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बिठूर, उत्तर प्रदेश

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बिठूर के घाट (बिठूर कुल 52 घाटों से घिरा हुआ है)।
चित्र सौजन्य- विकिमीडिया कॉमन्स

कानपुर, उत्तर प्रदेश, के पास गंगा नदी के किनारे बसा बिठूर नामक एक छोटा सा शहर महान धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थान है। यह शहर प्राचीन हिंदू पांडुलिपियों में उल्लेखित है। प्राचीन कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु द्वारा ब्रह्मांड के पुनः निर्माण के पश्चात, बिठूर, भगवान ब्रह्मा का निवास स्थान बन गया था।

बिठूर को उसका नाम कई बदलावो के बाद मिला। उत्पलारण्य वन को ब्रह्मा के अश्वमेध यज्ञ का स्थान माना जाता है (यह मान्यता है कि यज्ञ में उपयोग किए जाने वाले घोड़ों में से एक की नाल को स्थल पर संरक्षित किया गया है और यह प्राचीन कथा का आधार है)। मंदिर (भारतवर्ष के भगवान ब्रह्मा के कुछ मंदिरों में से एक) में ब्रह्मेश्वर महादेव नामक एक शिवलिंग भी है जिसे ब्रह्मा द्वारा स्थापित किए जाने की मान्यता है। यज्ञ पूर्ण होने के बाद, उसी जंगल को ब्रह्मवर्त घाट (ब्रह्मा का आसन) का नाम दिया गया, जिसे स्थानीय लोग बाद में बिठूर कहने लगे। यह मान्यता है कि प्रथम पुरुष और स्त्री, मनु और शतरूपा को ब्रह्मवर्त घाट में ही बनाया गया था।

बाद में, सम्राट उत्तानपाद के शासनकाल में बिठूर विकसित हुआ। उनके पुत्र राजकुमार ध्रुव (जो एक संत थे) भगवान ब्रह्मा के बहुत बड़े भक्त थे। कहा जाता है कि ध्रुव ने भगवान ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की। उनकी निष्ठा और भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान ब्रह्मा उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अमरता का वरदान दिया और इस तरह ध्रुव आकाशगंगा में एक चमकता सितारा बन गए। ध्रुव तारे का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है। इसके अलावा, ध्रुव टीला अभी भी ध्रुव द्वारा की गई तपस्या के प्रमाण के रूप में बिठूर में स्थित है।

प्राचीन ग्रंथ, रामायण, से संबंधित होने के कारण बिठूर एक प्रमुख धार्मिक स्थान माना जाता है। शहर में वाल्मीकि आश्रम है। यह मान्यता है कि ऋषि वाल्मीकि ने इसी आश्रम में रामायण की रचना की थी। देवी सीता ने अपने देशनिष्कासन के समय वाल्मीकि आश्रम में शरण ली तथा यहीं पर लव और कुश को जन्म दिया था। वाल्मीकि आश्रम के अंदर एक जगह को लव-कुश जन्मस्थल के रूप में जाना जाता है। यह भी कहा जाता है कि लव-कुश ने इसी स्थान पर वाल्मीकि से शिक्षा प्राप्त की थी। आश्रम में सीता रसोई भी है, जहाँ माना जाता है कि देशनिष्कासन के दौरान देवी सीता भोजन पकाया करती थीं। सीता पाताल प्रवेश, एक अन्य स्थान है जहाँ वे धरती माता की गोद में समा गईं थीं। इसके अलावा, यह भी मान्यता है कि भगवान हनुमान, लव, कुश, और देवी सीता की खोज करते समय वाल्मीकि आश्रम में रहे थे। इसलिए, वाल्मीकि आश्रम का अत्यधिक धार्मिक महत्व है।

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ब्रह्मवर्त घाट
चित्र सौजन्य- विकिमीडिया कॉमन्स

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वाल्मीकि आश्रम
चित्र सौजन्य- विकिमीडिया कॉमन्स

18 वीं शताब्दी में अवध के दीवान, महाराजा टिकैत राय बहादुर, ने बिठूर में लाल पत्थर की एक स्नान संरचना का निर्माण किया, जिसे पत्थर घाट के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन संरचना गंगा नदी के तट पर स्थित है और यहाँ भगवान शिव का मंदिर भी है, जिसमें कसौटी पत्थर से बना शिवलिंग है।

