Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

भक्ति-योग

Author: विवेकानंद

Keywords: भक्ति-योग, योग, परा-भक्ति, हिंदू धर्म, धर्मशास्त्र, समर्पण, स्वामी विवेकानंद

Publisher: उद्बोधन प्रेस, कलकत्ता

Description: स्वामी विवेकानंद द्वारा इस पुस्तक को भक्ति योग की भूमिका के रूप में लिखा गया था। इस पुस्तक में, वह भक्ति के मूल्य और महत्व की चर्चा करते हैं। इसमें भक्ति योग और परा-भक्ति या परम भक्ति के विषय पर उनके द्वारा दिए गए दस व्याख्यानों की विषय वस्तु सम्मिलित है। इसमें सम्मिलित विषय हैं - भक्ति की परिभाषा, ईश्वर की धारणा, भक्ति योग का उद्देश्य, गुरु की आवश्यकता, अवतरण, मंत्र, शब्द और ज्ञान, भक्ति योग की स्वाभाविकता और इसका रहस्य, सार्वभौमिक प्रेम, उच्च ज्ञान, और प्रेम। इस विशेष संस्करण को कलकत्ता में, बंगाल के पाठकों के लाभ हेतु, प्रकाशित किया गया था।

Source: राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता

Type: दुर्लभ पुस्तक

Received From: राष्ट्रीय पुस्तकालय


DC Field Value
dc.contributor.author विवेकानंद
dc.date.accessioned 2013-12-27T09:05:26Z
2019-12-07T03:40:48Z
dc.date.available 2013-12-27T09:05:26Z
2019-12-07T03:40:48Z
dc.description स्वामी विवेकानंद द्वारा इस पुस्तक को भक्ति योग की भूमिका के रूप में लिखा गया था। इस पुस्तक में, वह भक्ति के मूल्य और महत्व की चर्चा करते हैं। इसमें भक्ति योग और परा-भक्ति या परम भक्ति के विषय पर उनके द्वारा दिए गए दस व्याख्यानों की विषय वस्तु सम्मिलित है। इसमें सम्मिलित विषय हैं - भक्ति की परिभाषा, ईश्वर की धारणा, भक्ति योग का उद्देश्य, गुरु की आवश्यकता, अवतरण, मंत्र, शब्द और ज्ञान, भक्ति योग की स्वाभाविकता और इसका रहस्य, सार्वभौमिक प्रेम, उच्च ज्ञान, और प्रेम। इस विशेष संस्करण को कलकत्ता में, बंगाल के पाठकों के लाभ हेतु, प्रकाशित किया गया था।
dc.source राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता
dc.format.extent 122 p.
dc.format.mimetype application/pdf
dc.language.iso अंग्रेज़ी
dc.publisher उद्बोधन प्रेस, कलकत्ता
dc.subject भक्ति-योग, योग, परा-भक्ति, हिंदू धर्म, धर्मशास्त्र, समर्पण, स्वामी विवेकानंद
dc.type दुर्लभ पुस्तक
dc.date.copyright 1901
dc.identifier.accessionnumber IMP2037
dc.format.medium text
DC Field Value
dc.contributor.author विवेकानंद
dc.date.accessioned 2013-12-27T09:05:26Z
2019-12-07T03:40:48Z
dc.date.available 2013-12-27T09:05:26Z
2019-12-07T03:40:48Z
dc.description स्वामी विवेकानंद द्वारा इस पुस्तक को भक्ति योग की भूमिका के रूप में लिखा गया था। इस पुस्तक में, वह भक्ति के मूल्य और महत्व की चर्चा करते हैं। इसमें भक्ति योग और परा-भक्ति या परम भक्ति के विषय पर उनके द्वारा दिए गए दस व्याख्यानों की विषय वस्तु सम्मिलित है। इसमें सम्मिलित विषय हैं - भक्ति की परिभाषा, ईश्वर की धारणा, भक्ति योग का उद्देश्य, गुरु की आवश्यकता, अवतरण, मंत्र, शब्द और ज्ञान, भक्ति योग की स्वाभाविकता और इसका रहस्य, सार्वभौमिक प्रेम, उच्च ज्ञान, और प्रेम। इस विशेष संस्करण को कलकत्ता में, बंगाल के पाठकों के लाभ हेतु, प्रकाशित किया गया था।
dc.source राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता
dc.format.extent 122 p.
dc.format.mimetype application/pdf
dc.language.iso अंग्रेज़ी
dc.publisher उद्बोधन प्रेस, कलकत्ता
dc.subject भक्ति-योग, योग, परा-भक्ति, हिंदू धर्म, धर्मशास्त्र, समर्पण, स्वामी विवेकानंद
dc.type दुर्लभ पुस्तक
dc.date.copyright 1901
dc.identifier.accessionnumber IMP2037
dc.format.medium text