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मेघालय के जीवित जड़ सेतु

मेघालय के सघन वनों के भीतर, मनुष्य और प्रकृति की एक अनोखी और असाधारण रचना विद्यमान है- जीवित जड़ सेतु। आपस में गुथी हुई जड़ों से बने ये पैदल पार करने वाले प्राकृतिक पुल, पूर्व में खासी और पश्चिम में जयंतिया पहाड़ियों के ज़िलों में फैले हैं, तथा गहरी घाटियों और जल धाराओं को पार करने के लिए प्रयोग किए जाते हैंl स्थानीय रूप से जिंग कींग ज्री के रूप में जाने जाने वाले मेघालय के ये जड़ सेतु आत्मनिर्भरता और संवहनीयता का प्रतीक हैंl साल के करीब 6 महीने भारी बारिश और नम परिस्थितियों में रहने के अभ्यस्त, स्थानीय लोगों को लकड़ी या धातु के पुल, जो सड़ सकते थे या खराब हो सकते थे, की अपेक्षा प्राकृतिक डिज़ाइनों और वास्तुविधा पर निर्भर रहना पड़ा। दुर्भाग्य से, 19वीं शताब्दी तक कोई भी लिपि उपलब्ध न होने के कारण, यह आकलन करना मुश्किल है कि ये पुल कितने पुराने हैं। हालाँकि, किंवदंतियों के अनुसार इनमें से कुछ पुल 500 साल से अधिक पुराने हैं।

द्विस्तरीय जीवित जड़ सेतु, नोंगरीट गाँव (मेघालय)

फ़ाईकस इलास्टिका की हवाई जड़ें

माना जाता है कि इन पुलों को मेघालय की खासी जनजाति द्वारा स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों, जैसे पेड़ की शाखाओं,तनों, और जड़ों का उपयोग करके बनाया गया है। इन पुलों का निर्माण समय के साथ कुशलतापूर्वक और योजनाबद्ध तरीके से धीरे-धीरे हुआ है। ये पुल भिन्न-भिन्न लंबाई और आकार के हैं, और इनके निर्माण की तकनीकें भी अलग-अलग हैं। आमतौर पर पुल बनाने की प्रक्रिया नदी के दोनों किनारों पर फ़ाईकस इलास्टिका के पेड़ लगाने से शुरू होती है। फिर इनकी जड़ों को हाथों से खींचा और मरोड़ा जाता है और पुल बनाने के लिए आपस में गूँथ दिया जाता है। जब तक कि जड़ें लोगों के वजन को सहन करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं हो जाती हैं, तब तक उसको सहारा देने के लिए एरिका पाम के तनों या बाँस और पत्थरों का उपयोग किया जाता हैl समय के साथ उचित पोषण पाने की स्थिति में पेड़ स्वस्थ रहते हैं, और इसके साथ जड़ सेतु भी और अधिक मजबूत होते जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 10-15 साल लग सकते हैं। रोचक बात यह है कि इन पुलों को उनके निर्माण के बाद ज्यादा रखरखाव की जरूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि बढ़ती हुई जड़ें पुल को लगातार सहारा प्रदान करती रहती हैं और उसे मजबूत बनाती हैं। ऐसा माना जाता है कि ये पुल घोर तूफ़ानों और बाढ़ की स्थितियों में भी कायम बने रहे हैंl

मेघालय के जीवित जड़ सेतु खासी जनजातियों और प्रकृति के बीच घनिष्ठ संबंध को दर्शाते हैं। वे जनजाति के कुशल शिल्प कौशल का प्रमाण हैं और जीवित रहने की एक आवश्यक तकनीक को दर्शाते हैं। ये पुल खासी जनजातियों के इतिहास और उनकी सामूहिक पहचान के प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में खड़े हैं। इस तरह के संवहनीय उपायों को अपनाना प्रकृति के संरक्षण और पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दुर्भाग्य से, पुलों को ‘उगाने’ का यह चलन कम होता जा रहा है क्योंकि अब लोग निर्माण के आसान और तेज़ तरीकों को पसंद करते हैं। हालाँकि, सरकार और कुछ स्थानीय लोग इस परंपरा को संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि न केवल पर्यावरण की सुरक्षा बल्कि जनजाति की विरासत की सुरक्षा भी की जा सके। मार्च 2022 में, मेघालय के जीवित जड़ सेतु सांस्कृतिक परिदृश्य को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में शामिल किया गया। हालाँकि इन पुलों के निर्माण के प्राथमिक कारण मुख्यतः जगहों को जोड़ना और सुगम्यता थे, लेकिन आज, वे सुंदरता, विरासत, पहचान, एवं अधिक हरे-भरे और संवहनीय भविष्य की आशा के प्रतीक के रूप में उभरकर सामने आ रहे हैं।

सहारे के रूप में उपयोग किए जाने वाले बाँस और पत्थरों सहित एक जड़ सेतु

चेरापूंजी (मेघालय) में जीवित जड़ सेतु का दृश्य