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पवित्र देवी झील - त्सो ल्हामो

त्सो ल्हामो झील उत्तरी सिक्किम के हिमालय-पार क्षेत्र में स्थित है। इस झील और इसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन पहली बार वर्ष 1874 में अंग्रेज़ वनस्पतिशास्त्री और खोजकर्ता, जोसेफ़ डाल्टन हुकर ने किया था, जिन्होंने इसे 'चोलामू' झील कहा था। यह हिमनदीय, मीठे पानी की झील कंचनजंगा पर्वतमाला के उत्तर-पूर्व में स्थित है और ज़ेमू तथा कांगत्से हिमनदों के पानी से पोषित होती है।

Tso Lhamo

डोंकिया दर्रे के शीर्ष से उत्तर-पश्चिम की ओर देखते हुए, त्सो ल्हामो झील का एक रेखाचित्र, डाल्टन हुकर के ‘हिमालयन जर्नल्स’ में प्रकाशित। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

त्सो ल्हामो झील दुनिया की सबसे ऊँची झीलों में से एक है। यह लगभग 20,300 फ़ीट की ऊँचाई पर एक ऊँचे पठार पर स्थित है, जो तिब्बती पठार से जुड़ा हुआ है। हिमनद का पानी मुख्य झील में गिरने से पहले चोपटा घाटी और थांगु घाटी से होकर गुज़रता है। त्सो ल्हामो तीस्ता नदी का स्रोत है, जो सिक्किम और पश्चिम बंगाल नामक भारतीय राज्यों से होकर बहती है।

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तीस्ता नदी त्सो लामो झील से उद्गमित होती है, और बांग्लादेश में प्रवेश करने से पहले, सिक्किम और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

झील और इसके आस-पास के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की वनस्पति और जीव-जंतु पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में रहने वाले कुछ दुर्लभ और लुप्तप्राय जानवरों में तिब्बती जंगली गधा (किआंग), तिब्बती मृग, तिब्बती गज़ेल, पलास की बिल्ली, तिब्बती अर्गाली, और खुरदार पशु शामिल हैं। इस पारिस्थितिक क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता के कारण स्थानीय आदिवासी अपने पशुधन पालन के लिए झील और इसके आस-पास के क्षेत्रों पर निर्भर करते हैं। प्रकृति के साथ संवहनीय सहवास का एक ऐसा उदाहरण डोकपा जनजाति की जीवन शैली में देखा जा सकता है। झील के पास रहने वाला यह चरवाहा समुदाय, कई सदियों से याक और भेड़ समेत अपने पशुओं को खिलाने के लिए इस क्षेत्र के चारा संसाधनों पर निर्भर है, जबकि इस समुदाय के लोग स्वयं अपने दैनिक भरण-पोषण के लिए यहाँ के अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं।

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याक सिक्किम का एक महत्वपूर्ण पशुधन है। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

गौरतलब है कि सिक्किम में कई प्राकृतिक झीलों को राज्य के स्थानीय समुदायों द्वारा पवित्र माना जाता है। उन्हें अक्सर देवों, यक्षों, नागों, और अप्सराओं जैसी स्थानीय संरक्षक आत्माओं का पवित्र निवास माना जाता है, जबकि कई अन्य झीलें तांत्रिक देवी-देवताओं से जुड़ी हुई हैं। पवित्र सिक्किमी धर्मग्रंथ, ‘ने-सोल पेचा’ में 109 पवित्र झीलों (त्सो चेन) का उल्लेख है, जो कभी इस क्षेत्र में मौजूद हुआ करती थीं। हालाँकि, सदियों से, नए राजनीतिक विकास और सीमांकन के कारण, इनमें से कई झीलें वर्तमान में नेपाल और चीन-तिब्बत क्षेत्रों में स्थित हैं, जबकि कुछ भारत में हैं। ऐसी ही एक पवित्र झील, त्सो ल्हामो झील है। यहाँ के निवासी इसकी पूजा करते हैं, जिनमें विशेष रूप से याक चरवाहे शामिल हैं, जो झील को 'देवी झील' ('त्सो' का अर्थ झील है, जबकि 'ल्हामो' का अर्थ देवी है) के रूप में पूजते हैं। अतः, यह झील स्थानीय जनजातियों के सामाजिक-सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संसार का केंद्र है।

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त्सो ल्हामो झील। छवि स्रोत : सिक्किम राज्य पर्यटन बोर्ड

बर्फ़ से ढके पहाड़ों से घिरी, त्सो ल्हामो झील भारत-चीन सीमा के करीब होने के कारण भारत के लिए भू-रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। यह सीमा क्षेत्र से लगभग 4 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम की दिशा में स्थित है, और इसपर भारतीय सेना द्वारा भारी गश्त की जाती है। सशस्त्र बलों की उपस्थिति के परिणामस्वरूप क्षेत्र में नवनिर्मित सड़कों और सैन्य छावनियों के उभरने के साथ बुनियादी ढाँचे का तेज़ी से विकास हुआ है। हालाँकि, इस तरह की पहल क्षेत्र के नाज़ुक पारिस्थितिकी-तंत्र के प्राकृतिक संतुलन के विषय में भी चिंता पैदा करती है।

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तिब्बती गज़ेल त्सो ल्हामो झील क्षेत्र में पाई जाने वाली एक दुर्लभ जीव प्रजाति है। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

इस प्रकार, हिमालय-पार क्षेत्र में स्थित, त्सो ल्हामो झील न केवल एक महत्वपूर्ण भू-रणनीतिक स्थल है, बल्कि एक बहुमूल्य प्राकृतिक विरासत भी है। यह मनुष्य और प्रकृति के बीच एक नाजुक सामंजस्य का प्रतीक है। इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन किसी भी विकास कार्य को, दुर्लभ वनस्पति और जीव-जंतुओं की सुरक्षा और पड़ोसी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों की भलाई को ध्यान में रखते हुए, सावधानी से किया जाना चाहिए।