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एलन ऑक्टेवियन ह्यूम
एक पक्षी विज्ञानी

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) की स्थापना, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के निर्णायक क्षणों में से एक थी। एलन ऑक्टेवियन ह्यूम, जिन्होंने आईएनसी की स्थापना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य, एक राजनीतिक सुधारक तथा वनस्पतिशास्त्री होने के साथ-साथ एक उल्लेखनीय पक्षी विज्ञानी भी थे। ब्रिटिश भारत में प्रशासनिक सेवाओं में अपने उत्कृष्ट कार्यकाल के अलावा, ह्यूम भारत में पक्षी पालन के अग्रदूतों में से एक थे। उन्हें "भारतीय पक्षीविज्ञान का जनक" तथा वैकल्पिक रूप से, "भारतीय पक्षीविज्ञान का पोप" भी कहा जाता है।

पक्षियों के प्रति ए ओ ह्यूम की रुचि उस समय से देखी जा सकती है, जब पक्षियों को मात्र शिकार के लिए या खाने के लिए प्रयुक्त किया जाता था। एक औपनिवेशिक प्रशासक के रूप में उनकी व्यावसायिक प्रतिबद्धताओं के कारण, उन्हें लंबे दौरों पर जाना पड़ता था और इन यात्राओं के दौरान, उनका परिचय पक्षियों की विविध प्रजातियों से हुआ। पक्षियों के प्रति उनके उत्साह और जुनून का आकलन, उनके द्वारा अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषाओं में, पक्षियों का वर्णन करने और उन्हें नाम देने की उनकी क्षमता से किया जा सकता है, वह भी एक ऐसे समय में जब सहायता के लिए कोई विशिष्ट पत्रिकाएँ भी नहीं हुआ करती थीं।

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ए ओ ह्यूम का एक रूपचित्र

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"स्ट्रे फ़ेदर्स" पत्रिका का मुख्य पृष्ठ

इटावा में अपनी तैनाती के दौरान उन्होंने पक्षियों की प्रजातियों का एक संग्रह तैयार किया। परंतु दुर्भाग्य से, सन् 1857 के विद्रोह के दौरान वह नष्ट हो गया। इसके बाद, उन्होंने अपने जुनून पर फिर से काम करने के लिए अथक प्रयास किया। 1860 के दशक में, उन्होंने पक्षियों के पुतले बनाना, उन पर लेबल लगाना और उन पर टिप्पणियाँ लिखना शुरू किया। उनके प्रारंभिक शोध का परिणाम 1869 में, उनकी पहली पुस्तक- “माई स्क्रैप बुक-इंडियन ओलॉजी एंड ऑर्निथोलॉजी” का प्रकाशन था। इसके बाद, अध्यात्मविद्या में उनकी रुचि के कारण, ह्यूम शाकाहारी बन गए। उन्होंने पक्षियों का शिकार करना और उन्हें संगृहीत करना त्याग दिया। 1871-72 में, वह शिमला चले गए और वहाँ उन्होंने रोथनी के किले में एक प्राकृतिक संग्रहालय की स्थापना की। उन्होंने वहाँ एक पूर्णकालिक संग्रहाध्यक्ष भी नियुक्त किया और ‘स्ट्रे फ़ेदर्स’ नामक एक पत्रिका शुरू की, जिसमें 5000 से अधिक पृष्ठ थे। अगले कुछ दशकों में, उन्होंने पक्षीविज्ञान से संबंधित 200 से अधिक किताबें एवं मोनोग्राफ़ (विशेष निबंध) प्रकाशित किए और उससे संबंधित एक संग्रहालय और पुस्तकालय को क्यूरेट किया। उन्होंने 160 से अधिक योगदानकर्ताओं का एक विस्तृत संपर्कतंत्र स्थापित किया, जिससे उन्हें पूरे भारतीय साम्राज्य से नमूने प्राप्त करने में मदद मिली।

1880 के दशक में, ए ओ ह्यूम को अपने पेशेवर जीवन में कई कष्टों का सामना करना पड़ा, जिसमें समय-पूर्व सेवानिवृत्ति भी शामिल थी। लेकिन उनके लिए सबसे आश्चर्यजनक और दुःखद हानि थी उनकी अधिकांश पांडुलिपियों की चोरी, जिसे उन्होंने अपनी महान कलाकृति "बर्ड्स ऑफ़ द ब्रिटिश इंडियन एम्पायर" के लिए संभालकर रखा था। अपनी पांडुलिपि के चोरी हो जाने के बाद, ह्यूम ने पक्षीविज्ञान को अलविदा कह दिया और अपना पूरा संग्रह लंदन में स्थित प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय को उपहार में दे दिया। उनके संग्रह में पक्षियों की लगभग 258 प्रजातियों के 60,000 से अधिक नमूने और 20,000 से अधिक अंडे शामिल थे, जिससे वह संग्रहालय को प्राप्त पक्षियों का अभी तक का सबसे व्यापक संग्रह बना हुआ है।

भारतीय उपमहाद्वीप में पक्षीविज्ञान के क्षेत्र में, एलन ऑक्टेवियन ह्यूम का योगदान अद्वितीय है। ह्यूम ने भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 148 नए पक्षी वर्गिकी और पक्षियों की 113 प्रजातियों का वर्णन किया था। उनकी खोजों में अंडमान खलिहान उल्लू (अंडमान बार्न आउल), सीलोन खाड़ी उल्लू (सीलोन बे आउल) और निकोबार भुजंग गिद्ध (निकोबार सर्पेंट ईगल) शामिल हैं। उनके सम्मान में कई पक्षियों की प्रजातियों और उप-प्रजातियों के नाम भी रखे गए हैं, जैसे - ह्यूम्ज़ हॉकआउल, मिसेज़ ह्यूम्ज़ फेज़न्ट (तीतर), ह्यूम्ज़ लीफ़ वॉर्बलर, ह्यूम्ज़ व्हाइटथ्रोट, ह्यूम्ज़ व्हीटर, ह्यूम्ज़ ग्राउंडपेकर और ह्यूम्ज़ शॉर्ट-टो लार्क आदि। इस प्रकार, ए ओ ह्यूम की भूमिका न केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नींव रखने में बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के पक्षियों के अध्ययन और अनुसंधान में भी सर्वोपरि थी।

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ए ओ ह्यूम - भारतीय डाक टिकट, 1973