Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

राजमाता अहिल्याबाई होलकर

"मध्य भारत में, इंदौर की अहिल्याबाई का शासन, तीस वर्षों तक चला। यह एक ऐसे काल के रूप में प्रसिद्ध है, जिसके दौरान [इंदौर में] एक उत्तम व्यवस्था और अच्छी सरकार बनी तथा लोगों को समृद्धि प्राप्त हुई। वे एक बहुत ही योग्य शासक और प्रबंधक थीं, जिन्हें अपने जीवनकाल में बहुत सम्मान प्राप्त हुआ। उनकी मृत्यु के बाद, कृतज्ञ लोगों द्वारा उन्हें एक संत के रूप में माना गया।" - जवाहरलाल नेहरू (भारत एक खोज/1946)

राजमाता अहिल्याबाई होलकर, मालवा साम्राज्य की होलकर रानी थीं। उन्हें भारत की सबसे दूरदर्शी महिला शासकों में से एक माना जाता है। 18वीं शताब्दी में, मालवा की महारानी के रूप में, धर्म का संदेश फैलाने में और औद्योगीकरण के प्रचार-प्रसार में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा था। आज वे व्यापक रूप से अपनी बुद्धिमत्ता, साहस और प्रशासनिक कौशल के लिए जानी जाती हैं। 31 मई 1725 को जामखेड, अहमदनगर (महाराष्ट्र) के चोंडी गाँव में जन्मी अहिल्या, एक साधारण परिवार से थीं। उनके पिता मनकोजी राव शिंदे, ग्राम प्रधान थे जिन्होंने उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया था। एक युवा लड़की के रूप में, उनकी सादगी और सुचरित्र के संयोजन ने, मालवा क्षेत्र के राजा मल्हार राव होलकर का ध्यान उनकी ओर आकर्षित किया। वे युवा अहिल्या से इतने प्रभावित थे कि 1733 में जब वे मुश्किल से आठ साल की भी नहीं हुई थीं, तब उन्होंन उनका विवाह अपने बेटे खंडेराव होलकर से करवा दिया। उनकी शादी के बारह साल बाद, कुम्हेर किले की घेराबंदी के दौरान, उनके पति खंडेराव की मृत्यु हो गई। अहिल्याबाई इतनी आहत हुईं कि उन्होंने सती होने का फ़ैसला कर लिया। लेकिन उनके ससुर मल्हार राव ने उन्हें इतना कठोर कदम उठाने से रोक लिया और अहिल्या को अपनी छत्र-छाया में लेकर, उन्हें सैन्य और प्रशासनिक मामलों में प्रशिक्षित किया।

ksarbai

अहिल्याबाई होलकर - स्मारक डाक टिकट

aa

अहिल्याबाई होलकर - एक चित्रकारी

1766 में अहिल्या के ससुर मल्हार राव का निधन हो गया। उसके अगले ही वर्ष, उन्होंने अपने बेटे माले राव को भी खो दिया। बेटे को खोने का दुःख उन्होंने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। राज्य और अपनी प्रजा के कल्याण को ध्यान में रखते हुए उन्होंने पेशवा से, मालवा के शासन को सँभालने की अनुमति माँगी। हालाँकि, कुछ अभिजातों ने इसका विरोध किया, लेकिन उन्हें सेना का समर्थन प्राप्त था। सेना को उन पर पूरी श्रृद्धा और विश्वास था, क्योंकि वह सैन्य और प्रशासनिक मामलों में अच्छी तरह से प्रशिक्षित थीं। उन्होंने कई मौकों पर सेना का नेतृत्व किया था और एक सच्चे योद्धा की तरह लड़ाई लड़ी थी। 1767 में, पेशवा ने अहिल्याबाई को मालवा पर अधिकार करने की अनुमति दे दी। 11 दिसंबर 1767 को वे गद्दी पर बैठीं और इंदौर की शासक बनीं। अगले 28 वर्षों तक महारानी अहिल्याबाई ने न्यायोचित, बुद्धिमत्तापूर्ण और ज्ञानपूर्वक तरीके से मालवा पर शासन किया। अहिल्याबाई के शासन के तहत, मालवा में शांति, समृद्धि और स्थिरता बनी रही। साथ ही साथ उनकी राजधानी, महेश्वर, साहित्यिक, संगीतात्मक, कलात्मक और औद्योगिक गतिविधियों के एक बेहतरीन स्थान में परिवर्तित हो गई। कवियों, कलाकारों, मूर्तिकारों और विद्वानों का उनके राज्य में स्वागत किया गया, क्योंकि वे उनके काम को बहुत सम्मान दिया करती थीं।

अहिल्याबाई ने महेश्वर में वस्त्र उद्योग भी स्थापित किया, जो वर्तमान में अपनी महेश्वरी साड़ियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। आम आदमी की समस्याओं के समाधान निकालने के लिए, अहिल्याबाई प्रतिदिन जन-सुनवाई किया करती थीं। उन्होंने अपना ध्यान विभिन्न परोपकारी गतिविधियों की ओर भी लगाया, जिनमें, उत्तर में मंदिरों, घाटों, कुओं, तालाबों और विश्राम गृहों के निर्माण से लेकर दक्षिण में तीर्थ स्थलों तक का निर्माण शामिल था। उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान था, 1780 में, प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर की मरम्मत और उसका नवीनीकरण कराना।‘दार्शनिक महारानी’ की उपाधि से सम्मानित, अहिल्याबाई का 13 अगस्त 1795 को सत्तर वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी विरासत आज भी जीवित है और उनके द्वारा बनवाए गए विभिन्न मंदिर, धर्मशालाएँ और किए गए सार्वजनिक कार्य, इस योद्धा रानी की महानता की गवाही देते हैं।

ksarbai

अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमा

1849 में, कवयित्री जोआना बैली ने बिल्कुल सही कहा था, जब उन्होंने लिखा-
बाद के दिनों में ब्रह्मा के यहाँ से, हमारी भूमि पर शासन करने आईं, एक श्रेष्ठ महिला, दयालु था जिनका हृदय और उज्ज्वल थी जिनकी कीर्ति, सम्मानित नाम था उनका अहिल्याबाई।