Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

कुंभलगढ़ किला- मेवाड़ का राजनीतिक और आध्यात्मिक अभ्यारण्य

A view of the fortifications at Kumbhalgarh. Image Source: Flickr

कुंभलगढ़ की किलेबंदी का एक दृश्य। छवि स्रोत- फ़्लिकर

उदयपुर से लगभग 84 किमी दूर, राजस्थान के राजसमंद ज़िले में स्थित कुंभलगढ़ किला, राजपूत सैन्य वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। यह किला अपनी शानदार 36 किमी लंबी, सुरक्षात्मक दीवार के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि यह दीवार चीन की महान दीवार के बाद, दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है। किले ने मेवाड़ राज्य के राजनीतिक इतिहास में, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इसके अतीत की कहानियाँ एवं किंवदंतियाँ आज भी, इस क्षेत्र के लोगों के लिए गौरव और कीर्ति का स्रोत हैं।

The spectacular walls of Kumbhalgarh. Image Source: Flickr

कुंभलगढ़ की शानदार दीवारें। छवि स्रोत- फ़्लिकर

व्युत्पत्ति

वर्तमान में खड़ी संरचना का निर्माण, मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत वंश के राणा कुंभा (राज्यकाल 1433-1468 ई.) द्वारा, पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी में किया गया था। हालाँकि, इसका रणनीतिक महत्व राणा कुंभा के समय से बहुत पहले से था। माना जाता है कि मच्छिंद्रपुर के नाम से जाना जाने वाला यह स्थान, मौर्य शासक संप्रति का दूसरी या तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक गढ़ रहा था। हालाँकि, यह राणा कुंभा ही थे, जिन्होंने वास्तव में इस स्थल की रक्षात्मक क्षमता का महत्व समझा और यहाँ एक किले का निर्माण कराया। किले के निर्माण में 15 वर्ष लगे और 1458 ई. में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ। राणा कुंभा ने अपने मुख्य वास्तुकार मंदाना की मदद से इस कार्य को पूरा किया, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे वास्तुकला के विशेषज्ञ थे। मंदाना को वास्तुकला पर कई मूल्यवान कार्यों के लेखन का श्रेय दिया जाता है, जिनमें से सबसे प्रमुख राजवल्लभवास्तुशास्त्रम है।

कुंभलगढ़ की स्थापना की किंवदंती

A view of the ramparts. Image Source: Archaeological Survey of India

प्राचीर का एक दृश्य। छवि स्रोत- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

प्रत्येक महान किला कुछ अमर किंवदंतियों से जुड़ा होता है। कुंभलगढ़ से जुड़ी कई किंवदंतियों में से सबसे लोकप्रिय कथा इसकी स्थापना से जुड़ी है। किंवदंतियाँ और मौखिक परंपराएँ स्वभाव से परिवर्तनशील होती हैं, इसीलिए कुंभलगढ़ की कथा के भी कई संस्करण हैं। उन्हीं में से एक कथा एक ऋषि की कहानी बताती है, जिनके बलिदान के कारण यह दुर्जेय किला अस्तित्व में आया। ऐसा कहा जाता है कि राणा कुंभा को किले के निर्माण के प्रारंभिक चरण में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। जारी निर्माण कार्य, किसी रहस्यमय शक्ति के कारण लगातार बाधित हो रहा था। मज़दूर दिन भर जो दीवार बनाते थे, वह रातों-रात गिर जाती थी।

