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पूर्वोत्तर भारत की पारंपरिक युवा छात्रावास व्यवस्था
ग्रामीण जीवन-शैली का प्रारंभ, मानव सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण चरण था। गाँवों में सामाजिक जीवन को बढ़ोतरी देने वाली एक प्रमुख विशेषता थी - संचार। एक सामुदायिक स्थान के रूप में युवा छात्रावास, मनुष्य की सामाजिक प्रकृति को दर्शाते थे। यही छात्रावास अंततः शिक्षा और मनोरंजक गतिविधियों के केंद्रों में परिवर्तित हो गए।
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र कई जनजातीय समुदायों का घर है। इनमें से अधिकांश समुदाय युवा छात्रावास की परंपरा का पालन करते हैं। यह सदियों पुरानी परंपरा न केवल छात्रावास सेवा का प्रतीक है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से गाँवों की रक्षा करने, निर्णय लेने और सामुदायिक दावतों और त्योहारों के आयोजन के लिए एक मंच का काम भी करती है। पहले छात्रावास व्यवस्था अविवाहित पुरुषों तक ही सीमित थी ताकि वे अपने भविष्य के लिए मूल्य और पारंपरिक कौशल प्राप्त कर सकें।
पूर्वोत्तर भारत में युवा छात्रावास व्यवस्था मुख्य रूप से उन जनजातियों में पाई जाती है जो तिब्बती-बर्मन भाषाएँ बोलती हैं। यह नागा, आदि, मिसिंग, कछारी, गारो, कारबी, लुछाई और लालुंग, जैसी कई जनजातियों की संस्कृतियों का एक महत्वपूर्ण तत्व है। इस व्यवस्था को ज़ेमी नागाओं द्वारा हेंगसेउकी, मिज़ो लोगों द्वारा ज़ॉलबुक, मार लोगों द्वारा बुडोन्ज़वल, कारबी लोगों द्वारा तेरांग या फ़र्ला, डिमाचा कछारियों द्वारा नोद्रंग, डेओरी लोगों द्वारा मोरुंग घर, मिसिंग लोगों द्वारा मुरोंग ओकुम, तिवा या लालुंग लोगों द्वारा चामडी, और रेंगमा नागाओं द्वारा रेंसी कहा जाता है।
गालौंग और ज़ेमी नागाओं जैसी जनजातियों में केवल लड़कियों के लिए भी छात्रावास मौजूद हैं। अरुणाचल प्रदेश के गालौंग में लड़कियों के छात्रावास को रसेंग कहा जाता है, और ज़ेमी नागाओं के छात्रावास को लियोसेउकी ।
असम में पुरुष वयस्कों के लिए बने युवा छात्रावासों को लोकप्रिय रूप से डेका सांग कहा जाता है। असमिया शब्द 'डेका' का अर्थ है युवा पुरुष, जबकि 'सांग ' एक ऊँचे उठे फ़र्श को कहते हैं, जो छप्परदार छत और बाँस के खंभों से बनाया जाता है। यह फ़र्श चिरे बाँस से बनाया जाता है, ताकि विभिन्न सामुदायिक कार्यक्रमों में यह आसानी से काम आ सके। अविवाहित महिला वयस्कों के लिए बनाए गए छात्रावासों को गभोरू सांग कहा जाता है। असमिया शब्द 'गभोरू' महिला युवाओं के लिए उपयोग किया जाता है।
युवा छात्रावास व्यवस्था की प्रथा के पीछे दो मुख्य उद्देश्य हैं। पहला उद्देश्य था, एक अनुशासित जीवन जीने के लिए करुणा, एकजुटता और कृतज्ञता जैसे मूल्य आत्मसात करना। गाँव को दुश्मनों से बचाने के लिए रक्षात्मक गतिविधियों में लड़कों को प्रशिक्षण देना, इस व्यवस्था का ऐतिहासिक रूप से और एक उद्देश्य हुआ करता था।
इन छात्रावासों को गाँव के बीचों-बीच एक ऐसे सामरिक स्थान पर निर्मित किया गया है, जहाँ से आने-जाने वाले लोगों पर नज़र रखी जा सके। पहाड़ी समुदाय आमतौर पर अपने छात्रावासों का ऊँचे स्थानों पर निर्माण करते हैं। दिलचस्प बात यह है, कि एक युवा छात्रावास का अंदरूनी हिस्सा विशेष तौर पर इस समुदाय की कलात्मक अभिव्यक्तियों को दर्शाता है। दीवारों, क्रॉस बीमों और स्तंभों को उनके लोक-ज्ञान और विश्वास को दर्शाते विभिन्न चिह्नों से सजाया गया है। नागा समुदाय के मोरंग, इन डंडों और बीमों पर कुछ रूपांकनों को प्रदर्शित करते हैं जो वीरता और बलिदान के प्रतीक होते हैं। नागालैंड की अधिकांश जनजातियाँ अब भी इस परंपरा का पालन करती हैं और यह उनके सामाजिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। पिछले कुछ वर्षों में युवा छात्रावास बदल गए हैं। अब इन्हें कंक्रीट का उपयोग करके भी बनाया जाता है। एक परंपरा के रूप में, युवा छात्रावास व्यवस्था, सामुदायिक कल्याण के लिए शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।