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शेखावाटी की शानदार हवेलियाँ

मंडावा की एक हवेली के प्रांगण की शानदार रूप से रंगी दीवारें

राजस्थान भारत के सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है। मनोहर किलों और महलों के लिए प्रसिद्ध राजस्थान, मंदिरों, बावड़ियों, जल-निकायों और हवेलियों से भरा हुआ है। दिल्ली-जयपुर-बीकानेर के रास्ते पर स्थित उत्तर-पूर्वी राजस्थान का शेखावाटी क्षेत्र, आगंतुकों को, यहाँ सदियों पहले बसे अमीर व्यापारियों की शानदार रूप से अलंकृत हवेलियों की ओर आकर्षित करता है। यहाँ की दीवारों पर बने सुंदर भित्ति-चित्र बेहद आकर्षक हैं, जिसके कारण इसे भारत की सबसे बड़ी खुली कला दीर्घा होने का गौरव प्राप्त है!

शेखावाटी की हवेलियाँ, जो एक समय पर मारवाड़ियों का निवास-स्थान हुआ करती थीं, इस समुदाय की भव्य जीवनशैली को दर्शाती हैं। जबकि राजस्थान के शहरों में बड़े महलों और किलों का वर्चस्व था, इस क्षेत्र में मारवाड़ी समुदाय समृद्ध हुआ। मारवाड़ियों ने अपनी हवेलियों में लकड़ी के विशाल द्वार, प्रक्षेपित छज्जे और अंदरूनी आँगन बनवाए। यहाँ सफ़र कर रहे अमीर व्यापारियों ने बाहरी दीवारों को अलंकृत करने पर खास ज़ोर देते हुए, इन हवेलियों की वास्तुकला पर भी बहुत ध्यान दिया। इन हवेलियों में से अधिकांश हवेलियाँ उन्नीसवीं सदी के दुसरे भाग में निर्मित की गई हैं। इन हवेलियों की वास्तुशिल्पीय शैली और चित्रकारी की विशेषताएँ मुगल वास्तुकला के अलंकृत तत्वों और राजपुताना दरबारों से बहुत प्रभावित हुईं। ये चित्रकारियाँ दर्शकों को कई रोचक कहानियाँ सुनाती हैं। अगर कुछ लोगों के लिए, ये राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम को उजागर करती हैं, तो वहीं कुछ लोगों को ये प्रभावशाली अंग्रेज़ी बाबुओं और मेमों के बारे में बताती हैं। दिलचस्प तो यह है, कि इनमें वैज्ञानिक खोजों और तकनीकी प्रगतियों तक को भी चित्रित किया गया है। उदाहरण के लिए, चूरू की एक हवेली में एक तरफ़ बीकानेर रेल अड्डा, तो दूसरी तरफ़ जोधपुर चित्रित है। दूसरी हवेली में, एक उड़ने वाले वाहन में सांसारिक जीवन से दूर भागते हुए राधा-कृष्ण के सुस्पष्ट वर्णन मिलते हैं। कई स्थानों में, यीशु के भी इसी प्रकार के चित्रण देखे जा सकते हैं।

हवेली की बाहरी दीवारों पर राधा-कृष्ण

हवेली की बाहरी दीवारों पर राधा-कृष्ण

शेखावाटी क्षेत्र में मंडावा, नवलगढ़, झुंझुनू और फतेहगढ़ की गलियों से गुज़रते हुए आप कई खुली दीर्घाएँ देख सकते हैं। प्रत्येक कस्बे में हवेलियों के आकर्षक समूह मौजूद हैं, जो अपने आप में उत्कृष्ट हैं। उदाहरण के लिए, झुनझुनवाला हवेली (मंडावा) आपको राजा मिडास की कहानी की याद दिलाती है, जिनके स्पर्श से सब सोने में बदल जाता था। इस हवेली में एक कमरा है जिसका आभ्यान्तर हिस्सा सोने के रंग से रंगा हुआ है और विस्तृत सजावटी चित्रों से परिपूर्ण है। इसी प्रकार, मोहनलाल सराफ़ हवेली (नवलगढ़) के पुरोभाग पर चित्रित भित्ति-चित्र, अंग्रेज़ी बाबुओं के चालकों द्वारा संचालित पुरानी गाड़ियों और वाहनों को चित्रित करते हैं। मोहनलाल सराफ़ हवेली (मंडावा) आप को राजपूत किलों और महलों के पच्चीकारी टाइलों और विस्तृत रंगीन काँच के काम वाले भव्य कमरों की याद भी दिलाती है। कुछ हवेलियाँ, जैसे कि गुलाब राय लाड़िया की हवेली, आकर्षक कामुक चित्रों को प्रदर्शित करती हैं । परंतु इन चित्रों को बहुत ही सावधानी से स्थित किया गया है ताकि वे एक आम आगंतुक की नज़रों से छिपी रहें ।

इन चित्रित हवेलियों में चुने गए विषय और स्थानीय कलाकारों द्वारा उपयोग किए गए रंग, इनकी सबसे असामान्य और आकर्षक विशेषताएँ हैं। इनके विषय राजस्थान की संस्कृति की ही भाँति, विभिन्न हैं। इनमें कई धार्मिक विषयों का एकीकरण देखा जा सकता है, जिनमें विष्णु के अवतार, बुद्ध और उनकी मुद्राएँ, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों के चित्रण, और मुगल वास्तुकला में उपयोग किए जाने वाले सजावटी ज्यामितीय डिज़ाइन शामिल हैं। रोज़मर्रा की जिंदगी और उबाऊ कार्यों के दृश्य भी सौन्दर्यपरकता से मानों जादुई दृश्यों में तब्दील हो गए हों। साथ ही, इनमें भारतीय पौराणिक मिथक-शास्त्र और अंग्रेज़ी शासन की बारीकियों की कथाओं का भी चित्रण शामिल है।

अंग्रेज़ आदमियों का चित्रण

रामायण से राम और लक्ष्मण का चित्रण

दुर्भाग्य से, इनमें से अधिकांश हवेलियों के मालिकों ने अपने कारोबार के लिए शहरों का रुख कर लिया है, जिसके कारण शेखावाटी की गलियों में आज ये हवेलियाँ अकेली खड़ी हैं। परंतु अब इनके पुनर्जीवन की संभावना दिख रही है। 'शेखावाटी प्रोजेक्ट' के प्रस्ताव के अंतर्गत, इनकी संरचनाओं और भित्ति-चित्रों का संरक्षण और पुन:स्थापन किया जा रहा है, जिससे भारत की सबसे बड़ी खुली कला दीर्घा, आनेवाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे।