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खजुराहो के मंदिर

ऐसा माना जाता है कि भारत में 20 लाख से अधिक हिंदू मंदिर हैं। ये मंदिर भारतीय संस्कृति और जीवन प्रणाली की विविधता को दर्शाते हैं। भारत की मंदिर वास्तुकला में हमेशा एक अंतर्निहित दृष्टिकोण प्रदर्शित होता है। यह दृष्टिकोण, अनुभूति, स्थान, और समय का प्रतिक होता है। हिंदू मंदिरों के निर्माण से संबंधित कला और वास्तुकला शिल्प शास्त्र में अच्छी तरह से परिभाषित है। इसमें नागर या उत्तरी शैली, द्रविड़ या दक्षिणी शैली, और वेसर या मिश्रित शैली नामक भारत की तीन मुख्य मंदिर वास्तुकला शैलियों का उल्लेख है।

नागर शैली की मुख्य विशेषताओं में गर्भगृह, शिखर (वक्रीय मीनार), और मंडप (प्रवेश हॉल) शामिल हैं। नागर शैली का विकास धीरे-धीरे हुआ क्योंकि पहले के मंदिरों में केवल एक ही शिखर हुआ करता था, जबकि बाद के मंदिरों में कई शिखर होते थे और गर्भगृह हमेशा सबसे ऊँचे शिखर के नीचे पाया जाता था।

खजुराहो के मंदिर नागर शैली के मंदिरों के अद्भुत उदाहरण हैं क्योंकि इन मंदिरों में एक गर्भगृह, एक संकरा आंतरिक-कक्ष (अंतराल), एक अनुप्रस्थ भाग (महामंडप), अतिरिक्त सभागृह (अर्ध मंडप), एक मंडप या बीच का भाग और एक प्रदक्षिणा-पथ होता है, जिसमें बड़ी खिड़कियों द्वारा प्राकश आता है।

अपने सुशोभनीय मंदिरों के लिए प्रसिद्ध, खजुराहो, चंदेल शासकों द्वारा 900 ईस्वी से 1130 ईस्वी के बीच बनाया गया था। खजुराहो और इसके मंदिरों का पहला उल्लेख अबू रेहान अल बिरूनी (1022 ईस्वी) और इब्न बतूता (1335 ईस्वी) के वृत्तांतों में मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि ये मंदिर 20 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए थे और 12वीं शताब्दी में यहाँ लगभग 85 मंदिर थे। समय के साथ खजुराहो में मंदिरों की संख्या घटकर आज केवल 20 ही रह गई है।

चंदेल साम्राज्य का, दसवीं से चौदहवीं शताब्दी तक, मध्य भारत पर शासन था। चंदेलों को उनकी कला और वास्तुकला में रुचि के लिए जाना जाता था। हालाँकि वे शैव पंथ के अनुयायी थे, परंतु उनकी वैष्णववाद और जैन धर्म के प्रति भी रुचि बताई गई है।

मंदिरों की नक्काशी मुख्य रूप से हिंदू देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं से संबंधित है। स्थापत्य शैली भी हिंदू परंपराओं के अनुसार है। इनकी विभिन्न कारकों द्वारा पुष्टि की जा सकती है। हिंदू मंदिर के निर्माण की एक प्रमुख विशेषता यह है कि मंदिर का मुख सूर्योदय की दिशा की ओर होना चाहिए। खजुराहो के सभी मंदिरों का निर्माण इसको ध्यान में रखकर किया गया है। इसके अलावा, यहाँ की नक्काशियाँ हिंदू धर्म के जीवन के चार लक्ष्यों अर्थात, धर्म, काम, अर्थ, और मोक्ष, को दर्शाती हैं।

चंदेलों द्वारा निर्मित स्मारक अपने स्थापत्य और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध थे। चंदेलों को ललित कलाओं, संगीत और नृत्य की विभिन्न शैलियों में भी गहरी रुचि थी। यह तथ्य, इन मंदिरों की दीवारों पर संगीत और नृत्य के विभिन्न दृश्यों को प्रदर्शित करने वाली मूर्तियों, से स्पष्ट है।

