Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

तुगलकाबाद : एक अभिशप्त किला

दिल्ली का तुगलकाबाद किला, जो वर्तमान में पूरी तरह एक खंडहर बन चुका है, किसी समय तुगलक राजवंश की शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक था। इसका निर्माण 1321 में तुगलक राजवंश के पहले सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक द्वारा किया गया था। इसकी भव्यता और विशालता के बावजूद इसके निर्माण के कुछ ही समय बाद इसका परित्याग कर दिया गया था।

किंवदंती है कि गयासुद्दीन तुलगक एक ऐसा ताकतवर किला चाहता था तो मंगोल आक्रमण का सामना कर सके। इसलिए उन्होंने अपनी तख्तपोशी के तुरंत बाद नगर का कामकाज देखना शुरू किया और दिल्ली के सभी कामगारों के लिए किले पर काम करना अनिवार्य कर दिया। उसी समय के आसपास सूफ़ी संत, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, अपनी खानकाह (निवास स्थान) में एक बावली (सीढ़ीदार कुआँ) का निर्माण करवा रहे थे। कामगार पूरे दिन किले पर काम किया करते थे और रात में बावली पर।

इससे सुल्तान गुस्सा हो गए। उन्होंने निज़ामुद्दीन के लिए तेल की आपूर्ति पर रोक लगा दी ताकि बावली के निर्माण स्थल पर चिराग न जलाए जा सकें। इससे निज़ामुद्दीन औलिया भड़क उठे और उन्होंने अपनी रहस्यमय शक्तियों का उपयोग करते हुए कुएँ के पानी को तेल में तब्दील कर दिया। उन्होंने यह कहते हुए तुगलकाबाद को शाप भी दिया, “या रहे उज्जड़ या बसे गुज्जर” (या तो यह उजाड़ रहेगा या फिर यहाँ खानाबदोश चरवाहे बस जाएँगे)।

किंवदंती आगे कहती है कि जब गयासुद्दीन तुगलक अपने बंगाल अभियान पर थे, तब उन्हें पता लगा कि कामगार उनके आदेश की अवहेलना करते हुए औलिया की बावली का निर्माण कर रहे थे। उन्हें इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपने लौटने पर संत को सज़ा देने की कसम खा ली। यह सुनकर निज़ामुद्दीम औलिया ने शाप देते हुए कहा, “हनूज़ दिल्ली दूर अस्त” (दिल्ली अभी दूर है)।

यह शाप वास्तव में सच्चा साबित हो गया। बंगाल अभियान से लौटते समय गयासुद्दीन तुगलक द्वारा हासिल की गई कामयाबी के लिए उनके सम्मान में जो मंडप खड़ा किया गया था, वह ढह गया जिसके कारण उनकी और उनके छोटे बेटे की मृत्यु हो गई। कुछ लोगों का कहना है कि यह उनके और ‘पागल शहज़ादा’ कहलाए जाने वाले उनके दूसरे बेटे मुहम्मद बिन तुगलक के बीच मौजूद राजनीतिक मनमुटाव के कारण हुआ था। गयासुद्दीन जिन्हें ‘पागल शहज़ादा’ फूटी आँख नहीं सुहाता था, चाहते थे कि उनका छोटा बेटा उनके बाद तख्त सँभाले। कहते हैं कि मुहम्मद बिन तुगलक, जो निज़ामुद्दीन औलिया के भक्त थे, अपने पिता से उत्तर प्रदेश के कड़ा में मिलने गए और उनका कत्ल करने की फ़िराक में थे। इस तरह सुल्तान कभी दिल्ली वापस नहीं आ पाए।

यह किला, जिसमें वाकई लोग कभी बसे ही नहीं, उसका आखिरकार 1327 में सुल्तान की मृत्यु के लगभग तुरंत बाद अनौपचारिक ढंग से परित्याग कर दिया गया। जहाँपनाह नाम का एक अलग किलाबंद शहर बनवाने की मुहम्मद बिन तुगलक की अपनी खुद की भव्य योजना थी। बाद में उन्होंने राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित कर दिया।

तुगलकाबाद किला और उसकी दुर्जेय दीवारें, जिनका निर्माण उसे घेराबंदी से बचाने के लिए किया गया था, वर्तमान में भी संभवतः निज़ामुद्दीन औलिया के शाप के कारण पतन और नाश की स्थिति में हैं। पूरी तरह उजाड़ पड़े हुए इस स्थान पर अब केवल अवैध निवासियों का बार-बार आना-जान लगा रहता है।

तुगलकाबाद जहाँ खंडहर बन चुका है, वहीं निज़ामुद्दीन की दरगाह पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है और यह सबसे पूजनीय स्थलों में से एक है। आज भी इस्तेमाल की जानी वाली वहाँ की बावली का जल स्रोत एक भूमिगत झरना है और इसके जल को पवित्र माना जाता है।