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कोन्याक नागाओं के परिधान

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आओलांग महोत्सव के लिए पारंपरिक पोशाक पहने कोन्याक महिला l छवि स्रोत : अनी वांगयेन

मोन ज़िले में रहने वाली कोन्याक जनजाति, नागालैंड की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है। मोन ज़िला 1786 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हैl यह उत्तर में असम के सिबसागर (शिवसागर) ज़िले, दक्षिण में नागालैंड के तुएनसांग ज़िले, पूर्व में म्यांमार के सागांग ज़िले, और पश्चिम में नागालैंड के मोकोकचुंग ज़िले से घिरा है। इसके उत्तर-पूर्व में अरुणाचल प्रदेश के लोंगडिंग, तिरप, और चांगलांग ज़िले स्थित हैं।

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एक सामान्य कोन्याक घर। छवि स्रोत : एन न्येजत

नागालैंड के मोन ज़िले में रहने वाली वांचो-कोन्याक जनजाति को सामान्यतः निचले कोन्याक के रूप में जाना जाता है l उनकी भाषा तिब्बती-बर्मन भाषा-समूह की नागा उपशाखा से संबंधित है। कोन्याक जनजाति में 'थेंदु' और 'थेंको' नामक दो समूह होते हैं। उनके बीच यह विभाजन चेहरे पर टैटू की उपस्थिति के आधार पर किया गया था l 'थेंदु' समूह के सदस्य अपने चेहरों पर टैटू गुदवाते हैं, जबकि ‘थेंको’ समूह के सदस्य टैटू के बिना ही रहते हैं। आज कोन्याक बस्तियों को उनके भौगोलिक विभाजन के अनुसार जाना जाता है, जिनमें ऊपरी कोन्याक को ‘थेंको’ (बिना टैटू के) और निचले कोन्याक को ‘थेंदु’ (टैटू के साथ) कहा जाता है।

बुनाई की तकनीकें

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न्ये-तक’ (बुनाई के लिए उपयोग होने वाले देसी करघे की छड़ें)। छवि स्रोत : एन. न्येजत।

परिवार के लिए कपड़े बुनने का काम परंपरागत रूप से महिलाओं का हुआ करता था l बुनाई का महत्व केवल उपयोगिता संबंधी नहीं था, क्योंकि वस्त्र पर बने रूपांकन प्रतीकात्मक होते थे, और उनका उद्देश्य आपसी एकता को और मज़बूत करना होता था।

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नागालैंड स्थित मोन के चिंगलोंग गाँव में सूत कातती हुई कोन्याक महिला। छवि स्रोत : मान्योआ कोन्याक

सूत कातने की प्रक्रिया में, रेशों के एक गुच्छे में से कुछ रेशे अलग किए जाते हैं, और धागा बनाने के लिए उन्हें मरोड़ा (बटा) जाता है। धागे को लंबा या मोटा बनाने के लिए बुनकर इन्हें लगातार खींचते और मरोड़ते जाते हैं। धागों के लच्छों का उचित निर्माण केवल ‘गायचक’ (बाँस के पहिये) की मदद से ही संभव है। सूत को पहिए के चारों ओर लपेटा जाता है और जैसे जैसे सूत काता जाता है, यह पहिया घूमता जाता है। इससे कपड़ा बिना उलझे, आसानी से निकाला जा सकता है, जिसके कारण वस्त्र की बर्बादी कम होती है।

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न्ये-तक’ (बुनाई के लिए उपयोग होने वाले देसी करघे की छड़ें) का उपयोग करती हुई महिला। छवि स्रोत : एन हेलेन

बुनाई मुख्यतः कमर करघे या पृष्ठ पेटी करघे का बड़े पैमाने पर उपयोग करके की जाती है। कोन्याक महिलाएँ इसके लिए दो अलग-अलग तरीके अपनाती हैं, जिनमें सादा-बुनाई और अतिरिक्त बाने के पैटर्नों वाली बुनाई शामिल हैं। करघे को स्थापित करने के लिए, दीवार पर मज़बूती से लगे एक लकड़ी के खंभे या ‘न्ये-तक खोंग’ (लकड़ी के चौखटे वाला करघा) को करघे की छड़ों से जोड़ा जाता है। करघे की मज़बूती को बुनकर के कूल्हे के चारों ओर चमड़े या बाँस की एक पृष्ट पेटी लपेटकर सुनिश्चित किया जाता है। ताना अलग करने की छड़ी, करघे के हेडल की छड़, बैटन या तलवार, सूत की फ़िरकी (बॉबिन), और करघे की निचली छड़ जैसे उपकरणों का भी उपयोग किया जाता है। किसी भी खास पैटर्न को बनाने के लिए विभिन्न रंगों की सूत की अतिरिक्त छड़ें भी पहले से तैयार रखी जाती हैं।

