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सिमला

 

क्योंथल के राजा के साथ समझौतों की श्रंखला के माध्यम से, सिमला अंग्रेज़ों को सौंप दिया गया। अपने प्रारंभिक दिनों में, पड़ोसी हिल स्टेशन कसौली की तरह, सिमला का उपयोग एक आरोग्य आश्रम के रूप में किया जाता था। ऐसा माना जाता था कि ठंडे मौसम से दीर्घकालिक बीमारियों के ठीक होने में मदद मिलती है। यह मैदानों के सामान्यतः गरम और नमी की परिस्थितियों से भी राहत देता था। वहाँ पहुँचने के लिए हिंदुस्तान-तिब्बत मार्ग और कालका-सिमला रेलमार्ग का प्रयोग किया जाता था । हिंदुस्तान-तिब्बत मार्ग १८५० में लॉर्ड डलहौज़ी के संरक्षण में शुरू किया गया, जबकि कालका-सिमला रेलमार्ग १९०३ में ही जाकर कार्यात्मक हुआ। इससे पहले, कलकत्ते से सिमला तक की यात्रा करना एक दुष्कर प्रक्रिया थी, जिसमें रेल और घोड़े गाड़ी से यात्रा की जाती थी।

१८६४ में सर जॉन लॉरेंस ने आधिकारिक रूप से सिमला को अंग्रेज़ी साम्राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित की। यह राजधानी सिमला बाज़ार के प्रसिद्ध क्राइस्ट चर्च से ३ मील तक के घेरे में फैली हुई थी। शीघ्र ही यह एक छोटे अँग्रेज़ी शहर में विकसित हो गयी जिसमें डाक घर, तार घर, सशत्र सेनाओं का मुख्यालय, भारत सरकार सचिवालय, भारत सरकार प्रेस, लिपिकों के कुटीर, लोक निर्माण विभाग सचिवालय, वित्तीय विभाग का कार्यालय और भारत की अंग्रेजी सरकार का गृह विभाग जैसी कई इमारतें थीं ।


अँग्रेज़, हर वर्ष अप्रैल से अक्टूबर के बीच कलकत्ता से अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी, सिमला चले जाते थे।

सिमला की ओर वार्षिक स्थान-परिवर्तन केवल वाइसरॉय एवं उनकी परिषद् ही नहीं करती थी, बल्कि औपनिवेशिक अधिकारी तंत्र की सभी अवसंरचनाएँ एवं उनकी सशस्त्र सेनाएँ भी करती थीं। कुछ विभाग, जैसे कि स्वच्छता आयुक्त, लेखा परीक्षक एवं सैन्य निर्माण विभाग ने हिल स्टेशन में स्थायी कार्यालय बना लिए थे । अन्य, जैसे महालेखाकार, प्रेस आयुक्त और कई अन्य प्रति वर्ष अपने अधिकारियों, लिपिकों, दस्तावेजों और सामानों के साथ वाइसरॉय के आवास के पास अपना संचालन केंद्र स्थापित करते थे। सिमला भत्ता अधिनियम द्वारा इन विभागों से संबंधित लिपिकों को स्वयं एवं अपने परिवारों को सिमला ले जाने और उचित समय में कलकत्ते लौटने के लिए यात्रा भत्ता मिलना सुनिश्चित किया गया । इसके अतिरिक्त, वेतन और कार्यकारी भत्ता संहिता के अंतर्गत वे भत्ते के ३/४ हिस्से पर अपने निजी भत्ते के रूप में अतिरिक्त दावा कर सकते थे।


कई अँग्रेज़ अधिकारियों ने सिमला में रहने के लिए घर खरीद लिए। हालाँकि, प्रतिमानक, ग्रीष्मकाल के लिए घर किराए पर लेने थे। अँग्रेज़ संप्रदाय के इस जमावड़े ने कई भारतीय शाही परिवारों के सदस्यों को सिमला की ओर आकर्षित किया। कुछ भारतीय राजाओं एवं राजकुमारों ने शाही दरबारों के अवसरों पर सिमला का भ्रमण किया, जबकि दूसरों ने अँग्रेज़ी समुदाय में घुलने-मिलने के लिए इस 'लिटल इंग्लैंड' की सैर की। १८०० के दशक तक, चार सौ उचित रूप से बड़े घरों में से, तीस घर भारतीय मूल के राजाओं के थे। नहान के राजा चौदह संपत्तियों के मालिक थे जबकि ढोलपुर के महाराणा और जयपुर के महाराज, प्रत्येक दो संपत्तियों के मालिक थे।

