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आलंबनपरिक्षा एंड व्रत्ति

Author: दिन्नग

Keywords: बौद्ध धर्म, साहित्य, तिब्बती, चीनी, धर्मपाल, नालंदा

Publisher: अड्यार पुस्तकालय, अड्यार

Description: यह काम संस्कृत के उन बौद्ध ग्रंथों के चीनी और तिब्बती संस्करणों के अध्ययन पर केंद्रित एक श्रृंखला का दूसरा संस्करण है जो अब खो गए हैं। यह भवसंक्रांति-सूत्र का उत्तराधिकारी है और इसका उद्देश्य आलंबन की वास्तविक प्रकृति अर्थात चेतना की वस्तु-विषय के बारे में अनुसंधान करना है। लेखक का मानना है कि आलंबन अवास्तविक है और चेतना अकेले वास्तविक है, लेकिन उनका सही योगदान इस विचार के लिए तार्किक आधार बनाने में निहित है। यह कार्य ग्रंथों का संस्कृत अनुवाद है और अंग्रेज़ी अनुवाद शामिल होने के कारण इसने काफी व्यापकता और लोकप्रियता प्राप्त की है।

Source: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार

Type: दुर्लभ पुस्तक

Received From: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार


DC Field Value
dc.contributor.author दिन्नग
dc.date.accessioned 2019-03-01T11:30:25Z
dc.date.available 2019-03-01T11:30:25Z
dc.description यह काम संस्कृत के उन बौद्ध ग्रंथों के चीनी और तिब्बती संस्करणों के अध्ययन पर केंद्रित एक श्रृंखला का दूसरा संस्करण है जो अब खो गए हैं। यह भवसंक्रांति-सूत्र का उत्तराधिकारी है और इसका उद्देश्य आलंबन की वास्तविक प्रकृति अर्थात चेतना की वस्तु-विषय के बारे में अनुसंधान करना है। लेखक का मानना है कि आलंबन अवास्तविक है और चेतना अकेले वास्तविक है, लेकिन उनका सही योगदान इस विचार के लिए तार्किक आधार बनाने में निहित है। यह कार्य ग्रंथों का संस्कृत अनुवाद है और अंग्रेज़ी अनुवाद शामिल होने के कारण इसने काफी व्यापकता और लोकप्रियता प्राप्त की है।
dc.source केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
dc.format.extent xxxii, 124 p.
dc.format.mimetype Application/pdf
dc.language.iso अंग्रेज़ी
dc.publisher अड्यार पुस्तकालय, अड्यार
dc.subject बौद्ध धर्म, साहित्य, तिब्बती, चीनी, धर्मपाल, नालंदा
dc.type दुर्लभ पुस्तक
dc.date.copyright 1942
dc.identifier.accessionnumber AS-000397
dc.format.medium text
DC Field Value
dc.contributor.author दिन्नग
dc.date.accessioned 2019-03-01T11:30:25Z
dc.date.available 2019-03-01T11:30:25Z
dc.description यह काम संस्कृत के उन बौद्ध ग्रंथों के चीनी और तिब्बती संस्करणों के अध्ययन पर केंद्रित एक श्रृंखला का दूसरा संस्करण है जो अब खो गए हैं। यह भवसंक्रांति-सूत्र का उत्तराधिकारी है और इसका उद्देश्य आलंबन की वास्तविक प्रकृति अर्थात चेतना की वस्तु-विषय के बारे में अनुसंधान करना है। लेखक का मानना है कि आलंबन अवास्तविक है और चेतना अकेले वास्तविक है, लेकिन उनका सही योगदान इस विचार के लिए तार्किक आधार बनाने में निहित है। यह कार्य ग्रंथों का संस्कृत अनुवाद है और अंग्रेज़ी अनुवाद शामिल होने के कारण इसने काफी व्यापकता और लोकप्रियता प्राप्त की है।
dc.source केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
dc.format.extent xxxii, 124 p.
dc.format.mimetype Application/pdf
dc.language.iso अंग्रेज़ी
dc.publisher अड्यार पुस्तकालय, अड्यार
dc.subject बौद्ध धर्म, साहित्य, तिब्बती, चीनी, धर्मपाल, नालंदा
dc.type दुर्लभ पुस्तक
dc.date.copyright 1942
dc.identifier.accessionnumber AS-000397
dc.format.medium text