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करवा चौथ

करवा चौथ प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक दिवसीय त्यौहार है जिसमें विवाहित हिंदू महिलाएँ सूर्योदय से चंद्रोदय तक उपवास करती हैं और अपने पति की सलामती और दीर्घायु की कामना करती हैं। इस त्यौहार में अविवाहित महिलाएँ भी अपने मनचाहे जीवन साथी की कामना के लिए प्रार्थना करती हैं। भारतीय चंद्र कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, जो लगभग अक्टूबर के मध्य से अंत तक कभी भी पड़ सकती है। यह मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों, जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है।

Karva Chauth

Karva Chauth

करवा चौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बनता है, जिसमें ’करवा’ का अर्थ एक मिट्टी का टोंटीदार पात्र है और 'चौथ' का अर्थ चौथी तिथि है। इस मिट्टी के बर्तन का बहुत महत्व है क्योंकि त्यौहार के अनुष्ठानों के समय महिलाएँ इससे चाँद को जल चढ़ाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस त्यौहार की शुरुआत तब हुई जब महिलाओं ने दूर देशों में युद्ध में लड़ने गए हुए अपने पतियों की सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना करती थी| फसल की कटाई के अंत को चिह्नित करने के लिए भी इसे मनाया जाता है। इस त्यौहार की उत्पत्ति चाहे किसी भी कारण से हुई हो, यह पारिवारिक संबंधों को मज़बूत करने का एक अवसर प्रदान करता है।


इस त्यौहार में महिलाएँ 'निर्जला' व्रत रखती हैं, जिसके दौरान वे पूरे दिन न तो कुछ खाती हैं और न ही एक बूंद पानी पीती हैं| इस त्यौहार में देवी गौरी की पूजा की जाती हैं, जो देवी पार्वती का ही एक अवतार हैं, और एक लंबे और सुखी विवाहित जीवन के लिए आशीर्वाद प्रदान करती हैं|

करवा चौथ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं। इनमें से सबसे लोकप्रिय कथा सावित्री और सत्यवान से संबंधित है, जिसमें सावित्री ने अपनी प्रार्थना और दृढ़ संकल्प से अपने पति को मृत्यु के चंगुल से वापस छुड़ा लिया था। ऐसी ही एक और कहानी वीरवती की है जो सात भाइयों की इकलौती बहन थी, जिसे वे सभी बहुत प्यार करते थे| वीरवती ने अपने पति के लिए व्रत रखा था| जब भाई पूरे दिन वीरवती को व्रत रखते हुए नहीं देख सके, तो उन्होंने उसे झूठा विश्वास दिला दिया कि चाँद उग आया है। वीरवती ने अपना व्रत तोड़ा और भोजन कर लिया लेकिन जल्द ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। उसने फिर पूरे वर्ष प्रार्थना की और इस तरह उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवताओं ने उसके पति का जीवन वापस कर दिया।

Karva Chauth

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पंजाब में करवा चौथ

अपने पड़ोसी राज्यों की तरह ही पंजाब में भी करवा चौथ से संबंधित उत्सव की तैयारियाँ सुबह जल्दी ही शुरू हो जाती हैं, जहाँ विवाहित महिलाएँ सूरज उगने से पहले उठकर अपने श्रिंगार में जुट जाती हैं। इससे एक रात पहले, महिला की माँ बाया भेजती है जिसमें उसकी बेटी के लिए कपड़े, नारियल, मिठाई, फल और सिंदूर होते हैं और उसकी सास के लिए उपहार होते हैं। बहू को भोर में उसकी सास द्वारा सरगी (करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले खाए जाने वाला भोजन) दी जाती है। इसमें ताज़े फल, सूखे मेवे, मिठाइयां, चपातियाँ और सब्ज़ियाँ शामिल होती हैं।

जैसे-जैसे दोपहर होती है, महिलाएं अपनी-अपनी थालियाँ लेकर साथ आती हैं। इस थाली में नारियल, फल, सुखे मेवे, एक दीया, एक गिलास कच्ची लस्सी, मीठी मठरी और उपहार होते हैं जो सास को दिए जाते हैं। थाली एक कपड़े से ढकी जाती है। महिलाएँ एकत्रित होकर गौरी माँ कि मूर्ती (देवी पार्वती) के चारो ओर घेरा बनाकर बैठ जाती हैं| इसके बाद एक बुद्धिमान बुज़ुर्ग महिला, सुचारू रूप से पूजा संपन्न करवाते हुए, करवा चौथ की कहानी सुनाती हैं। फिर महिलाएँ अपनी बगल में बैठीं महिलाओं को थालियाँ देकर उन्हें घेरे में घुमाना शुरू करती हैं। इसे थाली बाँटना कहा जाता है। यह अनुष्ठान सात बार किया जाता है। ऐसा करते समय वे निम्नलिखित करवा चौथ गीत गाती हैं:

Karva Chauth

“वीरों कुड़िये करवाड़ा, सर्व सुहागन करवाड़ा,
ए कट्टी न अटेरी ना, कुंभ चरखरा फेरी ना,
गवांद पैर पाईं ना, सुईच धागा पाईं ना,
रूठड़ा मनाई ना, सुथरा जगायीं ना,
भैं प्यारी वीरां, चान चढ़ें ते पानी पीना,
वे वीनों कुरीये कवारा, वे सर्व सुहागन करवारा