ब्रिटिश शासन के दौरान, बिठूर, यूनाईटेड प्रॉविन्सेस के कॉनपोर जिले (आज के कानपुर) का एक भाग हुआ करता था। इसने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। स्वंत्रता सेनानी, रानी लक्ष्मी बाई का बचपन बिठूर में बीता था। यह कहा जाता है कि कॉनपोर नगर की घेराबंदी (5 - 25 जून 1857) बिठूर में, बिठूर किले के परिसर के पास, शुरू हुई थी। नाना साहेब (मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र) को बिठूर में निर्वासित कर दिया गया था, जिसके बाद बिठूर किला अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई की योजना बनाने का गढ़ बन गया था। रानी लक्ष्मी बाई, नाना साहेब, राम चंद्र पांडुरंग और तात्या टोपे जैसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों ने बिठूर में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह शुरू किया। नाना साहेब के नेतृत्व में बल प्रयोग के परिणामस्वरूप कॉनपोर की घेराबंदी के दौरान 300 से अधिक ब्रिटिश पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या हुई।

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बिठूर का नक्शा

जनरल हैवलॉक ने 19 जुलाई, 1857, को बिठूर पर कब्ज़ा कर लिया। ब्रिटिश अधिकारियों ने बिठूर किले, घाटों और मंदिरों को आग लगा दी, जिसमें नाना साहेब की 14 वर्षीय बेटी मैनावती भी जलकर मर गई थी। मैनावती की स्मृति में, राज्य सरकार ने कानपुर में एक सड़क का नाम मैनावती मार्ग रखा है।

लोगों के बीच आतंक फैलाने के लिए, अंग्रेजों ने बिठूर के लगभग 25,000 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मार डाला तथा उनके शवों को शहर के पेड़ों पर लटका दिया। बिठूर को, ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह करने के लिए, बड़ी संख्या में लोगों को निर्दयता से मार दिये जाने के लिए याद किया जाता है। आज बिठूर किले के केवल खंडहर ही बचे हैं।

कॉनपोर की घेराबंदी के दौरान जिन ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या हुई थी उनकी स्मृति में वर्ष 1875 में ऑल सोल्स चर्च (बिठूर से 25 किलोमीटर की दूरी पर) का निर्माण किया गया। चर्च परिसर में एक ‘मेमोरियल वेल’ या कुआँ भी है जो उन ब्रिटिश महिलाओं और बच्चों की मृत्यु पर शोक व्यक्त करने के लिए बनाया गया था जिन्होंने बिठूर की घेराबंदी में अपनी जान गँवा दी थी।

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ऑल सोल्स चर्च
चित्र सौजन्य- विकिमीडिया कॉमन्स

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नाना साहब स्मारक में संरक्षित ऐतिहासिक वृक्ष
चित्र सौजन्य- विकिमीडिया कॉमन्स

राज्य सरकार ने अब ‘नाना साहेब स्मारक’ नामक उद्यान की स्थापना की है। इसमें एक संग्रहालय है जिसकी एक कला दीर्घा में शाही आदेश, सिक्के, डाक टिकट और अन्य प्राचीन वस्तुओं जैसे औपनिवेशिक काल के ऐतिहासिक अवशेष संग्रहीत हैं। इसमें नाना साहेब, रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमाएँ भी हैं, जिन्होंने कॉनपोर की घेराबंदी की शुरुआत की थी। ऐसा माना जाता है कि इस उद्यान में पुराने बरगद के पेड़ हैं, जिनपर, कॉनपोर की घेराबंदी के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा सामूहिक फांसी दिए जाने पर, बिठूर के निवासियों को लटका दिया गया था। उन ऐतिहासिक पेड़ों को अंग्रेजों के विरुद्ध बिठूर के लोगों के संघर्ष के साक्षी के रूप में संरक्षित किया गया है।

 

एक दन्तकथा के अनुसार, अपने खिताबों का त्याग करने और नेपाल जाने से पहले, नाना साहेब ने अपने गहने एक कुएँ में फेक दिए थे। वह कुआँ अब नाना साहेब स्मारक में स्थित है। गहनों के ठौर-ठिकाने का अभी भी कुछ पता नहीं है।

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नाना साहब स्मारक
चित्र सौजन्य- विकिमीडिया कॉमन्स

मराठा पेशवा (बाजी राव द्वितीय और नाना साहेब) और उनके सेनापतियों के वंशज आज भी बिठूर और उसके आसपास के इलाकों में रहते हैं। बिठूर में रहने वाले मराठों के नामों में टोपे, मोघे, तकनिकर, साप्रे, हार्दिकर, सेहजवालकर, अठावले और पिंगे शामिल हैं। ये वंशज हर स्वतंत्रता दिवस (1947 से) पर उस स्थान पर तिरंगा फहराते हैं जहाँ नाना साहेब अपने सेनापतियों के साथ नीतियाँ बनाया करते थे।

बिठूर, भारत के इतिहास के विभिन्न कालों की महत्वपूर्ण घटनाओं का स्मरणोत्सव मनाता है। यह प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक भारत के लोगों के अनुभवों, संघर्षों और स्मृतियों का साक्षी रहा है।