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त्वचा पर भावाभिव्यक्तियाँ : नागालैंड की गोदना परंपराएँ

रचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करने का उत्साह, मानव सभ्यता का एक उल्लेखनीय पहलू है। गुफ़ा की दीवारों पर कलाकारी करने से लेकर धुनें गुनगुनाने, और लिपियों के विकास तक, मानव जाति की रचनात्मक प्रकृति हर समुदाय के अपने स्वभाविक परिवेश के साथ परस्पर संबंध को बड़ी सहजता से दर्शाती है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में रहने वाले मूल समुदायों की विशिष्ट और अनूठी, विविध प्राचीन और पारंपरिक गोदना प्रथाएँ मौजूद हैं। अभिव्यक्ति के अद्वितीय रूपों में से एक, यहाँ की प्राचीन गोदना परंपराएँ अक्सर पहचान के चिन्हों, अलंकरणों, बीमारियों को ठीक करने के लिए, या यौवनारंभ, विवाह, अथवा शिशु के जन्म जैसे संस्कारों के प्रतीकों के रूप में उपयोग की जाती हैं।

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कोहिमा, नागालैंड, की ओर जाने वाला रास्ता। छवि स्रोत : विकीमीडिया कॉमन्स

नागालैंड, जिसे प्रायः ‘त्योहारों की भूमि’ कहा जाता है, अपनी सदियों पुरानी गोदना परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। हालाँकि, यह पता लगाना कठिन है कि नागा लोगों के बीच टैटू गुदवाने की प्रथा की शुरुआत कब हुई, परंतु यह प्राचीन काल से ही उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा रही है। कई नागा समुदायों में, गोदना, एक पवित्र कला शैली मानी जाती है। उनकी गोदना परंपरा में उपयोग किए जाने वाले प्रतीक और रेखाएँ भी आपसी विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम थीं। नागा लोग इन टैटुओं को अपनी पहचान और सामाजिक स्थिति का प्रतीक मानते हैं।

परंपरागत रूप से, पुरुष और महिलाएँ, दोनों टैटू गुदवाते थे। उनपर बने प्रतीक और पैटर्न, वंश, गाँव, रीति-रिवाजों, अथवा अवसरों के अनुसार भिन्न होते थे, और हर प्रतीक का अभिप्राय अपने आप में अलग और महत्वपूर्ण होता था।

कुछ नागा समुदायों में, टैटू गुदवाना नर-शिकार (हेडहंटिंग) से जुड़ा हुआ था। ऐसा माना जाता है कि सभी नागा जन्मजात योद्धा थे, लेकिन किसी नागा को आधिकारिक रूप से योद्धा का दर्जा केवल तभी दिया जाता था जब वह युद्ध में अपने दुश्मन का सिर धड़ से अलग करने में सफल होता था। ऐसा होने पर शरीर पर गोदे जाने वाले ये टैटू उनकी विजय का प्रतीक माने जाते थे। प्रारंभिक नागा समाजों में ऐसा माना जाता था कि दुश्मन का सिर काटने से योद्धा और उसके गाँव को समृद्धि प्राप्त होती है। सबसे अधिक सिर काटने वाले योद्धा को सबसे ज़्यादा टैटू मिलते थे, और उसे गाँव में सबसे बहादुर माना जाता था। 1960 में, भारत सरकार ने नर-शिकार की परंपरा पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके परिणामस्वरूप, इससे जुड़ी टैटू प्रथाएँ भी अंततः खत्म हो गईं।

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एक कोन्याक नागा आदमी के शरीर पर गुदे टैटू। छवि स्रोत : विकीमीडिया कॉमन्स

नागाओं की सबसे बड़ी जनजाति, कोन्याक, मुख्य रूप से यौवन के आरंभ के बाद गोदे जाने वाले चेहरों के टैटुओं के लिए प्रसिद्ध है। कोन्याक नागाओं को उनके टैटुओं के आधार पर दो समूहों में विभाजित किया गया है- ‘थेंडू’ और ‘थेंथो’। कोन्याक नागाओं का ‘थेंडू’ समूह अपने पूरे चेहरे पर टैटू गुदवाता था, जबकि ‘थेंथो’ समूह केवल अपने माथे और ठुड्डी पर टैटू गुदवाता था।

नागालैंड में परंपरागत रूप से टैटू एक छोटे से उपकरण से त्वचा में सुई चुभाने वाली विधि (हैंड-टैपिंग) से गोदे जाते थे। उपकरण के पहले हिस्से में ताड़ के पेड़ की सुइयाँ होती थी, जिनका गुच्छा बनाकर, धागे के रूप में एक बेल का उपयोग करके, उन्हें लकड़ी के टुकड़े पर बाँधा जाता था। उपकरण के दूसरे हिस्से में एक हथौड़े जैसा औज़ार होता था, जिसमें, त्वचा में रंग घुसाने के लिए गुच्छेदार सुइयाँ चुभाने में उपयोग की जाने वाली, एक लंबी मूठ होती थी। पारंपरिक तौर पर इन टैटुओं के डिज़ाइन ज्यामितीय होते थे, और उनकी आकृतियों की रूपरेखाएँ, बाँस के एक औज़ार की मदद से बनाई जाती थीं।

हाथ से पीटकर (हैंड हैमरिंग तकनीक) टैटू बनाने के लिए कंघी के रूप में, एक कतार में लगी सुइयों की आवश्यकता होती है। इन कंघी के आकार की सुइयों को त्वचा में धीरे से चुभाया जाता था, जिससे त्वचा पर टैटू की रूपरेखा के अनुरूप निशानों की एक शृंखला बन जाती थी। विभिन्न जनजातियाँ रंजक बनाने के लिए स्थानीय पौधों का उपयोग करती थीं। टैटू बनाने के लिए जिन रंजकों का इस्तेमाल होता था, उनमें से एक ‘यम-याक’ नाम का प्राकृतिक रंजक था, जिसे जले हुए पेड़ की राल से प्राप्त राख के साथ मिलाया जाता था। त्वचा को छेदने के लिए जिस सुई का इस्तेमाल होता था, वह ताड़ या खट्टे फलों के पेड़ों के काँटों से बनाई जाती थी। टैटू गोदने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद, अतिरिक्त रंजक को हटाने के लिए रोगाणुरोधक गुणों वाली (एन्टीसेप्टिक) मुलायम पत्तियों का उपयोग किया जाता था।

पूरे नागालैंड में, टैटू या गोदना के लिए, कई स्थानीय शब्दों का उपयोग किया जाता था। पुरुषों के टैटू ज़्यादातर एक योद्धा के तौर पर उनका दर्जा प्रदर्शित करते थे, जबकि महिलाओं के टैटू, बढ़ती आयु के साथ होने वाले उनके जैविक परिवर्तनों को दर्शाते थे। पुरुष अपनी छाती, गर्दन, चेहरे, और बाँहों पर टैटू गुदवाते थे, जबकि महिलाएँ अपने गालों, ठुड्डियों, हाथों, पैरों, और चेहरों पर टैटू गुदवाती थीं। टैटू गुदवाने का समारोह समुदाय में शुभ माना जाता था, और इस दिन अक्सर पूरे गाँव के लिए भव्य भोज का आयोजन किया जाता था।

टैटू गुदवाने की यह अद्वितीय परंपरा, आजकल अपनी प्रमुखता खोने के बावजूद भी नागालैंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह परंपरा, शांत रूप से, अतीत की कहानियों का वर्णन करने वाली नागा लोगों की स्मृतियों को उजागर करती है और उनकी विविध रचनात्मक भावाभिव्यक्तियों को दर्शाती है।