चिंतित राजा ने एक ऋषि से सलाह माँगी, जिन्होंने राजा को समझाया कि एक अभिशाप के कारण व्यवधान पड़ रहे हैं, जिसे केवल एक स्वैच्छिक बलिदान द्वारा ही दूर किया जा सकता है। कुछ वृत्तांत इस ऋषि का नाम “मेर बाबा” बताते हैं। जब राजा को इस उद्देश्य के लिए स्वेच्छा से बलिदान देने के लिए तैयार कोई व्यक्ति नहीं मिला, तो ऋषि ने स्वयं अपने जीवन को त्यागने की पेशकश की। परिणामस्वरूप, इस जगह पर उनका सिर काट दिया गया था। यह भयानक कहानी आगे बताती है कि ऋषि का सिर विहीन शरीर एक किलोमीटर आगे तक चलता गया और अंत में पहाड़ी की चोटी पर, एक स्थान पर गिर गया। ऐसा माना जाता है कि जहाँ शव गिरा था, वहीं राजा का महल बनाया गया था। जिस स्थान पर सिर गिरा था, वहाँ पर भैरों पोल के नाम से जाना जाने वाला एक द्वार बनाया गया है। ऋषि को समर्पित भैरों पोल के निकट एक पवित्र स्थल, आज भी आगंतुकों द्वारा पूजा जाता है।

Bhairon Pol. Image Source: Archaeological Survey of India

भैरों पोल। छवि स्रोत- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

राजनीतिक गतिविधियाँ

मेवाड़ का राज्य, राणा कुंभा के अधीन बहुत फला-फूला, जो न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि कला और संस्कृति के संरक्षक भी थे। सिंहासन पर आसीन होने के तुरंत बाद, राणा कुंभा ने मेवाड़ की क्षेत्रीय सीमाओं का विस्तार करने के लिए, कई सैन्य अभियान चलाए। उन्होंने न केवल अपने राज्य का विस्तार किया, बल्कि मालवा के महमूद खिलजी, गुजरात के सुल्तान अहमद शाह द्वितीय और मारवाड़ के राव जोधा जैसी शक्तियों से, अपने राज्य का सफलतापूर्वक बचाव भी किया। राणा कुंभा को मेवाड़ राज्य में 32 किलों का निर्माण करने का श्रेय दिया जाता है, जिनमें से कुंभलगढ़ सबसे शक्तिशाली किलों में से एक था।

यद्यपि चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी थी, लेकिन यह कुंभलगढ़ ही था, जो पहाड़ियों और जंगलों के बीच बसा हुआ था और आक्रमणों के दौरान राजघरानों के लिए आश्रय स्थल के रूप में कार्य करता था। जब राजा उदय सिंह द्वितीय (शासनकाल 1540-1572 ई.) के चाचा बनबीर ने, उनके पिता महाराणा विक्रमादित्य सिंह की हत्या कर सिंहासन पर अधिकार जमा लिया था, तब बालक राजा उदय सिंह द्वितीय को यहीं छुपाया गया था। साहसी पन्ना दाई की कथा इसी घटना के साथ जुड़ी हुई है, जिन्होंने राजकुमार उदय की जान बचाने के लिए अपने ही बेटे की जान कुर्बान कर दी थी। कुछ वर्षों तक वेश बदलकर रहने के बाद, अंततः 1540 ई. में उदय सिंह द्वितीय का कुंभलगढ़ में राज्याभिषेक हुआ। 1567 ई. में मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़, मुगलों के अधीन आ गई। इसके बाद, उदय सिंह द्वितीय ने राजधानी को उदयपुर शहर (1559 ई. में स्थापित) में स्थानांतरित कर दिया।

Rana Kumbha. Image Source: Wikimedia Commons

राणा कुंभा। छवि स्रोत- विकीमीडिया कॉमन्स

उदय सिंह द्वितीय के पुत्र, प्रख्यात महाराणा प्रताप (राज्यकाल 1572-1597 ई. ) कुंभलगढ़ में पैदा हुए थे। मुगल बादशाह अकबर ने, मेवाड़ पर अपना नियंत्रण स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। युद्ध के माध्यम से पर्याप्त सफलता हासिल न होने पर, उन्होंने राज्य में कई शांति-प्रस्ताव भेजे। परंतु महाराणा प्रताप ने अकबर के सामने झुकने से इनकार कर दिया और अपने जीवन का अधिकांश समय मुगल सम्राट से लड़ते हुए बिताया। 1576 ई. में हल्दीघाटी के युद्ध में, अकबर ने उन्हें पराजित कर दिया। इसके तुरंत बाद, अकबर के सेनापति शाहबाज़ खान ने कुंभलगढ़ पर कब्जा कर लिया। हालाँकि, महाराणा प्रताप ने 1582 ई. में दिवेर का युद्ध जीतने के बाद, कुंभलगढ़ सहित अपने अधिकांश क्षेत्रों पर पुनः नियंत्रण हासिल कर लिया था।

