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रंगोली

'रंगोली' शब्द संस्कृत शब्द 'रंगावल्ली' से बना है, जिसका अर्थ है रंगों की पंक्तियाँ। इस कला का उल्लेख भारत की कई महत्वपूर्ण प्राचीन लिपियों में मिलता है। हिंदू महाकाव्यों, रामायण और महाभारत ने विभिन्न दृष्टांतों में इस कला को बहुत महत्ता दी है। इस कलाकृति के पीछे की पवित्रता और महत्व इतना गहरा है कि इसे भूतल पर बनाने के बावजूद भी, इस पर जानबूझकर पैर नहीं रखा जाता है। रंगोलियाँ अच्छे समय का प्रतीक होती हैं और शोक के वक्त घर में रंगोली नहीं बनाई जाती।

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कोलम

रंगोलियाँ आमतौर पर रंगों और अन्य सामान्य सामग्रियों जैसे आटा, पिसे हुए चावल, फूल आदि के साथ घर के प्रवेश द्वार या दहलीज पर बनाई जाती है। रंगोली का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू होता है। जो कभी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा हुआ करता था, वह आज भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक मूलभूत हिस्सा बन गया है। इस कला की खूबी यह है कि इसे मापक, धागे या कूँची जैसे किसी भी उपकरण के उपयोग के बिना, खुले हाथ से बनाया जाता है। वास्तव में यह कलाकृति निपुण उंगलियों पर निर्भर करती है, जो कलात्मक तरीके से स्वतंत्र रूप से चलती हैं। इस प्रकार,रंगोली किसी कुशल कारीगर के द्वारा बनाई हुई प्रतीत होती है।

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अल्पना

यद्यपि सभी रंगोलियाँ देखने में बहुत सुंदर होती हैं, विभिन्न रूपों में दिखती हैं, विभिन्न माध्यमों का उपयोग करके बनाई जाती हैं, फिर भी कमोबेश वे एक ही महत्व रखती हैं। एक ओर जहाँ, प्रवेश द्वार पर रंगोली रेखांकित करने, बनाने या रखने के प्राथमिक कारणों में से एक यह है कि यह किसी के घर में नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश को रोकती है, वहीं दूसरी ओर, रंगोली को परिवार में सौभाग्य लाने के लिए अच्छी आत्माओं और देवताओं का आह्वान करने वाली, एक औपचारिक सजावट के रूप में माना जाता है।

रंगोलियों को अन्य नामों से भी जाना जाता है- महाराष्ट्र में इसे रंगोली ही कहा जाता है, तमिलनाडु में कोलम, आंध्र प्रदेश में मुग्गू, बंगाल में अल्पना, बिहार और मध्य प्रदेश में चौक पूजन, ओड़िशा में ओसा, गुजरात में साथिया, राजस्थान में मांडना, आदि। रंगोली बनाने से पहले, महिलाएँ निर्दिष्ट भूतल को पानी से साफ करती हैं और इसके सूखने के बाद ही रंगोली बनाती हैं। इस प्रकार, रंगोली के भिन्न-भिन्न रूप देखने को मिलते हैं।

चौक पूजन भारत में, रंगोली के सबसे पुराने रूपों में से एक है। इसे गेहूँ के आटे, सिंदूर और हल्दी के मिश्रण से बनाया जाता है।

अल्पना एक पारंपरिक बंगाली रंगोली है। यह रंगोली आमतौर पर सफ़ेद होती है, क्योंकि अल्पना के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला गीला लेप, पिसे हुए चावलों को पानी में मिला कर बनाया जाता है।
कोलम (तमिलनाडु), अपने पारंपरिक संदर्भ में, एक दैनिक अनुष्ठान है। इसे बनाने का अर्थ होता है कि घर में सब कुशल मंगल है और यदि यह रंगोली नहीं बनी है, तो इसका अर्थ होता है कि घरबार में सब कुछ ठीक नहीं है।

पूकलम, फूलों (पूकल) से बनी रंगोली होती है। यह मुख्य रूप से केरल में ओणम के फ़सल उत्सव के दौरान बनाई जाती है। इसे शुभ माना जाता है और त्योहार के सभी दस दिन, अलग-अलग पूकलम बनाई जाती है।

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पूकलम

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पारंपरिक रंगोली

रंगोली का एक अन्य रूप बिंदुयुक्त रंगोली है, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत में पाई जाती है। विभिन्न आकृतियों जैसे वर्ग, वृत्त, तारे आदि में समान रेखाओं और समान संख्याओं में बिंदु बनाकर, इसकी रचना की जाती है और फिर इसे सुंदर रंगों से भर दिया जाता है।
रंगोली बनाने की प्रतियोगिताएँ अब शैक्षणिक संस्थानों और अन्य कार्यालयों में भी बहुत लोकप्रिय हैं। इसका महत्व इतना है कि इस प्राचीन सांस्कृतिक प्रथा को संरक्षित किया जा रहा है और आने वाली पीढ़ियों को बड़ी श्रद्धा और गर्व के साथ प्रदान किया जा रहा है।