वर्तमान तमिलनाडु राज्य के शीर्ष पर स्थित, वेल्लोर शहर का यह किला 16वीं शताब्दी ईस्वी में विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत बनाया गया था। इसका इतिहास दो निर्णायक राजनीतिक लड़ाइयों- तालीकोटा की लड़ाई (1565) और तोपपुर की लड़ाई (1616-1617 ईस्वी) से प्रभावित रहा है। विजयनगर शासकों के बाद, यह किला बीजापुरी शासकों, मराठों और अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के बीच, भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने तक, संघर्ष का स्थल बना रहा। ऐतिहासिक रूप से यह 1614 ईस्वी के तख्तापलट और प्रसिद्ध "वेल्लोर विद्रोह" के लिए जाना जाता है, और इस किले का राजनीतिक महत्व इसकी सुदृढ़ वास्तुकला द्वारा समर्थित है। किले के इतिहास में गहराई से गोता लगाकर ही कोई इसे पूरी तरह से समझ सकता है।
वेल्लोर किले का एक दृश्य, विकिमीडिया कॉमन्स
लिखित ऐतिहासिक अभिलेखों के अभाव में, इस क्षेत्र में पाए गए पत्थर के शिलालेखों का उपयोग इसके इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए किया गया है। माना जाता है कि चिन्ना बोम्मी रेड्डी और थिम्मा रेड्डी नायक (जो विजयनगर के तुलुवा वंश के अंतिम शासक, सदाशिव राया, के अधीन सरदार थे) ने 1566 ईस्वी में किले का निर्माण किया था। इससे पहले का साल, यानी 1565 ईस्वी. तालीकोटा के ऐतिहासिक युद्ध के लिए जाना जाता है। इस ऐतिहासिक परिवर्तन वाली लड़ाई में, विजयनगर के राजा, अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा और बीदर सल्तनत की संयुक्त सेना से हार गए। हारने के बाद, उन्होंने अपनी राजधानी को चंद्रगिरी में स्थानांतरित कर लिया, जो भौगोलिक रूप से वेल्लोर के समीप था, जो इस क्षेत्र के, एक सामरिक स्थान होने और किले के निर्माण के लिए उपयुक्त होने का कारण था।
तुलुवा वंश के बाद अराविदु वंश आया, और श्रीरंग द्वितीय (श.1614 ईस्वी) को, उनके पूर्ववर्ती वेंकटपति राया द्वारा इसके पाँचवें शासक के रूप में नामित किया गया। वेंकटपति राया के सिंहासन का कोई असली उत्तराधिकारी नहीं था और श्रीरंग उनके भतीजे थे। हालांकि, वेंकटपति की पत्नी बयम्मा ने चेंगा राया नामक एक ब्राह्मण लड़के को गोद लिया था, जिसे वह राजा बनाना चाहती थी। इस स्थिति के कारण, एक तरफ जग्गा राया (बयम्मा के भाई उनके समर्थन में) और दूसरी तरफ यचमा नायडू (वेंकटपति के वफादार राजप्रतिनिधि) के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया। जग्गा राया ने श्रीरंग और उनके परिवार का अपहरण कर लिया और उन्हें वेल्लोर के किले में कैद कर लिया। यचमा नायडू, श्रीरंग के 12 वर्षीय बेटे को मुक्त कराने में कामयाब रहे और उन्होंने श्रीरंग व उनके परिवार को भी मुक्त कराने का प्रयास किया। उनको भगाने के लिए एक भूमिगत सुरंग बनाई गई। परंतु, जग्गा राया को इस योजना के बारे में पता चल गया और उसने यह सुनिश्चित किया कि श्रीरंग और उनके परिवार को इस किले के भीतर ही मार दिया जाए।
विजयनगर साम्राज्य का प्रतीक, विकिमीडिया कॉमन्स
वेल्लोर किले की चौड़ी खाई, विकिमीडिया कॉमन्स