A statue of Maharana Pratap at Haldighati. Image Source: Wikimedia Commons

हल्दीघाटी में लगी महाराणा प्रताप की एक प्रतिमा। छवि स्रोत- विकीमीडिया कॉमन्स

निरंतर युद्धों ने मेवाड़ के राज्य को बुरी तरह तबाह कर दिया और महाराणा प्रताप के पुत्र, राणा अमर सिंह प्रथम (राज्यकाल 1597-1620 ई. ), मुगल दबाव के आगे झुक गए और उन्होंने 1615 ई. में सम्राट जहाँगीर के साथ एक संधि कर ली। अमर सिंह प्रथम के शासनकाल में, मेवाड़ और मुगलों के बीच उल्लेखनीय रूप से शांति और मित्रता थी। हालाँकि, औरंगज़ेब ने, महाराणा राज सिंह प्रथम (राज्यकाल 1652-1680) और महाराणा जय सिंह (राज्यकाल 1680-1698) के शासनकाल के दौरान, कई बार मेवाड़ पर आक्रमण किए। अंत में, महाराणा जय सिंह और औरंगज़ेब के बीच एक संधि के बाद, मुगलों ने मेवाड़ से अपनी सेना वापस बुला ली।

मेवाड़ राज्य पर 18वीं शताब्दी में, मराठा आक्रमण भी हुए। इनसे निपटने के लिए, महाराणा भीम सिंह (राज्यकाल 1818-1828 ई. ) ने 1818 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत मेवाड़ ने ब्रिटिश आधिपत्य स्वीकार कर लिया और इसे उदयपुर की रियासत के रूप में जाना जाने लगा।

Maharana Bhim Singh. Image Source: Wikimedia Commons

महाराणा भीम सिंह। छवि स्रोत- विकीमीडिया कॉमन्स

वास्तुकला

A view of the hills and forests enveloping Kumbhalgarh. Image Source: Flickr

पहाड़ियों और जंगलों से घिरे कुंभलगढ़ का एक दृश्य। छवि स्रोत- फ़्लिकर

कुंभलगढ़ किला अरावली पहाड़ियों पर बना हुआ है और रणनीतिक रूप से 13 ऊँची पर्वत चोटियों के बीच स्थित है। यह किला कुंभलगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य से घिरा हुआ है। पहाड़ियों की सुरक्षात्मक शृंखला और घने जंगल के आवरण के चलते, यह किला आक्रमणकारियों के लिए दुर्गम और अदृश्य बना रहा। गढ़ की रणनीतिक स्थिति, पूरे क्षेत्र का मनोरम दृश्य प्रदान करती है। भूदृश्य के प्राकृतिक बनावट के साथ, किले की दीवारें किसी घुमावदार सर्प की भाँति, कभी न खत्म होने जैसी प्रतीत होती हैं।

A general view of the Kumbhalgarh fort. Image Source: Archaeological Survey of India

कुंभलगढ़ किले का एक सामान्य दृश्य। छवि स्रोत- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

असमान भू-भाग पर निर्मित, कुंभलगढ़ की किलेबंदी इस प्रकार की गई थी कि क्रमिक प्रवेश द्वार, सदैव किले के मुख्य क्षेत्र की ओर ले जाते थे, जिसे कटारगढ़ या शासक के प्रांगण के रूप में जाना जाता था। किले में सात प्रवेश द्वार हैं- अरैत पोल, हुल्ला पोल, हनुमान पोल, राम पोल, भैरों पोल, निंबू पोल और पघड़ा पोल। एक ओर जहाँ अरैत पोल और हुल्ला पोल की संरचना बाहरी प्रवेश द्वार के रूप में की गई थी, वहीं हनुमान पोल किले का पहला मुख्य प्रवेश द्वार था। इस द्वार को हनुमान जी की एक मूर्ति के कारण हनुमान पोल कहा जाता है, जिसे राणा कुंभा द्वारा 1458 ई. में इसके सामने स्थापित किया गया था। राम पोल दूसरा मुख्य प्रवेश द्वार है। शेष प्रवेश द्वार, कटारगढ़ के करीब हैं। मुख्य द्वारों के अलावा, किलेबंदी में नियमित अंतराल पर, कई छोटे द्वार या बाड़ियाँ मौजूद हैं।

