बेकल किले के एक बुर्ज का दृश्य। छवि सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स
बेकल किला, केरल के मालाबार तट के सबसे उत्तरी भाग में पड़ने वाले, एक शांत और अनोखे शहर, कासरगोड में स्थित है। पिछले कुछ दशकों में, इस किले और इसके आसपास के खूबसूरत, सफ़ेद रेतीले समुद्री तट ने, कई प्रसिद्ध फ़िल्मों की पृष्ठभूमि के रूप में वैभव प्राप्त किया है। हालाँकि, इस किले का महत्व और इतिहास कई सदियों पुराना है। यह किला अपने अंदर सदियों की विरासत और संस्कृति को समेटे हुए है, जिसने इस क्षेत्र के इतिहास को आकार देने में एक मुख्य भूमिका निभाई है।
थेय्यम, छवि सौजन्य- विकिमीडिया कॉमन्स
केरल के सुदूर उत्तर में स्थित, कासरगोड ज़िले की एक समृद्ध मिश्रित सांस्कृतिक विरासत है। यह उत्तर में कर्नाटक राज्य, उत्तर-पूर्व में पश्चिमी घाटों, दक्षिण-पूर्व में कोडागु, दक्षिण में कन्नूर और पश्चिम में अरब सागर से घिरा हुआ है। यह सप्त भाषा-संगम भूमि अर्थात मलयालम, बयारी, तुलू, कन्नड़, कोंकणी, मराठी और उर्दू समेत सात भाषाओं की भूमि के रूप में भी प्रसिद्ध है। कासरगोड क्षेत्र थेय्यम नाम की एक उत्कृष्ट कर्मकांडीय नृत्य कला के लिए भी प्रसिद्ध है। कासरगोड की रणनीतिक स्थिति ने, इसे प्राचीन काल से ही वाणिज्यिक गतिविधियों का केंद्र बनाया तथा इसे व्यापारियों और आक्रमणकारियों, दोनों के लिए ही समान-रूप से सुगम बनाया। बेकल किले का इतिहास इस ऐतिहासिक शहर से अभिन्नता से जुड़ा हुआ है।
कासरगोड क्षेत्र, प्रायद्वीपीय भारत के ऐतिहासिक मानचित्र पर, 9वीं शताब्दी ईस्वी के बाद से ही एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरने लगा था। 9वीं और 14वीं शताब्दी के बीच, अरब व्यापारियों ने मसालों और अन्य कीमती वस्तुओं को खरीदने के लिए इसके तटों के दौरे किए। कहा जाता है कि 12वीं शताब्दी के आसपास, कोलाथिरी या चिरक्कल शासकों ने यहाँ के बेकल बंदरगाह में महत्वपूर्ण विकास किए थे। इस क्षेत्र पर नियंत्रण पाने के लिए, उन्हें शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य से संघर्ष करना पड़ा था। ऐसा भी माना जाता है कि थेय्यम नृत्य कला में कोलाथिरी और विजयनगर शासकों के बीच के संघर्ष की कहानियों और कथाओं को भी दर्शाया जाता है। 14वीं शताब्दी के बाद, इस क्षेत्र में यूरोपीय व्यापारियों ने प्रवेश किया। 16 वीं शताब्दी में कुंबला (कासरगोड के पास) का दौरा करने वाले एक पुर्तगाली यात्री, दुआर्ते बारबोसा द्वारा लिखे गए वृत्तांत इस क्षेत्र के इतिहास को पढ़ने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
1565 ईस्वी में तालीकोटा की लड़ाई के पश्चात् जब विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ, तब प्रायद्वीपीय भारत में कई सामंती शासकों की सत्ता स्थापित हुई। बेकल क्षेत्र में ये शासक थे, केलाडी नायक या इक्केरी नायक। उन्होंने इस क्षेत्र के राजनीतिक और आर्थिक महत्व की ओर ध्यान दिया और मालाबार तट के बाकी हिस्सों पर अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए, इसे एक सैन्य अड्डे में बदल दिया। ऐसा माना जाता है कि बेकल की प्रारंभिक किलाबंदी, हिरिया वेंकटप्पा नायक द्वारा शुरू की गई थी। किले को बाद में, शिवप्पा नायक द्वारा 1650 ईस्वी में पूरा किया गया था। वास्तव में, बेकल, केलाडी नायकों द्वारा अरब सागर के तट पर खड़ी की गईं रक्षात्मक संरचनाओं की कतार का ही एक हिस्सा था। पास में स्थित चंद्रगिरि किला, लैटेराइट चट्टानों से बना है, जिसमें एक पर्यवेक्षण बुर्ज भी है। होसदुर्ग और पनियाल के किले इस रक्षात्मक बाधा के दो अन्य महत्वपूर्ण किले हैं। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में अब भी मौजूद कोटेयार समुदाय को, नायक इन किलों (कोटे) की रक्षा के लिए इसी समय के आसपास लाए थे।
