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आंध्र प्रदेश का शानदार चंद्रगिरि किला

चंद्रगिरि किला आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले में चंद्रगिरि शहर में बड़ी शान से खड़ा है। यह ऐतिहासिक किला जिसे चंद्रगिरि या ‘चाँद का पहाड़’ कहा जाता है, एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। एक दंतकथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस पहाड़ी का नाम चंद्र देव के नाम पर पड़ा जिन्होंने भगवान शिव से वरदान प्राप्त करने के लिए यहाँ तपस्या की थी। इस ऐतिहासिक स्थान पर कई प्रमुख राजवंशों ने राज किया जिन्होंने इस क्षेत्र की संस्कृति, कला, साहित्य और वास्तुशिल्पीय धरोहर को समृद्ध करने के लिए बड़ा योगदान दिया है।

A view of the hill citadel of Chandragiri. Image Source: Wikimedia Commons

चंद्रगिरि के पहाड़ी किले का दृश्य। चित्र स्रोत - विकिमीडिया कॉमन्स

उत्पत्ति

ऐसा माना जाता है कि चंद्रगिरि किले का निर्माण लगभग सन् 1000 में नारायणवरम (जो अब चंद्रगिरि के निकट एक छोटा गाँव है) के करवेतीनगर के सरदार इम्मादी नरसिंह यादवराय के शासन काल में हुआ था। यह पहाड़ी किला लगभग तीन सदियों तक यादवराय नाम के एक स्थानीय राजवंश के अधीन रहा। जब यादवराय राजवंश के अंतिम राजा ने अपना पुत्र खोया और वे तिरुमला भाग गए, तो विजयनगर की सेना ने सन्‌ 1367 में चंद्रगिरि पर कब्ज़ा कर लिया।

विजयनगर शासन काल के तहत

विजयनगर साम्राज्य पर चार राजवंशों ने एक के बाद एक शासन किया : संगम, सालुव, तुलुव और आरवीडू। चंद्रगिरि के विजयनगर राज्यपाल सालुव नरसिंह देव राय ने 15वीं सदी में तख्ता पलट दिया और तत्कालीन शासक की गद्दी छीन ली। इस तरह संगम वंश के आधिपत्य को समाप्त करते हुए उन्होंने सालुव राजवंश का आधिपत्य स्थापित किया। उनके बाद तुलुव राजवंश के कृष्ण देव राय ने शासन किया।

दक्खन के इतिहास में सन् 1565 के तालिकोट के युद्ध को ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जाता है। दक्खन की सल्तनतों ने विजयनगर की सेना को युद्ध में पराजित किया और इसमें आरवीडू राजवंश के आलिया राम राय को मार डाला गया। इसके बाद आक्रमणकारी सेना ने विजयनगर की शाही राजधानी हंपी को लूटकर नष्ट किया जिससे यह खंडहर में तब्दील हो गई। वहीं दूसरी ओर मारे गए राजा के भाई तिरुमल देव राय युद्ध में जीवित बच गए और उन्होंने एक और सदी तक विजयनगर के राज्य को अस्तित्व में रखा। वे पेनुकोंडा शहर भाग गए। सन् 1596 में जब पेनुकोंडा पर गोलकोंडा सल्तनत ने आक्रमण किया, तब राजधानी को चंद्रगिरि नाम के एकदम मज़बूत और सुसंरक्षित शहर में स्थानांतरित किया गया। इस तरह तालिकोट के इस बड़े युद्ध के बाद चंद्रगिरि किले का विजयनगर साम्राज्य के शक्ति-केंद्र के रूप में उदय हुआ।

17वीं सदी के आरंभ में चंद्रगिरि किला गोलकोंडा सल्तनत के कब्ज़े में आ गया। सन्‌ 1782 में हैदर अली ने किले को मैसूर सल्तनत का हिस्सा बना लिया और सन् 1792 में श्रीरंगपट्टनम की संधि होने तक इस क़िले पर उनका अधिकार बना रहा।

A view showing the defense wall and bastions on the northern side. Image Source: Archaeological Survey of India.

एक दृश्य जिसमें उत्तर दिशा में सुरक्षा दीवार और बुर्ज दिखाए गए हैं। चित्र स्रोत - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

वास्तुकला

रणनीतिक दृष्टि से स्थित चंद्रगिरि का पहाड़ी किला उसके शासकों के गौरव और पराक्रम का प्रमाण है। यह किला लगभग 25 एकड़ के क्षेत्र पर फैला हुआ है और यह दो भागों में विभाजित है- निचला और ऊपरी किला। निचला किला पहाड़ी के नीचे के समूचे समतल भूभाग को तीन दिशाओं से घेरे हुए है, जबकि चौथी दिशा उत्तर में ऊँची पहाड़ी से सुरक्षित है। पहाड़ी के ऊपर स्थित ऊपरी किले में मेहराबदार मुँडेरों वाले प्राचीरों और बुर्जों के साथ-साथ पर्यवेक्षण बुर्ज हैं।

A general view of lower fort (view from upper fort), Image Source: Archaeological Survey of India.

