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पटियाला हार

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महाराजा भूपेंद्र सिंह

भूपेंद्र सिंह ब्रिटिश भारत की पटियाला रियासत के महाराजा थे। उन्होंने नवंबर 1900 में पटियाला का सिंहासन संभाला और 1938 तक यहाँ शासन किया। महाराजा भूपेंद्र सिंह सार्वजनिक कार्यक्षेत्रों में बहुत सक्रिय रूप से हिस्सा लेते थे। उन्होंने कई उपलब्धियाँ हासिल कीं, जिनमें इंडियन चैम्बर्स ऑफ़ प्रिंसिज़ की अध्यक्षता भी शामिल थी, जिसके चलते लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मलेन में उन्होंने भारतीय राज्यों के एक प्रतिनिधि-मंडल का नेतृत्व किया। वे एक होनहार क्रिकेट के खिलाड़ी भी थे और 1911 में भारतीय क्रिकेट टीम के इंग्लैंड दौरे पर उसके कप्तान रहे। भूपेंद्र सिंह की जीवन-शैली असाधारण थी, जिसे उनकी आलीशान जीवनचर्या परिलक्षित करती थी। उनके पास कई रोल्स रॉयस गाड़ियाँ, विमान, और उत्कृष्ट एवं दुर्लभ गहने भी थे। फ़्रांस की समृद्ध संगुटिका, कार्टियर से खासतौर पर बनवाया गया ऐसा ही एक असाधारण गहना था, पटियाला का हार।

1920 के दशक में, महाराजा भूपेंद्र सिंह ने कार्टियर पेरिस के मुख्य विक्रेता को अपनी पारिवारिक विरासत के नवीनीकरण के लिए आमंत्रित किया। इस संग्रह में हरी और गुलाबी रंगत वाले सफ़ेद, पीले और भूरे रंग के हीरे, माणिक, पन्ने, कर्ण-फूल, कंगन, और गले के हार शामिल थे। इन बेशकीमती जवाहरातों को गहनों के एक प्रभावशाली संग्रह में परिवर्तित करने के लिए, कार्टियर को तीन साल का समय लगा। इस संग्रह में पायल, बाजूबंद, हाथ-फूल और अन्य कई गहने शामिल थे। लेकिन इस संग्रह की श्रेष्ठ कृति “पटियाला का हार” ही थी। कार्टियर ने इस उत्कृष्ट हार को भारत वापस भेजने से पहले इसे प्रदर्शन में रखने के लिए महाराजा भूपेंद्र सिंह की अनुमति भी ली थी। इस प्रकार इसने अपने सुंदर और कुशल शिल्प-कौशल के लिए अपार प्रशंसा बटोरी।

पटियाला हार प्लैटिनम धातु से बनी पाँच पंक्तियों और एक कंठहार से बना था। यह 2,930 हीरों और बहुत से बर्मी माणिकों से अलंकृत था। इस बेशकीमती हार के ठीक बीच में था, डेबियर्स हीरा, जो दुनिया का सातवाँ सबसे बड़ा कट हीरा और पीली रंगत वाला दूसरा सबसे बड़ा हीरा था। पटियाला हार महाराजा भूपेंद्र सिंह द्वारा पहना गया, और उनके पश्चात उनके बेटे और उत्तराधिकारी महाराजा यादविंद्र सिंह द्वारा इसे परंपरागत रूप से प्राप्त किया गया था। परंतु हार बहुत लंबे समय के लिए पारिवारिक विरासत का हिस्सा नहीं रह पाया। 1948 में एक बड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब यह हार महाराजा यादविंद्र सिंह द्वारा आखिरी बार पहने जाने के बाद रहस्यमय परिस्थितियों में गायब हो गया।

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पटियाला हार
 

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पटियाला हार पहने हुए महाराजा यादविंद्र सिंह

दिलचस्प बात यह है कि जितनी रहस्यमयी परिस्थितियों में हार गायब हुआ था, उतनी ही रहस्यमयी परिस्थितियों में वह पुनः प्रकट भी हुआ। 3 दशकों से भी अधिक समय तक लापता मान लिए जाने के बाद, डेबियर्स हीरा 1982 में जिनेवा के सोथबी में एक नीलामी में अपने हार के बिना देखा गया। परंतु, हीरा अपनी अघोषित औपचारिक बोली की रकम को प्राप्त करने में असमर्थ रहा। इसके पश्चात, एक दशक बाद, 1998 में, हार का एक और हिस्सा लंदन में एक उतरन आभूषण की दुकान से एक कार्टियर सहयोगी द्वारा पुनः प्राप्त किया गया। इस बार हार के अधिकांश हीरे भी गायब थे। आखिरकार, कार्टियर ने पटियाला हार के बचे हुए ढाँचे को खरीद लिया और लापता हुई कीमती मणियों की जगह उनकी प्रतिकृतियों को प्रतिस्थापित करके इसे बहाल करने की परियोजना शुरू की। इस प्रक्रिया में करीब चार वर्ष का समय और लगा।

पटियाला हार की कहानी एक वृत्तचित्र में दिखाई गई थी, जिसका प्रथम प्रदर्शन डिस्कवरी चैनल पर हुआ था। इसे "डिस्कवर इंडिया" शृंखला के एक हिस्से के रूप में प्रसारित किया गया था। इस वृत्तचित्र में महाराजा भूपेंद्र सिंह से लेकर महाराजा यादविंद्र सिंह और फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह तक, पटियाला के शाही परिवार की इन तीन पीढ़ियों की कहानियों को दर्शाया गया था। भूपेंद्र सिंह की एक पोती, जो कैलिफ़ोर्निया में एक जौहरी हैं, पुनर्निर्मित हार की प्रदर्शनी में शामिल हुई थीं। प्रदर्शनी को एशियाई कला संग्रहालय में आयोजित किया गया था और इसे "महाराजा- द स्प्लेंडर ऑफ़ इंडियाज़ रॉयल कोर्ट्स" नाम दिया गया था।