Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

रज़्मनामा

रज़्मनामा (जंग की किताब), 1580 के दशक में अकबर के तहत लिखे गए कई साहित्यिक रत्नों में से एक था। रज़्मनामा संस्कृत महाकाव्य महाभारत का फ़ारसी अनुवाद था। फ़ारसी शब्द ‘रज़्मनामा’ की व्युत्पत्ति, जंग की कथा या किताब से हुई है, जहाँ "रज़्म" का अर्थ है "जंग" और "नामा" का अर्थ है "किताब", "इतिहास" या "महाकाव्य"।

सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान, मुगल साम्राज्य ने विशाल क्षेत्रीय विस्तार किया था और इसलिए, साम्राज्य में विविध विश्वासों, धर्मों, संस्कृतियों और भाषाओं से संबंधित लोगों का एक बहुसंख्यक समूह शामिल हुआ। सम्राट अकबर ने इस विविधता को बनाए रखने के लिए और इसे समझने के लिए, अथक प्रयास किए तथा असंख्य तरीके अपनाए। समावेश और स्वीकृति की भावना पैदा करने के लिए, उनकी राजनीतिक प्रेरणा और उनकी जिज्ञासु प्रकृति ने, उन्हें कई प्रयोग और परियोजनाएँ शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इसी के चलते 1574 में, फतेहपुर सीकरी में मकतब खाना या अनुवाद गृह का आविर्भाव हुआ, जिसका शुभारंभ महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथों का फ़ारसी में अनुवाद करने से हुआ था।

ksarbai

रज़्मनामा का एक पृष्ठ

aa

भीष्म बाणों की शय्या पर लेटे हुए हैं। कृष्ण और पांडव भाई उन्हें देख रहे हैं।

रज़्मनामा मकतब खाना में ही पूर्ण हुआ था। इस सचित्र पांडुलिपि में महाकाव्य के सभी अठारह पुस्तकों और परिशिष्ट, हरिवंश, शामिल था। हालाँकि, यह उल्लेखनीय है कि विविध क्षेत्रीय भाषाओं में महाकाव्य के कई संस्करण मौजूद थे, लेकिन रज़्मनामा मुख्य रूप से संस्कृत महाभारत के देवनागरी संस्करण (उत्तरी पाठ) पर आधारित था। केवल अश्वमेध पर्व, जैमिनीयाश्वमेध (एक वैकल्पिक संस्कृत पुन:कथन) पर आधारित था।

महाकाव्य के अनुवाद और पांडुलिपि को संकलित करने की प्रक्रिया एक गहन परियोजना थी, जिसमें कई विद्वान और अनुवादकों के दो समूह सम्मिलित थे। वे हिंदी भाषा के अपने ज्ञान के माध्यम से, महाकाव्य को मौखिक रूप से कहते थे। 1599 की एक पुष्पिका में संस्कृत दुभाषियों (मुअब्बिरान) के नाम सूचीबद्ध हैं, जिनमें देव मिश्रा, सतावधान, मधुसुदन मिश्रा, चतुर्भुज और शाय्ह भवन शामिल हैं। इस परियोजना में शामिल फ़ारसी अनुवादकों (मुतरजिमान) में नकीब हान, मुल्ला शीरी, सुल्तान थानिसिरी और अब्दुल कादिर बदायूँनी शामिल थे। 1587 में, अबुल फ़ज़ल को सम्राट द्वारा एक प्रस्तावना (मुकद्दमा) लिखने के लिए नियुक्त किया गया था, ताकि उन कारणों को लिखा जा सके जिन्होंने बादशाह अकबर को अनुवाद को शुरू करने के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने लिखा कि अनुवाद करने का कारण महाभारत की कहानियों और दर्शन को अधिक सुलभ बनाना था, एवं हिंदू और मुस्लिम धर्मों के लोगों को अपनी पारंपरिक मान्यताओं पर आत्मनिरीक्षण करने के लिए आमंत्रित करना था।

रज़्मनामा की केवल एक ही प्रति नहीं थी; अकबर के बाद के समय में इस पांडुलिपि के कई संस्करण बनाए गए थे, जिनमें से प्रत्येक संस्करण दुनिया भर के कई स्थानों में संरक्षित है। रज़्मनामा की पहली प्रति 1580 के दशक में बनकर तैयार हुई थी और वर्तमान में इसे जयपुर के सवाई मान सिंह द्वितीय संग्रहालय में रखा गया है। इसके बाद, 1598-1599 में रज़्मनामा की दूसरी प्रति बनाई गई। 161 चित्रों से युक्त इस संस्करण को, पिछली प्रति की तुलना में अधिक विस्तारपूर्वक रूप से चित्रित किया गया था। मुंतखाब अल-तवारीख में अब्दुल कादिर बदायूँनी ने सचित्र पांडुलिपि की प्रतियाँ प्राप्त करने वाले अभिजातों के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था। इस पांडुलिपि के अंतिम पाँच पर्व ब्रिटिश पुस्तकालय में संरक्षित हैं। तीसरी प्रति, जो कि 1605 में बनी थी, अब कोलकाता में बिरला अकादमी ऑफ़ आर्ट एंड कल्चर में रखी गई है। चौथी प्रति एक बिखरी हुई पांडुलिपि है, जिसमें वर्तमान में केवल दो ज्ञात दिनांकित पृष्ठ हैं।
रज़्मनामा, अकबर के शासनकाल के दौरान प्रचलित अंतर-धार्मिक सद्भाव और प्रबुद्ध वातावरण का एक अमूल्य प्रमाण है।

ksarbai

अर्जुन निशाना लगाते हुए