खजुराहो के मंदिरों में कामुक भाव बहुत सामान्य है। चौड़े कूल्हों, भारी स्तनों, और लालसा-भारी आँखों वाली स्वर्गीय अप्सराओं की मूर्तियाँ आमतौर पर कंदरिया महादेव और विश्वनाथ मंदिर में पाई जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि यह मूर्तियाँ स्त्री सौंदर्य और प्रजनन क्षमता की अवधारणा को दर्शाती हैं। मंदिरों की दीवारों पर दर्शाए गए अन्य दृश्य मानव जीवन चक्र का भाग हैं, जो यह दर्शाते हैं कि यौन प्रसव और काम मानव जीवन के अनिवार्य पहलू हैं।

खजुराहो के मंदिरों के अध्ययन का प्रमुख केंद्र मूर्तियाँ रही हैं। इन मंदिरों की दीवारों पर उस समय की कुछ सर्वश्रेष्ठ मूर्तियाँ हैं, जिसके कारण खजुराहो सर्वोत्कृष्ट कलात्मक विशेषताओं का केंद्र बन गया है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में पाँच अलग-अलग प्रकार की मूर्तियों के वर्ग हैं:

  1. पंथ-संबंधी मूर्तियाँ
  2. परिवार, पार्श्व, आवरण देवता
  3. अप्सराएँ और सुरसुंदरियाँ
  4. विविध विषयों को दर्शाती गैर-धार्मिक मूर्तियाँ (नर्तक, संगीतकार, शिष्य, और घरेलू दृश्य)
  5. पौराणिक जीव (व्याल, शार्दूल, और अन्य जानवर)

मूर्तियों और कामुक छवियों के ये समूह, दैनिक जीवन के दृश्य प्रदर्शित करते हैं।

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खजुराहो मंदिर समूह। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

इन मंदिरों के इतिहास के साथ कई कहानियाँ जुड़ी हुईं हैं। एक अवधारणा के अनुसार, इन मंदिरों के निर्माण को शिव-शक्ति संप्रदाय के प्रसार का भाग माना जा सकता है। दूसरी अवधारणा है कि ये मंदिर देवदासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कभी मंदिर की गतिविधियों का एक प्रमुख भाग हुआ करती थीं। खजुराहो के मंदिरों में मगध, मालवा, और राजपूताना से सबसे सुंदर महिलाओं को देवदासियों के रूप में प्रशिक्षण के लिए लाया जाता था। लोगों का कहना है कि सुरसुंदरियाँ, जो मंदिरों की आंतरिक और बाहरी दीवारों पर बनी हैं, उनको वास्तविक जीवन से लिया गया था और देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ स्थापित किया गया था। एक अन्य अवधारणा के अनुसार ये मूर्तियाँ एक सामान्य मनुष्य का जीवन-चक्र प्रदर्शित करती हैं। आज इन मंदिरों के निर्माण का वर्णन करने वाला कोई लिखित ग्रंथ न होने के कारण, यह निश्चित रूप से कहना कठिन है कि इनमें से कौन सी अवधारणा सही है। इन मूर्तियों के निर्माण के पीछे के उद्देश्य के बावजूद, हम यह सुनिश्चित रूप से जानते हैं कि हमें दुनिया में सबसे अधिक अलंकृत, जटिल और सुंदर मूर्तियों का समूह, भेंट के रूप मे प्राप्त हुआ है, जो आज भी विद्यमान है।

खजुराहो के मंदिरों को पश्चिमी समूह, पूर्वी समूह और दक्षिणी समूह में विभाजित किया गया है।

खजुराहो के मंदिरों की वास्तुकला बहुत जटिल है। इन मंदिरों के मुख्य घटक हैं:

  1. एक संकीर्ण पूर्व-कक्ष अथवा अंतराल सहित, गर्भगृह,
  2. महा मंडप, एक बड़ा सभागृह
  3. अर्ध मंडप और मंडप, जो छोटे अतिरिक्त सभागृह हैं
  4. प्रदक्षिणा पथ, एक परिक्रमा पथ

खजुराहो में कुछ मंदिर पंचायतन प्रकार के हैं, जिनमें चार मंदिर देवताओं को समर्पित होते हैं और बहुदा एक अन्य मंदिर मुख्य देवता के वाहन को समर्पित होता है।

