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वस्त्रों द्वारा धरोहर की खोज : पारंपरिक जैंतिया परिधान
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जैंतिया पहाड़ियों का रहने वाला प्नार लड़का और लड़की, पारंपरिक पोशाक में। छवि सौजन्य : सकानी किंडिया और सलांडा-ओ लंगडोह
प्नार, जिन्हें जैंतिया भी कहा जाता है, मेघालय में रहने वाले खासी समुदाय का एक विशिष्ट गुट है। ये लोग प्नार भाषा बोलते हैं, जो ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा परिवार की एक भाषा है। इसमें और खासी भाषा में उल्लेखनीय समानताएँ हैं। प्नार लोग मेघालय की पश्चिमी जैंतियाँ पहाड़ी ज़िले और पूर्वी जैंतिया पहाड़ी ज़िले में बसे हुए हैं। ये लोग खुद को ‘की खून हिन्यऊत्रेप’ (7 झोपड़ों के बच्चे) कहते हैं।
जैंतिया समुदाय, ऐतिहासिक जैंतिया राज्य से उत्पन्न हुआ है। इस राज्य पर सिंतेंगों का शासन था। ‘जैंतिया’ शब्द की व्युत्पत्ति जयंती देवी या जैंतेश्वरी के मंदिर से हुई है, जो हिंदू देवी दुर्गा का एक रूप मानी जाती हैं। भले ही जैंतिया जनजाति के इतिहास का उल्लेख असम के बुरंजी रिकॉर्ड और अंग्रेज़ों के ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में पाया जाता है, लेकिन फिर भी खासी समुदाय की अन्य उप-जनजातियों की तरह जैंतिया जनजाति का भी कोई प्रलेखित इतिहास नहीं है।
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जैंतिया पहाड़ी का प्नार समुदाय पारंपरिक पोशाक में। छवि सौजन्य : राउल मैनर
जैंतिया लोगों की अपनी एक अनोखी धरोहर है, जो उनकी पारंपरिक पोशाक में सुंदर ढंग से प्रकट होती है। जैंतिया लोगों की पारंपरिक पोशाक मात्र वेशभूषा की एक शैली नहीं है, बल्कि यह उनके इतिहास, मूल्यों, और सांस्कृतिक पहचान का एक साक्षात् प्रमाण भी है। जैंतिया लोगों की एक मुख्य पारंपरिक पोशाक ‘जैनपैन’ है। यह महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला एक सूती कपड़ा होता है, जो एक घाघरे की तरह शरीर पर लपेटा जाता है, और कमर पर पट्टे की मदद से बाँधा जाता है। इसे अक्सर चोली के साथ पहना जाता है। महिलाएँ जैनपैन के साथ बिना आस्तीन की एक चोली पहनती हैं। इसे ‘किरशाह मुका’ कहते हैं। यह महिलाओं की पोशाक का एक आवश्यक हिस्सा है। इसमें महीन कढ़ाई, मनके, और सजावटी तत्व शामिल होते हैं। ‘किरशाह’ का डिज़ाइन और अलंकरण अलग-अलग होता है, जिससे इसे पहनने वाले की सृजनात्मकता का पता चलता है। त्योहार के समय जैंतिया महिलाएँ आमतौर पर एरि रेशम से बनाए जाने वाले ‘रिंडिया’, ‘खिरवांग’, और ‘थोह सारू’ जैसे लपेटने वाले घाघरे पहनती हैं। खासी और जैंतिया जनजातियों का एक अन्य विशिष्ट आभूषण है, जिसे ‘किंजरी कैसर’ कहते हैं। यह 24-कैरट सोने से बना एक पेन्डेन्ट होता है जिसे महिलाएँ त्योहारों के समय और विशेष अवसरों पर पहनती हैं।
मेघालय की खासी और जैंतिया जनजाति के पुरुषों के कपड़ों में कई समानताएँ हैं। उनके पारंपरिक वस्त्रों में कमर पर लपेटा जाने वाला एक बिना सिला हुआ कपड़ा, धोती, और उसके साथ कढ़ाईदार या सजावटी कमीज़/कोट शामिल हैं। ‘काछाद पस्तेह’ जैसे त्योहारों पर पुरुष तलवार (कावाइट बद का स्तेह) भी धारण करते हैं। चाड सुक्र त्योहार पर वे विशेष तौर पर सुंदर रेशमी पगड़ी भी पहनते हैं। नर्तक भी यह पगड़ी पहनते हैं, जिससे यहाँ के उत्साह-भरे वातावरण में और भी वृद्धि होती है।