गीत में उन सभी सावधानियों की बात की गयी है जिन पर महिलाओं को उपवास का पालन करते समय ध्यान देने की आवश्यकता होती है। पूजा के बाद, महिलाएँ अपनी सास के पैर छूती हैं और उन्हें सम्मान के प्रतीक के रूप में सूखे मेवों के साथ उपहार भेंट करती हैं।

 

जब चाँद अंधेरे आकाश में चमकता है उस समय महिलाएँ अपना व्रत तोड़ती हैं| वे पूजा की थाल में एक छन्नी, दीया (गेहूं के आटे से बना), मिठाई और एक गिलास पानी रखती हैं। वे ऐसे स्थान, सामान्यतः छत, पर जाती हैं जहाँ से चाँद स्पष्ट रूप से दिखाई देता है| वे छन्नी के माध्यम से चाँद को देखती हैं और चाँद को कच्ची लस्सी चढ़ाती हैं और अपने पति के लिए निम्न प्रार्थना करती हैं: "सर धादी, पैर कादी, अर्क देंदी, सर्व सुहागन, चौबारे खड़ी...।” फिर पति वही कच्ची लस्सी और मिठाई पत्नी को खिलाता है और पत्नी अपने पति के पैर छूती है। दोनों अपने बुज़ुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं और इस प्रकार व्रत तोड़ा जाता है। करवा चौथ के दिन पंजाबियों के घर रात के खाने में राजमा, पूड़ियाँ, उड़द दाल ,चावल और मिठाइयाँ बनती हैं।

“सर धड़ि, पर कड़ी, आरक देंदी, सर्व सुहागन, चौबारे कड़ी….. ”

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समय के साथ भारतीय फिल्मों और टेलीविज़न के कार्यक्रमों में चित्रण के कारण इस त्यौहार के साथ जुड़े पारंपरिक रसम-रिवाज़ काफ़ी बदल गए हैं। इनसे यह त्यौहार भारत के कई ऐसे हिस्सों में भी लोकप्रिय हो गया है जहाँ यह परंपरागत रूप से नहीं मनाया जाता था। आजकल नवविवाहित पतियों ने भी अपनी पत्नियों के लिए व्रत रखना शुरू कर दिया है। इस प्रकार एक पुराने त्यौहार में परिवर्तन करके नयापन लाने से उसकी लोकप्रियता बनी हुई है|


उत्तर प्रदेश में करवा चौथ

करवा चौथ की शुरूआत भोर में ही हो जाती है| इस समय महिलाएँ उठकर सरगी का सेवन करती हैं। उत्तर प्रदेश में, फेनी (सेंवई) जिसे मीठे दूध में डुबोया जाता है, मिठाइयों और नमकीनों से भरी थाली, नारियल, सूखे मेवे और उपहार, जैसे पारंपरिक भारतीय परिधान (साड़ी, सलवार कमीज़, घाघरा चोली) सरगी में शामिल होते हैं| इस उपहार की सबसे महत्वपूर्ण वस्तुएँ वे होती हैं जो एक हिंदू महिला के विवाहित होने का प्रमाण देती हैं। इनमें बिछुए, पायल, कांच की चूड़ियाँ, सिंदूर, बिंदी और आल्ता (पैरों पर लगाया जाने वाला लाल रंग) शामिल हैं। महिलाएँ अपने हाथों पर मेंहदी भी लगवाती हैं|

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धार्मिक अनुष्ठान चन्द्रोदय से थोड़ा पहले शुरू किए जाते हैं, जब महिलाएँ अपने उत्सव के परिधानों और पारंपरिक गहनों को पहनकर, फूलों से सजकर अपनी आस-पड़ोस की अन्य महिलाओं के साथ प्रार्थना करने के लिए एकत्रित होती हैं।

इसके बाद, महिलाएँ करवा चौथ से संबंधित गीत गाती हैं और एक गोलाकार मंडली में अपनी थालियों का आदान-प्रदान करती हैं और देवी पार्वती से प्रार्थना करती हैं। कुछ अन्य क्षेत्रों में सास और बहू घर पर प्रार्थना करके एक दूसरे के साथ करवों का आदान-प्रदान करती हैं। फिर बड़ी उम्र की महिलाएँ 'अखंड सौभाग्यवती भव’ या 'सदा सुहागन रहो’ जैसे शब्दों के साथ अपने से छोटी उम्र की महिलाओं को आशीर्वाद देती हैं|

प्रार्थना के बाद महिलाएँ बेहद उत्सुकता से चंद्रोदय की प्रतीक्षा करती है। जैसे ही चाँद नज़र आता है, महिलाएँ उसे देखकर अन्य रस्मों को पूरा करती हैं। उत्तर प्रदेश में कुछ स्थानों पर, वे ज़मीन पर पिसे चावल के घोल से चाँद का एक चेहरा बनाती हैं और उसपर कुमकुम, चावल, फूल और मिठाई चढ़ाते हुए प्रार्थना करती हैं। इसके बाद वे मंत्रों के उच्चारण के साथ सात बार अपने करवों से चाँद को जल चढ़ाती हैं। इन मंत्रों में निम्नलिखित पंक्तियाँ शामिल हैं: ‘उठ सुहागन उठ कुलवंती नार, बारे चंदा घी के दीए न बार’| यहाँ विवाहित महिलाओं को उठने और चाँद की पूजा करने के लिए प्रेरित किया जाता है, और कहा जाता है कि जब चाँद रूपी दीपक चमक रहा है तो वे मिट्टी के दीयों को न जलाएँ।

‘उत सुहागन अरिद कुलबंती नरा, नंगे चंद घी की ना बैर’