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बंबई - सात द्वीपों का संयोजन (1668-1838)

दिनांक 1 सितंबर 1668 को, 'कॉन्सटेंटिनोपल मर्चेंट' नामक एक जहाज़ सूरत के तट पर पहुँचा। इस जहाज़ मे दिनांक 27 मार्च 1668 के रॉयल चार्टर की एक प्रति लाई गई थी, जिसके माध्यम से बॉम्बे का बंदरगाह और द्वीप अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी को, "ईस्ट ग्रीनविच की जागीर के रूप में, स्वतंत्र और सामान्य मालिकाना हक के तहत," प्रति वर्ष 30 सितंबर को देय 10 पाउंड प्रति वर्ष के किराए पर सौंपा जाना था। इस प्रकार भारत की वर्तमान वित्तीय राजधानी और देश के सबसे बड़े महानगरों में से एक बॉम्बे शहर की स्थापना की कहानी की शुरूवात हुई।(वर्ष 1995 में बंबई का नाम बदलकर मुंबई रख दिया गया। इस लेख में औपनिवेशिक शहर के संदर्भ में समकालीन स्रोतों के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए बंबई /बॉम्बे नाम का उपयोग किया गया है।)

दिनांक 27 मार्च 1668 को लिखे पत्र के माध्यम से लंदन में कंपनी के निर्देशकों ने सूरत में अपने कारखाने के कर्मचारियों को बॉम्बे के हस्तांतरण के बारे में पहले से ही सूचना दे दी थी। उसी दिन उन्होंने बॉम्बे में ब्रिटिश राज के गवर्नर से हस्तांतरण को प्रभावी करने हेतु अनुरोध किया था। दिनांक 30 मार्च 1668 को उन्होंने बॉम्बे पर अधिकार प्राप्त करने के लिए सूरत में कंपनी के अध्यक्ष एवं परिषद की नियुक्ति के अपने अपने निर्णय की घोषणा की। अब जब चार्टर आ गया था, सूरत परिषद ने दिनांक 3 सितंबर 1668 को एक बैठक का आयोजन किया, जिसमें द्वीपों पर अधिकार प्राप्त करने हेतु अपनी तरफ से श्री गुडियर, कैप्टन हेनरी यंग और श्री स्ट्रींशैम मास्टर्स, नामक तीन आयुक्तों को भेजने का निर्णय लिया गया। तीनों आयुक्त बॉम्बे पहुँचे और दिनांक 23 सितंबर 1668 को अंग्रेज़ अधिकारी कैप्टन हेनरी गैरी ने औपचारिक रूप से द्वीप को अपने जीवित और मृत पशु धन, हथियार, अस्र-शस्र, लोगों और 4879 पाउंड, 7 शिलिंग एवं 6 पेंस की नकद राशि साथ हस्तांतरित कर दिया। उसके बाद, सूरत काउंसिल के अध्यक्ष सर जॉर्ज ऑक्सेनडेन बॉम्बे के गवर्नर बन गए।

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सर जॉर्ज ऑक्सेनडेन, अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी के बॉम्बे के पहले गवर्नर (1668-1669)। स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

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बॉम्बे के सात द्वीप- एक आरेखीय निरूपण। स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स।

कंपनी के अधिकार में जो सात द्वीप आए थे, उनके नाम बॉम्बे, माझगांव, परेल, वर्ली, माहिम, छोटा कोलाबा या ओल्ड वूमेन आइलैंड और कोलाबा थे। इन द्वीपों के अलग अलग भूदृश्य थे जिनमें निचली पहाड़ियाँ, समुद्र तट से सटी समतल भूमि, सदाबहार वन और नमक के पटल शामिल थे। इन द्वीपों के बीच में तीन बडे प्रवेश स्थान थे जिनके माध्यम से द्वीपों के बीच की जगह में ज्वार (हाई टाईड) के दौरान समुद्री जल भर जाता था। जब पानी पीछे चला जाता था तब खारे पानी के दलदल रह जाते थे। हालाँकि भाटे (लो टाईड) के दौरान बॉम्बे से माझगांव तक समुद्र पार करना संभव था, क्योंकि उस क्षेत्र में समुद्र बहुत उथला था, परंतु अन्य द्वीपों के बीच नावों द्वारा जाना पड़ता था।