निचले किले का एक साधारण दृश्य (ऊपरी किले से), चित्र स्रोत - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

किले परिसर के भीतर की संरचनाएँ एक लंबे समय से चली आ रहीं स्वदेशी वास्तुशिल्पीय परंपराओं को दर्शाती हैं। विशाल चूना पत्थरों से निर्मित (साइक्लोपियन पत्थर की चिनाई) एक बड़ी और चौड़ी दीवार पूरे किले को घेरे हुए है। दीवार में आयताकार बुर्ज बने हुए हैं और उसके चारों ओर एक गहरी खाई है। सुंदर ढंग से तराशे हुए स्तंभों के साथ इस भव्य चंद्रगिरि किले में दो प्रवेशद्वार हैं जो एक-दूसरे से 1 किमी की दूरी पर स्थित हैं। किले के परिसर के भीतर शिव और विष्णु को समर्पित आठ मंदिर हैं जो अब खंडहर हो चुके हैं। इन मंदिरों को वास्तुशिल्पीय शैली के आधार पर विजयनगर युग की शैली के रूप में कालांकित किया जा सकता है।

किले की दीवार से एक पहाड़ी सटी हुई है जिस पर एक मंडपम है। एक स्थानीय दंतकथा के अनुसार इस मंडपम का उपयोग शहरवासियों की उपस्थिति में अपराधियों को फाँसी देने के लिए किया जाता था। निचले किले में दो शानदार इमारतें हैं। ये भली-भाँति संरक्षित संरचनाएँ राजा महल और रानी महल हैं।

राजा महल

Raja Mahal. Image Source: Wikimedia Commons

राजा महल। चित्र स्रोत - विकिमीडिया कॉमन्स

यह आलीशान तीन-मंज़िला महल 16वीं-17वीं सदी के विजयनगर के समय की भारत-अरबी वास्तुकला का उत्तम उदाहरण है। समूची संरचना पत्थर, ईंट और गारे से बनाई गई है; इसमें लकड़ी का उपयोग बिल्कुल नहीं है। मंज़िलों को बड़े खंभों के सहारे खड़ा किया गया है और दीवारों को गच पलस्तर से अच्छी तरह से सजाया गया है। चार-चार के समूहों में, विशाल खंभों के सहारे कई मंज़िलें खड़ी हुई हैं, जिनके बीच में एक दूसरे को काटती हुईं मेहराबों के साथ चारखानेदार छतें बनी हुईं हैं। पूरा परिसर काफ़ी चतुरता और कुशलता प्रदर्शित करता है। चंद्रगिरि के बारे में रोचक तथ्य यह है कि उसने आधुनिक चेन्नई के जन्म में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विजयनगर के अंतिम राजा श्री रंग राय द्वितीय के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सन् 1639 में इसी किले में, ईस्ट इंडिया कंपनी को मद्रास के पास सेंट जॉर्ज फ़ोर्ट बनाने के लिए ज़मीन का भूभाग प्रदान करने वाले मूल दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किए थे।

वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने राजा महल में एक पुरातत्वीय संग्रहालय स्थापित किया है जहाँ विजयनगर के समय की पत्थर और कांस्य की मूर्तियों को प्रदर्शित किया गया है।

रानी महल

Rani Mahal. Image Source: Wikimedia Commons

रानी महल। चित्र स्रोत - विकिमीडिया कॉमन्स

राजसी महिलाओं के निवास, रानी महल की निर्माण शैली, बगल में बने समकालीन राजा महल के समान है। यह एक साधारण दो-मंज़िला महल है जिसके सामने के मेहराबदार प्रवेशद्वार गच पलस्तर की आकृतियों से सुशोभित हैं। इन संरचनाओं का निर्माण खुरदुरे पत्थर से किया गया है और ये चूने से पुती हुई हैं। निवास स्थान के रूप में उपयुक्त, पहली मंज़िल की सपाट छत को अत्यंत सुंदर शिखर से अलंकृत किया गया है। तहखाने में मौजूद अभिलेख के अनुसार यहाँ सेनापति का निवास-स्थान हुआ करता था।

साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर

वास्तुकला की दृष्टि से अजूबा होने के अतिरिक्त चंद्रगिरि किले को उसकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मनुचरित्र और अमुक्तमाल्यद जैसे काव्यों की रचना यहीं पर हुई है थी। राजा सालुव नरसिंह देव राय के आध्यात्मिक सलाहकार ऋषि व्यासतीर्थ यहाँ रहते थे और उन्हें तिरुमला मंदिर के औपचारिक कार्यों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। ऐसा कहा जाता है कि तेनाली रामकृष्ण, जो श्री कृष्णदेवराय के दरबार के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में से एक थे, वे इस क्षेत्र के मूल निवासी थे। उनके वंशज चंद्रगिरि में अभी भी मौजूद हैं।

चंद्रगिरि किला अपने अद्भुत सौंदर्य और शाही इतिहास के लिए भली-भाँति जाना जाता है। इसके जैसी ऐसी इमारतें हमारे देश की समृद्ध परंपरा और संस्कृति को प्रकट करती हैं। यह सांस्कृतिक धरोहर ऐसी महत्त्वपूर्ण घटनाओं की परतों में लिपटी हुई है जिनके कारण इस क्षेत्र का इतिहास गढ़ा गया है।

A view of the rocky outcrop and stone defense wall, Image Source: Archaeological Survey of India.

ऊपर की ओर निकली चट्टान और पत्थर से बनी सुरक्षा दीवार का दृश्य, चित्र स्रोत - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण