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उनाकोटी

भारत में अद्भुत वास्तुकला और मूर्तिकला का अमूल्य खज़ाना है, जिसमें इतिहास, मान्यताओं, प्रकृति, और तकनीकी श्रेष्ठता का एक अनूठा सम्मिश्रण दिखाई देता है। इसका एक उदाहरण त्रिपुरा की रघुनंदन पहाड़ियों में स्थित उनाकोटी धरोहर स्थल है। उनाकोटी का शाब्दिक अर्थ है एक करोड़ से एक कम, और मान्यता है कि यहाँ चट्टानों को काटकर बनाई गई लगभग इतनी ही नक्काशीदार मूर्तियाँ स्थापित हैं। उनाकोटी एक शैव तीर्थ स्थल है, जो कम से कम 7वीं शताब्दी का तो है ही, और संभवतः इससे पहले का भी हो सकता है। उनाकोटी की पहाड़ियाँ भारत में हल्के उभार वाली सबसे बड़ी नक्काशीदार संरचनाओं का घर हैं। वे अपनी विशालकाय प्रस्तर और पत्थर पर नक्काशी की गई मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं, जिन्हें पहाड़ी की ढलान पर उकेरा गया है। ये हल्की उभरी नक्काशीदार संरचनाएँ एक विशेष प्रकार की मूर्तिकला को दर्शाती हैं, जहाँ छवियों को कम गहराई पर उकेरा जाता है।

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शिव और शिव की जटाओं से बहती गंगा

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दुर्गा की मूर्ति

उनाकोटी की मूर्तियाँ दो प्रकार की हैं: पत्थर पर उकेरी गई आकृतियाँ और पत्थर की मूर्तियाँ। इसमें सबसे भव्य ‘उनाकोटिश्वर काल भैरव’ के नाम से प्रसिद्ध शिव के शीर्ष की 30 फ़ीट ऊँची मूर्ति है, जिसकी कढ़ाईनुमा नक्काशी से युक्त आकर्षक शिरोभूषा ही 10 फ़ीट से भी ज्यादा ऊँची है। दूसरी भव्य मूर्ति विशालकाय गणेश की है। शिव के दोनों ओर दो देवियों की मूर्तियाँ हैं; एक में देवी दुर्गा अपने शेर के ऊपर खड़ी हैं, और दूसरी मूर्ति संभवतः देवी गंगा की है। नंदी बैल की तीन विशाल आकृतियाँ भी जमीन में आधी धँसी हुई देखी जा सकती हैं। उनाकोटी की नक्काशी शास्त्रीय और जनजातीय शैलियों का मिश्रण है, जो कई सदियों के दौरान यहाँ हुए निर्माण का संकेत देती हैl

उनाकोटी धरोहर स्थल के निर्माण के पीछे का इतिहास, रहस्य, अनुमानों और लोककथाओं में छुपा है, और इसकी उत्पत्ति की स्पष्ट तारीख बहुत विवादास्पद है। हालाँकि इसके पुरातात्विक और ऐतिहासिक तथ्यों के कई प्रमाण हैं, फिर भी इस अद्भुत स्थान के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव 99,99,999 देवी-देवताओं के अपने दल-बल के साथ काशी जा रहे थे, तब मार्ग में, उन्होंने रात्रि विश्राम के लिए रघुनंदन पहाड़ियों पर ठहरने का निश्चय किया। कथा के अनुसार, विश्राम से पहले, शिव ने 99,99,999 देवी-देवताओं को सूर्योदय से पहले जागने के लिए कहा था। परंतु, अगली सुबह भगवान शिव के अतिरिक्त उनमें से कोई भी नहीं जगा। क्रोधित भगवान शिव ने अपना रोष प्रकट करते हुए उन्हें पत्थर में बदल जाने का श्राप दे दिया, जिसके परिणामस्वरूप एक कोटि (एक करोड़) से एक कम मूर्तियाँ बन गईं, जिससे इस स्थान को इसका नाम मिला।

एक दूसरी कथा में देवी पार्वती के परम भक्त, कल्लू कुम्हार नाम के एक स्थानीय कारीगर का उल्लेख मिलता है और इसके दो संस्करण हैं। पहले संस्करण के अनुसार एक बार, जब शिव और पार्वती इस क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे, तो कल्लू ने उनके साथ कैलाश पर्वत जाने की प्रार्थना की। भगवानों की ऐसी इच्छा नहीं थी, इसलिए पार्वती ने कल्लू से प्रातः काल से पहले देवताओं की एक करोड़ मूर्तियाँ बनाने को कहा। उन्हें कल्लू के एक कुशल कारीगर होने का भान नहीं था। अगले दिन, कल्लू द्वारा निर्मित एक कोटि (करोड़) मूर्तियों में बस एक मूर्ति कम थी, इसलिए वह उनके साथ कैलाश पर्वत नहीं जा सका। दूसरा संस्करण कल्लू कुम्हार के सपने का वर्णन करता है, जिसमें उसे एक करोड़ देवताओं की मूर्तियाँ बनाने के लिए कहा गया। अहंकार ने उसका दिमाग फेर दिया और कहा जाता है कि उसने अंतिम नक्काशी में अपनी ही छवि गढ़ दी। इससे देवता नाराज हो गए और उन्होंने कल्लू की मूर्ति तोड़ दी, जिससे मूर्तियों की संख्या एक कोटि से एक कम ही रह गई।

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गणेश की मूर्ति

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काल भैरव की मूर्ति

त्रिपुरा की एक स्थानीय दंतकथा, त्रिपुरा राज्य के पहले राजा, हमतोरफ़ा की कहानी बताती है। कहा जाता है कि उन्होंने भगवान शिव को अपने राज्य में निवास करने के लिए आमंत्रित किया। तब भगवान शिव ने उन्हें सभी देवी-देवताओं से प्रार्थना करने के लिए कहा, और राजा को उनकी मूर्तियाँ बनाने की सलाह दी, क्योंकि इस प्रकार वे सदा उनके राज्य में ही निवास करे सकेंगे। हमतोरफ़ा ने लौटकर शिव के कहे अनुसार देवताओं की मूर्तियाँ बनवाईं, और इस तरह से देवतागण उनके राज्य में रहने लगे। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी गंगा ने त्रिपुरा आने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया क्योंकि अगर वे आतीं, तो बाकी देश सूख जाता। इसलिए, उन्होंने अपने स्थान पर गोमती नदी को भेजा। राजा ने गंगा की मूर्ति का निर्माण नहीं किया और इसलिए उनके पास एक करोड़ में एक मूर्ति कम रह गई।

‘लॉस्ट हिल ऑफ फेसिज़’ (चेहरों का खोया हुआ पहाड़) के नाम से विख्यात, उनाकोटी, तीर्थ और पर्यटन स्थल, दोनों, है। मकर संक्रांति (जनवरी) और अशोकाष्टमी मेला (अप्रैल) जैसे त्योहार यहाँ बड़े उत्साह से मनाए जाते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उनाकोटी को एक धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया है और ऐसी आशा की जाती है कि इसे शीघ्र ही विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया जाएगा। आज, यह स्थल भारत की ज्ञात अपितु विस्मृत धरोहर है।