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मीन-पोआ’ (गैटन सनरे ऑर्किड) का उपयोग पीला रंग बनाने के लिए किया जाता है। छवि स्रोत : एन न्येजत

कोन्याक महिलाएँ विभिन्न प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करके हस्त निर्मित रंग बनाती हैं। ऐसी सामग्री को कुचला जाता है, उबाला जाता है, और फिर पक्का रंग चढाने के लिए धागों को देर तक एक बर्तन में इन रंगों में डुबोया जाता है। काला रंजक ताड़ (मोलिनेरिया कैपिटुलाटा) से बनाया जाता है, धूमिल-सफ़ेद रंग को कागज़ी शहतूत (ब्रूसोनेटिया पपीरीफ़ेरा) से बनाया जाता है, और पीले रंग को ‘गैटन सनरे ऑर्किड’ या हल्दी से बनाया जाता है।

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जंगली फ़र्न या ‘चक-नू’ का उपयोग काला रंजक बनाने के लिए किया जाता था। छवि स्रोत : टिंगबोंग कोन्याक

महिलाओं का परिधान

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जाबोका गाँव (मोन ज़िला) के प्रमुख की बेटी, श्रीमती सेनम वांगचा, पूर्ण पारंपरिक परिधान में। छवि स्रोत : एन न्येजत

कोन्याक महिलाओं की पोशाकें अवसर और पहनने वाली की सामाजिक स्थिति के आधार पर अलग-अलग होती हैं। ऊपर दी गई छवि में एक मुखिया की बेटी को उसके विवाह की पारंपरिक पोशाक पहने हुए दर्शाया गया है, जिसे यह किसी त्योहार या समारोह में भी पहन सकती है।

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मुखिया की पत्नी या बेटी द्वारा पहना गया, मोतियों से सुसज्जित, न्यीसा (लपेटकर पहना जाने वाला घाघरा)। छवि स्रोत : एन न्येजत

न्यीसा’ कोन्याक महिलाओं द्वारा लपेटकर पहना जाने वाला पारंपरिक घाघरा होता है। मोतियों और सिक्कों से सजाया गया ‘न्यीसा’, केवल मुखिया के परिवार की महिलाएँ ही पहनतीं हैं। आम लोग विस्तृत अलंकरणों से रहित, बहुत साधारण पैटर्नों वाला ‘न्यीसा’ ही पहनते हैं। ‘न्यिखेक्स’ लपेटकर पहना जाने वाला एक अन्य घाघरा है, जिसे कोन्याक दुल्हनें अपनी शादी में पहनतीं हैं।

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देसी कपास से बना ‘न्यूथो-न्यीसा’ (आनुष्ठानिक पोशाक)। छवि स्रोत : एन न्येजत

न्यूथो-न्यीसा’ एक चोली है, जो आमतौर पर कोन्याक लड़कियाँ पहनती हैं। इसे एक पवित्र या आनुष्ठानिक पोशाक माना जाता है, क्योंकि लड़कियों को यौवनावस्था में प्रवेश करने के बाद ही इस चोली को पहनने की अनुमति दी जाती है। यह परिधान सादी बुनाई वाले सूती कपड़े से बनाया जाता है, और सामान्यतः धूमिल-सफ़ेद रंग का होता था।

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शटनी’ शॉल केवल कोन्याक महिलाएँ ही पहनती हैं। छवि स्रोत : नजत कोन्याक

शटनी’ एक सफ़ेद शॉल है, जिसे केवल महिलाएँ ही पहनती हैं। आमतौर पर एक ‘शटनी’ शॉल दुल्हन को उसके माता-पिता द्वारा शादी में उपहार स्वरूप दी जाती थी। यह उपहार दुल्हन बहुत संभालकर पहनती थी, क्योंकि मृत्यु के बाद उसे इसी ‘शटनी’ शाल में दफ़नाया जाता है।

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मुखिया की बेटी (बाएँ से दूसरी) की पोशाक आम लोगों की तुलना में अधिक अलंकृत होती है। इसने ‘शोह शान ओकुई खासन’ भी पहना है, जो मुखिया के परिवार के सदस्यों द्वारा पहनी जाने वाली एक शिरोभूषा है। छवि स्रोत : अनी वांगयेन

मुखिया की बेटी की पारंपरिक शिरोभूषा को ‘शोह शान ओकुई खासन’ के नाम से जाना जाता है। ये धनेश के पंखों और चमकीले रंग के मोतियों से अलंकृत की जाती हैं, और केवल मुखिया के परिवार या योद्धाओं द्वारा ही पहनी जाती है l इस विशेष शिरोभूषा को प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है, और जनजाति के सबसे वीर पुरुषों ही इसे पहनते हैंl