जैंतिया पुरुष पारंपरिक पोशाक ‘बौह किनरेन’ पहनते हैं, जिसमें लपेटने वाला एक कपड़ा शामिल होता है। ‘बोह किनरेन’ को कमर पर लपेटा जाता है। इसे अक्सर कमीज़ और कोट के साथ पहना जाता है, जिससे इस परिधान की शोभा और भी बढ़ जाती है। फसल कटाई के समय और उसके बाद जैंतिया जनजाति के पुरुष अपने-अपने शीश को एक चारखानेदार वस्त्र से ढकते हैं। इस वस्त्र को ‘स्पोंग’ कहते हैं। त्योहारों, विशिष्ट अवसरों, और कार्यक्रमों के दौरान महिलाएँ इस चारखानेदार वस्त्र के साथ सुंदर रंग की पोशाकें पहनती हैं, जिसमें लाल रंग की मखमली चोली, टखने की लंबाई तक का ‘मुक्सा’, और ‘थोहसारू’ या ‘रींडिया’, तथा सोने और चाँदी के आभूषण शामिल हैं।
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जैंतिया समुदाय के लोग लाहू नृत्य करते हैं। यह नृत्य मेघालय का लोक नृत्य है। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
जैंतिया लोगों की पारंपरिक पोशाक को और सुंदर बनाने के लिए साज-सज्जा की वस्तुएँ आवश्यक हैं। महिलाएँ मनकेदार मालाएँ, कान के आभूषण, और सोने, मनकों, शंखों, तथा धातुओं से बने कड़े पहनती हैं। पुरुष अपनी पोशाक के साथ जँचने वाली पारंपरिक शिरोभूषा और पट्टे पहनते हैं। मेघालय की खासी और जैंतिया जनजातियों में एक विशेष आभूषण प्रचलित है, जिसे ‘पाइला’ कहते हैं। इस आभूषण में लाल और सुनहरे मनके होते हैं जिन्हें धागे में पिरोया जाता है, और इसे पुरुष और महिलाएँ, दोनों, विशेष अवसरों पर पहनते हैं, जिसके कारण ‘पाइला’ मेघालय की जनजातियों का एक प्रसिद्ध आभूषण है। शुरू में लाल मनकों को असली प्रवाल से बनाया जाता था, लेकिन बाद में इन्हें ‘माउप्लेत’ से बनाया जाने लगा, जो एक प्रकार का संगमरमर जैसा पत्थर होता है। इसके बाद इनपर लाल रंग का रंगलेप चढ़ाया जाता। फिर इन मनकों को मूगा रेशम के धागे में पिरोया जाता है। मेघालय में प्रवाल उपलब्ध न होने के कारण इसे भूटान और कोलकाता से मँगवाया जाता था। इसके विपरीत, सुनहरे रंग के मनकों को असली सोने से बनाया जाता है। इसके बावजूद बड़े पैमाने पर ‘पाइला’ के उत्पादन में लाख के मनकों का उपयोग किया जाता है, जिनपर सोने की परत चढ़ाई जाती है।
जैंतिया समुदाय का पारंपरिक परिधान बहुत महत्वपूर्ण है। यह उनके मूल्यों, इतिहास, और आकांक्षाओं को दर्शाता है। इस परिधान में मौजूद पैटर्न, रंगों, और डिज़ाइनों की महीन बुनावट में उनकी लोककथाओं के किस्से दर्शाए जाते हैं, जो उनका प्रकृति और आध्यात्मिकता से भी एक दृढ़ संबंध दर्शाते हैं। तेज़ी से बदलती इस दुनिया में पारंपरिक पोशाक के अस्तित्व को बनाए रखना कई जनजातियों के लिए एक चुनौती बन चुका है। जैंतिया लोग भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बरकरार रखने के लिए प्रयासरत हैं। लोगों, सामुदायों, और संगठनों द्वारा, वस्त्रों सहित, अन्य पारंपरिक पद्धतियों को बढ़ावा देने और उन्हें बचाए रखने का भी प्रयास किया जा रहा है।