Ram Pol. Image Source: Wikimedia Commons

राम पोल। छवि स्रोत- विकीमीडिया कॉमन्स

किले के गोल बुर्ज, किले को एक दुर्जेय स्वरूप देते हैं। ये एक ऐसे विशिष्ट आकार में बने हुए हैं जिसके कारण दुश्मन सीढ़ी से इनपर नहीं चढ़ सकते थे। कहा जाता है कि किले के चौड़े प्राचीर में, आठ घुड़सवार कंधे से कंधा मिलाकर चल सकते थे। मलबे और ईंटों से बने प्रभावशाली दिखने वाले बुर्ज, तारा बुर्ज को, पर्यवेक्षण बुर्ज के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। किले के अंदर स्थित तोप खाने में, मध्यकालीन युग की कई तोपों को प्रदर्शित किया गया है।

A view of Katargarh or the core citadel area. Image Source: Archaeological Survey of India

कटारगढ़ या मुख्य गढ़ क्षेत्र का एक दृश्य। छवि स्रोत- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

Birth-place of Maharana Pratap. Image Source: Archaeological Survey of India

महाराणा प्रताप का जन्म स्थान। छवि स्रोत- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

कटारगढ़ में तीन महत्वपूर्ण शाही महल थे - कुंभा महल, महाराणा प्रताप का जन्मस्थान -झालिया का मालिया, और बादल महल। कुंभा महल या राणा कुंभा का महल एक साधारण दो मंज़िली संरचना है, जो अब खंडहर हो चुकी है। यद्यपि राणा कुंभा ने, कुंभलगढ़ की किलेबंदी के निर्माण पर बहुत खर्चा किया, लेकिन उनका खुद का महल एक साधारण और व्यावहारिक संरचना थी। महाराणा प्रताप का जन्म स्थान, मलबे से बनी एक साधारण संरचना है, जिस पर बारीकी से चूने के साथ पलस्तर किया गया है।

इसे झालिया का मालिया या रानी झालिया के महल के रूप में भी जाना जाता है और माना जाता है कि इस संरचना के कमरों में से एक में, महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। बादल महल, किले परिसर का सबसे ऊँचा स्थान है। 19वीं शताब्दी में महाराणा फ़तेह सिंह (राज्यकाल 1884-1930 ई.) द्वारा निर्मित, यह दो मंज़िली भव्य संरचना है जो ज़नाना महल (महिलाओं के लिए) और मर्दाना महल (पुरुषों के लिए) में विभाजित है। एक ओर जहाँ जनाना महल में सुंदर जाली का काम है, वहीं मर्दाना महल को आकर्षक चित्रकारियों से अलंकृत किया गया है। महल के विभिन्न कमरों को जोड़ने वाले एक केंद्रीय प्रांगण में खिड़कियाँ हैं, जहाँ से पहाड़ियों और हवा में तैरते बादलों के मनमोहक दृश्य देखे जा सकते हैं।