पुरुषों का परिधान

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पुरुषों की देसी कोन्याक शॉल। छवि स्रोत : एन हेलेन।

अन्य नागा पहाड़ी जनजातियों की तुलना में कोन्याक पुरुषों की पोशाक बहुत साधारण होती है। कोन्याक जनजाति के पुरुषों की पारंपरिक पोशाक में लपेटकर पहना जाने वाला घाघरा (किल्ट) और शॉल शामिल हैं, जो आमतौर पर सफ़ेद, काले, नीले, और लाल-से पीले रंग की होती हैं। शॉल को बनाने के लिए, पहले कपड़े के तीन या चार अलग-अलग टुकड़ों को बुना जाता है, जिन्हें बाद में एक साथ सिला जाता है। इसके बाद इसे शंख, मोतियों, कौड़ियों, और बड़ी सफ़ेद सीपियों से सजाया जाता है। ये सभी इस पोशाक को कई गुना आकर्षक बना देते हैं।

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कोन्याक पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला ‘पा पाओ न्ये’ या ‘न्येलन’। छवि स्रोत : एन नोकमैन

पा पाओ न्ये’ या ‘न्येलन’ का अर्थ, 'सभी पुरुषों के लिए शॉल’ है। यह सादी शॉल आमतौर पर पुरुषों द्वारा ‘पा’ या ‘मोरंग’ (पुरुषों का छात्रावास) जाते समय पहनी जाती है।

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चोन न्ये’ (रेशम से बनी शॉल) कोन्याक पुरुषों द्वारा पहनी जाती है। छवि स्रोत : वांगडुन कोन्याक

न्येन्यू-न्येडुप’ (रेशम से बनी बड़ी शॉल) और ‘चोन-न्ये’, (रेशम से बनी शॉल) रेशम से बनी दो प्रकार की कोन्याक शॉलें हैं। ‘चोंग-न्ये’ बहुत छोटी होती है और इसके दोनों सिरों पर डिज़ाइन होते हैं और इसका उपयोग एक ओढ़नी के रूप में भी किया जा सकता है। इसके विपरीत, ‘न्येन्यू-न्येडुप’ बहुत लंबी होती है, और इसके एक सिरे पर ज्यामितीय डिज़ाइन बना होता है। पुराने समय में, इन शॉलों को सामाजिक समृद्धि का प्रतीक माना जाता था, क्योंकि केवल अमीर लोग ही इन्हें खरीद पाते थे।

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खिया-हित’ (कोन्याक पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला लंगोट)। छवि स्रोत : डब्ल्यू.वांगडुन

खिया-हित’ कोन्याक पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला सबसे सामान्य लंगोट है। जब कोई लड़का 16 वर्ष का होता है, तब कोन्याक लोग उसके वयस्क होने के सम्मान में ‘खिया-थम’ नामक एक अनुष्ठान करते हैं। इस समारोह के दौरान, कई कौड़ियों से सजा ‘खिया-हित’ उस लड़के को दिया जाता था।

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कोन्याक पुरुषों की शॉल। छवि स्रोत : ज़िंगलिह वांगसु

ऊपर की छवि में प्रदर्शित पैटर्न को ‘हाओपू’ कहा जाता है, जिसका अर्थ 'परिपक्व' या 'ज़िम्मेदार' होता है। यह प्रतीक दर्शाता है कि इसे धारण करने वाला व्यक्ति ज़िम्मेदार और परिपक्व हो गया है, और अब जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकता है। इसकी सफ़ेद धारियाँ या ‘खक्शुपु’ सादगी, मासूमियत, और सत्यनिष्ठा की प्रतीक हैं। कोन्याक शॉल में ‘लुंगटाटपु’ नामक एक आड़ा-तिरछा रूपांकन भी बनाया जाता है, जिसका अर्थ ‘संख्याएँ’' होता है। ऐसा माना जाता है कि यह मनुष्य की दीर्घकालिक गतिविधियों या भविष्य की घटनाओं को दर्शाता है। इस चिह्न का उपयोग किसी व्यक्ति के जीवन के वर्ष या आयु गिनने के लिए भी किया जाता है।

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‘ओरिआ’(आओलांग) उत्सव के लिए पारंपरिक पोशाक पहने कोन्याक पुरुष। छवि स्रोत : एन न्येजत

