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कोंगथोंग- मेघालय का सीटियों वाला गाँव

भारत का उत्तर-पूर्वी राज्य, मेघालय हरे-भरे पहाड़ों और सुंदर झरनों से घिरा हुआ है। ‘मेघों के आलय’ के नाम से विख्यात इस राज्य में कई जीवंत सांस्कृतिक मान्यताएँ और प्रथाएँ देखने को मिलती हैं। मेघालय में कोंगथोंग नामक एक छोटे से गाँव में ‘जिंगरवाई लवबी’ नाम की एक अनूठी मौखिक परंपरा चली आ रही है, जिसमें कबीले की सबसे पुरानी और पहली महिला पूर्वज (‘लवबी’) के सम्मान में एक गीत (‘जिंगरवाई’) गाया जाता है। यह गीत एक माँ अपने बच्चे के जन्म के बाद के पहले कुछ हफ़्तों के दौरान रचती है, जब प्रसव के पश्चात उसका स्वास्थ्य फिर से पटरी पर लौटने लगता है।

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मेघालय - बादलों का घर

कोंगथोंग, राजधानी शिलॉन्ग से लगभग 65 किलोमीटर दूर पूर्वी खासी हिल्स ज़िले में स्थित है। इस गाँव के लोगों के दो नाम होते हैं- एक वास्तविक या पारंपरिक नाम और दूसरा 'धुन या गाने वाला नाम'। धुन या गाने वाला नाम, अपने लंबे और छोटे स्वरूपों में दो प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है। ग्रामीणों का मानना ​​है कि ‘जिंगरवाई लवबी’ की परंपरा नवजात बच्चे के लिए आत्मिक प्रेम की अभिव्यक्ति और उसकी अच्छी देखभाल करने में माँ की सहायता करती है। एक धुन या गीत की यह विशेष अभिव्यक्ति, समय के साथ उस बच्चे की स्थायी पहचान बन जाती है।

हालाँकि इस गीत या धुन की एक शुरुआत और एक अंत होता है, परंतु इसमें कोई शब्द नहीं होते। माता-पिता अपने बढ़ते बच्चों को पुकारने के लिए केवल प्रारंभिक भाग के तौर पर इस धुन का छोटा स्वरूप उपयोग करते हैं। पूरी धुन का प्रयोग घर के बाहर, खेतों, या जंगलों में किया जाता है। कोंगथोंग गाँव के लोग इस परंपरा को अपने गाँव के सदस्यों के बीच अभिव्यक्ति और संचार का माध्यम मानते हैं। बच्चे के पैदा होने पर, माता और पिता दोनों, दो या तीन धुनों की रचना करके, उनमें से सबसे अच्छी धुन चुनते हैं। जब कोई बच्चा पैदा होता है, तब एक नई धुन की रचना की जाती है, जो उस व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही समाप्त होती है। दो लोगों के लिए कभी एक ही धुन या गाने का इस्तेमाल नहीं किया जाता। हर धुन केवल एक ही व्यक्ति की अद्वितीय और मौलिक पहचान होती है, और जब भी किसी व्यक्ति को उसकी धुन से पुकारा जाता है, तब वह उसका वापिस गाकर जवाब देता है। ‘जिंगरवाई लवबी’ की परंपरा पूरी तरह से मौखिक है और इसे कहीं भी लिखा नहीं जाता है।

कोंगथोंग के लोग प्राचीन काल से ‘जिंगरवाई लवबी’ की अनूठी परंपरा का पालन करते आ रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि गाँव की एकाकी भौगोलिक अवस्थिति के कारण, यहाँ के प्रारंभिक पूर्वजों ने इस संगीतमय भाषा का विकास किया था। एक स्थानीय मान्यता के अनुसार, खासी पहाड़ियों के जंगलों में बुरी आत्माएँ निवास करती हैं, और गाँव को उन आत्माओं से बचाने के लिए ही ग्रामीण लोग इस अनूठी भाषा का उपयोग करते हैं, क्योंकि बुरी आत्माओं के लिए इन धुनों और जानवरों की आवाज़ों के बीच अंतर करना असंभव होता है। दूर से सुनने पर ये धुनें सीटियों जैसी सुनाई देती हैं, जिसके करण कोंगथोंग, 'सीटियों के गाँव' के नाम से प्रसिद्ध है।

किसी समुदाय की मौखिक परंपरा उसके अमूल्य लोकज्ञान का प्रमाण होती है, जो एक पीढ़ी, केवल वाचन के माध्यम से दूसरी पीढ़ी को सौंपती है। संस्कृति के ये अमूर्त तत्व सामुदायिक जीवन और आजीविकाओं की विशेषताओं को दर्शाते हैं। इन सांस्कृतिक संपत्तियों को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाकर रखना निस्संदेह समय की आवश्यकता है।