Badal Mahal. Image Source: Flickr

बादल महल। छवि स्रोत- फ़्लिकर

कुंभलगढ़ के मंदिर

कुंभलगढ़ की संरक्षित और एक पृथक प्रकृति ने, इसे साधुओं और वैरागियों के लिए एक आदर्श स्थान बनाया है। यहाँ तक कि, ऐसा माना जाता है कि इस स्थल का आध्यात्मिक महत्व, इसके सैन्य और सामरिक महत्व से भी पुराना है। कहा जाता है कि इस किले परिसर में, एक विशाल क्षेत्र में फैले हुए, हिंदुओं और जैनियों के कुल मिलाकर 360 से अधिक मंदिर हैं। कुंभलगढ़ में मौजूद कई खूबसूरत जैन मंदिरों से यह पता चलता है कि राणा कुंभा ने जैन धर्म को संरक्षण दिया था। इस स्थल के असमान भू-भाग के कारण, यहाँ के अधिकांश मंदिर ऊँचे न्याधारों पर बने हुए हैं। मामादेव मंदिर में पत्थर के शिलापट्टों पर राणा कुंभा ने अपने शासनकाल का इतिहास अभिलेखित कराया था। विडंबना यह है कि यह वही स्थान है जहाँ उनके बेटे उदय सिंह प्रथम (1468-1473) ने, उनकी हत्या कर दी थी और वह ‘हत्यारे’ के नाम से जाना जाने लगा था।

गुम्बदाकार छतों वाले, मंदिरों के गोलेरा समूह में, जैन तीर्थंकरों और नदी देवियों जैसे विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाओं पर उत्कृष्ट नक्काशी देखी जा सकती है। बावन देवरी मंदिर, जिसे 52 देवी-देवताओं का घर कहा जाता है, एक सुंदर संरचना है, जो अपने कई सारे शिखरों के लिए प्रसिद्ध है। नीलकंठ महादेव मंदिर का आकार आयताकार है और इसमें 26 नक्काशीदार पत्थर के सुदृढ़ स्तंभ हैं। इसके भीतर पत्थर का एक लिंगम उपस्थित है। नीलकंठ महादेव मंदिर के पास स्थित पार्श्व नाथ मंदिर, पत्थर के एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है जो एक शिखर और एक गुम्बदाकार छत से सुसज्जित है। गणेश मंदिर, वेदी मंदिर और लक्ष्मी नारायण मंदिर यहाँ की कुछ अन्य प्रमुख संरचनाएँ हैं।

Mamadeo Temple. Image Source: Archaeological Survey of India

मामादेव मंदिर। छवि स्रोत- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

Neelkanth Mahadev Temple. Image Source: Archaeological Survey of India

नीलकंठ महादेव मंदिर। छवि स्रोत- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

कुंभलगढ़ किले के परिसर में शुद्ध जल प्रणालियाँ भी विद्यमान हैं, जो इसे लंबी घेराबंदी के लिए प्रतिरोधी बनाती हैं। किले में कोई भी प्राकृतिक जल-निकाय न होने के कारण, किले के निवासियों के लिए ये जल प्रणालियाँ बहुत महत्वपूर्ण थीं। किले के निचले हिस्सों में, लगभग 10 बाँध और 20 बावड़ियाँ स्थित हैं। एक ओर जहाँ लंगन बावड़ी सबसे प्रमुख बावड़ी है, वहीं सबसे बड़े बाँध को बावड़ा बाँध कहा जाता है।

स्वतंत्रता के उपरांत

आज़ादी के बाद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत, कुंभलगढ़ एक संरक्षित स्मारक बन गया। राणा कुंभा के शासनकाल का वर्णन करने वाला प्रसिद्ध "कुंभलगढ़ शिलालेख", जो शुरू में किले परिसर के अंदर स्थित था, अब सरकारी संग्रहालय, सिटी पैलेस, उदयपुर में रखा गया है। कुंभलगढ़ को 2013 में, विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।

आज भी कुंभलगढ़ के इस ऐतिहासिक किले में देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। राणा कुंभा की कलात्मक विरासत को, राजस्थान पर्यटन द्वारा आयोजित “वार्षिक कुंभलगढ़ महोत्सव” द्वारा, देश भर के कलाकारों के मिलन स्थल के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा है।

Sunset at Kumbhalgarh. Image Source: Flickr

कुंभलगढ़ किले से दिखता सूर्यास्त। छवि स्रोत- फ़्लिकर