Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

तेमसुला आओ

Gingee hill

तेमसुला आओ, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के 40वें स्थापना दिवस पर

कहानियाँ हर ह्रदय में रहती हैं; कुछ कह दी जाती हैं, बहुत सी अनसुनी रह जाती हैं-
व्यक्तिगत अनुभव पर बनी कहानियाँ कल्पना शक्ति से सार्वभौमिक रूप ले लेती हैं;
कहानियाँ कभी मज़ाक के रूप में कही जाती हैं, और कभी प्रार्थना के; और कभी-कभी वे केवल काल्पनिक नहीं होतीं, बल्कि हृदय में छुपी सच्ची बातें कह जाती हैं।
क्योंकि कहानियाँ हर ह्रदय में रहती हैं, उनमें से कुछ कह दी जाती हैं, जैसे कि वे, जो इन पन्नों पर लिखी हुई हैं...

तेमसुला आओ के ये शब्द उनकी किताब, ‘लबर्नम फ़ॉर माई हेड’ से हैं, जिसमें उन्होंने नागालैंड के लोगों द्वारा उनकी भूमि के लिए किए गए संघर्षों, आशंकाओं, सपनों, और आशाओं का वर्णन किया है।

स्वर्गीय तेमसुला आओ एक श्रेष्ठतम लेखिका थीं। वे असम में जन्मीं थीं और उन्होंने अपना अधिकतर पेशेवर जीवन मेघालय में एक साहित्य की प्राध्यापिका के रूप में व्यतीत किया था। उनका कार्य जनजातीय पहचान के मुद्दे और पूर्वोत्तर भारत के इतिहास को दर्शाता है, जिसमें प्रमुख ध्यान नागालैंड पर केंद्रित है। एक कवयित्री, लेखिका, और नृवंश विवरणकार (एथनोग्राफ़र) होने के साथ ही, वे नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग, की प्राध्यापिका के पद से वे सेवानिवृत्त हुई थीं। वे पूर्वोत्तर भारत की एक प्रमुख साहित्यिक हस्ती और एक कुशल प्रबंधक थीं, जिन्होंने अपने क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने के लिए दीमापुर में उत्तर पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना के लिए अथक प्रयास किया था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने नागालैंड के मोन ज़िले में स्थित शांग्यु गाँव में राज्य की सांस्कृतिक धरोहर की ओर समर्पित एक संग्रहालय के निर्माण की ओर भी योगदान दिया था। वे नागालैंड राज्य महिला आयोग, कोहिमा, की अध्यक्ष भी रही हैं।

T1988 में 'सॉन्ग्स दैट टेल' तेमसुला आओ का पहला प्रकाशित कविता-संग्रह था। 'सॉन्ग्स' शब्द उनके हर कविता-संग्रह में शामिल है, जो यह दर्शाता है कि उनके काम का नागाओं की मौखिक परंपराओं और लोक साहित्य से गहरा जुड़ाव है। आओ नागा समुदाय का सदस्य होने के कारण उनके काम में नागालैंड के आओ लोगों की संस्कृतियों, परंपराओं, और प्रथाओं के दर्शन मिलते हैं। उन्होंने अपने सुमदाय के रीति, रिवाजों, नियमों, और मान्यताओं का अध्यन और अभिलेख करने में एक दशक से भी अधिक का समय लगाया था, जिन्हें तत्पश्चात 1999 में, संगृहित करके उनकी नृवंशविज्ञान (एथनोग्राफ़ी) की पुस्तक, ‘आओ-नागा ओरल ट्रेडिशन’ में प्रकाशित किया गया था। उनका लघुकथा संग्रह, ‘दीज़ हिल्स कॉल्ड होम: स्टोरीज़ फ़्रॉम अ वॉर ज़ोन’ और ‘लबर्नम फ़ॉर माई हेड’ को बहुत सराहना मिली। ‘दीज़ हिल्स कॉल्ड होम’ पुस्तक की प्रस्तावना में उन्होंने बताया कि उनकी लघुकथाएँ नागा लोगों द्वारा सहे गए रक्तपात और आँसुओं से भरे कई अशांत वर्षों से प्रेरित हैं। उनके काम में नागा स्त्रियों की दुर्दशा भी झलकती है, जिन्हें रोज़ असामान्य परिस्थितियों का सामना करने और अपनी आवाज़ के दबाए जाने के बावजूद जीवित रहने और आगे बढ़ने का संघर्ष करना पड़ता है।

तेमसुला आओ ने अपने समुदाय को एक आवाज़ देने तथा नागाओं की पारंपरिक पहचान और संस्कृति को जीवित रखने का प्रयास किया था। उनका काम असमिया, बंगाली, हिंदी, कन्नड़, जर्मन, और फ़्रांसीसी भाषाओं में अनुवादित किया गया है। 2007 में, उन्हें प्रतिष्ठित पुरस्कार, पद्म श्री, और नागालैंड राज्यपाल पुरस्कार (नागालैंड गवर्नर्ज़ अवॉर्ड) तथा 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। नागा साहित्य और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण योगदान देने के बाद, अक्टूबर 2022 में तेमसुला आओ का निधन हो गया।

वैसे भी, उम्र का मृत्यु से क्या संबंध है
और इस अप्रांसगिक ज्ञान की आवश्यकता ही क्या है
जब वे पहले से ही शपथबद्ध हैं
अपने भाग्य की ओर जाने वाले
एक-तरफ़े सफ़र के लिए?
~नोव्हेर बोटमैन, आओ

Gingee hill

तेमसुला आओ द्वारा ‘द टूम्बस्टोन इन माई गार्डन’