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मिज़ो जीवन शैली

ksarbai

मिज़ोरम का मनोरम दृश्य। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

सुंदर पहाड़ों और हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित भारत का उत्तर-पूर्वी राज्य, मिज़ोरम, सांस्कृतिक विरासत का खज़ाना है। प्राचीन काल से ही, मिज़ोरम के लोगों ने एक विशिष्ट वैश्विक नज़रिए को दर्शाते रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन किया है। अक्सर ‘नीले पहाड़ की भूमि’ के नाम से प्रसिद्ध, मिज़ोरम में 'सेम सेम दम दम, ई बिल थी थी' के दार्शनिक मूल्य पर आधारित एक अद्भुत परंपरा का पालन किया जाता है, जिसका अर्थ है, "जमाखोरी से विनाश होता है और साझेदारी से ही जीवन मिलता है"। इस वैश्विक दृष्टिकोण से तीन महत्वपूर्ण सिद्धांत घनिष्ठता से जुड़े हैं- ‘तलावमंगैहना’, ‘नघा लू दौर’ और ‘हनत्लांग’।

‘तलावमंगैहना’ का शाब्दिक अर्थ है, मददगार बनना और अपने आसपास के लोगों पर बोझ ना बनना। इसका अर्थ यह भी है कि समुदाय की वृहद् भलाई के लिए व्यक्ति को विनम्र, साहसी, दयालु, और मुखर होना चाहिए। जिस दर्शनात्मक मूल्य पर यह प्रथा आधारित है, वह अपने से पहले दूसरों के हितों के बारे में सोचने को बढ़ावा देता है। कहा जाता है कि 'मैं' से पहले 'हम' रखने पर एक मनुष्य, ‘तलावमंगैहना’ व्यक्ति बन जाता है। उदाहरण के लिए, मिज़ो समाज में, यदि कोई किसान बीमार पड़ता है, तो उसकी ज़मीन पर खेती करने की ज़िम्मेदारी साथी ग्रामीणों की होती है। इसी तरह, साथी ग्रामीणों से, प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित घरों की मरम्मत और पुनर्निर्माण में मदद करने की तथा प्रभावित लोगों को भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराने में योगदान की अपेक्षा भी की जाती है। यात्रियों का सत्कार करना भी समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक कर्तव्य माना जाता है।

अगला सिद्धांत- ‘नघा लू दौर', मिज़ो समाज की एक अन्य अद्भुत विशेषता है। इस सिद्धांत का पालन राजधानी आइज़ोल से लगभग 65 किमी दूर, सेलिंग में मुख्य मार्ग पर स्थित परिचारक रहित दुकानों में देखा जा सकता है। हर सुबह दुकान के मालिक, जो अक्सर किसान भी होते हैं, अपनी फूस और बाँस की दुकानों में सब्जियाँ, फल, फलों के रस की बोतलें, छोटी सूखी मछली, और मीठे पानी के घोंघे (एक स्थानीय व्यंजन) रख देते हैं। वे सामानों के नाम और कीमतों के साथ वहाँ छोटी तख्तियाँ भी लटकाते हैं और ग्राहकों से भुगतान लेने के लिए छोटे बक्से रखते हैं। फिर दुकान के मालिक अपने झूम (स्थानांतरी खेती) खेतों पर काम करने के लिए निकल जाते हैं। इस क्षेत्र से गुज़रने वाले लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे आवश्यक सामान उठाकर निर्धारित धन बक्से में डाल देंगे। ये दुकानें साल भर इसी प्रकार चलती हैं। ‘नघा लू दौर'-दुकानों की प्रणाली एक अद्वितीय दर्शनात्मक मूल्य और व्यापार के तरीके को दर्शाती है, जो विशुद्ध रूप से ईमानदारी और विश्वास पर आधारित है।

मिज़ो लोगों द्वारा अपनाई जाने वाली एक और कल्याणकारी प्रथा ‘हनत्लांग’ है। इस प्रथा में, समुदाय के सभी शारीरिक रूप से सक्षम व्यक्तियों से अपेक्षा की जाती है कि वे सामाजिक कार्यों में भाग लें और श्रम करके अपना योगदान दें। ‘तलावमंगैहना’ सहित, ‘‘हनत्लांग’ की प्रथा के तहत, उनके लिए विवाह, सार्वजनिक दावतों, स्वयं-सहायता संगठनों के लिए घरों के निर्माण, झूम खेती, इत्यादि, के अवसरों पर हर संभव सहायता प्रदान करना अनिवार्य होता है। प्रत्येक घर से एक सदस्य की भागीदारी की अपेक्षा की जाती है, जिसमें विफल रहने पर उस परिवार पर नकद या वस्तुओं अथवा उपज का जुर्माना लगाया जाता है।

मिज़ो लोगों ने जिन सिद्धांतों का विकास और पालन किया है, वे मिज़ोरम में जीवन जीने का एक अनूठा और सराहनीय तरीका दर्शाते हैं। सामुदायिक कल्याण की ओर उनका सौहार्दपूर्ण रवैया, मिज़ो लोगों के बीच आपसी एकता स्थापित करता है, और साथ ही, दुनिया को एकजुटता के सिद्धांत का संदेश देता है।