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ब्रूस बंधू और असम की चाय

चाय एक ऐसा पेय है जो दुनिया भर में लोकप्रिय है। असम की चाय की खोज का इतिहास और असम में चाय-उद्योग की स्थापना, घटनाओं और पात्रों की एक ऐसी शृंखला है, जिसकी कहानी स्वाभाविक और भावनात्मक तौर पर बहुत ही आकर्षक है। यह कहानी उस समय की है, जब चीन ग्रेट ब्रिटेन के लिए चाय की पत्तियों का एकमात्र स्रोत था। अंग्रेज़ी द्वीपों में चाय की बढ़ती माँग और चीन पर उनकी अत्यधिक निर्भरता के कारण, चाय के एक वैकल्पिक स्रोत की खोज उनके लिए आवश्यक हो गई थी। इन्हीं परिस्थितियों के परिणामस्वरूप रॉबर्ट ब्रूस एक ऐसे पौधे की खोज करने में सक्षम रहे, जो भारत के लिए अपार समृद्धि का स्रोत साबित हुआ।

The man behind Assam Tea

Tea - Its cultivation and preparation

चाय के पौधे असम के जंगलों में प्रचुर मात्रा में पाए जाते थे, जिनका सिंगफ़ोस और खामती सहित कई स्थानीय जनजातियाँ एक मिश्रण के रूप में उपभोग करती थीं। रॉबर्ट ब्रूस बंगाल तोपखाने में एक स्कॉटिश अन्वेषक, व्यापारी और पूर्व मेजर थे, जो पहली बार 1822 में असम आए थे। 1823 में, उन्होंने रंगपुर का दौरा किया, जो अहोम साम्राज्य की राजधानी थी। उनकी एक स्थानीय रईस, मनीराम दत्ता जो लोकप्रिय-रूप से मनीराम दीवान के नाम से जाने जाते थे, के साथ अच्छी जान-पहचान थी। उन्होंने उनका परिचय एक स्थानीय सिंगफ़ो प्रमुख, बीसा गाम से करवाया। उनके आगमन पर, ब्रूस ने पाया कि इस पौधे के अज्ञात नमूनों की पत्तियाँ चीन के कैमेलिया सीनेन्सिस वार सीनेन्सिस जैसी दिखती हैं।

यह असम के साथ-साथ पूरे भारत में चाय के बागानों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, जो ब्रिटिश औपनिवेशिकों और मज़दूरों के साथ पीढ़ियों तक असम के लोगों के भाग्य और नियति का महत्वपूर्ण कारक बना। विडंबना यह है, कि रॉबर्ट ब्रूस अपनी महत्वपूर्ण खोज के परिणामों को देखने के लिए जीवित नहीं रहे। 1824 में उनके निधन के बाद, उन्हें तेज़पुर के एक कब्रिस्तान में दफ़ना दिया गया।

रॉबर्ट ब्रूस द्वारा की गई शुरुआत को उनके छोटे भाई, चार्ल्स अलेक्ज़ैंडर ब्रूस (सी ए ब्रूस) ने आगे बढ़ाया। आंग्ल-बर्मी युद्ध (1824) के दौरान, सी ए ब्रूस ब्रिटिश गनबोट प्रभाग के प्रभारी हुआ करते थे। उन्होंने उसी सिंगफ़ो प्रमुख से मुलाकात की, जिसके पश्चात उन्होंने सादिया के अपने बंगले पर उस पौधे के कुछ अंकुर बोए। उन्होंने उनमें से कुछ पौधे, गुवाहाटी में रहने वाले मुख्य आयुक्त, जेनकिंस को भेजे और कुछ कलकत्ता के बॉटनिकल गार्डन भेजे। कई असफलताओं और प्रयोगों के पश्चात, सी ए ब्रूस 1836 में चाय समिति को चाय का एक छोटा-सा खेप भेजने में सक्षम रहे। इन नमूनों को भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड ऑकलैंड द्वारा अनुमोदित किया गया और विशेषज्ञों ने इनकी अच्छी गुणवत्ता भी निश्चित की। तत्पश्चात, 1837 में चाय की छत्तीस पेटियाँ और 1838 में 8 पेटियाँ लंदन भेजी गईं। 10 जनवरी 1839 को लंदन में पहली खेप की नीलामी हुई। आखिरकार, 1839 में असम टी कंपनी की स्थापना की गई, जिससे भारत में चाय के इतिहास का एक नया अध्याय शुरू हुआ।

असम के चाय उद्योग की खोज और स्थापना में ब्रूस बंधुओं का योगदान भारत और विशेषकर असम में, चाय के उत्पादन की कहानी का एक केंद्र-बिंदु है। चार्ल्स ब्रूस को 1871 में रॉयल सोसाइटी ऑफ़ आर्ट्स द्वारा असम में चाय के उत्पादन में रही उनकी भूमिका के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। 1871 में उनके निधन के पश्चात उन्हें असम के तेज़पुर में दफ़नाया गया।

The tombstone of Charles Bruce in Tezpur