इस क्रूर नरसंहार के कारण 1616-1617 ईस्वी में तोपपुर की लड़ाई हुई, जिसमें यचमा नायडू जग्गा राय के खिलाफ खड़े थे। हालांकि नायडू ने यह लड़ाई जीत ली थी, मगर लगातार चल रही लड़ाइयाँ पहले से ही पतनोन्मुख हो रहे साम्राज्य के विनाश का कारण बन गईं। तोपपुर की लड़ाई भारतीय इतिहास की प्रमुख लड़ाइयों में से एक है क्योंकि इसमें बहुत बड़े पैमाने पर तोपों का इस्तेमाल किया गया, जिससे भारी तबाही हुई। यह पहली बार था जब दक्षिण एशिया में तोपों का इस्तेमाल किया गया था।
1650 के दशक में, मदुरई के थिरुमली नायक ने विजयनगर शासकों द्वारा हमले की धमकी के खिलाफ, बीजापुर के सुल्तान को विजयनगर के गढ़ - वेल्लोर किले- पर हमला करने के लिए राजी कर लिया। इसके बाद, बीजापुरी सल्तनत ने किले पर नियंत्रण हासिल कर लिया। हालांकि, लगभग दो दशकों बाद, शिवाजी के नेतृत्व में मराठों ने अपने अभियानों के लिए दक्षिण की ओर कूच किया। वर्ष 1676-77 ईस्वी में वेल्लोर किले की 14 महीने की लंबी घेराबंदी हुई। शिवाजी के सेनापति, सरदार सबनीस नरहरि रुद्र ने 2000 की घुड़सवार सेना और लगभग 5000 की पैदल सेना के साथ, वेल्लोर की ओर कूच किया। उन्होंने सामरिक रूप से, वेल्लोर किले से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर "सजरा" और "गोजरा" नामक दो छोटे किलों का निर्माण किया। अधिक ऊँचाई पर स्थित होने से, इन किलों से वेल्लोर का किला साफ नज़र आता था और उस पर नजर रखी जा सकती थी। इसके बाद हुई बमबारी में, यह कहा जाता है कि किले की रखवाली कर रहे 500 लोगों में से लगभग 400 लोग मारे गए, और इसके बाद, किले की रक्षा करने वाले, तत्कालीन सेनापति, अब्दुल्ला खान द्वारा 21 अगस्त 1678 ईस्वी को इसे मराठों के हवाले कर दिया गया था।
वेल्लोर विद्रोह पर एक टिकट, 1806 ईस्वी, विकिमीडिया कॉमन्स
18वीं शताब्दी की शुरुआत में, औरंगजेब की मृत्यु के बाद, कुछ समय के लिए यह किला मुगल सेनापति, दाऊद खान, और कर्नाटक के नवाब के अधीन था। दाऊद खान ने दिल्ली से एक सेना के साथ कूच किया और किले को मराठों के हाथों से छीन लिया। 1757 ईस्वी में प्लासी की लड़ाई के बाद, अंग्रेजों ने भारत के प्रमुख क्षेत्रों पर प्रभुत्व हासिल कर लिया और इस किले को बहुत ही आसानी से अपने नियंत्रण में ले लिया। अंग्रेजों ने 1782 ईस्वी में हैदर अली की सेना के खिलाफ इस किले की रक्षा की और 1799 ईस्वी में टीपू सुल्तान को यहाँ हराने के बाद उनके बेटों, बेटियों, पत्नी और माँ को भी इसी किले में कैद कर लिया था।
वेल्लोर किला श्रीलंका के अंतिम शासक, श्री विक्रम राजसिम्हा (1798-1815 ईस्वी) के लिए भी आखिरी ठिकाना बन गया, जब उन्हें और उनके परिवार को इस किले में 17 साल तक युद्ध बंदियों के रूप में रखा गया था। अब किले में, विजयनगर साम्राज्य के अंतिम राया राजाओं के साथ, उनकी कब्र पायी जा सकती है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी इस किले की महत्वपूर्ण भूमिका थी। 1806 ईस्वी का प्रसिद्ध वेल्लोर विद्रोह या वेल्लोर सिपाही विद्रोह यहीं पर हुआ था। यह विद्रोह 1857 के विद्रोह से लगभग 50 वर्ष पूर्व हुआ था। इस विद्रोह के जो कारण बने, वे इस प्रकार थे। वेल्लोर किले में तैनात भारतीय सिपाहियों को नई गोल टोपियाँ पहनने के आदेश दिए गए, जिनके बारे में माना जाता है कि वे गाय की खाल से बनाई गई थीं। इसने कई हिंदू सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया। इसके अलावा, अन्य मनमाने आदेश जैसे पगड़ी, सभी जाति चिह्न, दाढ़ी और गहने हटाना, सैनिकों द्वारा उनकी धार्मिक मान्यताओं के लिए अपमानजनक माने गए। इसलिए, 10 जुलाई 1806 को, भारतीय सिपाहियों ने यूरोपीय बैरकों पर हमला कर दिया, जिसमें लगभग 15 अधिकारी और लगभग 100 अंग्रेज़ सैनिक मारे गए। यह समाचार आर्कोट में स्थित सैन्य कमांडर के पास पहुँचा, जो विद्रोह को दबाने के लिए तोपों के साथ वहाँ आया। 