कोन्याक पुरुष अपने ‘खोहोम’ (शिरोभूषा ) के बहुत शौकीन होते हैं। ‘खोहोम’ बाँस या बेंत से बनाया जाता है, और इसे जंगली सूअर के दाँतों, जानवरों के बालों, और धनुष के पंखों से सजाया जाता है। ‘खोहोम’ का उपयोग कई तरीकों से किया जाता है। शिकार और युद्ध के दौरान यह व्यक्ति के शीश के लिए एक सुरक्षात्मक कवच का काम करता है। यह कबीले या संप्रदाय संबंधी चिह्न भी है, और इसे सम्मान का प्रतीक भी माना जाता है। केवल गाँव के मुखिया और योद्धा ही धनुष के पंख वाली विस्तृत शिरोभूषा पहनते हैं। चूँकि इन पंखों को बहुत कठनाइयों का सामना करके ही प्राप्त किया जा सकता था, इसलिए इसे पहनने वाले को सतर्कता, श्रेष्ठता, विश्वसनीयता, और वीरता जैसे गुणों से संपन्न होना आवश्यक होता हैl

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वानहम्पा लोंगसो खोहोम’, एक कोन्याक मुखिया की शिरोभूषा। छवि स्रोत : ज़िंगलिह वांगसु

खिया-थम’ (वयस्क होने का उत्सव ) मनाने के बाद ही किसी लड़के को ‘खोहोम’ पहनने की अनुमति दी जाती है। कोन्याक पुरुष और महिला दोनों अलग-अलग आकार और डिज़ाइन की शिरोभूषा पहनते हैं। वे दैनिक उपयोग के लिए, न्यूनतम सजावट युक्त बाँस की शंक्वाकार शिरोभूषा पहनते हैं।

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आम आदमी की शिरोभूषा को ‘लोंगसो खोहोम’ के नाम से जाना जाता है: छवि स्रोत : येवांग कोन्याक

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जाबोका गाँव के मुखिया के पारंपरिक आभूषण। छवि स्रोत : एन न्येजत

पुराने समय में, धनुष के पंख वाली शिरोभूषा के अतिरिक्त, टैटू, और शॉल पर क्रॉस के निशान किसी के कोन्याक योद्धा होने के चिह्न माने जाते थे। ये उसके द्वारा हासिल किए गए दुश्मनों के सिरों की संख्या के सूचक थेl क्रॉस-चिह्न डिज़ाइन, जिसे ‘कहता-नोक्सा’ (अर्थात् मानव आकृति) के रूप में जाना जाता है, उस व्यक्ति के युद्ध कौशल से संबंधित होने के कारण, सफलता के प्रतीक माने जाते थेl

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शीर्ष पर बने हुए नीले तीर, ‘मुक्तार्पे’, किसी व्यक्ति के ध्यान और उसके भाग्य का प्रतीक हैं । छवि स्रोत : एन न्येजत

ऊपर दर्शाया गया हीरे के आकार का रूपांकन ‘मुक’ कहलाया जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘आँख’ l यह खेती के काम से विश्राम और अगले वर्ष के लिए बीजों के संचयन का प्रतीक है l तीर के डिजाइन को ‘मुक्तार्पे’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'लक्ष्य' और यह भाग्य, लक्ष्य, और ध्यान को केंद्रित करने का प्रतीक है।

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एक आधुनिक कोन्याक पुरुष की वास्कटl छवि स्रोत : नजत कोन्याक

दो समानांतर पट्टियों वाली वास्कट या बंडी, आधुनिक कोन्याक पुरुष की पसंदीदा पोशाक है। इसमें मुख्य रूप से ज्यामितीय आकार के डिजाइन होते हैं, जिसमें समचतुर्भुज, पट्टियाँ, धारियाँ, क्रॉस चिह्न, रेत घड़ी के आकारों, वृत्तों, तीरों, और वर्गों जैसे सामान्य रूपांकन होते हैं। ये रूपांकन और पैटर्न कोन्याक नागा पोशाक की विशिष्टता को बढ़ाते हैं।

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पूरी पारंपरिक पोशाक में, जाबोका गाँव (मोन ज़िला, नागालैंड) का मुखिया। छवि स्रोत : एन न्येजत

राज्य सरकार और स्थानीय समुदायों, दोनों, ने पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए अभियान शुरू किए हैं। कई संगठनों, विशेष रूप से महिलाओं के नेतृत्व वाले संगठनों ने, मनका और कपड़ा बनाना सिखाने के लिए, मोन ज़िले में प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए हैं। कोन्याक नागाओं के जीवंत पारंपरिक वस्त्र और आभूषण उनकी पहचान का एक अभिन्न अंग हैं। ये नागालैंड और उत्तर-पूर्व भारत की स्वदेशी जनजातियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण भी हैं।