शहर में घर होने के बावजूद, एक भारतीय राजा को सिमला में रहने के लिए, वाइसरॉय के कार्यालय से अनुमति लेनी पड़ती थी। उन्हें अपना प्रार्थना-पत्र अपने राज्य के गवर्नर जनरल के एजेंट से प्रमाणित भी करवाना पड़ता था। १९१४ में ढोलपुर के महाराणा, राजस्थान ने कहा कि वे "शारीरिक रूप से गर्म मौसम बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं" और इसलिए उन्हें ग्रीष्मकाल के दौरान सिमला में रहना पड़ेगा।


भारतीय मूल के राजा अपनी महत्ता के अनुकूल बड़े अनुचरवर्ग के साथ यात्रा करते थे। १८१३ में ढोलपुर के महाराज पाँच अधिकारियों और चालीस अनुचरों सहित आए, जबकि अगले वर्ष वे सात सरदारों और चौंतीस अनुचरों के साथ आए। यह अँग्रेज़ी अधिकारियों के लिए दो कारणों से चिंता का विषय बन गया। पहला, यह वाइसरॉय की प्रतिष्ठा का मामला था क्योंकि वाइसरॉय स्वयं शाही ग्रीष्मकालीन राजधानी की सैर, परिचारक गण के बिना करते थे। इसकी तुलना में, एक भारतीय राजा का अपने आप को परिचारकों से घेर लेना अनुचित लगता था। दूसरा, व्यावहारिकता का मामला था। भारतीय राजकीय घरों में साधारणतः होने वाले शोरगुल से भरे आनंदोत्सवों और भीड़-भाड़ के कारण अँग्रेज़ अधिकारी भारतीय राजाओं की सम्पत्तियों के निकट किराए पर घर नहीं लेते थे। इसके अतिरिक्त, यह शंका भी थी कि जो भारतीय राजा अपने घर अँग्रेज़ अधिकारियों को किराए पर देते थे वे अपने किराएदारों से राजनीतिक अनुग्रह वसूलते थे। अँग्रेज़ अधिकारियों को लगता था कि भारतीय राजा अपनी एक दूसरे के प्रति बचकानी होड़ में सिमला में संपत्ति खरीदते थे। इसलिए यह तर्क दिया गया कि भारतीय राजाओं द्वारा सिमला में घरों की खरीद को शिष्ट एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोकना वांछनीय होगा। ऐसी रोक, परंतु, आधिकारिक रूप से सरकार के आदेशों में आदिष्ट एवं व्यक्त नहीं की जानी चाहिए। आख़िरकार, अँग्रेज़ी सरकार के पास भारतीय राजाओं को तब तक संपत्ति खरीदने से रोकने का कोई कानूनी अधिकार नहीं था, जब तक उनके पास धन उपलब्ध था।


सिमला का ऐतिहासिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण भवन वाइसरॉय आवास है। यह ऑब्जर्वेटरी हिल पर बनाया गया था और कर्नल जे. टी. बोइलो द्वारा अभिकल्पित किया गया था। अप्रैल १८८८ में इसका निर्माण पूरा हुआ। इस भवन के निर्माण कार्य का निरीक्षण, कार्य अधीक्षक, श्री हेनरी अर्विन ने अपने प्रधान लिपिक श्री जे. एच. बेकर, सहित किया । सवंत्रता के बाद इसका नाम 'राष्ट्रपति निवास' रख दिया गया।

यह शहर भारत के इतिहास की कुछ सबसे ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है जैसे कि सिमला सम्मलेन, जिसमें १९४५ में भारतीय स्वशासन की योजना प्रतिपादित की गई थी। २ जुलाई १९७२ को प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी एवं पाकिस्तान के राष्ट्रपति, ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने सिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके अंतर्गत नए राज्य, बांग्लादेश को मान्यता दी गई।

सिमला, जो अब शिमला के नाम से जाना जाता है, अंग्रेज़ों द्वारा पहाड़ों की रानी कहा जाता था और आज, पर्यटन इस शहर के समृद्ध औपनिवेशिक अतीत की सबसे प्रत्यक्ष विरासत है।