यह माना जाता है कि खजुराहो के मंदिरों को केन नदी के पूर्वी तट से पन्ना की खदानों से मंगवायए गए हल्के रंग के बलुवा पत्थर से बनाया गया है। मंदिरों के निर्माण में लोहे के कीलकों का भी बहुतायत में उपयोग किया गया है। कुछ अन्य छोटे मंदिर बलुवा पत्थर और ग्रेनाइट के मिश्रण से निर्मित हैं।

पश्चिमी समूह के मंदिर

पश्चिमी समूह के मंदिर बमीठा-राजनगर मार्ग के पश्चिम में सिब-सागर झील के तट पर स्थित हैं। इनमें सात मंदिर शामिल हैं जो शैव एवं वैष्णव पंथों को समर्पित हैं।

1) चौसठ योगिनी मंदिर

यह मंदिर सिब-सागर झील के दक्षिण-पश्चिम में एक नीची चट्टान पर स्थित है। उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित, खजुराहो में पूरी तरह से ग्रेनाइट से निर्मित यह एकमात्र मंदिर है। मंदिर एक विशाल चबूतरे पर खड़ा है और इसमें 104 फ़ीट लंबा और 60 फ़ीट चौड़ा प्रांगण है। मंदिर परिसर में में 65 छोटी कोशिकाएँ थीं, जिनमें से एक देवी काली को समर्पित थी और बाकी 64 उन योगिनियों को समर्पित थीं जो देवी काली की सेविकाएँ मानी जाती हैं, जिनके नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा था। इन 65 कोशिकाओं में से अब केवल 35 कोशिकाएँ ही बची हैं। इनमें से किसी में भी अब कोई मूर्ति नहीं है। प्रत्येक कोशिका की छत पर एक छोटी मीनार या शिखर बना हुआ है, जिसके निचले भाग को चैत्य खिड़कियों की नकल में त्रिकोणीय अलंकरणों से सजाया गया है। मंदिर की निश्चित आयु इंगित करने वाला कोई दिनांकित शिलालेख भी उपस्थित नहीं है।

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चौसठ योगिनी मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

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कंदरिया महादेव मंदिर। चित्र सौजन्य- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

2) कंदरिया महादेव मंदिर

यह 10वीं शताब्दी ईस्वी का मंदिर खजुराहो के सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है। यह मंदिर 109 फ़ीट ऊँचा और 60 फ़ीट चौड़ा है। मंदिर की आंतरिक व्यवस्था हिंदू मंदिर के सामान्य निर्माण से अलग है क्योंकि इसके गर्भगृह के चारों ओर एक खुला मार्ग है, और इसके कारण मंदिर के भीतरी भाग में बनी वेदी ऊँची है। कंदरिया मंदिर की दीवारों पर लगभग नौ सौ मूर्तियाँ बनी हुईं हैं। मूर्तियों की ऊँचाई 2.5 फ़ीट से 3 फ़ीट तक है। मंदिर का प्रवेश द्वार मेहराबनुमा है और इसे देवी-देवताओं एवं संगीतकारों की मूर्तियों से सजाया गया है। इसके अलावा, गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर फूलदार नक्काशियाँ हैं जिनके बीच में तपस्या में मग्न योगीयों की मूर्तियाँ बनी हैं। चौखटों के आधारों पर जो स्त्री आकृतियाँ बनी हैं वे देवी गंगा (गंगा नदी) और देवी जमुना (यमुना नदी) की हैं। इन देवियों के साथ उनके अपने-अपने वाहन, क्रमशः, मगरमच्छ और कछुआ, भी बने हैं। गर्भगृह के अंदर भगवान शिव का प्रतीक, एक संगमरमर का लिंग है। कई प्रकार की नाज़ुक मुद्राओं में अप्सराओं की कई आकृतियाँ भी हैं।

3) देवी जगदंबा मंदिर

लगभग 77 फ़ीट लंबा और 50 फ़ीट चौड़ा, यह मंदिर अब देवी जगदंबा अथवा जगत की माता के नाम से जाना जाता है। यह माना जाता है कि गर्भगृह के प्रवेश द्वार के केंद्र पर भगवान विष्णु की प्रतिमा होने के कारण, यह मंदिर मूल रूप से उन्हें समर्पित किया गया था। इसमें दाईं और बाईं ओर भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा की प्रतिमाएँ भी हैं। गर्भगृह के अंदर, कमल के फूल पकड़े हुए, चतुर्भुज देवी की एक बड़ी मूर्ति है। मंदिर में देवी लक्ष्मी (भगवान विष्णु की पत्नी) की एक अन्य प्रतिमा भी है। यहाँ पाए गए कुछ शिलालेखों के आधार पर यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में हुआ था, जिस अवधि में यहाँ चंदेल शासन अपने चरम पर था। गर्भगृह के दक्षिण में यम की एक मूर्ती है, और भगवान शिव की प्रतिमा (आठ भुजाओं और तीन सिरों से युक्त) एक निचले आले में है।

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देवी जगदंबा मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

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चित्रगुप्त या भरतजी का मंदिर। चित्र सौजन्य- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

4) चित्रगुप्त या भरतजी का मंदिर

इस मंदिर का मुख पूर्व की ओर है और इसकी लंबाई 75 फ़ीट और चौड़ाई 52 फ़ीट है। सूर्य देव को समर्पित, इसके गर्भगृह में सूर्य देवता की प्रतिमा है, जिसमे वे ऊँचे जूते पहने हुए, सात घोड़ों वाले रथ को चलाते हुए दर्शाए गए हैं। प्रतिमा की लंबाई 5 फ़ीट है। प्रवेश द्वार पर सूर्य देव की एक और मूर्ती भी है। एक अन्य मूर्ति भगवान विष्णु की ग्यारह मुख वाली प्रतिमा है जो गर्भगृह के दक्षिण में बीच के आले में है। इस प्रतिमा का केंद्रीय मुख स्वयं भगवान विष्णु का है, जबकि शेष दस मस्तक उनके दस अवतारों के प्रतीक हैं। मंदिर पर कोई शिलालेख नहीं है इसलिए इसके निर्माण की अवधि का निश्चित रूप से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।

5) विश्वनाथ मंदिर

विश्वनाथ, या 'जगत के ईश' भगवान शिव का एक और नाम है, जिन्हें यह मंदिर समर्पित है। गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर 90 फ़ीट लंबी, और नंदी (बैल) पर सवार, भगवान शिव की प्रतिमा है। दाईं और बाईं ओर, अपने वाहन (हंस) पर भगवान ब्रह्मा, और अपने वाहन (गरुड़) पर भगवान विष्णु की प्रतिमाएँ भी हैं। मंदिर के अंदर एक लिंग है और मंडप के अंदर पत्थर की शिलाओं पर उत्कीर्ण दो संस्कृत शिलालेख हैं। बाईं ओर का बड़ा शिलालेख 1059 विक्रम संवत या 1002 ईस्वी का है। इसपर राजा नानुका से लेकर राजा धंग तक, चंदेल राजाओं की वंशावली का वर्णन है। शिलालेख के अनुसार, राजा धंग की देख-रेख में यह मंदिर बनाया गया था, जिन्होंने लिंग के अंदर पन्ना डलवाकर, इसे भगवान शिव को समर्पित किया था।

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विश्वनाथ मंदिर। चित्र सौजन्य- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

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लक्ष्मण मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

6) लक्ष्मण मंदिर

यह मंदिर चतुर्भुज मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, और यह लगभग 99 फ़ीट लंबा और 46 फ़ीट चौड़ा है। यह मंदिर वास्तुकला में अपने नवाचार के लिए जाना जाता है। इस मंदिर के निर्माण के बाद से ही मंदिरों के निचले भाग के चारों ओर अलंकृत पट्टे का उपयोग किया जाने लगा। इन पट्टों को अप्सराओं की सुंदर मूर्तियों से सजाया जाता था। मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक सुंदर तोरण है, और मंडप की छत को नोकदार और छिद्रित वृत्तों जैसे शानदार अलंकरणों से सजाया गया है। गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव की प्रतिमाओं के साथ देवी लक्ष्मी की प्रतिमा है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास हुआ था।

