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सिक्किम की कालीन बुनने की कला

हस्तशिल्प भारतीय परंपरा और संस्कृति का एक अपरिहार्य प्रतीक है। सुरम्य राज्य सिक्किम न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए बल्कि अपनी आकर्षक हस्तशिल्प और हथकरघा कारीगरी के लिए भी जाना जाता है। विशेष रूप से सिक्किम के कालीन, इस राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि और चकित कर देने वाली सुंदरता का प्रतीक हैं। यहाँ कालीन बुनाई की कला को पारिवारिक विरासत का एक अभिन्न अंग माना जाता है और इसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया गया है। दिलचस्प बात यह है कि यहाँ घर को भी उत्पादन-स्थल के रूप में काम में ले लिया जाता है।

सिक्किम की कालीन बुनाई, दुनिया के बुनाई के प्राचीनतम प्रकारों में से एक मानी जाती है। हाथ से बुने गए ऊनी कालीन, जिन्हें स्थानीय तौर पर ‘डेन’,के नाम से जाना जाता है, इस राज्य की विशेषता हैं। सिक्किम के भूटिया समुदाय की महिलाएँ गर्व से इन कलाकृतियों की प्रतिनिधि होने का दावा करती हैं और उन्हें 'विशेषज्ञ कालीन बुनकर' के रूप में जाना जाता है। वे बुनाई के लिए एक विशिष्ट तरीके का उपयोग करती हैं जिसे 'फ़्रेम-लूम बुनाई' कहा जाता है। हालाँकि इनके बुनियादी रूपरंग में बौद्धधर्मी छवि-चित्रण और तिब्बती डिज़ाइनों से प्रेरित रंग योजनाएँ और सजावटी रूपांकन शामिल होते हैं, लेकिन सिक्किम के अलग-अलग क्षेत्रों में, रंगाई और बुनाई की अलग-अलग शैलियों का इस्तेमाल किया जाता है।

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कालीनों पर तिब्बती डिज़ाइन

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ड्रैगन रूपांकनों वाली कालीन बुनाई

ऐसा माना जाता है कि सिक्किम में कालीन बुनने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। 1920 के दशक में, सिक्किम के तत्कालीन शासक ‘चोग्याल ताशी नामग्याल’, ने इस कला को संरक्षण प्रदान किया और महल में कालीनों की बुनाई के लिए ‘नामखांग’ नाम का एक कारखाना खोला गया। कालीन बुनाई एक थका देने वाली कला है, क्योंकि यह कई कठिन चरणों में पूरी होती है और इसके लिए पूर्ण समर्पण और एकाग्रता की आवश्यकता होती है। कालीन के डिज़ाइन को सबसे पहले एक ग्राफ़ पेपर पर तैयार किया जाता है और फिर बुनकर की सुविधा के लिए करघे के ऊपर लटका दिया जाता है। प्रत्येक डिज़ाइन का एक नाम और अपना एक अलग महत्व होता है। कालीनों पर बुने गए सबसे आम डिज़ाइनों में, अपने मुँह में गेंद दबाए एक ड्रैगन की छवि, दो पौराणिक तिब्बती पक्षी जिन्हें‘डाक’ और ‘जीरा’,के नाम से जाना जाता है, मंगलसूचक बौद्ध प्रतीक, और कई ऐसे डिज़ाइन शामिल होते हैं जो सिक्किम की अविश्वसनीय सुंदरता को दर्शाते हैं। इनके अलावा, ‘तांगा’ को बुनकरों द्वारा उपयोग किए जाने वाले सबसे प्रसिद्ध लेकिन पारंपरिक डिज़ाइनों में से एक माना जाता है। यह बुनियादी तौर पर एक पदक या एक सिक्का होता है जिसका उपयोग कालीन पर एक डिज़ाइन के रूप में किया जाता है। विभिन्न रंगीन गाँठों का उपयोग करके ज्यामितीय आकृतियाँ भी बनाई जाती हैं। इन रंगों को सब्ज़ियों, फलों और फूलों जैसे प्राकृतिक उत्पादों से प्राप्त किया जाता है।

आमतौर पर यह प्रक्रिया ऊन को तैयार करने से शुरू होती है जिसमें धुनाई, रंगाई और ऊन के गोले बनाने जैसी क्रियाएँ शामिल है। करघे (डेन थक-थी),में ऊन या कपास का उपयोग करके ताना बनाया जाता है। करघे का निर्माण कालीन के प्रस्तावित आकार के आधार पर किया जाता है। लकड़ी के हथौड़ों (फोंग या थोवा) का उपयोग करके बड़ी निपुणता के साथ गाँठें लगाई जाती हैं। बुनाई के बाद, कालीन की छँटाई की जाती है, और कालीन को वांछित आकृति और आकार देने के लिए अतिरिक्त रेशों को काट दिया जाता है। सामान्य परिस्थितियों में एक कालीन तैयार करने में लगभग आठ से दस दिन लगते हैं। पारंपरिक कालीनों के अलावा, भूटिया महिलाएँ पलंग के पास रखे जाने वाले छोटे कालीन भी बुनती हैं, जिन्हें ‘आसन’ कहा जाता है।

सिक्किम में कालीन बुनने का कौशल और तकनीक, लोगों की परंपराओं, रीति-रिवाजों और भावनाओं को प्रतिबिंबित करते हैं। आज, सिक्किम का कालीन उद्योग, देश के आर्थिक विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाता है और विदेशों में इसकी भारी माँग है। इस उद्योग को स्थायित्व प्रदान करने और इस प्राचीन परंपरा को जीवित रखने के लिए, इस श्रेष्ठ कला में और अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इसीलिए, सरकार और स्थानीय लोगों की मदद से राज्य के विभिन्न हिस्सों में कई प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किए गए हैं।

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रवंगला, सिक्किम में तिब्बती कालीन कारखाना