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मयोंग : तंत्र-मंत्र की भूमि

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मयोंग से दिखाई देने वाला ब्रह्मपुत्र नदी का दृश्य। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स

काला जादू कहलाई जाने वाली परंपराएँ लोगों के मन में विस्मय और भय उत्पन्न करने के लिए जानी जाती हैं। दुनिया भर में जादू-टोनों, जादुई काढ़ों, डायनों, और ओझाओं का एक लंबा इतिहास रहा है, और भारत भी इनसे अछूता नहीं है। ‘मयोंग’ या ‘मयांग’ असम राज्य में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसा हुआ एक विविक्त गाँव है, जिसे “तंत्र-मंत्र की भूमि” कहा जाता है। इस गाँव को जादू-टोने की प्रथाओं और जंतर-मंतर की परंपराओं के लिए जाना जाता है। यह भारत की “काले जादू की राजधानी” के रूप में भी प्रसिद्ध है। मयोंग की रहस्यमयता, यहाँ पुरुषों के एकाएक गायब हो जाने, लोगों के जानवरों में तब्दील हो जाने, और जादुई ढंग से भूत-प्रेतों के वश में हो जाने की कई भयावह घटनाओं के किस्सों से संबंधित है। वैसे तो, दुनिया का यह भाग लोककथाओं और किस्से-कहानियों से समृद्ध है, लेकिन मयोंग की रहस्यपूर्ण प्रथाएँ केवल कानाफूसी से फैले मिथक और किंवदंतियाँ नहीं हैं।

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मयोंग में जादुई अनुष्ठान करती हुई महिला। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स

‘मयोंग’ नाम की उत्पत्ति के पीछे कई अनुमान लगाए जाते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘माया’ से हुई है, जिसका अर्थ ‘भ्रम’ है, जबकि कई लोगों का यह दावा है कि इसकी उत्पत्ति दिमसा भाषा के शब्द, ‘मियोंग’ से हुई है, जिसका अर्थ ‘हाथी’ है। ‘बोंगसावली गोइड’ पांडुलिपि में एक किवदंती के अनुसार, माइबंग के सुनयत सिंघ ने 1624 ईस्वी में मयोंग राज्य की स्थापना की थी। मयोंग में वर्तमान में भी एक पारंपरिक राजा हैं। उनके पास एक राजा की शक्ति और अधिकार तो नहीं हैं, फिर भी उनका समाज में मान-सम्मान होता है। मयोंग का ज़िक्र केवल असम की लोककथाओं में ही नहीं, बल्कि महाभारत जैसे प्राचीन हिंदू ग्रंथों में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि भीम के पुत्र घटोत्कच ने मयोंग में जादुई शक्तियाँ प्राप्त करने के बाद, महाभारत के युद्ध में भाग लिया था।

प्राचीन काल से ही मयोंग में जादुई तत्वों का उपयोग किया जाता रहा है। खेती-बाड़ी और शिल्पकारिता के साथ-साथ भावी पीढ़ियों को जादू-टोने और काले जादू के रहस्य भी सिखाए जाते थे। मयोंग के इन जादूगरों को ओझा या ‘बेज़’ कहते हैं। ‘बेज़’ जिस जादू का दूसरों के हित के लिए इस्तेमाल करते हैं, उसे ‘सुमंत्र’ (अच्छा मंत्र) कहते हैं, जबकि जिस जादू के उपयोग से दूसरों को हानि पहुँचाई जाती है, उसे ‘कुमंत्र’ (बुरा मंत्र) कहते हैं। ‘बेज़’ इन दोनोें तरह के ‘मंत्रों’ से परिचित होता है। आजकल जादू का उपयोग ज़्यादातर लोगों की बीमारियों का इलाज करने के लिए ही किया जाता है। ओझाओं का यह दावा है कि उनके पास, पीठ दर्द जैसी छोटी-से-छोटी समस्या से लेकर न्युमोनिया और खसरे जैसी बड़ी-से-बड़ी बीमारी तक का इलाज है। इनमें से कुछ झाड़-फूँक की कला में पारंगत होने का दावा भी करते हैं।

हालाँकि, वर्तमान में यहाँ काले जादू का अधिक इस्तेमाल नहीं होता है, लेकिन कई ऐतिहासिक घटनाओ में इस गाँव को बहुत डरावने अंदाज़ में दर्शाया गया है। 1337 ईस्वी की सबसे रोचक कहानियों में से एक के अनुसार, बादशाह मुहम्मद शाह ने अहोम राज्य पर आक्रमण करने के लिए जब 1,00,000 अस्त्र-शस्त्र से लैस घुड़सवारों को असम भेजा था, तब उनकी पूरी-की-पूरी फ़ौज की मयोंग वन में मौत हो गई थी। माना जाता है कि मुगल भी मेयोंग के नाम से डरते थे। ‘आलमगीर नामा’ में लिखा है कि जब औरंगज़ेब ने मुगल सेनापति राजा राम सिंह को अहोम राज्य पर कब्ज़ा करने का आदेश दिया, तब वे इस काम को करने से हिचकिचाने लगे। वे अहोम सेना की ताकत से ज़्यादा मयोंग के अज्ञात जादू-टोने से भयभीत थे। जैसा कि अनुमानित था, राम सिंह बुरी तरह परास्त हुए और जैसे-तैसे यहाँ से जीवित निकल पाए।

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मयोंग की मंत्र पोथी (पांडुलिपि)। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स

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मयोंग संग्रहालय में मौजूद प्रतिमा। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मयोंग में काले जादू की अवधारणा और उपयोग का बहुत विकास हुआ है और इनमें कई बदलाव भी आए हैं। दिलचस्प रूप से, ‘मयोंग सेंट्रल म्यूज़ियम एंड एंपोरियम ऑफ़ ब्लैक मैजिक ऐंड विचक्राफ़्ट’ में पारंपरिक जादुई प्रथाओं के अवशेषों का संरक्षण किया गया है। इस संग्रहालय में जादुई अवशेषों, अस्त्र-शस्त्रों, पांडुलिपियों, तथा हड्डियों से बने गहनों समेत कई तरह की शिल्पकृतियाँ प्रदर्शित हैं।

दुर्भाग्य से, वर्तमान में इस कला को जानने वाले केवल कुछ ही साधक मौजूद हैं और दुनिया जिस गति से आधुनिक तकनीकों को अपना रही है, उससे भी यही लगता है कि मयोंग की प्रसिद्ध जादुई परंपराएँ जल्द ही पूरी तरह लुप्त हो जाएँगी।