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वांचो लिपि की कहानी

भाषा शब्दों की पूँजी से बनती है, और लिपि इस पूँजी की निरंतरता सुनिश्चित करती है। वांचो पूर्वी अरुणाचल प्रदेश में रहने वाली एक नागा जनजाति है। वांचो भाषा 55,000 लोगों द्वारा बोली जाती हैं, जो अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, म्यांमार, और भूटान के आसपास के क्षेत्रों में फैले हुए हैं।
लिपियाँ उन्हीं सांस्कृतिक प्रक्रियाओं से विकसित होती हैं, जो मानव समाज और इसकी अनेक भाषाओं को आकार देती हैं। थोड़े बहुत संशोधनों के साथ, लैटिन लिपि का उपयोग सभी यूरोपीय, दक्षिण अमरीकी, और आधुनिक अफ़्रीकी भाषाओं को लिखने के लिए किया जाता है। इसी तरह, अरबी लिपि का उपयोग 60 से अधिक अन्य भाषाओं को लिखने के लिए किया जाता है। वांचो भाषा का वर्ण-विन्यास लैटिन या देवनागरी लिपि से बहुत अलग है, जिसके कारण इसके भाषा-विज्ञान पर कार्य करने का कोई प्रयास नहीं किया गया था।

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अरुणाचल प्रदेश के लोंगडिंग में ओरियाह उत्सव मनाते वांचो पुरुष। छवि स्रोत : यूट्यूब

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वांचो लिपि के निर्माता, बनवांग लोसू। छवि स्रोत : बनवांग लोसू

अरुणाचल प्रदेश के लोंगडिंग के एक वांचो स्कूल शिक्षक, बनवांग लोसू ने आखिरकार वांचो भाषा के अनुकूल एक लिपि बनाई। वांचो लिपि का आविष्कार केवल इसके निर्माता की निष्ठा से ही संभव हुआ है।

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लाइज़ी या लैली नामक वांचो वर्णमाला। छवि स्रोत : यूट्यूब

2001 में, ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थी, श्री बनवांग लोसू को एहसास हुआ कि वांचो भाषा को रोमन और देवनागरी लिपि में लिखना पूरी तरह से उपयुक्त नहीं था। इसलिए, उन्होंने एक नई वांचो लिपि पर काम करना शुरू कर दिया। इस लिपि को विकसित करने की प्रेरणा, उन्होंने अपने प्रकृतिक परिवेश से ली थी, जो जनजातीय संस्कृतियों का मूल आधार होता है। इस काम को पूरा करने के लिए उन्हें 11 वर्षों (2001 से 2012) तक अथक परिश्रम करना पड़ा। 2019 में, वांचो लिपि को यूनिकोड कंसोर्टियम का हिस्सा बनाया गया, और इंटरनेट पर उपयोग के लिए पंजीकृत किया गया, जो बनवांग लोसू और फ़ॉन्टोग्राफ़र माइकल एवरसन के संयुक्त प्रयासों से संभव हुआ। लिपि के टाइपफ़ेस के साथ-साथ, राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (एनआईडी) के स्नातक और पहले वांचो सजीवन चलचित्र निर्माता (एनिमेटर), वांगडन वंपन के द्वारा विकसित एक यूट्यूब सजीवन प्रवेशिका (एनिमेटेड प्राइमर) भी बनाया गया। वैसे तो वांचो लिपि इस क्षेत्र की सभी वांचो और अन्य जनजातीय भाषाओं को लिखने के लिए उपयोग की जा सकती है, लेकिन श्री लोसू ने अपना ध्यान केवल उत्तरी वांचो के लेखन पर ही केंद्रित किया था।

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श्री लोसू ने वांचो लिपि के विकास की प्रेरणा प्रकृति से ली थी। छवि स्रोत : यूट्यूब

वांचो एक स्वर-संबंधी भाषा है, जिसमें ध्वनि के मामूली बदलाव, शब्दों के पूरे अर्थ को बदल देते हैं। बदलती ध्वनियों के साथ बदलते अर्थ को सटीकता से बताने के लिए, वांचो लिपि में ध्वनि तीव्रता ग्राफ़ और उच्चारण निर्देशी चिह्न (डिआक्रिटिकल मार्क) जोड़े गए थे। ध्वनि की तीव्रता बताने के लिए, स्वर चिह्नकों के रूप में उच्चारण निर्देशी चिह्नों का उपयोग महत्वपूर्ण था। भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं को चिह्नित करने के लिए खास चिह्नक भी विकसित किए गए थे। इस तरह, लाइज़ी या लैली (वांचो वर्णमाला) का निर्माण हुआ था। इसमें चवालीस अक्षर, पाँच स्वर, और उनतीस व्यंजन हैं।

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बनवांग लोसू द्वारा वांचो मुद्रा का प्रतीक, न्गुन, भी विकसित किया गया है। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

2013 में, श्री लोसू ने "वांचो स्क्रिप्ट" नामक एक पुस्तक लिखी थी, जो इंप्रिंट पार्ट्रिज पेंगुइन द्वारा प्रकाशित की गई थी, और उन्होंने विद्यालयों में उपयोग के लिए प्रवेशिका और कार्यपुस्तिकाएँ भी बनाईं। उन्होंने ‘वांचो लिटरेरी मिशन टीम’ का संगठन किया, शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया , और वांचो भाषा प्रमाणन पाठ्यक्रम भी बनाए, और इनमें से कुछ पहलों में अरुणाचल प्रदेश सरकार और अन्य स्थानीय निकायों ने भी मदद की।

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विद्यार्थियों को वांचो लिपि पढ़ाते हुए श्री बनवांग लोसू। छवि स्रोत : यूट्यूब

श्री बनवांग लोसू के प्रयासों ने भाषा विज्ञान अभिपुष्टि के ज़रिए वांचो पहचान को और मज़बूत बनाया है, क्योंकि भाषा के लिखित रूप में एक लिपि किसी भी समुदाय की सृजनात्मकता और संबद्धता का एक विशेष साधन होती है।
भाषाओं को जीवित रखने से संस्कृति और परंपराएँ भी जीवित रहती हैं, और लिपि इस उद्देश्य के लिए एक उत्कृष्ट उत्प्रेरक है। यह भाषाओं और इसकी विभिन्न बोलियों को पुनर्जीवित करने का एक प्रभावशाली माध्यम होती है, क्योंकि यह समुदायों की अद्वितीय स्वदेशी पहचान को बढ़ावा देती है। 2022-2032, स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय दशक है और वांचो लिपि का विकास इस अवसर का सबसे उपयुक्त उदाहरण है।