11 जुलाई की दोपहर तक इस विद्रोह का सख्ती से दमन कर दिया गया। भले ही यह विद्रोह सिर्फ एक दिन तक चला, लेकिन इसमें लगभग 800 विद्रोही शामिल हुए थे और इसने अंग्रेजों को भीतर तक हिला दिया था।
किले का प्राचीर, विकिमीडिया कॉमन्स
किले का समृद्ध इतिहास इसकी मजबूत स्थापत्य विशेषताओं द्वारा समर्थित है। किले का निर्माण वास्तुकला की द्रविड़ शैली में किया गया था। इसमें एक गहरी गीली खाई (खंदक) थी जहाँ एक समय में लगभग 10,000 मगरमच्छ रहा करते थे, जो हर घुसपैठिए को पकड़ने का इंतजार करा करते थे। इस किले में विशाल दोहरी दीवारें हैं, जो अनियमित रूप से बाहर निकली हुई हैं, और ऐसे प्राचीरें हैं जिन पर दो गाड़ियाँ अगल बगल चल सकती हैं। एक अखंड पर्वत श्रृंखला पर टिके हुए, इस किले का निर्माण अर्कोट और चित्तौड़ की खदानों से प्राप्त ग्रेनाइट का उपयोग करके किया गया था।
किले की सुदृढ़ वास्तुकला, विकिमीडिया कॉमन्स
यह किला परिसर हमारे अतीत के धर्मनिरपेक्ष तालमेल का एक और उदाहरण भी पेश करता है। इसमें एक मस्जिद, सेंट जॉन चर्च नामक एक गिरिजाघर, और साथ ही एक मंदिर भी शामिल है, जिस पर विशेष ध्यान दिया गया है। यह जलकंदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उत्कृष्ट नक्काशी, बड़े लकड़ी के द्वार और एकल पत्थर के बने अद्भुत खम्भों के लिए प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि चिन्ना बोम्मी रेड्डी, जो कि किले के निर्माताओं में से एक थे, ने एक सपना देखा जिसमें भगवान शिव ने उन्हें दिए गए स्थान पर इस मंदिर का निर्माण करने के लिए कहा। कहा जाता है कि इस निर्माण स्थल में स्थिर पानी के बीच में एक लटकती हुई बाँबी थी। ऐसा माना जाता है कि एक पथिक द्वारा यहाँ एक शिवलिंग रखा गया, जो भविष्य में अत्यधिक पूजनीय हो गया। दिलचस्प बात यह है कि "जलकंदेश्वर" शब्द का अनुवाद "जल में रहने वाले भगवान शिव" के रूप में किया गया है। बाद में इस भव्य मंदिर का उपयोग शस्त्रागार के रूप में भी किया जाने लगा। जबकि मस्जिद आज एक विवादित स्थल है, यहाँ के गिरिजाघर का कभी भी आधिकारिक तौर पर पवित्रिकरण नहीं किया गया था। 1846 ईस्वी में अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों के लिए मद्रास सरकार द्वारा निर्मित यह गिरिजाघर, इंजीलवादी सेंट जॉन को समर्पित था।
जलकंदेश्वर मंदिर, वेल्लोर किला, विकिमीडिया कॉमन्स
वेल्लोर का किला एक ही समय में, एक वास्तुशिल्पीय अचंभा, एक ऐतिहासिक विरासत, एक सैन्य गढ़ और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अभिव्यक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह हमारे कारीगरों के कौशल के साथ-साथ हमारी मिश्रित संस्कृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि यह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महत्वपूर्ण और आकर्षक किलों में से एक है।