वर्ष 1534 से यह सारे द्वीप पुर्तगाली क्षेत्र का भाग थे। पुर्तगालियों ने खेती के लिए इनका उपयोग किया और इनके बीच समुद्र को पार करने के उद्देश्य से बनाए गए कुछ पुलों (कॉज़वे) को छोड़कर कोई और बड़ा निर्माण कार्य नहीं किया था। परंतु, अंग्रेज़ी कंपनी के लिए ये द्वीप राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण थे। उसने वर्ष 1627 में, डच ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से, इन द्वीपों को पुर्तगालियों से जीतने का असफल प्रयास भी किया था। वर्ष 1661 में राजा चार्ल्स द्वितीय और पुर्तगाल की ब्रागांज़ा की कैथरीन के बीच विवाह के समय की गई संधि (पुर्तगाल और ग्रेट ब्रिटेन के बीच शांति और सुव्यवस्था हेतु तथा दिनांक 23 जून, 1661 को लंदन में चार्ल्स द्वितीय की पुर्तगाल की राजकुमारी के साथ संपन्न विवाह संधि) के अनुच्छेद 11 के तहत, बॉम्बे को अंग्रेज़ी सम्राट को दे दिया गया था। परंतु, इन द्वीपों के मूल्य के विषय में सम्राट की उदासीनता और उनपर होने वाले खर्च के कारण, अंग्रेज़ी हुकूमत उनसे छुटकारा पाना चाहती थी।

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इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय (1630-1685) और पुर्तगाल के ब्रागांज़ा की कैथरीन। स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

कंपनी बॉम्बे को विकसित करना चाहती थी क्योंकि यहाँ एक उत्तम एवं गहरे पानी वाला प्राकृतिक बंदरगाह था जिसका सभी मौसमों में उपयोग किया जा सकता था। यह पर्शिया, मालाबार तट और स्पाइस आईलैंड (मलूकु द्वीप) में अंग्रेज़ी कारखानों के साथ आसान और सीधा संपर्क बनाए रखने के लिए उपयुक्त भी थे। इससे कंपनी को समुद्री डाकुओं के साथ-साथ अन्य भारतीय शक्तियों और यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों से भी बेहतर सुरक्षा मिल सकती थी। सूरत काउंसिल के अध्यक्ष और बॉम्बे के गवर्नर जेराल्ड औंगियर ने वर्ष 1671 में बॉम्बे के विकास के लिए व्यापक प्रस्ताव दिए और निर्देशकों से अनुमोदन प्राप्त करने पर, द्वीपों की किलाबंदी करने, बंदरगाह बनाने और नागरिक एवं न्यायिक संस्थाओं के विकास के लिए कदम उठाए। कंपनी के अधिकारियों ने निर्देशकों से सूरत से बॉम्बे में कंपनी के मुख्यालय को स्थानांतरित करने के लिए बार-बार अनुरोध करना शुरू कर दिया।

कंपनी ने बंबई की जनसंख्या आधार विकसित करने के लिए आप्रवासन को प्रोत्साहित किया था। इसके कारण, आवास और कृषि के लिए भूमि की आवश्यकता हुई। ऐसी भूमि केवल जल निकासी और भूमि पुनः ग्रहण द्वारा ही प्राप्त की जा सकती थी। परंतु, यह केवल तभी संभव था जब उन दरारों को बंद किया जाए जिनसे समुद्र का पानी प्रवेश करता था। साथ ही, बॉम्बे में बड़ी संख्या में मौतें हुईं और एक अंग्रेज़ का औसत जीवन केवल तीन वर्ष ही पाया गया। इसका प्रमुख कारण मलेरिया की बीमारी थी, जो भाटे द्वारा पीछे छोड़े गए खारे पानी के दलदलों की उपस्थिति के कारण फैलती थी। इस प्रकार पानी की प्रवेशिकाओं को बंद करना, दलदलों को सुखाना और समुद्र से भूमि को पुनः प्राप्त करना अनिवार्य हो गया। इन उपायों का कुल मिलाकर प्रभाव था सात द्वीपों का जुड़ना और एक द्वीप शहर का उदय होना।

