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सलीमगढ़ किला- कैद और आज़ादी की सन्निकटता

भारत की राजधानी नई दिल्ली का इतिहास शानदार है और उसका भूदृश्य ऐसी प्रतिष्ठित संरचनाओं से युक्त है जो विनाशकारी समय का सामना कर भी तस से मस नहीं हुईं। सलीमगढ़ किला ऐसा ही एक शाश्वत स्मारक है जो शहर की ऐतिहासिक संपदा की झलक प्रस्तुत करता है। इस किले का निर्माण विशाल लाल किले से पहले हुआ है और यह उसके उत्तर-पूर्व की ओर बड़ी शान से खड़ा है। यद्यपि सलीमगढ़ किला लगभग पूरी तरह गुमनामी के अंधेरों में खो गया है, तथापि उसके पास बयान करने के लिए आज़ादी और कैद की रोचक कहानियाँ हैं।

A view of the Salimgarh Fort Gate

सलीमगढ़ किले का प्रवेशद्वार। चित्र स्रोत - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

वास्तुकला

सलीमगढ़ किले की शानदार संरचना त्रिभुजाकार है और उसकी दीवारें बड़े खुरदरे पत्थर की ईंट से बनी हैं। किसी समय सैनिकी क्षेत्र रहे इस किले को समय-समय पर गोलाकार बुर्जों से मज़बूत किया जाता था। बहादुर शाह ज़फ़र के शासन-काल में बनाया गया धनुषाकार पुल इस किले को लाल किले से जोड़ता है। सलीमगढ़ किले का मुख्य प्रवेशद्वार, एक सादी संरचना है जिसमें थोड़ा-बहुत लाल बलुआ पत्थर लगा हुआ है और उसे आम तौर पर बहादुर शाह ज़फ़र द्वार के रूप में जाना जाता है।

The prison at Salimgarh, Image Source: Wikimedia Commons

सलीमगढ़ की किलाबंदियाँ। चित्र स्रोत - विकिमीडिया कॉमन्स

उत्पत्ति- सूर राजवंश

सलीमगढ़ किले का निर्माण शेर शाह सूरी के बेटे सलीम शाह सूरी ने, अपने क्षेत्र को संभावित आक्रमणों से सुरक्षित रखने के लिए, सन् 1546 में करवाया था। सन् 1540 में शेर शाह सूरी ने दिल्ली में सूर राजवंश का शासन स्थापित करने के लिए मुगल सम्राट हुमायूँ को परास्त करते हुए मुगल आधिपत्य पर रोक लगा दी। इस दुर्जेय किले का निर्माण ऐसे स्थल पर किया गया था जो एक ओर यमुना नदी से और दूसरी ओर विस्तृत अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ था। परंतु सलीम शाह सूरी किले का निर्माण पूरा होने से पहले सन्‌ 1555 में चल बसे। उनके शासन काल में केवल एक मस्जिद और किले को घेरने वाली दीवारों का ही निर्माण पूरा हुआ था।

The Swatantrata Senani Smarak, Image Source: Wikimedia Commons

सलीमगढ़ किले और लाल किले को जोड़ने वाले त्रिपोलिया पुल की चित्रकारी, सन् 1843। चित्र स्रोत - विकिमीडिया कॉमन्स

मुगलों के तहत

सूर साम्राज्य अधिक समय तक किले पर अपना अधिकार नहीं रख पाया। हुमायूँ, जिन्होंने खुद को 15-वर्ष तक फ़ारस में निर्वासित किया था, वे सन् 1555 में भारत लौट आए। उन्होंने सूर राजवंश के अंतिम शासक सिकंदर शाह सूरी की सेनाओं को परास्त किया और मुगल साम्राज्य पुनः स्थापित किया। उन्होंने सलीमगढ़ किले पर कब्ज़ा किया और उसका नाम बदलकर “नूरगढ़” रख दिया। ऐसा माना जाता है कि सम्राट अकबर ने सलीमगढ़ किले को जागीर के रूप में शेख फ़रीद बुखारी (एक मुगल सरदार) को सौंप दिया। कई मुगल शासक, विशेषतः सम्राट शाह जहाँ इस किले में रहते थे। जब शाह जहाँ ने मुगल राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित किया, तो सलीमगढ़ के किले ने एक बार फिर प्रमुख स्थान प्राप्त किया। शाहजहानाबाद नाम के नए राजधानी शहर में उनके शाही क़िले क़िला-ए-मुबारक या लाल क़िले का निर्माण सलीमगढ़ के निकट हुआ था।

The Swatantrata Senani Smarak, Image Source: Wikimedia Commons

सलीमगढ़ किले का कारागार। चित्र स्रोत - विकिमीडिया कॉमन्स

कारागार में रूपांतरण

औरंगज़ेब के शासन काल में सलीमगढ़ किले को कारागार में परिवर्तित किया गया था। इस तरह कारावास और कैद के स्मारक के रूप में किले का लंबा इतिहास आरंभ हुआ । सलीमगढ़ किले में कई नामी लोगों को कैद किया गया था। ऐसा माना जाता है कि औरंगज़ेब ने अपने सबसे छोटे भाई मुराद बख्श और बेटी ज़ेबुन्निसा को सलीमगढ़ किले में बंदी बना लिया था। मुराद बख्श को ग्वालियर किले में ले जाया गया था जहाँ बाद में उन्हें मृत्युदंड दिया गया था। ज़ेबुन्निसा अपने जीवन के अंतिम 21 वर्ष यहीं पर बंदी बनी रहीं। सन् 1659 में औरंगज़ेब की सेना ने सम्राट शाह जहाँ के सबसे बड़े बेटे, दारा शिकोह, को पकड़कर, उन्हें उनके छोटे बेटे, सिपिहर शिकोह, के साथ सलीमगढ़ किले में बंदी बना लिया था। मुगल सम्राट जहाँदार शाह को भी सन् 1712-1713 के बीच कुछ समय के लिए किले में बंदी बनाया गया था। यह भी माना जाता है कि गुलाम कादिर (अफ़ग़ानी रोहिला सरदार) द्वारा शाह आलम की आँखें फोड़कर उन्हें, मराठा शासक, महादजी सिंधिया, द्वारा छुड़ाए जाने तक, सलीमगढ़ के कारागार में रखा गया था।

1857 का विद्रोह

सन् 1857 में एक नया आरंभ हुआ, क्योंकि एक समय की इस अत्याचारी संरचना में प्रतिरोध और क्रांति की भावना का विकास हुआ।

ऐसा कहा जाता है कि 1857 के विद्रोह के दौरान अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र ने यहाँ से गतिविधियों का संचालन किया था। क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ी शासन का विरोध करने और हिंदुस्तान को उसके यथोचित शासक बहादुर शाह ज़फ़र को सुपुर्द करने की प्रतिज्ञा ली। रणनीतियों के बारे में चर्चा करने के लिए वे सलीमगढ़ के किले पर इकट्ठा हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि बहादुर शाह ज़फ़र ने विद्रोह के विस्फोट के बाद विद्रोहियों को किले के प्राचीर से अंग्रेज़ों से लड़ते हुए देखा था। अंततः अंग्रेज़ों ने विद्रोह को कुचल डाला और सलीमगढ़ किले पर अधिकार जमा लिया। किले पर कब्ज़ा कर लेने के बाद उन्होंने इसका सैनिक शिविर और कारागार के रूप में उपयोग किया।

आज़ाद हिंद फ़ौज (आईएनए) के सैनिकों की कैद

1940 के दशक तक भारत को स्वतंत्र कराने का राजनैतिक आंदोलन अपने चरम पर पहुँच गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के विस्फोट के बाद भारतीय अल्पकालीन सरकार और आज़ाद हिंद फ़ौज (इंडियन नेशनल आर्मी) का गठन हुआ और, ब्रिटिश भारतीय सेना और मित्र राष्ट्रों की सेना के साथ युद्ध छेड़ा गया। दुर्भाग्य से, 1945 में आज़ाद हिंद फ़ौज (आईएनए) की हार हो गई। उसके बाद आईएनए के कई कैदियों को सलीमगढ़ किले में बंदी बनाया गया और उन पर अत्याचार किए गए। इन कैदियों के मुकदमों की सुनवाई बाद में लाल किले में हुई थी।

स्वतंत्रता का स्मारक

आज़ाद हिंद फ़ौज (इंडियन नेशनल आर्मी) का किले के साथ गहरा संबंध होने के कारण 1995 में किले को भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के स्मारक में परिवर्तित किया गया और उसका नाम बदलकर “स्वतंत्रता सेनानी स्मारक” रखा गया। परिणामस्वरूप यह अत्याचार का स्मारक हमारे स्वतंत्रता संग्राम को गौरवान्वित करने वाली एक प्रतीकात्मक संरचना बन गई। कर्नल प्रेम कुमार द्वारा पहनी गई वर्दी, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों के घुड़सवारी के जूते (राइडिंग बूट) और कोट के बटन और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीरें यहाँ प्रदर्शित की जाने वाली कुछ अनमोल वस्तुएँ हैं।

The Swatantrata Senani Smarak, Image Source: Wikimedia Commons

सलीमगढ़ किले के खंडहर। चित्र स्रोत - विकिमीडिया कॉमन्स

इस किले की कमज़ोर पड़ती हुईं दीवारें इतिहास की सर्वाधिक उथल-पुथल और क्रूरतापूर्ण घटनाओं की साक्षी रही हैं। यह स्मारक हमारे राष्ट्रीय नायकों के बलिदानों के प्रति श्रद्धांजलि का द्योतक है। वर्तमान में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में शामिल (लाल किला परिसर के साथ) सलीमगढ़ किला इस तरह कैद और आज़ादी की सन्निकटता प्रस्तुत करता है।