यूरोपीय लोग भी शर्मिंदा हो जाएंगे।" मराठों को मूल दीवारों के पीछे 20 फीट जितने विशाल परकोटे बनाने और नियमित अंतराल पर रक्षक गृह (गार्ड रूम) एवं बैरक बनाने का भी श्रेय दिया जाता है।

जिंजी 22 वर्षों तक मराठा आधिपत्य में रहा। दक्कन में मुगल साम्राज्य को मजबूत करने के लिए व्यापक प्रयास करने वाले मुगल सम्राट औरंगजेब ने शिवाजी के दूसरे बेटे राजाराम के साथ लंबा और दीर्घ संघर्ष किया। मुगलों के साथ अपने युद्ध के दौरान, राजाराम जिंजी किले में रहने लगे जो कुछ समय के लिए मराठों की राजधानी बना गया। लगभग 8 साल तक चली घेराबंदी के बाद 1698 ईस्वी में मुगल सेनाध्यक्ष ज़ुल्फिक़ार खान ने अंततः जिंजी पर कब्ज़ा कर लिया। मुगलों के अधीन जिंजी को फिर से एक नया नाम दिया गया, नुसरतगढ़। 1700 ईस्वी में औरंगजेब ने स्वरूप सिंह नामक एक बुंदेला राजपूत को अपनी ओर से किले पर शासन करने के लिए प्रमुख के रूप में चुना। 1714 में स्वरूप सिंह की मृत्यु के बाद, आर्कोट के नवाब, सआदतुल्ला खान ने दावा किया कि स्वरूप सिंह पर उनका बहुत पैसा बकाया था और इसलिए उन्होंने जिंजी की घेराबंदी की। अपने पिता के राज्य का बचाव करते हुए मृत्यु को प्राप्त होने वाले स्वरूप सिंह के पुत्र राजा देश सिंह, उनके वीर गुणों का वर्णन करने वाली कई किंवदंतियों और लोककथाओं का विषय रहे हैं। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, दाउद खान ने कर्नाटक के नवाब के रूप में सिंहासन ग्रहण किया और जिंजी का नियंत्रण हासिल कर लिया।

इस किले के ऐतिहासिक और साथ ही सैन्य महत्व, समुद्री तट से इसकी निकटता और यूरोपीय व्यापारिक शक्तियों की बढ़ती व्यावसायिक बस्तियों से इसके सामिप्य ने इसकी प्रतिष्ठा और रणनीतिक महत्व एवं अहमियत को और भी बढ़ दिया। 1750 ईस्वी में, फ़्रांसीसी शासकों द्वारा नवाबों के हाथ से किले का अधिग्रहण ले लिया गया था। फ़्रांसीसियों ने किले को अच्छी तरह से बनाए रखा और एक शाही बैटरी (तोपखाने और गोला-बारूद का भंडार) और आर्कोट गेट और पॉन्डिचेरी गेट नामक दो फाटकों के रूप में महत्वपूर्ण निर्माण किए। यह किला कर्नाटक युद्धों के दौरान एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया था, जिसमें एक तरफ़ फ़्रांसीसी और दूसरी तरफ़ अंग्रेज़ थे, तथा जिसमें, दोनों पक्षों की ओर राज्यनिष्ठा की प्रतिज्ञा सहित, कर्नाटक के सिंहासन पर दावेदारी के लिए कई दावेदार मौजूद थे। 1761 में, अंग्रेज़ो ने एक प्रमुख फ़्रांसीसी बस्ती पॉन्डिचेरी पर कब्ज़ा करने के साथ ही जिंजी पर भी कब्ज़ा कर लिया। 1780-99 ईस्वी के दौरान, जिंजी टीपू सुल्तान के अधीन रहा। परंतु, 1799 में तीसरे आंग्ल-मैसूर युद्ध के अंत में, अंग्रेज़ो ने जिंजी को फ़िर से अपने कब्ज़े में ले लिया और उसके बाद यह उन्हीं के कब्जे में रहा। अंग्रेज़ो ने मौजूदा किलेबंदी में कोई भी नया निर्माण नहीं किया और असल में इसके रख-रखाव पर ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया।

View from the Fort

किले से दिखता दृश्य