सूरत काउंसिल ने उन तीन मुख्य दरारों, जिन्हें भरने की आवश्यकता थी, के बारे में निर्देशकों को सूचित किया। पहली दरार, 'ब्रीच कैंडी' जो बॉम्बे के द्वीप (मालाबार हिल) और वर्ली द्वीप के बीच थी, दूसरी वर्ली और माहिम के बीच, और तीसरी माहिम और परेल के बीच थी। वर्ष 1674 में गवर्नर ऑंगियर ने एक इंजीनियर, हर्मन बेक को नियुक्त किया, जिन्होंने द्वीप का एक नक्शा तैयार किया, जो विशेष रूप से जल प्रवेशिकाओं और उनके कारण बननेवाले बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों को उजागर करता था। बॉम्बे सरकार ने निर्देशकों को व्यक्तिगत रूप से यह नक्शा देने के लिए हर्मन बेक को इंगलैंड भेजा।

पहले तो, कंपनी के निर्देशक भूमि-सुधार पर पैसा खर्च करने के लिए तैयार नहीं थे, और उन्हे लगता था कि यह काम निजी स्तर पर लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। उन्होंने जल निकासी के लिए ज़मीन को किराए पर देने के लिए कुछ नियम और शर्तें रखीं, जैसे कि, कंपनी को देय एक छोटे से किराये के साथ, 99 वर्षों के लिए ज़मीन को पट्टे पर देना। वैकल्पिक रूप से, भूमि को इस शर्त पर किराए पर दिया जा सकता था कि भूमि सुधार का कार्य 7 वर्षों में पूरा हो जाएगा। निर्देशकों को बांध बनाने और भूमि सुधार का कार्य करने के लिए आश्वस्त होने में एक और दशक लगा जब मलेरिया के कारण होने वाली मृत्यु दर में वृद्धि होने लगी। 7 अप्रैल 1684 को उन्होंने लिखा " बॉम्बे की डूबी हुई भूमि को पुनः प्राप्त किया जाए” ( रडीम दोज़ ड्राउनड लैंड ऑफ बॉम्बे)। उन्होंनें इसी पत्र में इस कार्य को कैसे करना है इसके बारे में भी विवरण दिए। उन्होंने भारत में कंपनी अधिकारियों को तटबंध बनाने और भूमि सुधार का काम ठेकेदारों को देने के लिए कहा। इन ठेकेदारों को, सेवा में नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किए गए हर दिन के काम के लिए, प्रत्येक शनिवार की रात को कंपनी द्वारा पैसे और चावल के रूप में भुगतान किया जाना था। इसके अलावा, जब काम पूर्ण होता है, तो ठेकेदारों को एक रकम दी जानी थी। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि ज़मीन का उपयोग खेती के लिए किया जाता है तो बांधों में जलद्वारों का निर्माण किया जाएगा और यदि ज़मीन का उपयोग नमक के निर्माण के लिए किया जाता है तो समुद्र के पानी को ज़मीन पर प्रवेश करने दिया जाएगा, और इन दोनों उपयोगों के बीच चुनाव करने का विकल्प भारत में कंपनी के अधिकारियों के पास होगा। समुद्र के पास की ज़मीन का वह भाग जो पानी के नीचे डूबा हुआ था, उसे जमीन के ऊँचे भागों से मिट्टी लाकर भरा जाना था और उसे समुद्र के स्तर पर लाया जाना था। जल द्वारों को इतनी ऊँचाई पर बनाना था कि जब वे बारिश के पानी को बाहर निकालने के लिए खोले जाएँ तो समुद्र का पानी फिर से प्रवेश ना कर सके। वर्ष 1685 में निदेशकों ने कंपनी को अपने मुख्यालय को बॉम्बे में स्थानांतरित करने के लिए कहा, जिसे 2 मई 1687 को लागू किया गया।

इस प्रकार, कई पत्रों के आदान-प्रदान और विचार-विमर्श के बाद, वर्ष 1690 के कुछ समय बाद बॉम्बे और माझगांव के द्वीपों के बीच उमरखाड़ी नामक पानी का प्रवेशद्वार बंद कर दिया गया। इस प्रकार वर्ष 1690-91 तक ही माझगांव एक अलग द्वीप के रूप में दिखाई देता था।

निकोलस वेइट के गवर्नर के कार्यकाल में काम आगे बढ़ा, जिन्होंने वर्ष 1704 में उत्तर के प्रवेशद्वारों को बंद करने के काम की शुरूवात करने हेतु विलियम एलाबी को नियुक्त किया। इसके लिए पाँच तटबंधों का निर्माण शुरू किया गया था, जिनमें कम ज्वार परभाटे के दौरान भूमि से पानी निकालने के लिए जल द्वार बने थे। ऐसे तीन तटबंध, दो परेल के उत्तरी छोर पर और एक परेल और माहिम के बीच, को मार्च 1711 तक पूर्ण किया गया। माहिम और वर्ली के बीच का तटबंध भी जनवरी 1712 तक पूरा हो गया। इन कामों के माध्यम से माहिम द्वीप को परेल और वर्ली से जोड़ा गया। पानी की प्रवेशिकाओं को बंद करने से जो भूमि पुनः प्राप्त हुई उसको 'कुनबी' नामक किसानों को 'टोका' कर प्रणाली के तहत किराए पर दिया गया, जिसमें उत्पाद (मुख्य रूप से चावल) को कंपनी (भूस्वामी) और किसानों के बीच बांटा जाना था।

