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सईदा बानो
भारत की पहली पेशेवर महिला प्रसारक

"एक बेहद पारंपरिक और सुरक्षित जीवन की ज़ंजीरों से आज़ाद, मैंने जीने के लिए एक अकेली महिला के सुभेद्य अस्तित्व को चुना था। उम्र मेरे पक्ष में थी; मैं युवा और सशक्त थी"।
- - सईदा बानो (डगर से हट कर)

1913 में, भोपाल में जन्मीं सईदा बानो भारत की पहली महिला थीं, जिन्होंने रेडियो पर समाचार-वाचिका के रूप में कार्य किया था। उन्हें आज भी उर्दू-प्रसारण जगत में, एक उच्च सदस्या का दर्जा प्राप्त है। उन्होंने टेनिस और बैडमिंटन, दोनों में ही विभिन्न अंतर-विद्यालयी और अंतर-राज्यीय प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार प्राप्त किए, जिनके कारण, उन्हें बचपन से ही असाधारण माना जाता था। उन्होंने खुद ही कहा है कि बचपन में वे बहुत शरारती थीं और उनके दिमाग में हर समय कोई न कोई खुराफ़ात घूमती रहती थी। दिलचस्प यह है कि उनकी तुलना प्रायः उनकी बड़ी बहन से की जाती थी, जो उनके विद्यालय की एक होनहार छात्रा थीं। यद्यपि, उन्होंने खेल के मैदान में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था, तथापि, वे शैक्षणिक रूप से औसत ही थीं। उन्होंने अपने जीवन का असली उद्देश्य, अपनी सहज ज्ञान सम्पन्न शिक्षिका, सुश्री रोलो की मदद से पहचाना, जो एक बागी बच्चे की मानसिक रूपरेखा को समझती थीं। तत्पश्चात, उन्होंने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई के बाद इसाबेला थोबर्न कॉलेज में दाखिला लिया, जो अपनी पूर्व प्रसिद्ध छात्राओं जैसे तारा कुरुविला, सेसिलिया फ़िलिप इत्यादि के लिए प्रसिद्ध था।

Saeeda Bano | Courtesy Zubaan Books/Penguin Books

India’s first female radio newsreader

14 नवंबर 1932 को सईदा बानो का निकाह अब्बास रज़ा से हुआ, जो एक न्यायाधीश थे और न्यायिक सेवा से जुड़े हुए थे। हालाँकि उन्हें शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और वे आगे और पढ़ना चाहती थीं, जिसके लिए उन्होंने अपने पिता को एक चार पन्नों का लंबा पत्र भी लिखा था, परंतु अंततः वे अब्बास रज़ा के साथ शादी के बंधन में बंध गईं। अपनी आत्मकथा (डगर से हट कर) में, वे बताती हैं कि अब्बास रज़ा के प्रेम-पत्रों के जवाब में, वे उन्हें उन उपन्यासों के नाम भेजती थीं, जो वे पढ़ रही होती थीं। सईदा बानो ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि वे विशेष-रूप से अपने ससुर, न्यायाधीश मुहम्मद रज़ा के करीब थीं, जो प्रायः उनके साथ चर्चाएँ किया करते थे और इतिहास एवं भूगोल जैसे विषयों पर, उनके साथ अपनी राय भी रखते थे। मशहूर गायिका, बेगम अख्तर से भी उनकी अच्छी दोस्ती थी। उन दोनों के संबंधों की गहराई का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लखनऊ के एक कुलीन परिवार से आनेवाले बैरिस्टर, इश्तियाक अब्बासी के साथ, बेगम अख्तर की शादी करवाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। हालाँकि, दुर्भाग्य से, उनकी अपनी शादी टूट गई और उन्हें दिल्ली जाना पड़ा, ताकि वे अपना जीवन यापन कर सकें और अपने बेटों की अच्छी परवरिश कर सकें।

वे 10 अगस्त 1947 को, अपने छोटे बेटे सईद के साथ दिल्ली पहुँचीं। वे अपनी आत्मकथा में, पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन, विजयलक्ष्मी पंडित के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के बारे में भी बात करती हैं, जो एक प्रमुख राजनेत्री, राजनयिका और महिलाओं के अधिकारों की सच्ची समर्थक थीं। वास्तव में, विजयलक्ष्मी पंडित के कहने पर ही सईदा बानो, आकाशवाणी के दिल्ली कार्यालय में नौकरी पाने में सफल रहीं और इसी के साथ उन्होंने भारत की पहली महिला समाचार-वाचिका के रूप में अपनी यात्रा शुरू की।

उनकी आवाज़ की कई लोगों ने प्रशंसा की, यहाँ तक ​​कि 'द स्टेट्समैन' ने भी उनकी प्रशंसा में चंद शब्द छापे। हालाँकि, दिल्ली में उनके लिए  जीवन आसान नहीं था और एक महानगर में अपना पैर जमाने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया। एक अकेली महिला और दो बच्चों की माँ होने के कारण, उनका जीवन पथ बहुत चुनौतीपूर्ण रहा। हालाँकि, समय के उतार-चढ़ाव के बावजूद, वे अडिग रहीं और इसी कारण, सईदा बानो की कहानी, आज हमारे लिए प्रेरणा का एक स्त्रोत बन गई है। आखिरकार, यह दृढ़ संकल्प और धैर्य की एक कहानी है, क्योंकि उन्होंने अपना जीवन अपनी शर्तों पर और निडर होकर जिया। बानो की यात्रा, समकालीन भारत की सभी महत्वाकांक्षी महिलाओं के लिए एक संदेश है, क्योंकि उन्होंने उनसे आगे बढ़कर नेतृत्व करने और अपनी खुद की कहानी लिखने का आग्रह किया।

Saeeda Bano’s Autobiography