पश्चिमी परिसर के अंदर अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों में लालगुआन महादेव मंदिर, नंदी मंदिर, पार्वती मंदिर, महादेव मंदिर और वराह मंदिर शामिल हैं।

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नंदी मंदिर। चित्र सौजन्य- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

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वराह मंदिर। चित्र सौजन्य- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

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पार्वती मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

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लालगुआन महादेव मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

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महादेव मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

पूर्व समूह के मंदिर

पूर्व समूह के मंदिर खजुराहो गाँव के बहुत नज़दीक स्थित हैं। इस परिसर में तीन हिंदू और तीन बड़े जैन मंदिर - घंटाई मंदिर, आदिनाथ मंदिर, और पार्श्वनाथ मंदिर - शामिल हैं। हिंदू मंदिर भगवान ब्रह्मा, वामन, और जावरीको समर्पित हैं।

1) ब्रह्मा मंदिर

ऐसा माना जाता है कि खजुराहो सागर झील के तट पर स्थित इस मंदिर के गर्भगृह में चार मुख वाली (चतुर्मुख) प्रतिमा संभवतः भगवान शिव की हो सकती है, परंतु स्थानीय उपासकों द्वारा इसे गलती से भगवान ब्रह्मा की प्रतिमा समझा गया है। गर्भगृह के मध्य में और पश्चिम की खिड़कियों पर भगवान विष्णु की प्रतिमाएँ हैं। यह खजुराहो के उन कुछ मंदिरों में से एक है जो ग्रेनाइट और बलुवा पत्थर से निर्मित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी के उत्तरार्ध या 10वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुआ था।

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ब्रह्मा मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

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वामन मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

2)वामन मंदिर

यह मंदिर ब्रह्मा मंदिर के उत्तर-पूर्व की ओर स्थित है, और इस मंदिर की लंबाई लगभग 63 फ़ीट और चौड़ाई 46 फ़ीट है, तथा यह एक असाधारण रूप से ऊँचे चबूतरे पर खड़ा है। गर्भगृह के अंदर 5 फ़ीट ऊँची भगवान विष्णु के वामन अवतार की एक सुंदर प्रतिमा है। इसमें विष्णु के अन्य अवतारों की आकृतियाँ भी उत्कीर्णित हैं, जिनमें भगवान ब्रह्मा की आकृति भूमिस्पर्श-मुद्रा में दर्शाई गई है। गर्भगृह के चारों ओर ऊपरी पंक्ति में भगवान ब्रह्मा अपनी पत्नी के साथ दक्षिण में, और भगवान विष्णु अपने पत्नी के साथ उत्तर में, प्रदर्शित हैं। निचली पंक्ति में वराह, नरसिंह, और वामन की आकृतियाँ हैं।

3) घंटाई मंदिर

इस मंदिर का नाम, मंदिर में द्वारमंडप के स्तंभों को सुशोभित करती, ज़ंजीरों पर लटकी घंटियों पर पड़ा है। इसमें जैन तीर्थंकरों की 11 नग्न प्रतिमाएँ और दो यक्षिणीयों की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर गरुड़ पर सवार आठ भुजाओं वाली जैन देवी की आकृति है, जिनके हाथों मे विभिन्न हथियार हैं। सरदल के प्रत्येक छोर पर एक तीर्थंकर की आकृति है। बाईं ओर की नौ छवियाँ नौ ग्रहों (नवग्रह) को दर्शाती हैं। द्वारमंडप के स्तंभों को सींगों वाले सिरों अथवा कीर्तिमुखों की पट्टियों, और साथ ही तपस्वियों और गंधर्वो की छवियों के साथ सजाया गया है। मंदिर की छत के किनारों पर कई प्रकार के वाद्ययंत्रों पर नाचते-गाते संगीतकारों के समूहों को दर्शाते हुए पैनलों की पंक्तियाँ बनी हैं। सरदल के ऊपर हाथी, बैल, शेर, लक्ष्मी, माला और ऐसी अन्य शुभ वस्तुओं को दर्शाया गया है, जिन्हें जैन धर्म के संस्थापक, महावीर की माँ ने उनके जन्म से पहले अपने सपने में देखा था।

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घंटाई मंदिर। चित्र सौजन्य- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

