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दिरांग

दिरांग एक सुरम्य शहर है, जो अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग ज़िले में कामेंग नदी के तट पर स्थित है। समुद्र तल से 4900 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित, यह हरे-भरे पहाड़ों से घिरा है। इस शहर की अधिकांश आबादी मोनपा जनजाति से संबंध रखती है। दिरांग का भूदृश्य जंगलों, बर्फ़ से ढके पहाड़ों, गर्म झरनों, कई एकड़ के बागानों, और नदी के किनारे अनेक सुंदर पड़ावों का एक अद्भुत सम्मिश्रण है।
औपनिवेशिक काल में, अंग्रेज़ों ने द्वितीय विश्व युद्ध में सैन्य अभियानों के दौरान इस शहर की रणनीतिक अवस्थिति का उपयोग किया था। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, यह पूर्वोत्तर सीमांत अभिकरण (नॉर्थ-ईस्ट फ़्रंटियर एजेंसी - नेफ़ा) का हिस्सा बन गया। इसके बाद दिरांग एक प्रमुख शहर और राज्य के एक बहुत ही पसंदीदा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो गया। आज, यहाँ विविध संस्कृतियों का संगम देखा जा सकता है, और शहर में मोनपा, अका, शारदुकपेन जनजातियों सहित, तिब्बती लोग भी निवास करते हैं। उनकी संस्कृतियाँ और परंपराएँ शहर की वास्तुकला, व्यंजन, और विभिन्न त्योहारों में दिखाई देती हैं।

दिरांग मोनपा, जिन्हें तशांग्ला मोनपा भी कहा जाता है, मोनपा जनजाति के तीन प्रमुख उप-समूहों में से एक है, और इस समूह की भाषा पूर्वी भूटान की भाषा के लगभग समान है। यह दिरांग की सबसे बड़ी जनजाति है, जो ज़्यादातर महायान बौद्ध धर्म का पालन करती है। प्रारंभ में, दिरांग मोनपा लोग पशुचारण और व्यापार करते थे, लेकिन अब वे पहाड़ी ढलानों के सामंजस्य में जीवन जीते हुए झूम खेती, और सीढ़ीदार खेती करते हैं। दिरांग मोनपा लोग घनी बस्तियों में रहते हैं और सुरा गाय (याक), गाय, सूअर, और भेड़ जैसे पशुओं को पालते हैं। बाँस और लकड़ी के पारंपरिक घर ऊँचे चबूतरों पर बनाए जाते हैं ताकि समतल मंजिलें बन सकें। ये प्रायः बौद्ध कैलेंडर के नौवें महीने, दावा गुप, (अक्टूबर-नवंबर) में निर्मित किए जाते हैं, क्योंकि इस अवधि में लोग कृषि कार्यों से मुक्त होते हैं। कालीन बनाना, बाँस की बुनाई करना, लकड़ी पर नक्काशी करना, थांगका चित्रकारी करना, और लकड़ी के कटोरे बनाना, दिरांग में प्रचलित कुछ महत्वपूर्ण कला और शिल्प कार्य हैं।

दिरांग, दिरांग दज़ोंग के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यह ऐतिहासिक किला है और ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण 1831 में किया गया था। इसमें आज भी स्थानीय लोग रहते हैं। इसे दिरांग चू नदी के किनारे एक पहाड़ी पर बनाया गया है, और कहा जाता है कि इसका निर्माण निवासियों को आक्रमणकारियों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया गया था। सबसे पुरानी मोनपा संरचना होने के कारण, दिरांग दज़ोंग का मोनपा लोगों के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है।

दिरांग बाज़ार के पास थुप्सुंग धारग्ये लिंग गोम्पा (मठ) है, जो कि एक पूजा स्थल है तथा भिक्षुओं और सामान्य लोगों हेतु तिब्बती बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए स्थापित किया गया एक संस्थान है। इसे 2016 में स्थापित किया गया था और 5 अप्रैल 2017 को दलाई लामा ने इसका प्रतिष्ठापन किया था। मठ का नाम भी दलाई लामा ने ही दिया था, जिसका तिब्बती भाषा में अर्थ 'बुद्ध के वचनों की समृद्धि का स्थान' है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तत्वावधान में वर्ष 1989 में स्थापित किया गया राष्ट्रीय याक अनुसंधान केंद्र भी दिरांग में स्थित है। यह देश में याक पालन के सतत विकास के लिए तैयार की जा रही अनुसंधान नीति का एकमात्र स्थान है। मोनपा समुदाय एक पशुपालक समुदाय है। याक का उपयोग यातायात, और खाद्य के लिए किया जाता है। इसके दूध से ‘चुरपी’ नामक स्थानीय पनीर (चीज़) बनाया जाता है। इसके ऊन, बाल, और रोएँ का उपयोग पारंपरिक मोनपा कपडे और टोपियाँ बनाने के लिए भी किया जाता है। अपनी विस्मयकारी प्राकृतिक सुंदरता के अतिरिक्त, दिरांग एक समृद्ध और विशिष्ट संस्कृति का केंद्र भी है, जो इसकी प्राचीन मान्यताओं और परंपराओं का प्रतीक है।