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ब्रीच कैंडी का विवरण - 'नीबहर के बॉम्बे के नक्शे से’, 1764, स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

परंतु, सबसे बड़ी चुनौती बॉम्बे और वर्ली के बीच, ब्रीच कैंडी (‘कैंडी’ शब्द मराठी शब्द 'खिंड' से बना है जिसका अर्थ है चट्टान की दरार) के रूप में जानी जाने वाली दरार को बंद करना था। कंपनी के इंजीनियर, श्री बेट्स ने उस दरार को बंद करने के लिए एक तटबंध बनाने का प्रस्ताव रखा और बॉम्बे काउंसिल ने इसके लिए 20,000 रुपये के आर्थिक प्रावधान को मंजूरी दी । हालाँकि बेट्स ने प्राथमिक अनुमान लगाया था कि इस कार्य में नौ महीने लगेंगे, परंतु जो काम वर्ष 1720 में शुरू हुआ, वह वर्ष 1728 तक जाकर पूरा हुआ। समुद्री जल को रोकने के लिए तटबंध पर्याप्त मजबूत नहीं था और इसकी बार-बार मरम्मत करनी पड़ती थी। यह गवर्नर विलियम हॉनर्बी (1772-1784) के अधीन था कि हॉनर्बी वेल्लार्ड (पुर्तगाली शब्द 'वलाडो' से, जिसका अर्थ ‘बाड़’ है) का निर्माण किया गया जिससे इस समस्या का स्थायी रूप से समाधान हुआ। इसके साथ, लगभग 400 एकड़ भूमि पुनः प्राप्त हुई, जिसमें से पानी निकालकर उसे सूखा दिया गया और खेती के लिए किराए पर दिया गया। भीड़-भाड़ वाले आंतरिक शहर को भी अंदर की ओर विस्तार करने के लिए भूमि मिली और महालक्ष्मी, कामठीपुरा, तारदेव और भायखला में नए आवासीय क्षेत्र निर्मित हुए। बेलासिस रोड पुल (कॉज़वे) का निर्माण हुआ जिससे मालाबार हिल से माझगांव तक, पश्चिम से पूर्वी तट को जोड़ दिया गया।

कोलाबा और छोटा कोलाबा जोड़े जाने वाले सबसे आखिरी द्वीप थे। वर्ष 1796 में, कोलाबा द्वीप को छावनी क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया था, और लोग वहाँ जाने के लिए नावों का उपयोग करते थे। इन नावों में अक्सर बहुत भीड़ होती थी, जिसके कारण दुर्घटनाएँ भी होती थीं। बॉम्बे काउंसिल ने पुल (कॉज़वे) के निर्माण का प्रस्ताव दिया और इससे होने वाले फ़ायदों को बताते हुए निर्देशकों की सहमति प्राप्त करने हेतु प्रयास किए। निर्माण कार्य वर्ष 1838 में पूर्ण हुआ और दोनों द्वीप कोलाबा कॉज़वे द्वारा बॉम्बे में जोड़े गए।

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कोलाबा द्वीप से कोलाबा कॉज़वे निर्माण का दृश्य, 1826, स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

इस प्रकार सात द्वीपों को जोड़ने का कार्य वर्ष 1838 तक पूर्ण हुआ। इसके परिणामस्वरूप जो द्वीप शहर स्थापित हुआ उसे आज दक्षिण मुंबई कहा जाता है।

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समाचार पत्र संपादक, श्री रॉबर्ट मर्फी द्वारा बनाए गए मानचित्र के आधार पर, बॉम्बे और कोलाबा के द्वीपों का नक्शा, 1843, स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

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द्वीप शहर दर्शाता बॉम्बे का नक्शा, इंडिया- जियोग्राफ़िक्स - बॉम्बे-टाइम्स -1895, स्रोत - विकिमीडिया कॉमन्स