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पार्श्वनाथ जैन मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

4) पार्श्वनाथ जैन मंदिर

यह मंदिर, जैन मंदिरों में सबसे बड़ा है और यह 69 फ़ीट लंबा और 35 फ़ीट चौड़ा है। यह 22वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का मंदिर माना जाता है। मंदिर के द्वार की बाईं ओर एक नग्न पुरुष की आकृति है और दाईं ओर एक नग्न महिला की आकृति है, और केंद्र में ऊपर तीन बैठी हुइ महिलाओं की प्रतिमाएँ हैं। प्रवेश द्वार के ऊपर एक दस भुजाओं वाली जैन देवी हैं, जो विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों को धारणकर गरुड़ पर विराजमान हैं। सरदल के दोनों छोरों पर, क्रमशः हंस और मोर पर सवार, दो अन्य देवीयाँ उत्कीर्णित हैं। मंदिर के अंदर, पार्श्वनाथ की एक छोटी बैठी हुई प्रतिमा है, जिसपर इस मंदिर का नाम पड़ा है। दरवाजे की चौखट पर दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी के अक्षरों में तीर्थयात्रियों के तीन छोटे अभिलेख हैं, और शायद इसी अवधि के दौरान यह मंदिर बना था।

पूर्वीय परिसर में अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं, जिनमें जावरी मंदिर, आदिनाथ मंदिर, और शांतिनाथ मंदिर शामिल हैं।

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जावरी मंदिर I चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

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आदिनाथ मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

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शांतिनाथ मंदिर। चित्र सौजन्य - विकिमीडिया कॉमन्स

दक्षिणी समूह के मंदिर

दक्षिणी समूह में दुलादेव और जटकारी मंदिर शामिल हैं।

1) दुलादेव मंदिर

यह मंदिर खजुराहो के मुख्य मंदिरों से लगभग डेढ़ मील दूर है और मूल रूप से शिव पंथ को समर्पित है। 70 फ़ीट ऊँचे और 41 फ़ीट चौड़े इस मंदिर में पांच कक्ष हैं। इसमें चतुर्भुज गण और एक शंख से युक्त नक्काशी का एक अनूठा समूहहै। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण लगभग 10वीं शताब्दी ईस्वी में हुआ था।

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दुलादेव मंदिर। चित्र सौजन्य- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

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जटकारी या चतुर्भुज मंदिर। चित्र सौजन्य -विकिमीडिया कॉमन्स

2)जटकारी या चतुर्भुज मंदिर

पश्चिम की ओर मुख वाला यह मंदिर जटकारी गाँव के पास स्थित है। यह भगवान विष्णु को समर्पित है और गर्भगृह में लगभग नौ फ़ीट ऊँची उनकी प्रतिमा स्थापित है। भगवान विष्णु की चतुर्भुज प्रतिमा मुकुट और अन्य आभूषणों से सुशोभित है। प्रतिमा का ऊपरी दाहिना हाथ अभय-मुद्रा में उठा हुआ है, और उस हथेली पर एक गोलाकार निशान है, जबकि बाएँ हाथ में कमल का डंठल और डोरी से बंधी हुई एक पवित्र पुस्तक है। गर्भगृह के बाहरी भागों को हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों की तीन पंक्तियों से सजाया गया है।

मंदिरों की औपचारिक रचना में, एक हजार वर्ष पहले के कारीगरों ने इस तरह संपूर्ण जीवन चक्र बनाया और हिंदू और जैन देवताओं के विभिन्न पहलुओं को चित्रित किया है। इसके अतिरिक्त, ये मूर्तियाँ चित्रित किए गए विषयों की अद्वितीय विविधता के लिए भी उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा, सुरसुंदरियों के कामुक रूप से प्रतिरूपित शरीरों, तथा वस्त्रों और आभूषणों की लहरों और वक्रों का, खूबसूरती से चित्रण किया गया हैं। इस तरह, खजुराहो के मंदिर प्रारंभिक काल में हमारे देश की कलाओं के संभवत: सबसे अधिक मानवतावादी निरूपण हैं।

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इलाहाबाद संग्रहालय, खजुराहो के उपासक। चित्र सौजन्य - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण