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टैटू परंपराएँ
मध्य प्रदेश के डिंडौरी ज़िले की बैगा जनजाति

स्थायित्व की अवधारणा, याद रखने की आवश्यकता से उत्पन्न होती है। इसका उद्देश्य है, एक ऐसी विरासत को पीछे छोड़कर जाना, जिसकी स्मृति न केवल अचल है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी सौंपी भी जा सकती है। यह आवश्यकता विशेष रूप से स्वदेशी समुदायों के बीच विभिन्न स्वरूपों में उजागर होती है। शरीर पर स्याही से गोदने की परंपरा, भारत के कुछ हिस्सों में इसी धारणा की अभिव्यक्ति है। इस अनूठी परंपरा की व्यापकता भारत के प्रजातीय समूहों के बीच काफ़ी प्रमुख है और हमारी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के उद्विकासी स्वभाव की साक्षी है।

एक बैगा महिला के शरीर पर गोदना रूपांकन के टैटू

टैटू की कला को मध्य भारत में गोदना के रूप में जाना जाता है और गोंड, बैगा और कोरकू जैसे प्रजातीय समुदायों द्वारा इसका अभ्यास भी किया जाता है। बैगा एक जातीय समूह है, जो अर्ध-बंजारे हैं, और मध्य भारत के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के जंगलों में रहते हैं। बैगा समुदाय मध्य प्रदेश के डिंडौरी ज़िले के बैगाचक क्षेत्र में रहते हैं। बैगा अपने जटिल और प्रतीकात्मक टैटूओं के लिए प्रसिद्ध हैं, जो उनकी पहचान हैं।

दिलचस्प बात यह है, कि इस समुदाय में, शरीरों पर विशिष्ट रूपांकनों को गोदना न केवल शरीर की सजावट का हिस्सा है, बल्कि इसके साथ कई अन्य अर्थ भी जुड़े हुए हैं। किसी बैगा के लिए, ये न केवल टैटू हैं, बल्कि ऐसे प्रतीक और निशानियाँ भी हैं, जिनका संबंध बैगा महिलाओं की पहचान, धन और गर्व से है। बैगा टैटू-कलाकारों और उनमें विशेष-रूप से महिलाओं को, गोधरिन या बदनीं कहा जाता है। बैगा माहिलाएँ भारी मात्रा में टैटूओं से गुदे होने के लिए प्रसिद्ध हैं, जिन्हें वे गर्व से अपने शरीर पर धारण करती हैं। उनका पहला टैटू 7-8 साल की उम्र में ही गोद दिया जाता है। हर बैगा महिला के जीवन में गोदने का समय उसकी विशिष्ट उम्र को दर्शाता है। प्रत्येक टैटू एक लड़की के विवाह और गर्भ धारण के योग्य होने का प्रतीक माना जाता है।

एक बैगा महिला के शरीर पर गोदना रूपांकन के टैटू

टैटू धन का भी प्रतीक होते हैं। बैगा लोग आभूषणों की भौतिकवादी अवधारणा को नहीं स्वीकारते। बल्कि ये टैटू ही इनके लिए अनंत धन के कारक बनते हैं और उनके समक्ष योग्यता का संकेत भी माने जाते हैं। टैटू होने वाला पहला रूपांकन एक वी-आकार के चूल्हे जैसा होता है, जिसे सीता रसोई के रूप में जाना जाता है। इसे आठ साल की उम्र में गुदवाया जाता है, जिसके बाद सोलह साल की उम्र में पीठ पर पुखदा गुदाई की जाती है। इसके बाद जाँघों पर टैटू बनाए जाते हैं, (झांग गोदाई), जो शादी से पहले अनिवार्य होते हैं। जाँघों पर टैटू के सूखने के बाद अन्य टैटू बनाए जाते हैं। इस टैटू के बाद, जाँघों के पिछले हिस्से की गुदाई (जिसे पछाड़ी गोदाई कहते हैं), छाती की गुदाई और अंत में अग्र बाहु (जिसे पोरी गोदाई कहते हैं) पर गुदाई के साथ यह प्रक्रिया समाप्त होती है। बैगा महिलाएँ  25 साल की उम्र तक टैटू गुदवाती हैं। रूपांकनों का डिज़ाइन और महत्व, बैगा निवासस्थानों की प्रकृति और परिवेश के अनुरूप होता है।

एक पूजनीय परंपरा होने के बावजूद, बैगा समुदायों में गोदने की प्रथा में धीरे-धीरे गिरावट देखी जा रही है। शहरों की ओर आकर्षण और शहरीकरण के कारण, बैगा समुदाय की व्यवस्था में तीव्र परिवर्तन देखे जा सकते हैं। इनका  विशेष असर उन बैगा महिलाओं पर हुआ है, जो अपने आपको इस परिवर्तन के दोराहे पर खड़ा पाती हैं। इन गोधरिनों  या महिला टैटू-कलाकारों ने टैटूओं को अपनी त्वचा की जगह कपड़ों, दीवारों और यहाँ  तक कि कैन्वस तक पर बनाना शुरू कर दिया है, जिससे वे बदलते समय के अनुकूल आगे बढ़ पाएँ।

लोक परंपराएँ बहुमूल्य हैं और इनके विलुप्त होने से पहले, इन्हें पर्याप्त रूप से संरक्षित करने की आवश्यकता है। गोदना, बैगा लोगों के लिए सुंदरता की एक व्याख्या के समान है। इसलिए इस परंपरा को अच्छी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए, जिससे इस समुदाय के वंशजों को इस सांस्कृतिक प्रथा का स्थायी अभिगम मिल सके।