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श्री सूर्य पहाड़ (असम)

विशाल ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर स्थित, श्री सूर्य पहाड़, असम के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विरासत स्थलों में से एक है। असम के गोलपाड़ा शहर से लगभग 12 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित, यह स्थल एक पहाड़ी इलाके में स्थित है, जिसमें कई शैलकर्तित शिवलिंग, मन्नत स्तूप और हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों के देवी-देवताओं की नक्काशीदार आकृतियाँ हैं। 'सूर्य की पवित्र पहाड़ी' के रूप में भी प्रसिद्ध, श्री सूर्य पहाड़, यद्यपि अब खंडहर में तब्दील हो चुका है, फिर भी यह प्राचीन असम के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

Gateway to Sri Surya Pahari

श्री सूर्य पहाड़ का प्रवेश द्वार

A young Maharaja Duleep Singh

श्री सूर्य पहाड़ में जैन परिसर का दृश्य

सूर्य पहाड़ नाम इस बात का संकेतक है कि शायद यह स्थल सूर्य देव की पूजा करने की प्रथा से जुड़ा था। सूर्य देव की उपासना असमिया लोगों के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में एक प्रमुख स्थान रखती है। सूर्य पहाड़ प्राचीन असम में मौजूद दो सूर्य मंदिरों में से एक है और इसका उल्लेख ‘कालिका पुराण’ में मिलता है। इस स्थल पर की गई पुरातात्विक खुदाई में विभिन्न युगों की कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, जो ईसा की 5वीं से 12वीं शताब्दी तक की हैं। यहाँ मिली पकी मिट्टी (टेराकोटा) और पत्थर की मूर्तियाँ हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मों के संगम को दर्शाती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर इसकी सामरिक स्थिति के कारण, यह माना जाता है कि यह स्थल अहोम युग से पहले एक समृद्ध व्यापारिक और प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करता था। विभिन्न क्षेत्रों के यात्री और व्यापारी यहाँ एकत्रित हुआ करते थे, जिससे यह विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के मिलन का केंद्र बन गया। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के वृत्तांत बताते हैं कि प्रागज्योतिषपुर (महाभारत में वर्णित) की प्राचीन भूमि श्री सूर्य पहाड़ के वर्तमान क्षेत्र से संबंधित है।

पुरातत्वविदों ने पहाड़ियों के चारों ओर बिखरे हुए विभिन्न आकृतियों और आकारों के कई लिंगों की खोज की है। एक किंवदंती के अनुसार, ऋषि वेद व्यास ने दूसरी काशी बनाने के लिए इस स्थल पर 99,999 शिवलिंग स्थापित किए थे। वर्तमान काशी (वाराणसी) में 100,000 लिंग स्थापित हैं। आगे की खुदाई में पहाड़ियों के आसपास घरों के निशान मिले हैं। क्षेत्र के भौगोलिक और मौसम संबंधी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, इन घरों का ईंटों से सावधानीपूर्वक निर्माण और कलात्मक ढंग से अलंकरण किया गया था। इन खोजों द्वारा, प्राचीन असम में सूर्य पहाड़ के आसपास एक संपन्न एवं उन्नतिशील सभ्यता के अस्तित्व के बारे में प्रचलित विश्वास और सुदृढ़ हो जाता है।

View of the Jain complex at Sri Surya Pahariश्री सूर्य पहाड़ में तीन स्तूप परिसर का दृश्य
View of the Three Stupa Complex in Sri Surya Pahari

ईंट मंदिर परिसर के अवशेष

श्री सूर्य पहाड़ की तलहटी में, हिंदू देवी-देवताओं की शैल नक्काशी देखी जा सकती है। इनमें भगवान शिव और भगवान विष्णु जैसे हिंदू देवताओं की मूर्तियों वाली पट्टियाँ (पैनल) हैं। बारह भुजाओं वाले भगवान विष्णु, जिनके सिर पर सात फनों वाला छत्र है, बहुत प्रमुख हैं। वर्तमान में दसभुज दुर्गा के रूप में पूजे जाने वाले ये ईश्वर, कमल के पुष्प पर खड़े हैं। यद्यपि, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इन्हें एक पुरुष देवता के रूप में चिन्हित किया है, लेकिन अन्य विद्वान इन्हें माँ मन्शा का रूप मानते हैं। आगे दक्षिण में, ग्रेनाइट पत्थरों को काटकर बनाए गए विभिन्न आकारों के 25 मन्नत स्तूप हैं। यहाँ बौद्ध धर्म का प्रभाव सुस्पष्ट है, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अनुसार, नक्काशी का आकार इंगित करता है कि वे बौद्ध धर्म के हीनयान चरण के दौरान बनाए गए थे। स्थल पर प्रसिद्ध जैन धर्म से संबंधित विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ और शिलालेख भी पाए गए हैं, जिनमें 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व के प्रथम जैन तीर्थंकर- आदिनाथ की मूर्ती भी शामिल है। ये जैन अवशेष उत्तर-पूर्व भारत में जैन धर्म के अस्तित्व का प्रमाण देते हैं।

वर्तमान में श्री सूर्य मंदिर में रखी, सूर्य चक्र नामक एक नक्काशीदार पत्थर की पटिया, पुराने सूर्य मंदिर की छत का टूटा हुआ हिस्सा मानी जाती है। पटिया के आंतरिक घेरे के अंदर बनी केंद्रीय आकृति को प्रजापति (प्राचीन भारत के वैदिक काल के निर्माण देवता) के रूप में पहचाना जाता है। पटिया का बाहरी घेरा बारह कमल की पंखुड़ियों के रूप में है। प्रत्येक कमल की पंखुड़ी में विभिन्न सौर देवताओं की एक बैठी हुई आकृति है, जिन्हें आदित्य के नाम से जाना जाता है। सूर्य चक्र के समान ही चंद्र चक्र है, जो अब खंडहर हो चुका है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और असम पुरातत्व विभाग द्वारा श्री सूर्य पहाड़ में की गई खुदाई में ईसा की 5वीं से 12वीं शताब्दी तक कई कलाकृतियों पाई गईं हैं। स्थल पर एक संग्रहालय है, जिसमें खुदाई में प्राप्त अधिकांश पुरावशेषों को प्रदर्शित किया गया है, जैसे पत्थर की गजसिम्हा और महिषासुरमर्दिनी की मूर्तियाँ, एक शेर का सुसज्जित सिर, एक साँचें में ढली हुई मछली, मानव आकृतियों से युक्त फ़लक, और पौराणिक जानवर, कीर्तिमुख, फूलदार और ज्यामितीय डिज़ाइनों से सजी टाइलें, इत्यादि। श्री सूर्य पहाड़ असम के समृद्ध और विभिन्न परतों वाले सांस्कृतिक इतिहास का साक्षी है, और यह उम्मीद की जाती है कि आगे की खुदाई में कई और कलाकृतियाँ प्राप्त की जाएँगी।