Type: अवनद्ध वाद्य
डंफ़ु चमड़ा, लकड़ी और बाँस से निर्मित एक ताल वाद्य यंत्र है। यह दुर्लभ वाद्य यंत्र सिक्किम में पाया जाता है।
Material: चमड़ा, लकड़ी, बाँस
डंफ़ु एक बड़ी डफली के समानुरूप एक ताल वाद्य यंत्र है। यह द्वि पक्षीय चकती के आकार की डफली है जो चमड़े से ढकी है और एक लंबी लकड़ी के हत्थे संलग्न है। यह राज्य के स्वदेशी तमांग समुदाय से संबंधित एक बहुत ही दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्र है। इस वाद्य यंत्र को बजाना और सीखना बहुत आसान है। तमांग समुदाय में डंफ़ु के आविष्कार के बारे में कई कहानियाँ हैं। एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, एक शिकारी पेंग दोरजे ने एक बार एक सुंदर हिरण को मारा और उसे घर ले आया। मृत जानवर को देखकर उसकी पत्नी रोने लगी। हालाँकि पेंग ने अपनी पत्नी की मनोस्थिति सुधारने की पूरी कोशिश की लेकिन वह ऐसा करने में असमर्थ रहा। एक दिन वह चार फुट लंबी लकड़ी का टुकड़ा लाया जिसे चार इंच की चौड़ाई में गोल घेरे का आकार दिया। उसने बत्तीस छोटी छड़ियाँ भी बनाई और इन छड़ियों की मदद से हिरण की सूखी त्वचा को गोल घेरे के एक तरफ कस दिया। उसने अपने नए बनाए गए वाद्य यंत्र से ताल मिलाते हुए देवताओं और अपने पूर्वजों को याद करते हुए गीत गाने शुरू कर दिए। जंगल के सभी जीवों ने संगीत पर नृत्य करना शुरू कर दिया। यहाँ तक कि उसकी पत्नी भी अपना दुख भूलकर नृत्य में शामिल हो गई। एक पक्षी, 'डंफ़ा', ने इतनी खूबसूरती से नृत्य किया कि डोरजे ने अपने वाद्य यंत्र का नाम उसके नाम पर रखने का फैसला किया। डंफ़ु जल्द ही तमांगों की जीवन शैली का एक अभिन्न अंग बन गया। डंफ़ु बुद्ध और बोधिसत्व का प्रतीक भी है, जिसकी बत्तीस बाँस की छड़ें बुद्ध के बत्तीस प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करती हैं।