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कछारी साम्राज्य के खंडहर
(नागालैंड)

पूर्वोत्तर भारत का सांस्कृतिक परिदृश्य, विविध आदिवासी समुदायों की मौजूदगी को प्रतिबिंबित करता है। इस क्षेत्र का गौरवशाली इतिहास इसकी जीवंत सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में देखा जा सकता है। वर्मन राजवंश (350-650 ईस्वी) और अहोम राजवंश ने (1258-1824 ईस्वी), कला और वास्तुशिल्प के कार्यों को प्रोत्साहित किया, जो वर्तमान में ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।

दीमापुर में कछारी साम्राज्य के स्मारकों के खंडहरों की, पूर्वोत्तर भारत के इतिहास में एक प्रमुख भूमिका है। वे कला और वास्तुशिल्प के प्रति कछारी राजाओं के सरोकार और प्रयासों को दर्शाते हैं। इस क्षेत्र के सबसे पुराने साम्राज्यों में से एक माने जाने वाले कछारी साम्राज्य की जड़ें पूरे उत्तर-पूर्वी भारत में फैली थीं। दीमापुर (नागालैंड का एक वर्तमान ज़िला), 10वीं-13वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान कछारी साम्राज्य की राजधानी था। कछारी बोली में, दी का अर्थ है नदी, मा का अर्थ है महान या बड़ा, और पुर का अर्थ है शहर। इसलिए दीमापुर को महान नदी के पास बसे हुए एक शहर के रूप में जाना जाता था। 1228 ईस्वी में अहोमों के आगमन के साथ, कछारी साम्राज्य ने अपनी राजधानी दीमापुर से माईबोंग स्थानांतरित कर दी।

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वर्तमान दीमापुर, नागालैंड का आकाशीय दृश्य

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राजबारी प्रवेश द्वार, दीमापुर

दीमापुर के कछारी खंडहर बारीकी से तराशे गए पत्थर के स्तंभों की एक शृंखला हैं। राजबाड़ी, वह क्षेत्र जहाँ ये खंडहर मौजूद हैं, पहले तीन दीवारों और धनसिरी नदी द्वारा संरक्षित था। यद्यपि वे तीन दीवारें अब मौजूद नहीं हैं, लेकिन राजबाड़ी की पूर्वी ओर का प्रवेश द्वार आज भी दीमापुर के ऐतिहासिक महत्व को प्रकट करता है। यह ईंटों से बना एक मेहराबदार प्रवेश द्वार है। कछारी खंडहर में लगभग सौ पत्थर के स्तंभ तीन समानांतर पंक्तियों में व्यवस्थित हैं। स्तंभों को बलुआ पत्थर को तराशकर बनाया गया है। ये एकाश्म स्तंभ हैं, जिनकी ऊँचाई 8 फ़ुट से लेकर 9 फ़ुट तक है। यहाँ पाया जाने वाला सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा एकाश्म स्तंभ लगभग 12 फ़ुट ऊँचा है।

राजबाड़ी के पत्थर के अधिकतर स्तंभ गोल और चौकोर आकार के हैं। नक्काशीदार स्तंभों पर सजावटी ज्यामितीय पैटर्न के साथ कमल, मोर और घोड़े के डिज़ाइन बने हुए हैं। इन संरचनाओं के ऊपरी हिस्से गुंबद के आकार के हैं इसलिए आमतौर पर इन्हें "मशरूम" या "शतरंज के मोहरे" कहा जाता है।

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कछारी साम्राज्य के खंडहर, राजबाड़ी, दीमापुर

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कछारी साम्राज्य के एकाश्म

कछारी खंडहरों के इतिहास की अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की जाती है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि वे हिंदू भगवान, शिव के सम्मान में बनाए गए थे, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर पहले शैव लोग बसा करते थे, जो भगवान शिव की पूजा करते थे। एक अन्य व्याख्या में कहा गया है कि राजबाड़ी में प्रतिष्ठित कछारी व्यक्तियों को दफ़नाया जाता था। इस प्रकार, इन स्तंभों को दफ़न स्थलों पर लगे स्मारक पत्थरों की तरह देखा जाता है। इन विभिन्न कहानियों के बावजूद, ये एकाश्म कछारी साम्राज्य के विजयी स्मारक माने जाते हैं।

दीमापुर में कछारी साम्राज्य के खंडहर दसवीं शताब्दी ईस्वी और उसके बाद के इतिहास की महत्वपूर्ण अवधि को प्रतिबिंबित करते हैं। एकाश्मों पर उकेरी गई आकृतियाँ और पैटर्न, कछारियों की गहरी कलात्मक रुचियों को दर्शाते हैं। वर्तमान में, ये कालातीत संरचनाएँ पूर्वोत्तर भारत के गौरवशाली अतीत के एक प्रतीक के रूप में मौजूद हैं।

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एकाश्म पर नक्काशी की गई आकृतियाँ एवं पैटर्न