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इमा कैथल

इमा कैथल, केवल महिलाओं द्वारा चलाया जाने वाला एशिया का सबसे बड़ा बाज़ार है, जो अपनी अनमोल सांस्कृतिक धरोहर और विस्मयकारी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध शहर मणिपुर में लगता है। राजधानी इंफाल में स्थित इमा कैथल की शुरुआत 16वीं सदी में हुई थी, जिसके पीछे संघर्ष, शौर्य तथा सशक्तिकरण की एक पूरी कहानी है। मैतेई (मणिपुरी) शब्द ‘इमा’का अर्थ है ‘माँ’ और ‘कैथल’ का अर्थ है ‘बाज़ार’। इस बाज़ार को नुपी कैथल (महिलाओं का बाज़ार) भी कहते हैं जहाँ केवल विवाहित महिलाओं को व्यापार और व्यवसाय करने की अनुमति दी जाती है। इस प्राचीन परंपरा को बचाए रखने के लिए इस 500-साल पुराने बाज़ार में पुरुष दुकानदारों और विक्रेताओं का किसी भी तरह की व्यावसायिक गतिविधि करना मना है।

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इमा कैथल परिसर

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इमा कैथल के अंदर का दृश्य

इमा कैथल की शुरुआत लालुप-काबा मज़दूर प्रणाली से संबद्ध है। लालुप-काबा एक बंधुआ मज़दूर प्रणाली थी जिसे 1533 ईस्वी में पाखंब के शासनकाल में मणिपुर में लागू किया गया था। इस प्रणाली के अंतर्गत मैतेई समुदाय के 17-60 वर्ष के बीच की आयु के पुरुष सदस्यों को सुदूर क्षेत्रों में जाकर काम करना पड़ता था या सेना में भर्ती होना पड़ता था। अपने पतियों की अनुपस्थिति में परिवार की महिलाओं को घरेलू ज़िम्मेदारियाँ उठानी पड़ीं। आजीविका कमाने के लिए उन्होंने कपड़ों की बुनाई और धान की खेती करना शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप इमा कैथल की शुरुआत हुई। यह मैतेई महिलाओं के लिए, घरेलू और करघे के उपकरण, खाने की चीज़ें, कपड़े इत्यादि जैसे विविध उत्पाद बेचने का एक मुख्य केंद्र बना।

वर्तमान में इमा कैथल परिसर में तीन बड़ी इमारतें हैं। प्रत्येक इमारत के भूतल इमाओं के लिए निर्धारित किए गए हैं। प्रत्येक मंज़िल को बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तुओं के आधार पर अलग-अलग हिस्सों में विभाजित किया जाता है। लैमरेल सिदबी इमा या पुराना बाज़ार, इस परिसर की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी संरचना है। यहाँ की दुकानों पर बाँस से बनीं वस्तुएँ, शुद्ध रुई के धागों और गहनों से लेकर अलग-अलग प्रकार के फल, फूल, मछलियाँ और मसाले तक सभी उत्पाद बेचे जाते हैं। पुराना बाज़ार में मैतेइयों की देवी कैथल लैरेंबी और उनके पति लैरंबा का एक छोटा-सा तीर्थ स्थान भी है। मैतेई लोगों की पौराणिक कथाओं में देवी कैथल लैरेंबी का एक महत्वपूर्ण स्थान है और ऐसा माना जाता है कि वे कैथल लैरेंबी बाज़ार और महिला-वर्ग की रक्षक हैं।

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अपनी-अपनी दुकानों पर व्यस्त इमाएँ

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इमा कैथल में एक सजी हुई दुकान

इमोएनू इमा कैथल या लक्ष्मी बाज़ार इस परिसर की सबसे छोटी संरचना है। यहाँ की दुकानों पर पलंगपोश, मच्छरदानी जैसी घरेलू चीज़ें और शॉल तथा पारंपरिक पोशाकों जैसे वस्त्र उत्पाद बेचे जाते हैं। इन दुकानों को मणिपुर के अलग-अलग देशज समुदायों से संबद्ध रंग-बिरंगी शॉलों से सजाया जाता है। फूइबी इमा कैथल या नया बाज़ार में मुख्यतः करघे पर बनीं वस्तुएँ, उनमें भी ख़ास तौर पर मैतेई लोगों की पारंपरिक पोशाकें बेची जाती हैं जिनमें विभिन्न तरह के फनेक, साड़ियाँ और इनाफी शामिल हैं। महिलाओं के एक संघ द्वारा संचालित इमा कैथल में, एक ऋण प्रणाली का प्रयोग किया जाता है जिसके अंतर्गत व्यापारी, वस्तुएँ खरीदने के लिए पैसे उधार ले सकते हैं और बाद में उन पैसों का भुगतान कर सकते हैं।

इमा कैथल व्यापार और व्यवसाय का एक समृद्ध केंद्र होने के अतिरिक्त महिलाओं को मणिपुर के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सहभागी होने में सक्षम बनाता है। यह ऐतिहासिक सभाओं और सामाजिक-राजनीतिक चर्चाओं का एक केंद्र और विरोध प्रकट करने का एक स्थान भी रहा है। सन् 1904 और सन् 1939 में इमा कैथल की महिलाओं ने, ब्रिटिश अधिकारियों की बंधुआ मज़दूर प्रणाली, बड़े पैमाने पर खाद्यान्न फ़सलों के निर्यात, अत्यधिक जल कर, इत्यादि जैसी अनुचित नीतियों के खिलाफ़ विद्रोह किया। मणिपुरी महिलाओं के नेतृत्व में किए गए इस विद्रोह को ‘नुपी लान’ या ‘महिलाओं का युद्ध’ नाम दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि 5000 से अधिक महिलाओं ने इस असाधारण आंदोलन में भाग लिया था। मणिपुर में हर साल 12 दिसंबर का दिन ‘नुपी लान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यही वह दिन है जब मणिपुर की महिलाओं ने सन् 1939 में अंग्रेज़ों के अन्याय के खिलाफ़ बहादुरी से युद्ध छेड़ दिया था।

पिछले 500 सालों में इमा कैथल या माँ का बाज़ार कई क्रांतिकारी घटनाओं का साक्षी रहा है। यह अनोखा बाज़ार मणिपुर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर में और वृद्धि करता है और दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करता है।

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The Nupi Lan Memorial in Imphal