18वीं शताब्दी में मैसूर के शासक, हैदर अली ने पूरे केरल पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की, जिसके तहत उन्होनें बेकल सहित कई किलों पर फ़तेह कर उन्हें अपने नियंत्रण में ले लिया। हालाँकि, 1782 ईस्वी में ही उनकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद टीपू सुल्तान ने इस राज्य की बागडोर संभाली। टीपू सुल्तान ने बेकल किले को एक मज़बूत सैन्य अड्डे के रूप में विकसित किया और यहाँ एक भव्य पर्यवेक्षण बुर्ज का निर्माण किया। 1799 ईस्वी में, चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान मारे गए और बेकल पर ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्ज़ा हो गया। अंग्रेज़ों के अधीन, एक राजनीतिक और आर्थिक केंद्र के रूप में बेकल का रणनीतिक महत्व कम हो गया, जिसकी वजह से यह किला केवल एक खंडहर बनकर रह गया। आज़ादी के बाद 1956 में, कासरगोड क्षेत्र को नवगठित राज्य केरल में शामिल किया गया। कासरगोड ज़िले का गठन 1984 में हुआ, जिसके भीतर बेकल एक शहर के रूप में स्थापित हुआ।
बेकल किले को, गहरे मैरून रंग के लैटेराइट पत्थरों से, उत्कृष्टता से परिकल्पित और निर्मित किया गया है। आकार में बहुभुज और 40 एकड़ से अधिक के क्षेत्र में फैला, यह किला केरल के सबसे बड़े किलों में से एक है। किले की परिसीमा का एक बड़ा हिस्सा समुद्र से घिरा हुआ है। किले की वास्तुकला इसकी रक्षात्मक विशेषताओं को दर्शाती है। जैसा कि पहले भी बताया गया है कि किले की परिसीमा का एक बड़ा हिस्सा समुद्र से घिरा हुआ है। लेकिन किले का मुख्य प्रवेश द्वार, समुद्र से दूर, मुख्य भूमि की ओर बनाया गया है। किले में कई भव्य दीवारें और प्राचीर हैं, जिनके बीच-बीच में कई विशाल बुर्ज देखे जा सकते हैं। इन बुर्जों में तोपों के लिए कई छोटे-बड़े खुले स्थान दिए गए हैं, और इन दीवारों के बीच-बीच में कई खिड़कियाँ और अवलोकन छिद्र हैं। पहले इनका उपयोग, दुश्मन को दूर से देखने के लिए किया जाता था और आज इनसे समुद्र के मनोरम दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है। इसकी एक अद्वितीय और आकर्षक विशेषता है, एक अकेला खड़ा हुआ बुर्ज, जो समुद्र में प्रक्षेपित होता है।
समुद्र में प्रक्षेपित होता एक अकेला खड़ा बुर्ज। छवि सौजन्य- पिक्साहाइव
किले के अंदर की सबसे प्रमुख संरचना, टीपू सुल्तान द्वारा निर्मित, एक पर्यवेक्षण बुर्ज है। एक चौड़े मार्ग के ज़रिए बुर्ज के ऊपर तक पहुँचा जा सकता है, जहाँ से समुद्र और उसके आसपास के इलाकों के लुभावने दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है। यहाँ एक सीढ़ीदार पानी की टंकी भी है। टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुज़र कर समुद्र तक जाने वाली कई गुप्त सुरंगें, आगंतुकों की जिज्ञासा को बढ़ाती हैं। इसके अलावा, यहाँ हथियारों और गोला-बारूद रखने के लिए बड़े भंडारण कक्ष भी हैं। प्रवेश द्वार के निकट, मुख्यप्राण नामक एक मंदिर स्थित है जो हनुमान जी को समर्पित है।
टीपू सुल्तान द्वारा निर्मित पर्यवेक्षण बुर्ज । छवि सौजन्य- पिक्साहाइव
बेकल किला इस क्षेत्र का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। लगभग पूरे वर्ष ही, इस शानदार ऐतिहासिक संरचना को देखने के लिए और आसपास के क्षेत्र की शांत सुंदरता को आत्मसात करने के लिए, यह आगंतुकों से घिरा रहता है। इस स्थल की अतुल्य प्राकृतिक सुंदरता के कारण ही यह फ़िल्म निर्माताओं का एक पसंदीदा स्थान बन गया है। कासरगोड क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता और कलात्मक विरासत, दुनियाभर से यात्रियों को आकर्षित करती है। बेकल किले को 1992 में एक विशेष पर्यटन क्षेत्र घोषित किया गया था और इसके तुरंत बाद ‘बेकल पर्यटन विकास निगम’ का गठन किया गया था। अरब सागर के तट पर दृढ़ता से खड़ा यह राजसी किला, इस क्षेत्र की ऐतिहासिक विरासत का एक गौरवपूर्ण वाहक है।